अनुराग कश्यप का पक्ष

(चवन्नी ने अनुराग कश्यप के ब्लॉग का एक अंश तीन दिनों पहले पोस्ट किया तह.तभी वादा किया था कि पूरा पोस्ट जल्दी ही आप पढेंगे.पेश है सम्पूर्ण पोस्ट...आप पढें और अपनी राय ज़रूर दें.एक विमर्श शुरू हो तो और अच्छा... )

कोई वास्तव में होवार्ड रोअर्क नहीं हो सकता ॥ बाकी सब 'उसकी तरह होना' चाहते हैं … आयन रैंड की सफलता इसी तथ्य में है कि उनहोंने एक ऐसे हीरो का सृजन किया, जिसकी तरह हर कोई होना चाहेगा, लेकिन हो नहीं सकेगा … वह खुद जीवन से पलायन कर अपने किसी चरित्र में नहीं ढल सकीं। दुनिया को बदलने की ख्वाहिश अच्छी है, कई बार इसे बदलने की कोशिश भी पर्याप्त है, वास्तव में बदल देना तो चमत्कार है …

हमलोग अपने इंटरव्यू में ढेर सारी बातें करते हैं, उससे ज्यादा हम महसूस करते हैं, लेकिन बता नहीं पाते हैं। अनाइस नीन के शब्‌दों में, हम सभी जो कह सकते हैं, वही कहना लेखक का काम नहीं है, हम जो नहीं कह सकते, लेखक वह कहे …' इस लेख को लिखने की वजह मुझ पर लगातार लग रहे आरोप हैं, जिनमें मैं जूझता रहा हूं … मैं ईमानदारी से सारे सवालों के जवाब देता हूं, उन जवाबों को संपादित कर संदर्भ से अलग कर सनसनी फैलाने के लिए छाप दिया जाता है … ' नो स्मोकिंग ' के बारे में दिया गया इंटरव्यू कुछ और हो जाता है और उसका शीर्षक बनता है ' यशराज हमारी परवाह नहीं करता …'हां, मैं यह कहता हूं, लेकिन जिस संदर्भ या बात के दौरान कहता हूं … वह हमेशा कट जाता है। इस से मुझे जो नुकसान होना होता है, वह तो हो ही जाता है, लेकिन जो बात रखना चाहता हूं…वह बात नहीं आ पाती … इसलिए मैंने सोचा कि मैं बगैर लाग-लपेट के बात करूं … पिछले एक महीने में मेरे और पीएफसी के प्रति लोग बलबला रहे हैं और कई उंगलियां हमारी तरफ उठ रही हैं … कई लोगों को इसमें मजा आ रहा है। एक व्यक्ति ने मुझे नए फिल्मकारों का मसीहा कहा … उन्होंने कहा कि मैं यही होना चाहता हूं … नहीं … अजय जी से बातचीत के दरम्यान उद्घृत करने लायक पंक्ति आ गई … मैं तब से लगातार उसका इस्तेमाल कर रहा हूं … ' यहां जो हो रहा है, वह गदर है, आजादी बाद में आएगी … अगर 1857 का गदर नहीं हुआ होता तो 1947 में आजादी नहीं मिली होती … ' पीएफसी पर जो हो रहा है, वह मेरा किया हुआ नहीं है, मैं पीएफसी नहीं हूं, यह मेरा साइट है, क्योंकि मैं यहां लिखता हूं … यह मेरा खरीदा हुआ साइट नहीं है, मैं मालिक नहीं हूं … मेरी राय पीएफसी की राय नहीं है, पीएफसी मुझ से ज्यादा लोकतांत्रिक है …

हां, मैं बदलाव चाहता हूं … हां, मैं लोगों को साथ लाना चाहता हूं, लेकिन मैं यहां दोस्तों का प्रचार नहीं कर रहा हूं …फिल्मकारों से मेरी दोस्ती उनकी फिल्में देखने के बाद उनकी फिल्मों से प्रेरित होने के कारण हुई … कॉफी विद करण पर केवल पलटवार किया जाता है …वहां वही मेहमान बार-बार आते हैं और एक-दूसरे को खुश करने में लगे रहते हैं। मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम्हारे पापा और चाचा और चाची मुझे प्यारे लगते हैं …अगर अभिषेक, ऋतिक रोशन aur शाहरुख खान में से ही बड़े स्टार के बारे में पूछा जाएगा तो क्या जवाब मिलेगा …वहां आमिर का नाम क्यों नहीं लिया जाता …कॉफी विद करण परस्पर हस्तमैथुन का क्लब है …पीएफसी ऐसा नहीं है … यहां हम ' दूसरे की पीठ थपथपाते ' हैं … मुझ पर आरोप है कि मैं अपने दोस्तों की फिल्में प्रचारित करता हूं … मैंने जिन फिल्मों की बातें की थीं … उनमें से पांच रिलीज हो चुकी हैं …भेजा फ्राय, मनोरमा, जॉनी गद्‌दार, दिल दोस्ती एटसेट्रा और लॉयन्स ऑफ पंजाब … इनमें से पहली के अलावा बाकी कोई जोरदार सफलता नहीं हासिल कर सकी …लेकिन वे सभी प्रेरक हैं और बदलाव का संकेत दे रही हैं …उनमें ताजगी है और उन्हें मैं नया हिंदी सिनेमा कहना चाहूंगा …'

ऐसी फिल्में बनाना और उन्हें सिनेमाघरों तक पहुंचाना खामोश एवं सृजनात्मक गदर की तरह है ... मैं उनके बारे में इसलिए लिखता हूं कि वैसी फिल्मों में रुचि रखनेवालों को जानकारी मिल सके ... कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें वैसी फिल्में कतई पसंद नहीं हैं ... कुछ समीक्षकों की इनमें रुचि रहती है और बाकी समीक्षक या तो पृथक रुचि के हैं या फिर वे हैं ' जिन्होंने बेहतर सिनेमा देखा है और सोचते हैं कि बेहतर हो सकता है ... ' इन आखिरी असंतुष्ट लोगों को हिंदी फिल्मों की आजादी चाहिए ... ये वो लोग हैं, जो कर के बताते हैं कि सही क्या है और ऐसे ही लोग बदलाव लाएंगे ... इसलिए पीएफसी का कोई उद्‌देश्य नहीं है ... हां, वह उद्‌देश्य की पूर्ति करता है ... अगला भव्य स्मारक वर्त्तमान जमीन पर ही बनेगा और अगर जमीन नहीं मिलेगी तो हम जर्जर हो चुकी व्यवस्था को तोड़ देंगे ताकि नयी व्यवस्था कायम हो ... ऐसा वे ही लोग कर सकते हैं, जिन्होंने जिंदगी जी और देखी है ... उन्होंने उम्दा पढ़ाई की है और वे अपने दिल की बात कागज और पर्दे पर रख सकते हैं ... नोबेल पुरस्कार विजेता टोनी मोरीसन को उद्घृत करना चाहूंगा ... ' अगर कोई ऐसी किताब आप पढ़ना चाहते हैं, जो अभी तक नहीं लिखी गयी है तो उसे आप जरूर लिखें।'

इस लेख को लिखने की वजह अपना इरादा बताना है ... कोई एजेंडा नहीं है, लेकिन मैं साधारणता (मीडियोक्रेटी) से थक गया हूं ... इसका मतलब यह नहीं है कि मैं खुद से बेहतर की तुलना में मीडियाकर नहीं हूं ... मैं भी उसी मीडियोक्रेटी में तैर रहा हूं, लेकिन मैं तैरते हुए देख रहा हूं कि बाकी लोग उपला रहे हैं ... वे कहीं जाना नहीं चाहते ... अपने आसपास कुछ खोजना नहीं चाहते ... उस निर्माता को गाली देने का मतलब नहीं है, जो अपनी रसोई के लिए फिल्म बना रहा है, आप मीडियोक्रेटी को चुनौती देकर या गाली देकर बदलाव नहीं ला सकते ... जरूरत है कि आप शहंशाह को चुनौती दें ... उसके चेहरे के आगे आईना रखें ... या तो वह अपना सिंहासन बचाए रखने के लिए बदले या फिर सिंहासन खाली करे ... मैं ऐसा नहीं कर सकता, कोई दूसरा व्यक्ति नहीं कर सकता ... बहुसंख्यक के आह्‌वान के बाद ही ऐसा हो सकता है ... अगर यह 'बहुसंख्यक ' पीएफसी पर है तो हमें वह ताकत देता है कि हम अपना छोटा देश बनाएं ... जो ज्यादा लोकतांत्रिक होगा ... वैसे साइट से बेहतर होगा जो मेरे एवं दूसरों के इंटरव्यू एडिट कर देते हैं ...

मैं होवार्ड रोअर्क नहीं हूं और कभी हो भी नहीं सकता ... हाल ही में मुझ पर आरोप लगा कि मैं होना चाहता हूं ... वह होने के लिए मुझे पहले अपने परिवार को मारना होगा ... होवर्ड रोअर्क वैसा इसलिए हो सका कि वह शुरू से किसी भावनात्मक बंधन में नहीं था ... हमें नहीं मालूम कि वह किस के गर्भ से आया था ... इसलिए उस पर केवल शारीरिक आक्रमण ही हो सकता था ... उसे उनकी आंखों में नहीं देखना था ... मेरी एक बेटी है और वह मुझे कमजोर बना देती है, सफलता की आकांक्षा मुझे कमजोर बनाती है, सुविधाओं की चाहत मुझे कमजोर बनाती है ... मैं कमजोर हूं, इसीलिए ऐसा हूं ... मैं बस आततायी हूं ... और यह मेरी हताश चीख है ... यह चीख बदलाव के लिए है, पहली बार अपने अस्तित्व के लिए थी, सिर्फ अपने अस्तित्व के लिए और कुछ नहीं ... मेरी पहली चीख जिंदा रहने की थी, जो बहरे कानों में पड़ी ... किसी ने नहीं सुना तो मैंने और जोर, फिर और ज्यादा जोर से चीख मारी ... मेरी चीखों ने उन्हें परेशान कर दिया ... परेशान होकर उन्होंने प्रतिक्रिया की, लेकिन वह मेरे लिए कल्पनातीत था ... वे मुझ से घबरा गए, उन्हें मैं संभावित दुश्मन लगा, इसलिए उन्होंने मुझे बर्बाद करने की कोशिश की ... इसलिए मैं अपने एटीट्‌यूड में आक्रामक हो गया और यह आक्रामकता सिर्फ अपने अस्तित्व के लिए थी ... फिर मुझे थोड़े से अपने लोग मिले ... मैं टिका रह सका ... अस्तित्व बनाए रखने में कोई बुराई नहीं है ... मैंने अपने अस्तित्व के लिए पाला नहीं बदला ... हां, वो मुझ से समय-समय पर खेलते हैं, लेकिन मैंने पाला नहीं बदला ... बहुतों के लिए यह उनकी और हमारी लड़ाई नहीं है ... मेरे लिए यह हो गई, क्योंकि मैं जूझा ... कैसे ... मैं बताता हूं।

यशराज के लोगों ने मुझ पर बांबे टाइम्स की सुर्खी ' अनुराग ने झूम बराबर झूम से खुद को अलग किया ' पढ़ का आरोप लगाया, उन्होंने कहा कि पहले वह हमें गाली देता है और फिर झूम बराबर झूम के पैसे मांगता है और फिर खुद को अलग कर लेता है, यह कैसा पाखंड है। 'मैं पैसे मांगता हूं, क्योंकि मैंने बहुत काम किया है और खुद को अलग इसलिए करता हूं कि उन्होंने बच्चे की शक्ल ही बदल दी और उन्होंने मुझ से बगैर पूछे सब कुछ बदल दिया, इसलिए खुद को अलग कर लेता हूं। अगर मैं उस फैसले में सहभागी नहीं था तो वह मेरा कैसे हो सकता है ... मैं पैसे लूंगा, क्योंकि मैं आपका नौकर था (लेखक के तौर पर मुझे यही इज्जत मिली थी) ... अगर वे कहते कि मुझे तुम्हारी स्क्रिप्ट अच्छी नहीं लगी तो मैं खरीद लेता ... लेकिन उन्होंने किया और मेरे पास नए तरीके से लिखा ड्राफ्ट भी भेज दिया ... (उसी से मुझे पता चला और मैंने तभी पुणे के स्क्रीन राइटर कांफ्रेंस में जिक्र किया) ... वे नए ड्राफ्ट में मेरी मदद चाहते थे ... वे चाहते थे कि मैं उनका काम कर दूं, क्योंकि वे यशराज हैं और मैं कुछ भी नहीं हूं ... उनसे मेरी यही शिकायत है और जब मैंने एसएमएस किया तो उन्होंने बात करने के लिए जयदीप को भेजा ... जयदीप की मैं इज्जत करता हूं, इसलिए मैं कमजोर पड़ गया ... फिल्मों में आने के पहले से शाद मेरा दोस्त है, इसलिए मैं भावुक हो गया ... इसलिए कुछ न कर सका और उबलता रहा।

जब मेरी फिल्म रोम के लिए चुनी गयी तो वहां किसी ने सेलेक्शन समिति को समझाने की कोशिश की कि मेरी फिल्म लेने का कोई तुक नहीं है, क्योंकि मेरी कोई औकात नहीं है ... लागा चुनरी में दाग लेनी चाहिए v क्योंकि वे खास हैं ... मैं केवल अपने प्रारब्‌ध को धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने उनकी नहीं सुनी ... टोरंटो में उन्होंने सुन ली थी और ओमकारा की जगह कभी अलविदा ना कहना को चुन लिया था ... ओमकारा को अंतिम क्षणों में रद्‌द किया गया था - वे ठीक से नहीं खेलते, वे 'पावर गेम ' खेलते हैं ... मैं कहता हूं। यह भी सही है।

मैं पहली बार यह सब बता रहा हूं, क्योंकि मैं यशराज का निंदक कहलाते-कहलाते थक गया हूं ... लोग जब कहते हैं कि हम पलटवार करते हैं तो मुझे बुरा लगता है ... यहां हर पोस्ट लेखक की मर्जी से आता है ... अगर कोई ‘लागा चुनरी में दाग‘ का अच्छा रिव्यू नहीं लिखता तो क्या करें ... लेकिन उन्होंने ‘चक दे‘ की तारीफ की ... इसलिए यहां सिनेमा की भूख और चाहत बनी रहती है ... मेरा सनकीपन मेरा अपना है और अगर कोई नहीं चाहता तो न पढ़े ...

Comments

Anonymous said…
बहुत अच्छा चवन्नी...तुम ने मेरी बात मान ली.पढ़ने के बाद समझ में आया कि मशहूर लोग भी ओछा स्वभाव रखते हैं.
आलोक said…
आप अपने लेखों में एलिप्सिस (...) का इस्तेमाल कम करेंगे तो अच्छा होगा।
chavannichap said…
यह अनुराग कश्यप की शैली है.अनुवाद में फेरबदल न करते हुए वैसे ही लाने का प्रयास किया है चवन्नी ने.
yah chalan to hamesha se hi chala aa raha hai ki yah jaroori nahin hai ki har kalakar usa manjil tak pahunch hi jaay jitani vah kshamata rakhta hai.

kitane anurag kashyap apane ko bade namon ke pichhe bech rahe hain. anurag kashyap ne badi dileri se aur bebak kaha hai. prashansniya aur sarahniya hai.

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