पैसे कमाने का शॉर्टकट हैं मल्टीस्टारर फिल्में

-ajay brahmatmaj

पिछले साल की कामयाब फिल्मों पर सरसरी निगाह डालने पर हम पाते हैं कि उन फिल्मों में से अधिकांश में एक से अधिक स्टार थे। अक्षय कुमार, सलमान खान, गोविंदा और बाकी स्टार भी जमात में आने पर ही कामयाब हो सके। ऐसा लगता है कि सोलो हीरो की फिल्मों का रिस्क बढ़ गया है और इसीलिए उनके प्रति दर्शकों की रुचि भी अब कमहो गई है। सैफ अली खान का ही उदाहरण लें। हां, इस साल उनकी रेस कामयाब जरूर हुई, लेकिन पिछले साल ता रा रम पम पिट गई। हालांकि आमिर खान और शाहिद कपूर अपवाद कहे जा सकते हैं, क्योंकि तारे जमीं पर और जब वी मेट में उन्होंने अकेले ही दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। ओम शांति ओम में भी अकेले शाहरुख खान थे, लेकिन एक स्तर पर उसमें भी स्टारों की भारी भीड़ थी। भले ही वह भीड़ एक गाने में रही हो!

दरअसल, इस साल भी वही ट्रेंड आगे बढ़ता दिख रहा है। रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय के भावपूर्ण अभिनय से सजी फिल्म जोधा-अकबर को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी। उसकी तुलना में रेस साधारण फिल्म थी, लेकिन सैफ, अक्षय खन्ना, अनिल कपूर, कैटरीना कैफ और बिपाशा बसु की मौजूदगी ने दर्शकों को आकर्षित किया। इस हफ्ते रिलीज हो रही यशराज फिल्म्स की टशन में फिर से सैफ और अनिल कपूर हैं। उनके साथ करीना कपूर और अक्षय कुमार भी हैं। माना जा रहा है कि यह फिल्म अवश्य सफल होगी। सफलता के इस विश्वास के पीछे इसफिल्म में चार स्टारों की मौजूदगी ही है। इन दिनों कॉमेडी हो या ऐक्शन या फिर किसी और प्रकार का ड्रामा, निर्देशक कोशिश करते हैं कि फिल्म में एक से अधिक स्टार हों। दरअसल, इन दिनों फिल्मों की कहानी और प्रस्तुति में इस बात की गुंजाइश रखी ही जाती है कि उसमें एक से अधिक स्टार शामिल किए जा सकें, क्योंकि आजकल सोलो हीरो या हीरोइन की फिल्मों को व्यवसाय की दृष्टि से भारी जोखिम माना जा रहा है। अगर सोलो हीरो या हीरोइन की फिल्म है, तो उसमें आइटम सॉन्ग या फिर मेहमान भूमिका के बहाने स्टार हीरो को जरूर लिया जाता है। ज्यादा स्टार हों, तो फिल्म लागत और पहचान में स्वयं ही बड़ी हो जाती है। ऐसी फिल्मों के प्रोमोशन पर पर्याप्त खर्च भी किया जाता है। माना जाता है कि हर स्टार के अपने प्रशंसक होते हैं। इसीलिए अगर फिल्म में एक से ज्यादा स्टार हैं, तो प्रशंसक भी उसी अनुपात में बढ़ते हैं और आखिरकार फिल्म के कामयाब होने की संभावना खुद-ब-खुद बढ़ जाती है।

मल्टीस्टारर फिल्मों के इस पहलू को स्वीकार करने के बावजूद एक तर्क यह भी दिया जाता है कि आज के स्टार अभिनय के लिहाज से इतने सक्षम नहीं हैं कि वे पूरी फिल्म को अकेले खींच सकें। उनकी इस कमी को छिपाने और फिल्म बिजनेस को चलाए रखने के लिए प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर्स ने तरकीब बदल ली है। मुख्य रूप से व्यवसाय और लाभ को ध्यान में रखने के कारण हर फिल्म में अधिक स्टारों को ठूंसने की कोशिश की जा रही है। कुछ ही फिल्मकार ऐसे हैं, जो अपने विषय से संचालित करते हैं। प्रकाश झा की आगामी फिल्म राजनीति का उदाहरण दें, तो वह भी मल्टीस्टारर फिल्म है। इस फिल्म में अभी तकअजय देवगन, नाना पाटेकर, मनोज बाजपेयी और रणवीर कपूर के साथ प्रियंका चोपड़ा के होने की खबर मिली है।

अगर फिल्में व्यवसाय के बजाए विषय से संचालित हों, तो ज्यादा स्टारों का होना उचित लगता है। अन्यथा, पैसे कमाने और कामयाबी हासिल करने का शॉर्टकट फॉर्मूला हो जाती हैं मल्टीस्टारर फिल्में। फिलहाल ऐसा ही लग रहा है।

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