फ़िल्म समीक्षा:लव स्टोरी २०५०

न साइंस है और न फिक्शन
-अजय ब्रह्मात्मज
हैरी बवेजा की लव स्टोरी 2050 से उम्मीद थी कि हिंदी फिल्मों को एक छलांग मिलेगी। इस फिल्म ने छलांग जरूर लगाई, लेकिन पर्याप्त शक्ति नहीं होने के कारण औंधे मुंह गिरी। अफसोस ही है कि इतनी महंगी फिल्म का यह हाल हुआ। लव स्टोरी 2050 बुरी फिल्म बनाने की महंगी कोशिश है।
फिल्म दो हिस्सों में बंटी है। इंटरवल के पहले सारे किरदार आस्ट्रेलिया में रहते हैं और जैसा कि होता आया है, वे सभी हिंदी बोलते हैं। उनके आसपास स्थानीय लोग नहीं रहते। पड़ोसियों के सिर्फ घर दिखते हैं। हां, हीरो-हीरोइन डांस करने लगें तो कुछ लोग साथ में नाचने लगते हैं और अगर उन्हें पैसे नहीं मिले हों तो वे औचक भाव से घूरते हैं, जैसे कि बंदर और मदारी को देखकर हमारा कौतूहल जाग जाता है। इंटरवल के बाद कहानी सन् 2050 की मुंबई में आ जाती है। आकाश में इतनी कारें और अन्य सवारियां उड़ती दिखाई पड़ती हैं... क्या 2050 में पतंगें सड़कों पर दौड़ेंगी और पक्षी पिंजड़ों में बंद हो जाएंगे? फिल्म में एक अजीब सी तितली है, जो 2008 के आस्ट्रेलिया में नाचती हुई आकर हथेली पर बैठ जाती है और सन् 2050 में भी हीरो-हीरोइन की आंखों के आगे आकर पुरानी यादें ताजा कर जाती है।
लव स्टोरी 2050 हैरी बवेजा का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है। ऐसा बुरा सपना उन्होंने क्यों देखा? अब वे उसे पूरी दुनिया को दिखा रहे हैं। उनके इस सपने को साकार करने में भवानी अय्यर, सुपर्ण वर्मा और अन्य दो लेखकों की भी मदद ली गई है। इन लेखकों के योगदान पर रोना आता है। कैसे कोई इतने प्रभावहीन दृश्यों की कल्पना कर सकता है और मोहविष्ट होकर उसे खींच भी सकता है। सायकिल रेस और हीरोइन तक पहुंचने की हीरो की भागदौड़ से आरंभ हुई उकताहट बढ़ती ही जाती है।
फिल्म के दृश्यों के मुताबिक संवाद लिखे गए हैं, घिसे-पिटे, पुराने और सपाट। प्रेम के प्रसंगों में भी नवीनता नहीं है। सन् 2050 की कल्पना तो और दुखी करती है। रोबोट, कंप्यूटराइज्ड घर और आकाश में चलते वाहन...भविष्य में ग्राउंड फ्लोर के निवासियों के आवागमन का साधन क्या होगा?
हां, हिंदी भाषाभाषी खुश हो सकते हैं कि सन् 2050 में भी मुंबई की बोलचाल की भाषा हिंदी ही होगी, इसलिए यह डर मन से निकाल दें कि अंग्रेजी भविष्य में हिंदी को निगल जाएगी या मुंबई से हिंदीभाषियों को खदेड़ दिया जाएगा। कहते हैं न निराशा में भी आशा छिपी होती है।

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