प्यार की उड़ान है काइट्स-राकेश रोशन

-अजय ब्रह्मात्‍मज


उनकी फिल्मों का टाइटल अंग्रेजी अक्षर 'के' से शुरू होता है और वे बॉक्स ऑफिस पर करती हैं कमाल। रिलीज से पहले ही सुर्खियां बटोर रही नई फिल्म काइट्स के पीछे क्या है कहानी, पढि़ए राकेश रोशन के इस स्पेशल इंटरव्यू में-

[इस बार आपकी फिल्म का शीर्षक अंग्रेजी में है?]

2007 में अपनी अगली फिल्म के बारे में सोचते समय मैंने पाया कि आसपास अंग्रेजी का व्यवहार बढ़ चुका है। घर बाहर, होटल, ट्रांसपोर्ट; हर जगह लोग धड़ल्ले से अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे हैं। लगा कि मेरी नई फिल्म आने तक यह और बढ़ेगा। ग्लोबलाइजेशन में सब कुछ बदल रहा है। अब पाजामा और धोती पहने कम लोग दिखते हैं। सभी जींस-टीशर्ट में आ गए हैं और अंग्रेजी बोलने लगे हैं। यहीं से काइट्स का खयाल आया। एक ऐसी फिल्म का विचार आया कि लड़का तो भारतीय हो, लेकिन लड़की पश्चिम की हो। उन दोनों की प्रेमकहानी भाषा एवं देश से परे हो।

]यह प्रेम कहानी भाषा से परे है, तो दर्शक समझेंगे कैसे?]

पहले सोचा था कि भारतीय एक्ट्रेस लेंगे और उसे मैक्सिकन दिखाएंगे। बताएंगे कि वह बचपन से वहां रहती है, इसलिए उसे हिंदी नहीं आती। फिर लगा कि यह गलत होगा। यह सब सोच कर विदेशी लड़की ली और फिल्म की शूटिंग भी विदेश में की। हमारी फिल्म का हीरो जय है। वह इस लड़की के साथ टूटी-फूटी भाषा में कम्युनिकेट करता है। इस फिल्म में जबरदस्ती हिंदी संवाद नहीं रखे गए। अंग्रेजी संवादों को एक्सप्लेन भी नहीं किया गया है हिंदी में। लड़की स्पेनिश बोलती है और उसे हमारा हीरो समझ लेता है तो निश्चित ही दर्शक भी समझ लेंगे। प्यार किसी भाषा, मजहब और देश से बंध कर नहीं रहता। यह दो ऐसे प्रेमियों की कहानी है, जो एक-दूसरे की भाषा नहीं समझते। ऐसे प्यार की मुसीबतें हो सकती हैं और फिर हम ने दिखाया कि दोनों प्यार के लिए किस हद तक जा सकते हैं? उन्हें अपने प्यार के लिए क्या-क्या करना पड़ता है?

[काइट्स की थीम क्या है? किस तरह की प्रेमकथा है यह?]

रितिक ने मेरे साथ कहो ना ़ ़ ़ प्यार है की थी। काइट्स एक अलग लवस्टोरी है। इसमें हीरो-हीरोइन किसी और उद्देश्य से निकलते हैं, लेकिन रास्ते में कोई और चीज मिल जाती है। फिर उन्हें दुविधा होती है कि इस रास्ते जाएं या उस रास्ते ़ ़ ़ दूसरा रास्ता चुनते ही उनमें प्यार होता है। उसके साथ मुसीबतें भी बढ़ती है, फिर भी वे अपने प्यार का झंडा गाड़ते हैं। काइट्स यानी पतंगों की तरह वे हवा के खिलाफ उड़ते हैं। प्यार के आकाश में मिलते हैं। जितनी तेज हवा होगी, पतंग की उड़ान उतनी ऊंची होती है। काइट्स का सिंबोलिक इस्तेमाल किया गया है टायटल में।

[प्रयोग तो अच्छा है, पर क्या सबको पसंद आएगा?]

अभी कोई भी नहीं कह सकता कि काइट्स कितनी चलेगी, पर टेक्नीकली और मेकिंग के लिहाज से हमने व‌र्ल्ड स्टैंडर्ड के टेक्नीशियन और नो हाऊ का इस्तेमाल किया है। फोटोग्राफी, बैकग्राउंड, लोकेशन, परफार्मेस किसी भी फील्ड में आप काइट्स की तुलना दुनिया की अच्छी फिल्मों से कर सकते हैं। काइट्स के लिए मैंने 58 कारें खरीदी थी। एक एकड़ जमीन किराए पर लेकर गैराज बनाया था। वहां 16 मैकेनिक रोजाना काम करते थे। उन कारों को विशेष गाड़ियों से उठाकर शूटिंग के लिए ले जाया जाता था, क्योंकि बगैर रजिस्टर्ड नंबर प्लेट के आप कार सड़क पर नहीं चला सकते थे। हम हाईवे किराए पर लेकर अपनी शूटिंग करते थे। जो गाड़ियां ठुक जाती थीं, उन्हें रिपेयर किया जाता था। अभी तक हिंदी फिल्में इस पैमाने पर शूट ही नहीं की गई हैं।

[निर्देशन के लिए अनुराग बसु का नाम कैसे फाइनल हुआ? इस पर रितिक का रिस्पांस क्या रहा?]

डायरेक्टर अनुराग बसु के बारे में मैंने बाद में पता किया। पहले तो उस साल के सभी अवार्ड समारोह में कृष, मुन्नाभाई, रंग दे बसंती के साथ गैंगस्टर का नाम सुन कर मैं चौंक रहा था। मैंने गैंगस्टर मंगा कर देखी। मुझे अनुराग बसु का काम पसंद आया। मैंने अनुराग को बुलाया और पूछा कि क्या तुम्हारे पास कोई कहानी है? उसके ना कहने पर मैंने काइट्स की कहानी दी। उसे झिझक थी। उसने कहा भी कि,''मैं तो छोटे बजट की फिल्में लिखता और बनाता हूं, फिर रितिक के बारे में कैसे सोच सकता हूं।'' खैर, मैंने कहानी देकर कहा कि अगर तुम्हारे दिल को यह कहानी छुए तो इस पर काम शुरू करो। अनुराग ने एक महीने का समय मांगा। कुछ महीनों के बाद आकर अनुराग ने कहानी सुनाई। उसने कहानी का सुर पकड़ लिया था। उसका नैरेटिव मुझ से अलग था। मुझे उसकी कहानी पसंद आई। मैंने ग्रीन सिग्नल दिया तो भी अनुराग को विश्वास नहीं हो रहा था। उसने फिर से पूछा, ''आप सच्ची में मुझे रितिक दे रहे हैं?'' मैंने अनुराग को आश्वस्त किया कि सिर्फ रितिक ही नहीं दे रहा हूं। मैं भी तुम्हारे साथ हूं प्रोड्यूसर के तौर पर। तुम्हारे दिमाग में जो आता है लिखो और जितना उड़ सकते हो ़ ़ ़ उड़ो। फिर तो उसने ऐसी उड़ान भरी कि सभी को खुश कर दिया। पहली बार में ही रितिक मंत्रमुग्ध हो गया। उसका एक ही सवाल था कि कब शुरू करनी है फिल्म?

[आपको बॉलीवुड की चाल से हट कर काम करने वाला निर्माता माना जाता है। इतना रिस्क लेने से डर नहीं लगता?]

दरअसल..मैं एक तरह की फिल्में बना ही नहीं सकता। मैंने पिछली कामयाब फिल्म को कभी नहीं दोहराया। मैंने खुदगर्ज, खून भरी मांग, करण-अर्जुन, खेल, कहो ना ़ ़ ़ प्यार है, कोई ़ ़ ़ मिल गया और कृष जैसी फिल्म के बाद काइट्स का निर्माण किया। मैं हमेशा चैलेंजिंग विषय लेता हूं। शुरू में हमेशा लगता है कि इस बार फिल्म नहीं बन पाएगी, फिर चौकन्ना होकर काम करता हूं। मुझे यह सुनने का शौक है कि मेरी पिक्चर देखने के बाद लोग कहें कि वाह, क्या पिक्चर बनाई है?

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