फिल्‍म समीक्षा:काइट्स

-अजय ब्रह्मात्‍मज 

रितिक रोशन बौर बारबरा मोरी की काइट्स के रोमांस को समझने के लिए कतई जरूरी नहीं है कि आप को हिंदी, अंग्रेजी और स्पेनिश आती हो। यह एक भावपूर्ण फिल्म है। इस फिल्म में तीनों भाषाओं का इस्तेमाल किया गया है और दुनिया के विभिन्न हिस्सों के दर्शकों का खयाल रखते हुए हिंदी और अंग्रेजी में सबटाइटल्स दिए गए हैं। अगर आप उत्तर भारत में हों तो आपको सारे संवाद हिंदी में पढ़ने को मिल जाएंगे। काइट्स न्यू एज हिंदी सिनेमा है। यह हिंदी सिनेमा की नई उड़ान है। फिल्म की कहानी पारंपरिक प्रेम कहानी है, लेकिन उसकी प्रस्तुति में नवीनता है। हीरो-हीरोइन का अबाधित रोमांस सुंदर और सराहनीय है। काइट्स विदेशी परिवेश में विदेशी चरित्रों की प्रेमकहानी है।

जे एक भारतवंशी लड़का है। वह आजीविका के लिए डांस सिखाता है और जल्दी से जल्दी पैसे कमाने के लिए नकली शादी और पायरेटेड डीवीडी बेचने का भी धंधा कर चुका है। उस पर एक स्टूडेंट जिना का दिल आ जाता है। पहले तो वह उसे झटक देता है, लेकिन बाद में जिना की अमीरी का एहसास होने के बाद दोस्ती गांठता है। प्रेम का नाटक करता है। वहीं उसकी मुलाकात नताशा से होती है। नताशा के व्यक्तित्व और सौंदर्य से वह सम्मोहित होता है। नताशा भी पैसों के चक्कर में जिना के भाई टोनी से शादी का फरेब रच रही है। दोनों एक-दूसरे से यह राज जाहिर करते हैं तो उनके बीच का रोमांस और गहरा हो जाता है। जे और नताशा का रोमांस दोनों भाई-बहनों को नागवार गुजरता है। उसके बाद आरंभ होती है चेजिंग, एक्शन और भागदौड़। जे और नताशा साथ होने की हर संभव कोशिश करते हैं। शादी रचाते हैं, लेकिन उनके दुश्मनों को यह सब मंजूर नहीं। वे उनकी जान के पीछे पड़े हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स अवसाद पैदा करता है।

अनुराग बसु की गैंगस्टर और मैट्रो देख चुके दर्शकों को इस फिल्म में भी उनकी शैली की झलक मिलेगी। अनुराग बसु की फिल्मों में विशाल दुनिया में दो प्रेमियों की अंतरंगता अनोखे तरीके से चित्रित की जाती है। हर फिल्म में उनका सिग्नेचर शॉट रहता है, जिसमें हीरो-हीरोइन छत पर बैठे अपने प्रेम के भरपूर एहसास में डूब कर दुनिया से बेपरवाह हो जाते हैं। उस क्षण उन्हें भविष्य की चिंता नहीं रहती। रोमांस का यह आवेश कम फिल्मकार चित्रित कर पाते हैं। काइट्स में रितिक रोशन और बारबरा मोरी के केमिस्ट्रिी में रोमांस की शारीरिकता भी व्यक्त हुई है। हिंदी फिल्मों के प्रचलित रोमांस में आलिंगनबद्ध प्रेमी-प्रेमिका भी एक-दूसरे से खिंचे-खिंचे नजर आते हैं। काइट्स के रोमांस में शरीर अड़चन नहीं है। रितिक रोशन की मेहनत और बारबरा मोरी की स्वाभाविकता से हमें काइट्स में नए किस्म का रोमांस दिखता है। रोमांस के साथ ही फिल्म का एक्शन निराला है। रितिक रोशन एक्शन दृश्यों में विश्वसनीय लगते हैं। डांसर रितिक रोशन के प्रशंसकों को इस फिल्म में भी कुछ नए स्टेप्स मिल जाएंगे।

नए लोकेशन की खूबसूरती फिल्म की सुंदरता बढ़ाती है। काइट्स में निर्देशक ने स्थानीय प्राकृतिक संपदाओं का प्रासंगिक उपयोग किया है। सिनेमैटोग्राफी फिल्म के प्रभाव में इजाफा करती है। फिल्म का संगीत कमजोर है। अगर परिवेश और आधुनिकता का खयाल रखते हुए संगीत में नई ध्वनियां सुनाई पड़तीं तो ज्यादा मजा आता। काइट्स हिंदी फिल्मों की संक्राति (ट्रांजिशन) के दौर का सिनेमा है। यह नए सिनेमा का स्पष्ट संकेत देती है और पारंपरिक हिंदी फिल्मों की खूबियों को समाहित कर प्रयोग कराती है। फिल्म में मिश्रित भाषा का प्रयोग अनूठा है। 

*** तीन स्टार

Comments

"चली-चली रे पतंग मेरी चली रे। उड़ी बादलों के पार होके डोर पे सवार। देख दुनिया यह देख-देख जली रे" कि तर्ज पर देखते हैं कि रितिक और बारबरा की पतंग कहां और कितनी दूर तलक उड़ती है।
Parul kanani said…
hmm..dekhni hai jaldi hi :)
नस-वस said…
aapki sameeksha padhkar lag raha hai ki film ek baar dekhi ja sakti hai kyun ki it is an ordinary love story with a different treatment.
aapne to yahin film dikhaa di...ab hall kyaa karne jaayen....??
अजय जी आप समीक्षा के अंत में यदि यह लिख देंगे कि फिल्म देखी जा सकती है या नहीं तो मैं आपकी बात मानकर फिल्म देखने चला जाया करूंगा और आपको वक्त बचाने के लिए धन्यवाद भी दिया करूंगा। यह मेरा एक निवेदन है। तीन स्टार और पांच स्टार अपनी समझ में नहीं आते।
नया सिनेमा, यह शब्द मुझे बेहद भाता है। आप पर्दे पर कितना प्रयोग करते हैं, यह ठीक वैसे ही जैसे कुछ लिखते वक्त आपकी शैली में कितना नयापन उभर कर सामने आता है। नया करने की जिद होती है, भले ही असफल हो जाए लेकिन खुशी जरूर होती है कि चलिए कुछ नयापन देखने-पढ़ने और समझने को मिला है। काइट्स कुछ ऐसी ही है। आपने अंत में ठीक ही लिखा है कि फिल्मों की संक्राति (ट्रांजिशन) के दौर का सिनेमा है काइट्स।
darasal hamare filmkaron ko videshi location dikhane me maja aata hai aur shayad darshkon ko romanch bhi. lekin bina dor ki patang ant me gir jaati hai jisase badi nirasha hui.

ek achchhi samiksha badhai.....

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