हर किरदार को शिद्दत से जीती हैं विद्या बालन

-अजय ब्रह्मात्‍मज

सिर्फ साढे पांच साल पहले उनकी पहली हिंदी फिल्म परिणीता रिलीज हुई थी, लेकिन न जाने क्यों ऐसा लगता है कि वह कई सालों से पर्दे पर हैं। अभिनय में उनकी दक्षता और चरित्रों को साकार करने की सहजता से यह भ्रम होता है। नो वन किल्ड जेसिका उनकी बारहवीं फिल्म थी। इसमें जेसिका की बहन सबरीना लाल की जद्दोजहद, जिद और जोश को विद्या बालन ने बगैर नाटकीय हुए जाहिर किया। न किसी दृश्य में उनकी नसें तनीं, न वह कहीं चिल्लाती नजर आई। फिर भी उनकी खामोश चीख ने हमारे कानों के पर्दे फाड डाले। उन्हें अभिनय के लिए किसी श्रृंगार या एक्सेसरीज की जरूरत नहीं पडती। उनकी सादगी पसंद आती है और उनकी अदायगी मोह लेती है।

हिंदी फिल्मों की हीरोइनें जिस उम्र में रिटायर होने लगती हैं, उसमें विद्या की पहली फिल्म परिणीता आई। पा में उन्होंने खुद से दोगुने उम्र के कद्दावर अभिनेता अमिताभ बच्चन की मां की भूमिका निभाई। प्रेमी से अलग होकर अपने विशेष बच्चे को पालने वाली डॉ.विद्या की भूमिका को उन्होंने बखूबी निभाया। प्रेमी की मांग से डॉ. विद्या का मुकरना और फिर से हुई मुलाकात पर बिफरना एक लेखक-निर्देशक की आजाद औरत की कल्पना हो सकती है, किंतु उसे पूरे भावावेग से पर्दे पर चरितार्थ करने में विद्या ने कोई कसर नहीं रहने दी।

इश्किया में वह नसीरुद्दीन शाह जैसे मंजे हुए अभिनेता का मुकाबला करती हैं, लेकिन उनका आत्मविश्वास नहीं डिगता। सालों पहले इसी सशक्त अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की आवाज सुनने के लिए विद्या उनके घर फोन लगाती थीं। घर में न होने पर लोग लैंडलाइन पर रिकॉर्डेड मैसेज छोड देते थे। उस मैसेज को विद्या सुनती थीं और नसीर की आवाज से गदगद एवं रोमांचित होती थीं। दो साल पहले उन्हें चंद दिनों के आगे-पीछे लोकप्रिय अभिनेता अमिताभ बच्चन और रियल अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के साथ पा और इश्किया में अभिनय का मौका मिला। फिल्म देखते हुए एहसास नहीं होता कि कभी नसीर से बात करने की हिम्मत तक न कर पाने वाली वह लडकी आज उनके साथ स्क्रीन शेयर कर रही है और कहीं भी कमजोर पडती नजर नहीं आ रही है। इश्किया की सांवली कृष्णा के कामोत्तेजक इशारों में अश्लीलता नहीं है। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाके में साडी से पूरी तरह ढकी एक चालाक औरत की कुटिल मुस्कान मामा नसीर और भांजे अरशद को कन्फ्यूज कर देती है, लेकिन दर्शक उसके इरादों को भांप लेते हैं। यह कनेक्शन है विद्या का दर्शकों से।

साफ हिंदी उच्चारण

मुझे याद है उनकी पहली फिल्म परिणीता रिलीज होने को थी। मेरे सामने विकल्प था कि मैं विधु विनोद चोपडा के दफ्तर या उनके चेंबूर आवास पर जाकर उनका इंटरव्यू करूं। दिक्कत एक ही थी कि सुबह-सुबह मुंबई की वेस्टर्न लाइन से सेंट्रल लाइन का भीड भरा सफर करना पडता। लेकिन मैंने चेंबूर का विकल्प चुना। अभिनेता-अभिनेत्री से उनके घरेलू माहौल में मिलने का अनुभव अलग होता है। अंबेडकर गार्डन के रोड नंबर 11 के मध्यवर्गीय रिहाइशी इलाके में उनके घर का पता पूछ ही रहा था कि वह खिडकी पर दिखीं। सुबह की धूप में खिडकी के पास खडी विद्या की वह छवि मेरी स्मृति के फ्रेम में जड गई है। उन्होंने दक्षिण भारतीय लडकियों की तरह बाल खुले रखे थे। ड्राइंग रूम में धूप-अगरबत्ती की खुशबू थी। पहली मुलाकात में ही विद्या के व्यक्तित्व का जादू काम कर गया।

क्या कभी गौर किया है कि उनकी आवाज में एक गहन आत्मीयता है, जो करीब लाती है। उनके हिंदी उच्चारण में रत्ती भर भी दक्षिण भारतीय भाषाओं या मराठी की छाप नहीं है। उच्चारण की इस शुचिता का श्रेय विद्या बालन अपनी पुरानी हिंदीभाषी पडोसन को देती हैं, जिनके संग उनके बचपन के महत्वपूर्ण क्षण बीते हैं।

सही-गलत फैसले

विद्या की सबसे बडी खासियत है कि वह आतंकित नहीं करतीं। उनके रूप, ग्लैमर, अभिनय और आकर्षण में अलगाव नहीं रहता। सज-संवरकर वह घर की दुल्हन लगती हैं तो सामान्य रहने पर बेटी जैसी। बहन की तरह इठलाती हैं तो प्रेमिका की तरह रूठती हैं। सारी भंगिमाएं आसपास की और जानी-पहचानी लगती हैं। अभी तक उन्होंने रुपहले पर्दे पर मध्यवर्गीय समाज की परिचित छवियों को ही निभाया है। परिणीता की लोलिता हो या लगे रहो मुन्ना भाई की जाह्नवी..पहली फिल्म में उन्होंने बंगबाला का किरदार निभाया और दूसरी फिल्म में मुंबई के आर.जे. का किरदार। एक पीरियड फिल्म, दूसरी मॉडर्न, लेकिन दोनों ही में वह अपने चरित्रों में नजर आती हैं। उनकी यह खूबी गुरु की मीनाक्षी गुप्ता और सलाम-ए-इश्क की तहजीब हुसैन में भी दिखती है। एकलव्य की राजेश्वरी की तनहाई हमें कचोटती है। इन पांच फिल्मों के बाद विद्या बालन के करियर में भटकाव आता है। लोकप्रियता व ग्लैमर की कशमकश में कई बार गलत फैसले ले लिए जाते हैं। गौर करें तो हे बेबी और भूलभुलैया उनके मिजाज की फिल्में नहीं हैं। दोनों फिल्में हिट रहीं, लेकिन उनमें विद्या बालन का योगदान नहीं आंका गया और श्रेय तो खैर मिलना ही नहीं था। कमर्शियल फिल्मों में हीरोइनें सजावट बन कर ही रह जाती हैं। राजकुमार संतोषी की हल्ला बोल अधपकी और जल्दबाजी में बनी फिल्म थी। पटकथा व शिल्प में कमजोर हल्ला बोल में विद्या निष्प्रभावी रहीं। हालांकि इसी फिल्म के दौरान जेसिका लाल के मामले से उनका परिचय हुआ, जो बाद में नो वन किल्ड जेसिका में परिणत हुआ। उनके करियर की बडी भूल है किस्मत कनेक्शन। इस फिल्म में शाहिद कपूर के साथ उनकी जोडी नहीं जमी। पश्चिमी पहनावे में वह जमी नहीं।

करियर में आई इस लडखडाहट में ही उनकी छवि को तार-तार करने की कोशिश की गई और एक प्रतिद्वंद्वी अभिनेत्री की पहल पर विद्या को मीडिया के स्टाइल हमलों का शिकार होना पडा। एक उभरती समर्थ अभिनेत्री को छांटने और सीमित करने की भरपूर कोशिश की गई। अच्छा हुआ कि विद्या ग्लैमर के इस कन्फ्यूजन से जल्दी निकल आई।

साडी एक विचार है

लगे रहो मुन्ना भाई की रिलीज के समय विद्या ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि शबाना आजमी उनकी आदर्श हैं। उनकी ख्वाहिश है कि कुछ वैसा ही मुकाम वह भी हासिल करें। उनकी आरंभिक कोशिशें उसी मुकाम की ओर थीं। बीच में ग्लैमर ने उन्हें खींचा, लेकिन समय रहते वह चेत गई। दोस्तों की सलाह और आत्मविश्लेषण करने के बाद उन्होंने भूल सुधारी। उन्होंने फिर साडी पहनी। साडी उनके लिए परिधान भर नहीं, एक विचार भी है। इस विचार की गरिमा एवं आत्मविश्वास के साथ वह दीप्त मुस्कान लिए फिर से नजर आई। फिर उन्होंने पा, इश्किया और नो वन किल्ड जेसिका जैसी फिल्में चुनीं। ये तीनों पारंपरिक हिंदी फिल्में नहीं हैं। कायदे से इनमें उनका कोई हीरो नहीं है, लेकिन वह तीनों में हीरोइन हैं। किसी भी फिल्म में मुख्य व प्रधान चरित्र वही होता है, जिसकी क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं से पटकथा मोड लेती हुई आगे बढती है। कमर्शियल फिल्मों में हीरोइनों की आनुषंगिक भूमिका ही रह जाती है। विद्या ने फिलहाल ऐसी भूमिकाएं छोड दी हैं। अभी उन्होंने सुजॉय घोष की कहानी पूरी की है, जिसमें गर्भवती महिला पति की तलाश में कोलकाता आती है। वह द डर्टी पिक्चर भी कर रही हैं, जिसमें उन्हें सिल्क स्मिता को पर्दे पर जीना है। यह दूसरे प्रकार की चुनौती है।

क्षमता पर संदेह

पा, इश्किया और नो वन किल्ड जेसिका में अभिनय की हैट्रिक लगा चुकी विद्या को शुरू में तिरस्कार झेलने पडे। उन्हें दो मलयालम और दो तमिल फिल्में मिलीं, लेकिन चारों फिल्में एक-एक कर छूट गई। एक तमिल निर्देशक ने उन्हें अयोग्य तक कह दिया, लेकिन वही निर्देशक बाद में कमल हासन के साथ उन्हें फिल्म देने आए। सेंट जेवियर्स, मुंबई से समाजशास्त्र में एम.ए. करने के साथ ही विद्या ने कॉलेज की सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। वह हम पांच और हंसते खेलते जैसे धारावाहिकों में नजर आई। फिर उन्होंने पंकज उदास, यूफोरिया और शुभा मुद्गल के म्यूजिक एलबम में अपनी अभिनय प्रतिभा की झलक दी। यूफोरिया के कभी आना तू मेरी गली और शुभा मुद्गल के मन के मंजीरे में हमने पहली बार विद्या को ठीक से देखा था। प्रदीप सरकार को वह इतनी पसंद आई कि अपनी सारी एड फिल्मों में उन्होंने विद्या को ही लिया। दोनों के सुखद व रचनात्मक उत्कर्ष के रूप में परिणीता आई। निर्माता विधु विनोद चोपडा ने उन्हें 17 मेकअप शूट और 40 स्क्रीन टेस्ट के बाद फाइनल किया था। आखिर 26 की उम्र में उन्हें पहली फिल्म मिली। मध्यवर्गीय परिवारों की लडकियां इस उम्र में पारिवारिक व सामाजिक दबाव में आकर घरेलू जिम्मेदारियां ओढ लेती हैं। लेकिन विद्या को माता-पिता का साथ और बडी बहन प्रिया का प्रोत्साहन मिला।

सही राह मिली

इस साल उन्हें एक-एक कर पुरस्कार मिल रहे हैं। उन्हें लगता है कि अब उन्हें सही राह मिल गई है, जिसकी मंजिल शबाना आजमी तक उन्हें ले जाएगी। वह तब्बू से ईष्र्या करती हैं, क्योंकि उन्होंने चीनी कम की जटिल भूमिका सहजता से निभाई। वह तब्बू की तरह पारंगत होना चाहती हैं। उनकी इच्छा शाहरुख खान, आमिर खान और रितिक रोशन के साथ फिल्में करने की है तो दूसरी ओर वह युवा निर्देशकों के प्रयोग के लिए भी तैयार हैं।

विद्या की सुबह देर से होती है और रात सुबह तक चलती है। उन्हें कभी भी संदेश भेजा जाए, जवाब हमेशा देर रात में आता है। वजह पूछने पर एक बार उन्होंने कहा, काम से फुरसत पाने के बाद मैं संदेशों का जवाब खुद लिखती हूं। मैं अपने संपर्क बनाए रखना चाहती हूं। जो मेरे काम की कद्र करते हैं, मैं उनकी जबरदस्त कद्रदान हूं। इसलिए जल्दबाजी में मैं जवाब नहीं देती। विद्या ने साबित कर दिया कि सादगी की पींग बढाकर भी ग्लैमर व‌र्ल्ड की ऊंचाइयों तक पहुंचा जा सकता है।


Comments

विद्या आज के इस दौर में भी सकून देने वाली अभिनेत्री हैं। बढिया आलेख।
वैसे भी सीरीयल से सिनेमा तक के सफ़र में हर बार वे पिछली बार से बेहतर होती जाती हैं । बहुत सुंदर लिखा आपने

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