लौट आई हूं अपने मैदान में- प्रीति जिंटा


-अजय ब्रह्मात्मज
एक तरह की फिल्मों से ऊब चुकी प्रीति जिंटा ने 2008 में एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने इंडियन प्रीमियर लीग में किंग्स एलेवन पंजाब टीम खड़ी की और क्रिकेट के मैदान में उतर आईं। तब अनेक भवें तनी थीं कि इंडियन प्रीमियर लीग में औरत और अभिनेत्री क्या करेगी? प्रीति ने किसी की परवाह नहीं की। वह अपनी टीम के खिलाडिय़ों के साथ मैदान,ग्रीन रूम और स्टेडियम में टिकी रहीं। अपेक्षित जीत नहीं मिलने से वह निराश भी हुईं। ऐसी ही एक निरशा के क्षण वह दलाई लामा के साथ थीं। दलाई लामा ने समझाया कि निराश न हो। क्रिकेट तुम्हारा मैदान नहीं है। यहां तुम दूसरों पर निर्भर हो। अपने अभिनय के मैदान में डटो। वहां हारो तो निराश होना। प्रीति ने कमर कसी और तय किया कि वह फिर से फिल्मों में आएंगी। इस बार उन्होंने निर्माता की भी जिम्मेदारी ले ली है। उनकी फिल्म इश्क इन पेरिस रिलीज के लिए तैयार है। इस फिल्म में वह अभिनय भी कर रही हैं।
- आप ने फिल्मों से मुंह मोड़ा और अब फिर से फिल्मों का दामन थाम रही हैं। फिल्मों से आप के रिश्ते में इन बदलावों की कोई वजह तो होगी?
0 एक ऐसा वक्त था कि हर तरह की फिल्में थीं मेरे पास। मैं नंबर वन हीरोइन मानी जा रही थी। उस समय मुझे लगा कि जिंदगी में कुछ नया करना है। फिल्में आकृष्ट नहीं कर रही थीं। सच कहूं तो मैंने अपनी मां से कभी नहीं कहा कि मुझे हीरोइन बनना है। मैं ट्रक ड्रायवर,एयर होस्टेस,प्राइम मिनिस्टर या आर्मी पर्सन बनना चाहती थी। फिल्मों में अनियोजित तरीके से आ गई। फिल्मों में आने के बाद मैंने सारे गुर सीखे। फिल्में अच्छी मिलीं। सब कुछ ग्रेट हुआ। फिर एक समय लगा कि अब आगे क्या? तब बाजार का बुरा हाल था। फिल्में ढंग की नहीं मिल रही थीं। मैंने सोचा कि जिंदगी तो एक ही है। अभिनय की चोटी पर तो पहुंच गई। अब यहां बैठे रहने का क्या फायदा? क्यों न कुछ और किया जाए। उसके बाद मैं क्रिकेट में गई। क्रिकेट में जाने पर सब ने मुझे कहा कि मैं गलत कर रही हूं। यह पागलपन है। मेरा मानना है कि जिंदगी में च्वॉयसेज अपनी होनी चाहिए। गिरे भी तो क्या? मुझ में वह अंदरूनी ताकत है कि गिरने पर खुद ही उठ जाती हूं। क्रिकेट में अपेक्षित जीत नहीं मिली। मुझे याद है मैं धर्मशाला में दलाई लामा के साथ बैठी थी। हार से मेरा मुंह लटका हुआ था। उन्होंने समझाया कि खेलना है तो अपने मैदान में खेलो। इस खेल में बल्ला तुम्हारे हाथ में नहीं है। मैंने उनकी तरफ देखा और फैसला कर लिया कि फिर से फिल्में करनी हैं।
-निर्माता बनने का फैसला इतनी आसानी से ले लिया?
0 फैसले की उस घड़ी में पवन सोनी से मेरी मुलाकात हुई। पवन पुराने दोस्त हैं। उन्होंने अपनी तरफ से फिल्म का प्रोपोजल दिया। मैं थोड़े समय तक उलझन में रही। निर्माता बनने का फैसला बड़ा फैसला था। मेरे एक दोस्त ने समझाया कि तुम ने फिल्मों से ही सब कुछ कमाया है। जिस करिअर ने तुम्हें इतना कुछ दिया है,उसे कुछ वापस दे दो। फिल्म नहीं भी चली तो क्या होगा? उस एटीट्यूड से मैं प्रोडक्शन में आ गई। पवन के साथ मैंने धर्मशाला में ही इसकी स्क्रिप्टिंग की। अब दर्शक बताएंगे कि उन्हें फिल्म कैसी लगी। मैं भी तो एक दर्शक हूं। मैंने भी नापसंद आई फिल्मों को रिजेक्ट किया है।

- आप का कितना क्रिएटिव इनपुट रहा? या अप सिर्फ एक्टिंग और प्रोडक्शन की सीमा में रहीं?
- प्रेम फिल्म के डायरेक्टर हैं। आइडिया भी उन्हीं का था। मेरा कंट्रीब्युशन रहा है। थोड़ा ज्यादा ही रहा,क्योंकि मैं स्वयं प्रोड्यूसर हूं। एक्टर के तौर पर मैं पहले भी डायरेक्टर को सलाह देती रही हूं। करण जौहर और दूसरे डायरेक्टर भी इनपुट लेते हैं। प्रेम ने बहुत अच्छा काम किया है। हमारी फिल्म में एक नया लडक़ा भी है। उसे पर सभी गौर करेंगे। नए कलाकार के साथ का करने पर समझ में आया कि शाहरुख खान और मनीषा कोइराला ने कितने धैर्य से मेरे साथ काम किया था। मैंने दोनों को संदेश भेजा कि अब मेरी समझ में आया है। मैं इतने सालों के बाद आप दोनों को धन्यवाद देना चाहती हूं। पहली फिल्म में उन्होंने कितनी मदद की होगी। अनुभवी एक्टरों के साथ जो शॉट एक बार में हो जाता है। नए एक्टर के साथ उसी शॉट के कई रीटेक होते हैं। लाइट,फोकस,फील्ड के बारे में समझाना पड़ता है।
-क्या है फिल्म?
0 आज कल फिल्म के बारे में नहीं बताया जाता। यह एक मजेदार रोमांटिक कामेडी है।  फिल्म एक पावरफुल मीडियम है। उसमें मेकर का रिफ्लेक्शन आना चाहिए। मजाक में खूबसूरती के साथ एक वजनदार बात कही गई है। इस फिल्म को देखने के लिए दिमाग साथ ले जाना होगा। यों ही एंटरटेनमेंट के नाम पर कुछ नहीं बना दिया गया है।
- इश्क इन पेरिस ही क्यों? यह इश्क तो पटियाला और पटना में भी होता है?
0 इश्क इन पेरिस इसलिए कि पूरी शूटिंग वहां हुई है। पेरिस रोमांस का शहर है। मुझे लगता है कि फ्रांस से मेरा पूर्वजन्म को कोई रिश्ता है। मेरी पहली प्रोडक्शन वहीं हो सकती थी। एफिल टावर को पूरी रात के लिए किराए पर लिया था। उस रात एफिल टावर पर खड़ी होने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरा कोई न कोई कनेक्शन अवश्य होगा। हो सकता है मैंने इसे बनाया हो। एक फ्रेंच एक्ट्रेस के साथ काम करने में मजा आया। उनका नाम इजाबेल अजानी है। आप के सवाल के जवाब में यही कहूंगी कि बाद में पटियाला या पटना का इश्क भी दिखा सकती हूं।
- आप क्रिकेट से जुड़ी रहीं। उसी के उदाहरण से बात करें तो आप ने मिली हुई पारी पूरी नहीं की। बीच में ही खेलना छोड़ दिया? आप ने करिअर के उफान के समय ही छुट्टी ले ली।
0 पारी अभी बाकी है। मैंने थोड़ा रेस्ट लिया है। उस समय मुझे लगा था कि दिल ना लगे तो काम ना करो। अनचाहा काम करने पर दूसरे के काम पर भी असर पड़ता है। फिल्म तो पूरी तरह से टीमवर्क है। मैं एक हद तक ऊब गई थी। इस स्थिति में मुझे लगा कि अभी छोड़ देना ही ठीक है। मैं ऐसी ही फिल्में करना चाहती थी,जिन्हें देख कर मेरी फैमिली और फैन गर्व कर सकें। आप सही कह रह हैं। इंडस्ट्री के दोस्त भी कहते हैं कि मैं खेल के बीच से ही निकल गई।
-बिल्कुल,आज तीनों खानों के साथ काम करने वाली हीरोइनों की खास चर्चा होती है। आप ने दस साल पहले ही तीनों खानों के सथ का किया।
0 अच्छा तो तीनों खानों के साथ काम करने से खास शोहरत मिलती है? मैंने तो इस बारे में कभी सोचा हीे नहीं। यही कहूंगी कि तब क्रिकेट ने मुझे खींच लिया। अपनी टीम की बोली लगाते समय एक्साइटेड थी। आईपीएल में बाकी महिलाएं तो बाद में आईं। उस समय मैं अकेली थी। 2008 में सारे मजे लडक़े ही क्यों ले? मैं लडक़ी हूं तो क्या? मुझे भी मजे करने का हक है। मैंने लडक़ों के खेल को लड़कियों के लिए खोल दिया। पांच सालों के बाद कंपनी व्यवस्थित हो गई है।
-क्या लक्ष्य है आप का?
0 बताना मुश्किल है। मेरा किसी से कंपीटिशन नहीं है। तब लोगों ने कहा था कि फिल्मों में रीएंट्री नहीं होती। तुम निकलोगी तो तुम्हारी जगह कोई ल लेगा। मैंने फिर भी परवाह नहीं की। क्या डरना? अभी आ रही हूं। देखती हूं कि क्या होता है। प्रोडक्शन चलता रहेगा। गिनी-चुनी फिल्में करूंगी। हीरोइन बनने के अपने मजे होते हैं। सनी देओल के साथ भैयाजी सुपरहिट कर रही हूं। वहां कोई चिंता नहीं रहती कि क्या इंतजाम करना है या किस का पेमेंट बाकी है। प्रोडक्शन के साथ एक्टिंग करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।



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