फिल्‍म समीक्षा : चॉक एन डस्‍टर



-अजय ब्रह्मात्‍मज
जयंत गिलटकर की फिल्‍म चॉक एन डस्‍टर में शबाना आजमी और जूही चावला हैं। उन दोनों की वजह से फिल्‍म देखने की इच्‍छा हो सकती है। फिल्‍म सरल और भावुक है। नैतिकता का पाठ देने की कोशिश में यह फिल्‍म अनेक दृश्‍यों में कमजोर हो जाती है। लेखक-निर्देशक की सीमा रही है कि सीधे तौर पर अपनी बात रखने के लिए रोचक शिल्‍प नहीं गढ़ा है। इस वजह से चॉक एन डस्‍टर नेक उद्देश्‍यों के बावजूद सपाट हो गई है।
    चॉक एन डस्‍टर शिक्षा के व्‍यवसायीकरण पर पर बुनी गई कहानी है। कांता बेन स्‍कूल के शिक्षक मुख्‍य किरदार हैं। इनमें ही विद्या,मनजीत,ज्‍योति और चतुर्वेदी सर हैं। वार्षिक समारोह की तैयारी से शुरूआत होती है। जन्‍दी ही हम कामिनी गुप्‍ता(दिव्‍या दत्‍ता) से मिलते हैं। वह मैनेजमेंट के साथ मिल कर वर्त्‍तमान शिक्षकों के खिलाफ साजिश रचने में धीरे-धीरे कामयाब होती हैं। मामला तब बिगड़ता है,जब वह पहले विद्या और फिर ज्‍योति को बेवजह हटाती हैं। प्रतिद्वंद्वी स्‍कूल के निदेशक इस मौके का फायदा उठाते हैं। बात मीडिया तक पहुंचती है और अभियान आरंभ हो जाता है। इस अभियान में विद्या के पुराने छात्रों समेत दूसरे छात्र भी शामिल होते हैं। आखिरकार तय होता है कि एक लाइव क्विज कांटेस्‍ट से उनकी योग्‍यती की जांच होगी। यहां हमें अतिथि भूमिका में ऋषि कपूर के दर्शन होते हैं।
    फिल्‍म का वह हिस्‍सा भावुक और संवेदनशील है,जब पुराने छात्र शिक्षकों के प्रति हमदर्दी और समर्थन जाहिर करते हैं। देश-विदेश के कोने-कोने से आ रहे समर्थन से श्क्षिकों की महत्‍ता का अहसास होता है और उनके प्रति संवेदना जागती है। इसके अलावा दस सावालों के क्विज में ऋषि कपूर अपनी मौजूदगी से ऊर्जा भर देते हैं। कल को अगर उन्‍हें कोई टीवी शो मिले तो वे अच्‍छे होस्‍ट साबित हो सकते हैं।
    यह फिल्‍म शबाना आजमी और जूही चावला की वजह से देखी जा सकती है। उन्‍होंने साधारण दृश्‍यों को भी अपनी अदाकारी से रोचक बना दिया है। साथ में दिव्‍या दत्‍ता हैं। हांलांकि उनका किरदार एकआयामी है,लेकिन उन्‍होंने अपनी भवें तनी रखी हैं और अपनी नकारात्‍मकता से शबाना आजमी और जूही चावला को परफारमेंस के मौके देती हैं। फिल्‍मों में प्रभावी खलनायक भी नायक या नायिका को मजबूत करता है। रिचा चड्ढा की थोड़ी देर के लिए ही आती हैं,लेकिन अपनी संजीदगी और मौजूदगी से सार्थक योगदान करती हैं।
    चॉक एन डस्‍टर तकनीक,प्रस्‍तुति और शिल्‍प में थोड़ी परानी लगती है। कहानी धीमी गति से आगे बढ़ती है। और फिर कुछ दृश्‍यों में अटक जाती है। हां,कामकाजी महिलाओं के पारिवारिक और पति से संबंधों को यह फिल्‍म बड़े ही सकारात्‍मक तरीके से पेश करती है। विद्या और ज्‍योति के अपने पतियों से रिश्‍ते आधुनिक हैं। पति भी उनके संघर्ष में शामिल मिलते हैं।

अवधि- 137 मिनट
स्‍टार ढाई स्‍टार   

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