उस साहस को सलाम : अक्षय कुमार




-अजय ब्रह्मात्‍मज
सन् 1990। 13 अगस्‍त से 11 अक्‍टूबर,1990 ।
1990 में कुवैत में ईराक ने घुसपैठ की। ईराक-कुवैत के इस युद्ध में वहां रह रहे भारतीय फंस गए थे। हालांकि तत्‍कालीन विदेश मंत्री आई के गुजराल ने ईराक के राष्‍ट्रपति से मिलकर भारतीयों के सुरक्षित निकास की सहमति ले ली थी,लेकिन समस्‍या थी कि कैसे कुवैत के विभिन्‍न्‍ इलाकों से भारतीयों को अमान लाया जाए और फिर उन्‍हें मुंई तक की एयरलिफ्ट दी जाए। ऐसे संगीन वक्‍त में भारतीय मूल के रंजीत कटियाल ने खास भूमिका निभायी। खुद को भारतीय से अधिक कुवैती समझने वाले रंजीत कटियाल ने मुसीबत के मारे भारतीयों को सु‍रक्षित मुंबई पहुंचाने की जिममेदारी ली। उनकी मदद से 56 दिनों में 1,11,711 भारतीयों की निकासी मुमकिन हो सकी। दुनिया की इस सबसे बड़ी निकासी और उसमें रंजीत कटियाल की भूमिका के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती। कहते हैं अमेरिकी दबाव में इस घटना और समाचार को दबा दिया गया। 25 सालों के बाद राजा कृष्‍ण मेनन ने रंजीत कटियाल की जिंदगी और मातृभूमि के प्रति प्रेम के इस साहिसक अभियान को एयरलिफ्ट के रूप में पर्दे पर पेश कर रहे हैं। इसमें रंजीत कटियाल की भूमिका अक्षय कुमार निभा रहे हैं।
-अभी आप की एयरलिफ्ट आ रही है। हम लगातार आप को भिन्‍न भूमिकाओं में देख रहे हैं। यह किसी रणनीति के तहत है क्‍या ?
0 जी,ऐसा ही चल रहा है। रॉ आफिसर,कॉन आर्टिस्‍ट,नेवी ऑफिसर,हाउसफुल3,रुस्‍तम और अभी एयरलिफ्ट जैसी फिलमें कर रहा हूं। आप किसी को वर्सेटाइल एक्‍टर क्‍यों कहते हैं ? हमें ऐसे मौके मिलते हैं। हम अभिनय की वैरायटी दिखा सकते हैं। पिछले छह सालों से ऐसा ही चल रहा है।मैं तो कहता हूं कि अकेला मैं ही ऐसी भूमिकाएं कर रहा हूं। यहां से वहां और वहां से यहां जाने-आने में मुझे दिक्‍कत नहीं होती। एयरलिफ्ट मेरे लिए अलग अनुभव है।
-क्‍या है एयरलिफ्ट’?
0 यह सच्‍ची घटना पर आधारित फिल्‍म है। जब यह स्क्रिप्‍ट सुनाई गई थी तो मुझे खुद नहीं पता था कि कुवैत में ऐसा कुछ हुआ था। 2 अगस्‍त को ईराक के सद्दाम हुसैन ने कुवैत में घुसपैठ की। हाहाकार मच गया था। वहां के भारतीय समझ नहीं पा रहे थे कि वे क्‍या करें और कहां जाएं ? लूटमार मची हुई थी। सभी सड़क पर आ गए थे। एक लाख से ज्‍यादा भारतीयों की जिंदगी और भविष्‍य का सवाल था। बैंक में रखे पैसे एक झटके में शून्‍य हो गया। रात को अटैक हुआ और सुबह आप अमीर से फकीर हो गए। सब कुछ बदल गया।
-आप को कैसी तैयारी करनी पड़ी ? एयरलिफ्ट का नायक कौन है ?
0 कैरेक्‍टर स्‍केच और लुक तो निर्देशक अपनी टीम के साथ तैयार करते हैं। इस फिल्‍म की कहानी से मुझे बलराज शाहनी की फिल्‍म वक्‍त की याद आई। उसमें भूकंप में सब कुछ बर्बाद हो जाता है। मुझे यही डर रहता है कि हम इतनी मेहनत से सब जोड़ते और जमा करते हैं और प्रकृति या मनुष्‍य एक झटके में सब खत्‍म कर देते हैं। अभी हम यहां बैठे हैं(अक्षय कुमार का आवास और दफ्तर जुहू में समुद्र के किनारे है।) और सुनामी आ जाए। मौका भी नहीं मिलेगा। हर सुबह उठ कर यही प्रार्थना करता हूं कि प्रकृति नाराज न हो। सब कुछ खो जाने का भाव मैं समझ सकता हूं। मैं कुवैत से आए लोगों से मिला। उनके किस्‍से सुने। इतने सालों के बाद भी बताते समय उनकी आंखों में आंसू आ जाते थे। निकासी के लिए जरूरी डाक्‍यूमेंट यानी पासपोर्ट आदि नहीं थे उनके पास। वैसे लाखों बदहवास लोगों की निकासी में रंजीत कटियाल ने मदद की थी। हम इस फिल्‍म के अंत में उनके बारे में बताएंगे। हम उनकी तस्‍वीर भी देंगे।
-क्‍या हुआ था और रंजीत कटियाल ने क्‍या किया था?
0 यह तो ऐतिहासिक घटना है। कुवैत में ईराक की घुसपैठ के बाद भारतीयों की निकासी में रंजीत कटियाल ने अग्रणी भूमिका निभायी थी। युद्ध के उस माहौल में सारे इंतजाम करना और उन पर नजर रखना। 56 दिनों तक यह काम चला। हाल ही में यमन में कुछ भारतीय फंसे थे तो ऐसी निकासी की गई थी। कुवैत की निकासी का वर्ल्‍ड रिकार्ड है और इसे अंजाम देने में रंजीत कटियाल की बड़ी भूमिका रही है। यह आसान नहीं है। जब गोलियां उड़ रही हों तो बस एक गोली ही तो लगनी है। रंजीत के साहस ने मुझे प्रभावित किया। मुझे लगता है कि इस हादसे और रंजीत की बहादुरी को टेक्‍स्‍ट बुक में लाना चाहिए। रजीत कटियाल ने जान की परवाह नहीं की। उसने ईराकी अधिकारियों से तालमेल बिठा कर अपने रसूख का इस्‍तेमाल कर भारतीयों को सुरक्षित निकासी दी।
-बहुत ही मुश्किल काम और माहौल रहा होगा ?
0 कुछ हल्‍के प्रसंग भी हैं। भारतीयों की पहचान के लिए ईराकी सैनिक उनसे कहते थे कि हिंदी फिल्‍म के गाने सुनाओ। रंगरूप से कुवैती और भारतीय एक जैसे लगते हैं। इंटरेस्टिंग स्‍टोरी है।
- आप की सहभागिता किन स्‍तरों पर है ?
0 एक्टिंग के साथ मैं इसका एक निर्माता भी हूं। अभी तो हर फिल्‍म के निर्माण में मेरी सहभागिता रहती है। मेरी एक कंपनी केप ऑफ गुड फिल्‍म्‍स के बैनर में है यह फिल्‍म। ानौ साल पुरानी कंपनी है।
- इस फिल्‍म के पहले लुक में आप का पहनावा और खड़े होने के अंदाज में ही भिन्‍नता झलकती है। किसी किरदार को निभाने में ऐसे बदलाव सेक कितनी मदद मिलती है ?
0 पहनावे और लुक के बदलाव से फर्क पड़ता है। पूरा मिजाज ही बदल जाता है। अभी मैं ट्रैक पैंट में हूं तो उछलने और छलांग मारने का मन कर रहा है। बेल्‍ट और टाई काते ही आदमी बदल जाता है। बिजनेस सोचने लगता है। चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ आ जाए। आप पगड़ी बांध लें। उस समय आईने में खुद को देखते ही बदलाव की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। पहनावे और लुक के साथ माहौल का भी महत्‍व होता है। हम तो एहसानमंद हैं रसल खेमा के राज परिवार को धन्‍यवाद देना चाहूंगा। उन्‍होंने हमारी पूरी मदद की। हम ने उसे ही कुवैत बनाया है। उन्‍होंने लॉजिस्टिक सुविधाएं भी दीं।
- राजा मेनन नए डायरेक्‍टर हैं। उनके साथ कैसा अनुभव रहा ?
0 मैंने अभी तक 20-22 नए डायरेक्‍टरों के साथ तो काम किया ही होगा। राजा ने पहले ऐड फिल्‍में बनाई हैं। समझदार हैं,तभी तो उन्‍होंने ऐसा विषय लिया।
- आप स्‍वयं अनुशासित हैं और पूरी यूनिट को भी वैसे ही रखते हें।
0 मैंने यह फिल्‍म 32 दिनों में पूरी की है। मैं 250-300 दिनों की फिल्‍में नहीं कर सकता। बेबी 42 दिनों में बनी थी। मेरी फिल्‍मों में इतने दिन ही लगते हैं। मैं संडे को काम नहीं करता। सैटरडे को हाफ डे काम करता हूं। हर तीन महीने के बाद सात दिनों की छुट्टी लेता हूं। साल के डेढ़ महीने छुट्टी करता हूं। घर के ऊपर ऑफिस है। कहीं जाना नहीं पड़ता। ऑफिस में तामझाम नहीं है। ऑफिस का प्राकृतिक माहौल है। सामने समुद्र है। घर या ऑफिस को म्‍यूजियम नहीं बनाया है।
- फिल्‍म में पत्‍नी बनी निम्रत कौर के बारे में बताएं?
0 मेरे खयाल में निम्रत बेहतरीन एक्‍टर हैं। उनके साथ काम करने में मजा आया। वह डिफरेंटली ब्‍यूटीफुल हैं। उनके चेहरे पर गजब को सौंदर्य है। वह उतनी ही अच्‍छी इंसान भी हैं। प्रोफेशनल किस्‍म की हैं। मेहनती हैं और रिहर्सल करती हैं। मुझे भी रिहर्सल करना जूरी लगता है। कुढ एक्‍टर मना कर देते हैं। वे सीधे टेक करती हैं।


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