दरअसल : जरूरी है सरकारी समर्थन



-अजय ब्रह्मात्‍मज
इन दिनों विभिन्‍न राज्‍य सरकारें फिर से सिनेमा पर गौर कर रही हैं। अपने राज्‍यों के पर्यटन और ध्‍यानाकर्षण के लिए उन्‍हें यह आसान रास्‍ता दिख रहा है। इस साल गुजरात और उत्‍तर प्रदेश की सरकारों को पुरस्‍कृत भी किया गया। उन्‍हें फिल्‍म फ्रेंडली स्‍टेट कहा गया। फिल्‍मों के 63 वें राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों में एक नई श्रेणी बनी। बताया गया था कि इससे राज्‍य सरकारें फिल्‍मों के प्रोत्‍साहन के लिए आगे आएंगी। इसके साथ ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन कार्यरत एनएफडीसी(नेशनल फिल्‍म डेवलपमंट कारपोरेशन) के दिल्‍ली कार्यालय में फिल्‍म फैसिलिटेशन विभाग खोला गया। उद्देश्‍य यह है कि फिल्‍मकारों को साथ लाया जाए और उन्‍हें फिल्‍में बनाने की सुविधाएं दी जाएं।
एनएफडीसी सालों सार्थक फिल्‍मों के समर्थन में खड़ी रही। इसके सहयोग से पूरे देश में युवा फिल्‍मकार अपनी प्रतिभाओं और संस्‍कृति के साथ सामने आए। हालांकि फिल्‍मों के लिए एनएफडीसी सीमित फंड ही देती थी,लेकिन उस सीमित फंड में ही युवा फिल्‍मकारों ने प्रयोग किए और समांतर सिनेमा अभियान खड़ा कर दिया। अब पैरेलल,समांतर या वैकल्पिक सिनेमा को कोई नाम नहीं लेता। गौर करें तो फिल्‍मों के निर्माण और कटेंट में कला और व्‍यवसाय के गड्डमड्ड होने के बावजूद कुछ फिल्‍में स्‍वंतत्र तरीके से आ रही हैं। ऐसा लग रहा है कि सरकारी स्‍तर पर कोई विजनरी निदेशक आए तो फिर से सार्थक सिनेमा का अभियान चल सकता है। अब तो दर्शकों के बीच पहुंचने के लिए पहले जैसी थिएटर रिलीज की समस्‍या भी नहीं रही। फिल्‍मों के प्रदर्शन के अनेक प्‍लेटफार्म आ गए हैं।
हालांकि राज्‍य सरकारों ने फिल्‍म निर्माताओं को रिझाने की नीतियां बनाई हैं। सबसे बड़ा आकर्षण सब्सिडी में मिलने वाली रकम है। इस रकम के लालच में मुंबई के फिल्‍म निर्माता इन राज्‍यों के लोकेशन चुन रहे हैं। ठीक है कि उत्‍तर प्रदेश,झारखंड और बिहार के अनदेखे लोकेशन फिल्‍मों में आएंगे। उनसे पर्यटन भी बढ़ सकता है। किंतु यहां ठहर कर सोचना होगा कि फिल्‍म निर्माता-निर्देशकों को अपने राज्‍यों में लाने का उद्देश्‍य क्‍या हो? कोशिश तो यह होनी चाहिए कि वहां के साहित्‍य और संस्‍कृति को भी इन फिल्‍मों जगह मिले। फिल्‍म की कहानियों में उन राज्‍यों का समाज और सामाजिकता हो। चेहरे भी वहीं के दिखें तो और बेहतर। मेरी एक संकल्‍पना है कि हिंदी फिल्‍मों में ऐसी विविधता और स्‍थानीयता आए कि यूपी,मध्‍यप्रदेश,बिहार,झारखंड आदि राज्‍यों का अपना हिंदी सिनेमा हो। इसके साथ ही वहां की भाषाओं में भी फिल्‍में बनें। फिल्‍में भाषाओं के संरक्षण और प्रसार में बड़ी भूमिकाएं निभाती हैं। हम मानते हैं कि हिंदी सिनेमा ने हिंदी भाषा का प्रसार किया है। राज्‍य सरकारों को ऐसे निर्माताओं को निमंत्रण और समर्थन देना चाहिए,जो इन राज्‍यों की कहानियों पर स्‍थानीय भाषाओं में फिल्‍में बना सके। यहीं जरूरत है कि हम कुछ विजनरी निदेशकों को फिल्‍म नीतियों के नेतृत्‍व और क्रियान्‍वयन के लिए चुनें। मुंबई के लोकप्रिय कलाकारों को फंड और समर्थन देने से खबरें बनेंगी,लेकिल फिल्‍मों का स्‍थानीय विकास नहीं होगा। वह राज्‍य की प्रतिभाओं को विशेष समर्थन देने से ही होगा।
इन रात्ज्‍यों को यह भी खयाल रखना होगा कि स्‍थानीयता के नाम पर साधारण और घटिया फिल्‍मों को प्रश्रय न दें। घटिया फिल्‍मों को किसी भी प्रकार की छूट मिलते हैं तो अनेक महात्‍वाकांक्षी औसत काम की ओर बढ़ते हैं। गुणवत्‍ता पर ध्‍यान देना जरूरी है। पश्चिम बंगाल और कर्नाटक उदाहरण हैं। जब वहां की सरकारों ने समर्थन दिया तो श्रेष्‍ठ फिल्‍मकार उभरे। नए सिरे से ऐसा प्रयास किया जा सकता है। युवा फिल्‍मकारों को दिशा दी जा सकती है। फिलहाल महाराष्‍ट्र की राज्‍य सरकार फिल्‍मों के निर्माण और समर्थन में अनुकरणीय कार्य कर रही है। महाराष्‍ट्र में फिल्‍मों के प्रदर्शन पर ध्‍यान दिया गया है। मल्‍टीप्‍लेक्‍स में प्रादम टाइम पर शो सनिश्चित किया गया है। इन सारे कदमों से फर्क पड़ा है। आज मराठी सिनेमा क्‍वालिटी और क्‍वांटिटी में तेजी से आगे बढ़ रहा है। देश के अन्‍य राज्‍यों को महाराष्‍ट्र से सीखना चाहिए।
हर सूरत और सीढ़ी में सरकारी समर्थन जरूरी है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहल करनी होगी। एक बार फिल्‍मों का बाजार बन गया तो स्‍वतंत्र निर्माता भी आगे आएंगे। सभी राज्‍यों की प्रतिभाएं अपने राज्‍यों के बारे में भी सोचेंगी। अभी तो बस मुंबई ही मंजिल है। सभी को करण जौहर बनना है। जुहू चौपाटी पर अपनी फिल्‍म की होर्डिंग देखनी है।

Comments

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-08-2016) को "माता का आराधन" (चर्चा अंक-2448) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
#cp_blog said…
" हर व्यक्ति को कोई न कोई कला जरूर सीखनी चाहिए " डाक्टर द्विवेदी की बरसो पहले मुम्बई मे विभा रानी जी के एकल -पात्र मंचन के अवसर पर कही बात हमें जीवन मंत्र बना लेना चाहिए

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