फिल्‍म समीक्षा : फीवर


एकरूप किरदारों की उलझन
-अजय ब्रह्मात्‍मज

राजीव झावेरी का इरादा फीवर को रोचक और रोमांचक फिल्‍म के रूप में पेश करने का रहा होगा। वे भरपूर कोशिश करते हैं। उन्‍‍हें राजीव खंडेलवाल के रूप में एक समर्थ अभिनता भी हासिल है। वह विस्‍मृति का शिकार होने पर भी दर्शकों को बांधे रखने और मूल कहानी पर परिचित चरित्रों के बीच पहुंचना वाहता है। उसके जीवन में आई लड़कियां उसे उलझाए रखती हैं या यूं कहें कि  अपनी विस्‍मृति की वजह से वह उन्‍हें बार-बार उलझन में डाल देता है। एक समय के बाद रिया,काव्‍या,पूजा सभी गड्डमड्ड होने लगती हैं।
फीवर में तीन लड़कियां हैं। इन दिनों ज्‍यादातर लड़कियों के लुक और पहनावे में ऐसी एकरूपता रहती है कि उन्‍हें अलग करना मुश्किल होता है। खास कर नई अभिनेत्रियां हों और उनकी अपनी पहचान न हो तो मुश्किल बढ़ जाती है। फीवर में एक तो इन चरित्रों को गूढ़ तरीके से गढ़ गया है और फिर संवाद अदायगी,चाल-ढाल,लुक और पहनावे की समानता में दर्शकों को भी विस्‍मृति के कगार पर ले जाती हैं। अकेले राजीव खंडेलवाल माले के धागे की तरह फिल्‍म के सभी फूलों को जोड़े रखने की कोशिश करते हैं।
फिल्‍म में लोकेशन की खूबसूरती है। खूबसूरत अभिनेत्रियां हैं। रहस्‍य और रोमांच की फिल्‍मों के लिए आवश्‍यक अन्‍य उपादान हैं। नहीं है तो ड्रामा। और अभिनेत्रियों की अदाकारी बुरी तरह से निराश करती है। फिर से लिखना होगा कि अकेले राजीव खंडेलवाल अभिनेत्रियों,किरदारों और फिल्‍म को संभालने में फिसल जाते हैं। गौहर खान,गेमा एटकिंसन,अंकिता मकवाना और जेम्‍स बांड गर्ल केटरीना मुनिरो से कोई मदद नहीं मिलती। राजीव खंडेलवाल के पास ऐसी फिल्‍में आती हैं या वे स्‍वयं ऐसी उलझी पटकथा और किरदारों की फिल्‍में चुनते हैं। कहीं न कहीं समीकरण गड़बड़ हो जाता है और उनकी फिल्‍में अंतिम प्रभाव में कमजोर हो जाती हैं।
फीवर में स्विटजरलैंड है और वहां की मनोरम वादियां भी हैं। उन वादियों का आनंद लिया जा सकता है।
बता दें कि इस फिल्‍म में नौ संगीतकार हैं।
अवधि-130 मिनट
स्‍टार- दोस्‍टार

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