फिल्‍म समीक्षा : राज रीबूट




डर नहीं है हॉरर में

-अजय ब्रह्मात्‍मज
विक्रम भट्ट की राज श्रृंखला की अगली कड़ी है राज रीबूट। पहली से लेकर अभी तक इन सभी हॉरर फिल्‍मों में सुहाग की रक्षा के इर्द-गिर्द ही कहानियां बुनी जाती हैं। विक्रम भट्ट के इस फार्मूले में अब कोई रस नहीं बचा है। फिर भी वे उसे निचोड़े जा रहे हैं। राज रीबूट में वे अपने किरदारों को लकर रोमानिया चले गए हैं। रोमानिया का ट्रांसिल्‍वेनिया ड्रैकुला के लिए मशहूर है। एक उम्‍मीद बंधती है कि शायद ड्रैकुला के असर से डर की मात्रा बढ़े। फिल्‍म शुरू होते ही समझ में आ जाता है कि विक्रम भट्ट कुछ नया नहीं दिखाने जस रहे हैं।
रेहान और शायना भारत से रोमानिया शिफ्ट करते हैं। रेहान अनचाहे मन से शायना की जिद पर रोमानिया आ जाता है। पहली ही शाम को दोनों अलग-अलग कमरों में जाकर सोते हैं। हमें सूत्र दिया जाता है कि रेहान के मन में कोई राज है,जिसे वह बताना नहीं चाहता। उधर शायना के रोमानी ख्‍वाब बिखर जाते हैं। वह इस राज को जानना चाहती है। रोमानिया में वे जिस महलनुमा मकान में रहते हैं,वहां कोई आत्‍मा निवास करती है। पहले चंद दृश्‍यों में ही आत्‍मा का आगमन हो जाता है। खिड़की खुलती है। हवा आती है। पर्दे फड़फड़ाते हैं और लैपटॉप का एक कोना में खून लगा होता है। बाद में उस लैपटॉप से खून बहने लगता है। है न नयापन। ऐसे और भी नई बातें हैं। जब फिल्‍म की नायिका के शरीर में भूत प्रवेश कर जाता है तो वह अंग्रेजी बोलने लगती है और धड़ल्‍ले से एफ अक्षर से बनी गालियां देन लगती है। विक्रम भट्ट मल्‍टीप्‍लेक्‍स के अंग्रेजीदां दर्शकों के लिए यह भुतहा फिल्‍म लेकर आए हैं। क्‍योंकि देश में सिंगल स्‍क्रीन और कस्‍बों के आम दर्शक तो अंग्रेजी समझते नहीं हैं।
इस फिल्‍म में दक्षिण से आई नई अभिनेत्री कृति खरबंदा है। उन्‍होंने सौंपा गया काम निभा लिया है। अब मेकअप का वह क्‍या करतीं? भूत से आवेशित होने के बाद उनके चेहरे को ढंग से कुरूप नहीं किया गया है। कोई खौफ नहीं होता...न तो उनकी आवाज से और न ही अंदाज से। पति और सुहाग के रक्षक के रूप में गौरव अरोड़ा हैं। उन्‍हें कुछ नाटकीय दृश्‍य मिले हैं। अपने तई उन्‍होंने मेहनत भी की है,लेकिन वे प्रभावित नहीं कर पाते। फिल्‍म के कलाकारों में इमरान हाशमी का आकर्षण है। इस बार वे ग्रे शेड के साथ हैं।
बाकी विक्रम भट्ट ने हॉरर फिल्‍मों में घिसपिट चुके दृश्‍यों को ही दोहराया है। इमारत पर दीवारों के सहारे चढ़ जाना। हवा में तैरना। घर के सामानों का खिसकना। घर में अचानक कुछ दिखना। अभी तो बैकग्राउंड साउंड की बदलती ध्‍वनियों से पता चल जाता है कि कुछ होगा। लग रहा था कि पलंग में बंधी भूत से आवेशित नायिका पलंग को लेकर ही खड़ी हो जाएगी,लेकिन विक्रम भट्ट ने ऐसा नहीं दिखाया।
विक्रम भट्ट की हॉरर फिल्‍में अब बिल्‍कुल नहीं डरा रहीं।
अवधि- 127 मिनट
डेढ़ स्‍टार *1/2

Comments

आपकी समीक्षा से बेहद सटीक आकलन और विश्लेषण मिल जाता है | बहुत बहुत शुक्रिया आपका
chavannichap said…
शुक्रिया अजय कुमार झा। आप नियमित पढ़ा करें और अपनी टिप्‍प‍णियों से हौसला दें।

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम