अन्‍याय सहेगी न अब औरत - अमिताभ बच्‍चन





-अजय ब्रह्मात्‍मज
शुक्रवार को रिलीज हुई पिंक में हम सभी ने अमिताभ बच्‍चन को एक नए अवतार और अंदाज में देखा। उनकी ऊर्जा दंग करती है। सभी कहते हैं कि अपने किरदारों के प्रति उनके मन में किसी बच्‍चे जैसी उमंग रहती है। अच्‍छी बात यह भी है कि लेखक उनकी उम्र और अनुभव को नजर में रख कर भूमिकाओं की चुनौती दे रहे हैं। अमिताभ बच्‍चन उन चुनौतियों को स्‍वीकार और भूमिकाओं को साकार कर रहे हैं।
-‍पिंक ने कैसी चुनौती दी और यह भूमिका किस मायने में अलग रही?
0 शुजीत सरकार ने एक कांसेप्‍ट सुनाया था। फिल्‍म के विषय का कांसेप्‍ट सुन कर ही मैं राजी हो गया था। मुझे नहीं मालूम था कि कैसी पटकथा लिखी जा रही है और मुझे कैसा किरदार दिया जा रहा है? तब यह भी नहीं मालूम था कि कौन डायरेक्‍ट करेगा? स्क्रिप्‍ट की प्रक्रिया मेरी जानकारी में रही। शूटिंग के दरम्‍यान भी हमारा विमर्श चलता रहा कि क्‍या बोलना और दिखाना चाहि और क्‍या नहीं? पिंक एक विचार है। कहीं भी यह प्रयत्‍न नहीं है कि हम कुछ बताएं। हम ने इस विषय को फिल्‍म के रूप में समाज के सामने रख दिया है।
-ऐसा लग रहा है कि आप समाज में लड़कियों की स्थिति को लेकर काफी उद्वेलित हैं। आप ने अपनी नातिन और पोती के नाम पत्र लिखा और उन्‍हें कुछ सलाहें दीं...
0 यह उद्वेलन बहुत पहले से था। मैंने पहले कभी इसे व्‍यक्‍त नहीं किया था। यह सब मेरे अंदर था। पहले ऐसा माध्‍यम नहीं मिला कि हम बता सकें। पहले इसकी आवश्‍यकता भी नहीं पड़ी। मेरी पहली संतान बेटी है। मेरे भाई की तीन बेटियां हैं। मेरी बेटी और बेटे की पहली पैदाइश बेटियां हैं। हमारी परवरिश में यह नहीं था कि पत्‍नी दस कदम पीछे चलेगी। वह चौका-रसोई करेगी। घर संभालेगी। कहीं ना कहीं पिंक के दरम्‍यान बहुत से ऐसे पल आए जब इन सवालों से हम भावुक हुए। मुझे लगा कि अभी सही समय है। मुझे अपनी भावुकता को शब्‍दों में लिख देना चाहिए।
-जी...
0 मेरा ऐसा मानना है कि महिलाएं समाज की पचास प्रतिशत शक्ति हैं। उन्‍हें बराबरी का स्‍थान और सम्‍मान मिलना चाहिए। छोटी उम्र में ही समाज के सदस्‍यों को समझाना होगा... मैंने आराध्‍या के लिए यही लिखा कि जब तक तुम बड़ी होगी और इसे समझने लायक होगी तब शायद हम नहीं होंगे। लेकिन मुझे उम्‍मीद है कि तुम मेरी बातों को आगे ले जाओगी1 सभी बेटियों को संबोधित है मेरा पत्र।
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महिलाओं की शक्ति ने सब कुछ बदल दिया है। कहां देख था आप ने...वे दसड़कों पर आ गई हैं। उनसे अन्‍याय सहा नहीं जा रहा है। कहावतें बदल गई हैं। आज आप ढोल गंवार शूद्र पशु नारी,ये सब तारण के अधिकारी नहीं कह सकते। हम ने उसकी शक्ति के एक अंश को अपनी फिल्‍म में दर्शाया है। हम चाहते हैं कि इस पर बहस हो।
-पिछले एक हफ्ते से बहस गर्म है कि हिंदी फिल्‍मों का भविष्‍य अंधेरे में है। स्‍टूडियो बंद हो रहे हैं। स्‍टार सिस्‍टम ने नुकसान पहुंचाया है... आप अपने लंबे अनुभवों के आधार पर क्‍या कहेंगे?
0 मैं तकरीबन पचास वर्षों से फिल्‍म इंडस्‍ट्री में काम कर रहा हूं1 कोई भी ऐसा वर्ष नहीं आया है,जब ऐसी बातें न हुई हों। यह उतार-चढ़ाव चलता रहेगा। हमलोग हमेशा तरक्‍की करेंगे। आज मैं हीरो नहीं हूं,लेकिन मेरी आमदनी हीरो होने के दिनों से दोगुनी-तिगुनी हो गई है। मैंने प्रकाश मेहरा से पूछा था कि सात लाख में तुम जंजीर बेच रहे हो? कोई खरीदेगा नहीं। आज सात लाख की क्‍या कीमत है।
-आखिर क्‍या बात है कि हालीवुड की तमाम कोशिों के बावजूद हम हिल नहीं पा रहे हैं?क्‍या खास है हमारी फिल्‍मों में...
0 संस्‍कार...हमारी संस्‍कृति और साहित्‍य। वह पूर्वी है,पश्चिमी नहीं है। वे फैंटेसी टाइप की फिल्‍में ले आएंगे। वे चलेंगी।  हमारे परिवार की परंपरा,हमार संस्‍कृति,हमारे माहौल को कोई नहीं बिगाड़ सकता। अभी संचार के इतने यंत्र आ गए हैं। हमें कई बार लगता है कि आज की पीढ़ी इनसे बर्बाद हो रही है। ऐसे प्रभाव का प्रतिशत बहुत कम है। हमारी फिल्‍मों में हमारी मिट्टी बोलती है। वह हमेशा बोलती रहेगी।
-कहा जा रहा है कि पारंपरिक पत्र-पत्रिकाएं बंद हो जाएंगी। दुनिया डिजिटाइज हो जाएगी...
0 यह धारणा है कि प्रिंट मीडिया प्रबल नहीं रहा। यह गलत धारणा है। मैं भी रात के बारह बजे सभी खबरें पढ़ लेता हूं। सुबह अखबार आता है तो कई बार जिज्ञासा नहीं रहती। फिर भी मैं अखबार पढ़ता हूं। एडीटोरिल,कॉलम,समाचारों की सामूहिक प्रस्‍तुति डिजिटल दुनिया में नहीं मिल पाती। उसके लिए अखबार चाहिए। जीवन के सभी क्षेत्रोंं के बारे में खबरें और टिप्‍पणियां रहती हैं। मुझे यह अच्‍छा लगता है। मोबाइल रहेगा,लेकिन लिखना जारी रहेगा। डिजिटल हो भी गया तो उसे बदलना होगा। उसे यह सब छापना होगा। अगर आप पढेंगे नहीं तो हम सुना देंगे। मैं बाबूजी की रचनाएं पढ़ने जा रहा हूं। मैं कभी बाबूजी की कविताएं लिख देता हूं तो लोग पढ़ते हें। उसके बारे में बातें करते हैं।
-आप कौन सी कविताएं पढ़ने जा रहे हैं?
0 धीरे-धीरे हो रहा है। कुछ तो हम ने रिकार्ड कर दिया है। एक राय है कि मैं बाबूजी की आत्‍मकथा पढ़ूं। उस पर काम चल रहा है। देखें कैसे आ पाता है?
-और कौन सी फिल्‍में आएंगी?
 आमिर खान के साथ यशराज की फिल्‍म है। रामगोपाल वर्मा की सरकार 3 है। आंखें 2 है। प्रदीप सरकार की एक फिल्‍म हो सकती है। दो-चार और फिल्‍मों की बातें चल रही हैं।

Comments

Creative Manch said…
फ़िल्म - पिंक बेहतरीन है ! पुरुष समाज को तो अवश्य ही देखनी चाहिए ! बल्कि इस फ़िल्म को तो टैक्स फ्री होना चाहिए !

अमिताभ बच्चन बहुत बढ़िया भूमिका में हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्होंने फ़िल्म - शूटआउट ऐट लोखंडवाला (2007) से अलग कुछ काम किया है !

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