रोज़ाना : शाह रूख खान की ईद



रोज़ाना
शाह रूख खान की ईद
-अजय ब्रह्मात्‍मज
ईद के मौके पर शाह रूख खान बुलाते हैं। वे मीडियाकर्मियों को ईद की दावत देते हैं। इस दावत में देर-सबेर वे शामिल होते हैं। मीडियाकर्मियों से जत्‍थे में मिलते हैं। उनसे अनौपचारिक बातें करते हैं। अफसोस कि ये अनौपचारिक बातें भी रिकार्ड होती हैं। अगले दिन सुर्खियां बनती हैं। अब न तो फिल्‍म स्‍टार के पास सब्र है और न पत्रकारों के पास धैर्य...स्‍टार की हर बात खबर होती है। वे खुद भी पीआर के प्रेशर में में हर मौके को खबर बनाने में सहमति देने लगे हैं। या कम से कम तस्‍वीरें तो अगले दिन आ ही जाती हैं। चैनलों पर फटेज चलते हैं। सभी के करोबार को फायदा होता है।
हर साल ईद के मौके पर सलमान खान की फिल्‍में रिलीज हो रही हैं और शाह रूख खान से ईद पर उनकी अगली फिल्‍मों की बातें होती हैं,जो दीवाली या क्रिसमस पर रिलीज के लिए तैयार हो रही होती हैं। वक्‍त ऐसा आ गया है कि पत्रकार हर मुलाकात को आर्टिकल बनाने की फिक्र में रहते हैं। उन पर संपादकों और सहयोगी प्रकाशनों का अप्रत्‍यक्ष दबाव रहता है। अघोषि प्रतियोगिता चल रही होती है। सभी दौड़ रहे होते हैं। इस दौड़ में सभी पहले पहुंचना चाहते हैं। अच्‍छा है कि जो पिछड़ जाए,वह भी विजेता माना जाता है।
इस ईद की बात करें तो बारिश की वजह से शाह रूख खान ने अपने बंगले मननत के पास के पांचसितारा होटल में लंच का इंतजाम किया था। वे आए। घोषित समय से डेढ़-दो घंटे देर से आना उनके लिए सामान्‍य बात है। अगर किसी इवेंट पर किसी दिन वे समय पर आ जाएं तो आश्‍चर्य होगा और अनेक पत्रकार उस इवेंअ पर उनसे मिल नहीं पाएंगे। पत्रकारों ने भी स्‍टारों के हिसाब से मार्जिन तय कर लिया है। केवल अमिताभ बच्‍चन और आमिर खान समय के पाबंद हैं। बहरहाल,शाह रूख ने हमारे जत्‍थे से कुछ रोचक बातें कीं। बाद में दूसरे जत्‍थों के बीच भी उन्‍होंने लगभा वे ही बातें कीं। मसलनएईद की रात बच्‍चों के लिए खाना बनाने की बात। उन्‍होंने हमें विस्‍तार से बताया कि जब हैरी मेट सेजल की शूटिंग के दौरान अपने मेजबान से सीखी। मेजबान मियां-बीवी ने शाह रूख खान को इतालवी व्‍यंजनों के पाक विधि सिखाई। अगर बनाते समय कुद भूल जाता है तो गूगल है ही मदद के लिए। और हो,छठे-छमाही खाने बनाने के शौकीन सभी पतियों और मर्दां की तरह शाह रूख खान भी किचेन में बहुत कुछ फैला देते हैं।
शाह रूख खान की ईद से आया कि अब त्‍योहारों के ऐसे सार्वजनिक आयोजन फिल्‍म इंडस्‍ट्री में कम हो गए हैं। पहले होली,दीवाली और ईद पर ऐसे कई आयोजन होते थे। उनसे खबरें भी नहीं जुड़ी रहती थीं। सभी त्‍योहार के रंग में रहते थे। यह चिंता नहीं रहती थी कि क्‍यो बोलें और कैसे दिखें? मीडिया के प्रकोप और सोशल मीडिया के आतंक ने त्‍योहारों का जश्‍न छीन लिया है। सब कुछ रुटीन और फैशन सा हो गया है। हर हाथ में मोबाइल के साथ आए कैमरे और सेल्‍फी की धुन ने त्‍योहारों की लय तोड़ दी है।

Comments

bahut sahi aklan par bahut sahi sahi alekh hai apka padhkar achha laga

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