Posts

Showing posts with the label फिल्‍म समीक्षा

फिल्‍म समीक्षा : शागिर्द

Image
भ्रष्ट है पूरा तंत्र -अजय ब्रह्मात्मज तिग्मांशु धूलिया की शागिर्द पुलिस विभाग, राजनीति और अपराध जगत की मिलीभगत का सिनेमाई दस्तावेज है। उन्होंने दिल्ली शहर में एकऐसी दुनिया रची है, जिसमें सभी भ्रष्ट हैं। अपराधी तो आचरण और कर्म से भ्रष्ट और गैरकानूनी गतिविधियों में संलग्न होते हैं। शागिर्द में पुलिस अधिकारी और राजनीतिज्ञ में भ्रष्टाचार में लिप्त दिखाए गए हैं। हनुमंत सिंह नीडर और निर्भीक पुलिस अधिकारी हैं। एक तरफ वे राजनीतिज्ञ के मोहरे के तौर पर काम करते हैं तो दूसरी ओर उनके हाथ अपराधियों से भी मिले हुए हैं। वे अपराधियों को पकड़ते और उनका सफाया करते हैं, लेकिन साथ ही उन्हें संरक्षण देकर वसूली भी करते हैं। आश्चर्य नहीं कि उनका पूरा महकमा इस कदाचार में शामिल है। हां, वे पुरानी हिंदी फिल्मों के मधुर गीतों के दीवाने हैं। उन्हें फिल्मों की रिलीज का साल, गीतकार, संगीतकार और गायकों तक के नाम याद रहते हैं। इस भ्रष्ट पुलिस अधिकारी को अपने परिवार की सुरक्षा और भविष्य की चिंता भी रहती है। वह उन्हें न्यूजीलैंड में बसने के लिए भेज देता है। पुलिस की नौकरी से त्यागपत्र देकर वह भी न्यूजीलैंड पहुंच

फिल्‍म समीक्षा : रागिनी एमएमएस

Image
धोखा, सेक्स और हॉरर -अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों में आ रहे बदलाव का एक नमूना रागिनी एमएमएस है। इसे हाथों में लिए कैमरे से शूट किया गया है। ज्यादातर फ्रेम हिलते-डुलते और कई बार उड़ते नजर आते हैं। लव सेक्स और धोखा के बाद एकता कपूर ने दिबाकर बनर्जी की प्रयोगात्मक शैली को यहां शिल्प बना दिया है। इसके फायदे और नुकसान फिल्म में नजर आते हैं। 0 रागिनी और उदय के बीच प्रेम है। उदय भदेस युवक है। रागिनी संभ्रांत मध्यवर्गीय युवती है। दोनों वीकएंड मनाने के उद्देश्य से शहर से बाहर निकलते हैं। इस वीकएंड का एक मकसद शारीरिक संबंध भी बनाना है। रागिनी मानसिक रूप से इसके लिए तैयार है। बस, उसे यह नहीं मालूम कि उदय इसी बहाने उसका एमएमएस तैयार कर अपनी लालसा पूरी करना चाहता है। 0 दोनों एक वीराने फार्म हाउस में पहुंचते हैं। उनके वहां पहुंचने के थोड़ी देर के बाद दर्शकों को बता दिया जाता है कि उस घर में कोई और भी रहती है आत्मा के रूप में। फिल्म के प्रचार से हमें पहले से मालूम है कि फिल्म में सेक्स और हॉरर है। सिनेमाघर में बैठते ही उत्कंठा और आशंका बनती है, जो पाश्‌र्र्व संगीत के प्रभाव से चढ़ती और उ

फिल्‍म समीक्षा : पीपली लाइव

- अजय ब्रह्मात्‍मज अनुषा रिजवी की जिद्दी धुन और आमिर खान की साहसी संगत से पीपली लाइव साकार हुई है। दोनों बधाई के पात्र हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के तौर-तरीके से अपरिचित अनुषा और फिल्म इंडस्ट्री के उतने ही सधे जानकार आमिर... दोनों के परस्पर विश्वास से बगैर किसी दावे की बनी ईमानदार पीपली लाइव शुद्ध मनोरंजक फिल्म है। अब यह हमारी संवेदना पर निर्भर करता है किहम फिल्म में कितना गहरे उतरते हैं और कथा-उपकथा की कितनी परतों को परख पाते हैं। अगर हिंदी फिल्मों के फार्मूले ने मानसिक तौर पर कुंद कर दिया है तो भी पीपली लाइव निराश नहीं करती। हिंदी फिल्मों के प्रचलित फार्मूले , ढांचों और खांकों का पालन नहीं करने पर भी यह फिल्म हिंदी समाज के मनोरंजक प्रतिमानों को समाहित कर बांधती है। ऊपरी तौर पर यह आत्महत्या की स्थिति में पहुंचे नत्था की कहानी है , जो एक अनमने फैसले से खबरों के केंद्र में आ गया है। फिल्म में टिड्डों की तरह खबरों की फसल चुगने को आतुर मीडिया की आक्रामकता हमें बाजार में आगे रहने के लिए आवश्यक तात्कालिकता के बारे में सचेत करती है। पीपली लाइव मीडिया , पालिटिक्स , महानगर और प्रशासन को नि

फिल्‍म समीक्षा:काइट्स

-अजय ब्रह्मात्‍मज  रितिक रोशन बौर बारबरा मोरी की काइट्स के रोमांस को समझने के लिए कतई जरूरी नहीं है कि आप को हिंदी, अंग्रेजी और स्पेनिश आती हो। यह एक भावपूर्ण फिल्म है। इस फिल्म में तीनों भाषाओं का इस्तेमाल किया गया है और दुनिया के विभिन्न हिस्सों के दर्शकों का खयाल रखते हुए हिंदी और अंग्रेजी में सबटाइटल्स दिए गए हैं। अगर आप उत्तर भारत में हों तो आपको सारे संवाद हिंदी में पढ़ने को मिल जाएंगे। काइट्स न्यू एज हिंदी सिनेमा है। यह हिंदी सिनेमा की नई उड़ान है। फिल्म की कहानी पारंपरिक प्रेम कहानी है, लेकिन उसकी प्रस्तुति में नवीनता है। हीरो-हीरोइन का अबाधित रोमांस सुंदर और सराहनीय है। काइट्स विदेशी परिवेश में विदेशी चरित्रों की प्रेमकहानी है। जे एक भारतवंशी लड़का है। वह आजीविका के लिए डांस सिखाता है और जल्दी से जल्दी पैसे कमाने के लिए नकली शादी और पायरेटेड डीवीडी बेचने का भी धंधा कर चुका है। उस पर एक स्टूडेंट जिना का दिल आ जाता है। पहले तो वह उसे झटक देता है, लेकिन बाद में जिना की अमीरी का एहसास होने के बाद दोस्ती गांठता है। प्रेम का नाटक करता है। वहीं उसकी मुलाकात नताशा से होती ह

फिल्‍म समीक्षा : हाउसफुल

-अजय  ब्रह्मात्‍मज सचमुच थोड़ी ऐसे या वैसे और जैसे-तैसे साजिद खान ने हाउसफुल का निर्देशन किया है। आजकल शीर्षक का फिल्म की थीम से ताल्लुक रखना भी गैर-जरूरी हो गया है। फिल्म की शुरुआत में साजिद खान ने आठवें और नौवें दशक के कुछ पापुलर निर्देशकों का उल्लेख किया है और अपनी फिल्म उन्हें समर्पित की है। इस बहाने साजिद खान ने एंटरटेनर डायरेक्टर की पंगत में शामिल होने की कोशिश कर ली है। फिल्म की बात करें तो हाउसफुल कुछ दृश्यों में गुदगुदी करती है, लेकिन जब तक आप हंसें, तब तक दृश्य गिर जाते हैं। इसे स्क्रीनप्ले की कमजोरी कहें या दृश्यों में घटनाक्रमों का समान गति से आगे नहीं बढ़ना, और इस वजह से इंटरेस्ट लेवल एक सा नहीं रहता। दो दोस्त, दो बहनें और एक भाई, दो लड़कियां, एक पिता, एक दादी और एक करोड़पतियों की बीवी़, कामेडी आफ एरर हंसने-हंसाने का अच्छा फार्मूला है, लेकिन उसमें भी लाजिकल सिक्वेंस रहते हैं। हाउसफुल में कामेडी के नाम पर एरर है। सारी सुविधाओं (एक्टरों की उपलब्धता और शूटिंग के लिए पर्याप्त धन) के बावजूद लेखक-निर्देशक ने कल्पना का सहारा नहीं लिया है। कुछ नया करने की कोशिश भी नहीं

फिल्‍म समीक्षा : पाठशाला

हिंदी फिल्मों में शिक्षा, स्कूल, पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति मुद्दा बने हुए हैं। 3 इडियट में राजकुमार हिरानी ने छात्रों पर पढ़ाई के बढ़ते दबाव को रोचक तरीके से उठाया था। अहमद खान ने पाठशाला में शिक्षा के व्यवसायीकरण का विषय चुना है। नेक इरादे के बावजूद पटकथा, अभिनय और निर्देशन की कमजोरियों की वजह से पाठशाला बेहद कमजोर फिल्म साबित होती है। बढ़ती फीस, छात्रों को रियलिटी शो में भेजने की कोशिश, छात्रों के उपयोग की चीजों की ऊंची कीमत और मैनेजमेंट के सामने विवश प्रिंसिपल ़ ़ ़ अहमद खान ने शिक्षा के व्यवसायीकरण के परिचित और सतही पहलुओं को ही घटनाओं और दृश्यों के तौर पर पेश किया है। इस दबाव के बीच अंग्रेजी शिक्षक उदयावर और स्पोर्ट्स टीचर चौहान की पहलकदमी पर सारे टीचर एकजुट होते हैं ओर वे छात्रों को असहयोग के लिए तैयार कर लेते हैं। छोटा-मोटा ड्रामा होता है। मीडिया में खबर बनती है और मुद्दा सुलझ जाता है। विषय की सतही समझ और कमजोर पटकथा फिल्म के महत्वपूर्ण विषय को भी लचर बना देती है। सारे कलाकारों ने बेमन से काम किया है। सभी कलाकारों के निकृष्ट परफार्मेस के लिए पाठशाला याद रखी जा सकती है। नाना

फिल्‍म समीक्षा : तुम मिलो तो सही

-अजय ब्रह्मात्‍मज  इस फिल्म को देखने की एक बड़ी वजह नाना पाटेकर और डिंपल कपाडि़या हो सकते हैं। दोनों के खूबसूरत और भावपूर्ण अभिनय ने इस फिल्म की बाकी कमियों को ढक दिया है। उनके अव्यक्त प्रेम और साहचर्य के दृश्यों उम्रदराज व्यक्तियों की भावनात्मक जरूरत जाहिर होती है। तुम मिलो तो सही ऊपरी तौर पर तीन प्रेमी युगलों की प्रेम कहानी लग सकती है, लेकिन सतह के नीचे दूसरी कुलबुलाहटें हैं। कबीर सदानंद अपनी पहली कोशिश में सफल रहते हैं। नाना पाटेकर और डिंपल कपाडि़या दो विपरीत स्वभाव के व्यक्ति हैं। दोनों अकेले हैं। नाना थोड़े अडि़यल और जिद्दी होने के साथ अंतर्मुखी और एकाकी तमिल पुरुष हैं, जबकि डिंपल मुंबई की बिंदास, बातूनी और सोशल स्वभाव की पारसी औरत हैं। संयोग से दोनों भिड़ते, मिलते और साथ होते हैं। इनके अलावा दो और जोडि़यां हैं। सुनील शेट्टी और विद्या मालवड़े के दांपत्य में पैसों और जिंदगी की छोटी प्राथमिकताओं को लेकर तनाव है, जो बड़े शहरों के युवा दंपतियों के बीच आम होता जा रहा है। अंत में सुनील को अपनी गलतियों का एहसास होता है और दोनों की जिंदगी सुगम हो जाती है। रेहान और अंजना दो भिन्न पृष्ठभूमि

फिल्‍म समीक्षा : वेल डन अब्बा:

 हंसी-खुशी के  बेबसी -अजय  ब्रह्मात्‍मज इन दिनों हम कामेडी फिल्मों में क्या देखते-सुनते हैं? ऊंची आवाज में बोलते एक्टर, बैकग्राउंड का लाउड म्यूजिक, हीरोइन के बेवजह डांस, गिरते-पड़ते भागते कैरेक्टर, फास्ट पेस में घटती घटनाएं और कुछ फूहड़-अश्लील लतीफों को लेकर लिखे गए सीन ़ ़ ़ यही सब देखना हो तो वेल डन अब्बा निराश करेगी। इसमें ऊपर लिखी कोई बात नहीं है, फिर भी हंसी आती है। एहसास होता है कि हमारी जिंदगी में घुस गए भ्रष्टाचार का वायरस कैसे नेक इरादों की योजनाओं को निगल रहा है। श्याम बेनेगल ने बावड़ी (कुआं) के बहाने देश की डेमोक्रेसी को कतर रहे करप्शन को उद्घाटित किया है। उन्होंने आम आदमी की आदत बन रही तकलीफ को जाहिर किया है। अरमान अली मुंबई में ड्राइवर है। वह अपनी बेटी मुस्कान की शादी के लिए छुट्टी लेकर गांव जाता है। गांव से वह तीन महीनों के बाद नौकरी पर लौटता है तो स्वाभाविक तौर पर बॉस की डांट सुनता है। अपनी नौकरी बचाने के लिए वह गांव में अपने साथ घटी घटनाएं सुनाता है और हमारे सामने क्रमवार दृश्य खुलने लगते हैं। अनपढ़ अरमान अली सरकार की कपिल धारा योजना के अंतर्गत बावड़ी के लिए आवे

फिल्‍म समीक्षा : शापित

डराने में सफल  -अजय  ब्रह्मात्‍मज हिंदी में बनी डरावनी फिल्में लगभग एक जैसी होती हैं। किसी अंधविश्वास को आधार बनाकर कहानी गुंथी जाती है और फिर तकनीक के जरिए दर्शकों को चौंकाने की कोशिश की जाती है। साउंड इफेक्ट से दृश्यों का झन्नाटेदार अंत किया जाता है और हम अपेक्षित ढंग से अपनी सीट पर उछल पड़ते हैं। विक्रम भट्ट अपनी डरावनी फिल्मों में कुछ अलग करते हैं और दर्शकों में डर पैदा करने में सफल होते हैं। शापित में अमन अपनी प्रेमिका काया के परिवार को मिले पुराने शाप को खत्म करने के लिए आत्मा की तलाश में निकलता है। इस खोज में डॉ ़पशुपति उसके साथ हैं। पता चलता है किएक दुष्ट आत्मा सदियों पहले दिए अभिशाप की रक्षा कर रही है। उस आत्मा की मुक्ति के बाद ही शाप से मुक्त हुआ जा सकता है। चूंकि अमन और काया के बीच बेइंतहा प्यार है, इसलिए अमन हर जोखिम के लिए तैयार है। विक्रम भट्ट ने स्पेशल इफेक्ट से दृश्यों को डरावना बनाने के साथ उनके पीछे एक लॉजिक भी रखा है। अपनी खासियत के मुताबिक उन्होंने मुख्य किरदारों की प्रेमकहानी में दुष्टात्मा को विलेन की तरह पेश किया है। अतीत में लौटने केदृश्य सुंदर हैं। विक्रम

फिल्‍म समीक्षा : राइट या रांग,न घर के न घाट के,हाइड एंड सीक

-अजय ब्रह्मात्‍मज राइट या रांग पुरानी शैली का अपना आकर्षण होता है। हम आज भी पुरानी फिल्में पसंद करते हैं। उन्हें देखते हैं। ठीक उसी तरह पुरानी शैली में बनी नई फिल्म भी पसंद आ सकती है। नीरज पाठक ने कसी हुई स्क्रिप्ट लिखी है। वे दर्शकों को कुछ और सोचने का मौका नहीं देते, इसी वजह से कुर्सी पर लाचार बैठे सनी देओल को देखकर भी कोफ्त नहीं होती। इंटरवल में हाल से बाहर निकलने और फिर लौटने के बीच हम आगे की कहानी बुनते हैं, लेकिन नीरज पाठक रोमांचक झटका देते हैं। फिल्म एक नया मोड़ लेती है, जिसमें राइट और रॉन्ग के बीच का फर्क मिटने लगता है। अजय और विनय की इस कहानी में अजय की बीवी, विनय की बहन और अजय का कजिन शामिल हैं। ईमानदार, जांबाज और विलपावर का धनी अजय रिश्तों के पेंच से टूट जाता है। वह एक फूलप्रूफ व्यूह रचता है। बदला लेने के बाद सभी की आंखों में धूल झोंक कर कोर्ट से बाइज्जत बरी हो जाता है, लेकिन वह अपने राइट दोस्त को रॉन्ग होते नहीं देख पाता। उसे सच बता देता है। दोस्ती, प्रतिद्वंद्विता, छल, विवाहेतर संबंध, लोभ, वासना और पिता-पुत्र के रिश्तों को समेटती राइट या रॉन्ग आखिर तक दिलचस्प बनी रह

फिल्‍म समीक्षा अवतार

कल्पना की तकनीकी उड़ान -अजय ब्रह्मात्‍मज जेम्स कैमरून की फिल्म अवतार 3डी का डिजिटल जादू है। 3डी का स्पेशल चश्मा लगाकर सिनेमाघरों में बैठने के बाद अंधेरा होते ही पर्दे पर मायावी दुनिया आकार लेने लगती है। यहां दैत्याकार रोबोट हैं और सुपर तकनीक से चल रहा मिशन है। दुनिया की अब तक की सबसे महंगी फिल्म अवतार पहले ही फ्रेम से भव्यता का एहसास देती है। इस फिल्म में सिर्फ मनुष्य ही स्वाभाविक और सामान्य कद के हैं। बाकी सब कुछ विशाल है। इस अनोखी प्रेम कहानी में दो ग्रहों के जीवों का प्रेम है। कहानी आज से 145 साल आगे 2154 की है। पृथ्वी पर ऊर्जा की कमी है। ऊर्जा की तलाश में पृथ्वीवासी पंडोरा पहुंचते हैं। उन्हें पंडोरा यूनोबटैनियम चाहिए। इस कार्य के लिए वे मनुष्य के डीएनए से एक हाइब्रिड तैयार करते हैं और उसे पंडोरावासी का रूप देकर पंडोरा भेजते हैं। मरीन से रिटायर जेक सली को मिशन के लिए चुना जाता है। जेक पैराप्लेजिक रोग से ग्रस्त है। वह जिंदगी में कुछ करने की ख्वाहिश से इस मिशन में शामिल होता है। पंडोरा के निवासी प्रकृति के साथ तालमेल बिठा कर जीते हैं। उनके जीवन में मशीन नहीं है। जेक जाता तो है पंडोराव

फिल्‍म समीक्षा : दे दना दन

-अजय ब्रह्मात्‍मज प्रियदर्शन अपनी फिल्मों का निर्देशन नहीं करते। वे फिल्मांकन करते हैं। ऐसा लगता है कि वे अपने एक्टरों को स्क्रिप्ट समझाने के बाद छोड़ देते हैं। कैमरा ऑन होने के बाद एक्टर अपने हिसाब से दिए गए किरदारों को निभाने की कोशिश करते हैं। उनकी फिल्मों के अंत में जो कंफ्यूजन रहता है, उसमें सीन की बागडोर एक्टरों के हाथों में ही रहती है। अन्यथा दे दना दन के क्लाइमेक्स सीन को कैसे निर्देशित किया जा सकता है? दे दना दन प्रियदर्शन की अन्य कामेडी फिल्मों के ही समान है। शिल्प, प्रस्तुति और निर्वाह में भिन्नता नहीं के बराबर है। हां, इस बार किरदारों की संख्या बढ़ गई है। फिल्म के हीरो अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी हैं। उनकी हीरोइनें कट्रीना कैफ और समीरा रेड्डी है। इन चारों के अलावा लगभग दो दर्जन कैरेक्टर आर्टिस्ट हैं। यह एक तरह से कैरेक्टर आर्टिस्टों की फिल्म है। वे कंफ्यूजन बढ़ाते हैं और उस कंफ्यूजन में खुद उलझते जाते हैं। फिल्म नितिन बंकर और राम मिश्रा की गरीबी, फटेहाली और गधा मजदूरी से शुरू होती है। दोनों अमीर होने की बचकानी कोशिश में एक होटल में ठहरते हैं, जहां पहले से ही कुछ ल

फिल्‍म समीक्षा : अजब प्रेम की गजब कहानी

-अजय ब्रह्मात्‍मज यह फिल्म प्रेम यानी रणबीर कपूर की है। वह जेनी का पे्रमी है। जेनी उसे बहुत पसंद करती है। आखिरकार उसे महसूस होता है कि उसका असली प्रेमी तो प्रेम ही है। वह उसके साथ घर बसाती है। फिल्म को देखते हुए साफ तौर पर लगता है कि राजकुमार संतोषी ने रणबीर और कैटरीना के चुनाव के बाद फिल्म की कथा बुनी है, क्योंकि हर दृश्य की शुरुआत और समाप्ति दोनों में से किसी एक कलाकार से ही होती है। इसे निर्देशक की सीमा कह सकते हैं या हिंदी फिल्मों के बदलते परिदृश्य में स्टारों का केंद्रीय महत्व मान सकते हैं। फिल्म का उद्देश्य हंसाना है, इसलिए शुरू से आखिर तक ऐसे दृश्यों की परिकल्पना की गई है जो दर्शकों को गुदगुदा सके। यह एक सामान्य कामेडी फिल्म है, और यह कहा जा सकता है कि राजकुमार संतोषी की ही एक अन्य फिल्म अंदाज अपना अपना से इसकी कामेडी कमजोर है। यह फिल्म मुख्य तौर पर रणबीर कपूर पर निर्भर है हालांकि वह दर्शकों को निराश भी नहीं करते। प्रेम के किरदार में उनके अभिनय का आत्मविश्वास निखार पर दिखाई देता है। वह हर अंदाज में प्यारे लगते हैं, क्योंकि उन्होंने पूरे मनोयोग और विश्वास से अपने किरदार को

फिल्‍म समीक्षा : आल द बेस्ट

हीरो और डायरेक्टर के बीच समझदारी हो और संयोग से हीरो ही फिल्म का निर्माता भी हो तो देखने लायक फिल्म की उम्मीद की जा सकती है। इस दीवाली पर आई ऑल द बेस्ट इस उम्मीद पर खरी उतरती है। हालांकि रोहित शेट्टी गोलमाल और गोलमाल रिटंर्स से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। लेकिन जब हर तरफ हीरो और डायरेक्टर फिसल रहे हों, उस माहौल में टिके रहना भी काबिले तारीफ है। आगे बढ़ने के लिए रोहित शेट्टी और अजय देवगन को अब बंगले की कॉमेडी से बाहर निकलना चाहिए। वीर म्यूजिशियन है। वह खुद का म्यूजिक बैंड बनाना चाहता है। वीर विद्या से प्यार करता है और अपनी बेकारी के बावजूद दोस्त प्रेम की मदद भी करता है। प्रेम का सपना कांसेप्ट कार बनाना है। वीर का एनआरआई भाई उसे हर महीने एक मोटी रकम भेजता है। भाई से ज्यादा पैसे लेने के लिए प्रेम की सलाह पर वीर भाई को झूठी जानकारी देता है कि उसने विद्या से शादी कर ली है। इस बीच वीर और प्रेम एक और मुसीबत में फंस जाते हैं। रेस के जरिए रकम को पचास गुना करने के चक्कर में वे मूल भी गंवा बैठते हैं। पैसे लौटाने के लिए वे बंगला किराए पर देते हैं। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है कि अचानक विदेश में रह रहा

फिल्‍म समीक्षा:दिल बोले हडि़प्‍पा

यशराज फिल्म्स ने पंजाब का पर्दे पर इतना दोहन कर लिया है कि अब उनके सही इरादों के बावजूद फिल्म नकली और देखी हुई लगने लगी है। दिल बोले हडि़प्पा के प्रसंग और दृश्यों में बासीपन है। आम दर्शक इसके अगले दृश्य और संवाद बता और बोल सकते हैं। वीरा (रानी मुखर्जी) का सपना है कि वह सचिन और धौनी के साथ क्रिकेट खेले। अपने इस सपने की शुरूआत वह पिंड (गांव) की टीम में शामिल होकर करती है। इसके लिए उसे वीरा से वीर बनना पड़ता है। लड़के के वेष में वह टीम में शामिल हो जाती है। निर्देशक अनुराग सिंह को लगता होगा कि दर्शक इसे स्वीकार भी कर लेंगे। 30 साल पहले की फिल्मों में लड़कियों के लड़के या लड़कों के लड़कियां बनने के दृश्यों में हंसी आती थी। अब ऐसे दृश्य फूहड़ लगते हैं। दिल बोले हडि़प्पा ऐसी ही चमकदार और रंगीन फूहड़ फिल्म है। फिल्म में रानी मुखर्जी पर पूरा फोकस है। ऐसा लगता है कि उनकी अभिनय प्रतिभा को हर कोने से दिखाने की कोशिश हो रही है। करिअर के ढलान पर रानी की ये कोशिशें हास्यास्पद हो गई हैं। शाहिद कपूर फिल्म में बिल्कुल नहीं जंचे हैं। अनुपम खेर ऐसी भूमिकाओं में खुद को दोहराने-तिहराने के अलावा कुछ नहीं कर

फिल्‍म समीक्षा:वांटेड

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज प्रभु देवा की वांटेड उस कैटगरी की फिल्म है, जो कुछ सही और ज्यादा गलत कारणों से हिंदी में बननी बंद हो चुकी है। इनके बारे में धारणा है कि केवल फ्रंट स्टाल के चवन्नी छाप दर्शक ही पसंद करते हैं। अब दर्शकों का प्रोफाइल बदल गया है। मल्टीप्लेक्स ने दर्शकों की जो आभिजात्य श्रेणी गढ़ी है, वह ऐसी फिल्मों को घटिया, असंवेदनशील और चालू कहती है। पिछले 15 वर्षो में हिंदी सिनेमा ने खुद को जाने-अनजाने ऐसी मनोरंजक फिल्मों से दूर कर लिया है। कभी ऐसी फिल्में बनती थीं और हमारे फिल्मी हीरो दर्शकों के दिलों पर राज करते थे। वांटेड उस नास्टेलजिया को जिंदा करती है। यह फिल्म हर किस्म के थिएटर के दर्शकों को पसंद आ सकती है, क्योंकि कुछ दर्शक इसे सालों से मिस कर रहे थे। नए शहरी दर्शकों ने तो ऐसी फिल्में देखी ही नहीं हैं। राधे (सलमान खान) पैसों के लिए कोई भी काम कर सकता है। एक बार जिस काम या बात के लिए वह हां कर देता है, उससे कभी नहीं मुकरता। अपनी इस खूबी और निर्भीक एटीट्यूड से वह अपराध जगत में तेजी से चर्चित हो जाता है। उसकी मांग बढ़ती है। अपराध जगत का सरगना गनी भाई विदेश में कहीं रहता है। अपने दा