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समाज को चाहिए कुछ विद्रोही-महेश भट्ट

दावानल खबरों में है। कैलिफोर्निया के जंगल की आग तबाह कर रही है। इन पंक्तियों को लिखते समय मैं टीवी पर आग की लपटें देख रहा हूं। कम ही लोग महसूस कर पाते हैं कि आग पर्यावरण का जरूरी हिस्सा है, क्योंकि यह पुराने को जला देती है और नए विकास के लिए जगह बनाती है। इसी प्रकार विद्रोही भी जरूरी होते हैं। संस्कृति के पर्यावरण को सुव्यवस्थित और विकसित करने के लिए उनकी जरूरत पडती है। जंगल की आग की तरह वे भी पुराने को जला देते हैं। विद्रोही संस्कृति की मोर्चेबंदी को तोडते हैं और जिंदगी के नए अवतार के लिए जगह बनाते हैं। विद्रोह के परिणाम तुम वही क्यों नहीं करते, जो तुम्हें कहा जाता है? स्कूल के दिनों में मुझे अपने शिक्षक से अकसर यह डांट मिलती थी। पर आप जो समझाते और कहते हैं, उस तरह से आप खुद जीवन बसर नहीं करते। आप मुझे ईमानदार होने के लिए कहते हैं और मैं पाता हूं कि मेरे आसपास हर आदमी अपने दावे के विपरीत काम कर रहा है। मेरे पूर्वज उन भिक्षुओं की तरह थे, जो आदर्श की माला जपते रहे, लेकिन जीवन में उन्हें नहीं उतार सके। जो शिक्षक मुझे शिवाजी के साहस के बारे में बता रहे थे, वे स्कूल के बाहर खडी उत्तेजित भी

मुहब्बत न होती तो कुछ भी न होता-महेश भट्ट

यह दुनिया प्रेम के विभिन्न प्रकारों से बनी है। मां का अपने शिशु से और शिशु का मां से प्रेम, पुरुष का स्त्री से प्रेम, कुत्ते का अपने मालिक से प्रेम, शिष्य का अपने गुरु या उस्ताद से प्रेम, व्यक्ति का अपने देश और लोगों से प्रेम और इंसान का ईश्वर से प्रेम आदि। प्रेम का रहस्य वास्तव में मृत्यु के रहस्य से गहरा होता है। मानव जीवन के इस महत्वपूर्ण तत्व और मानवीय व्यापार एवं व्यवहार में इसके महत्व के बारे में कुछ बढाकर कहने की जरूरत नहीं है। हम लोगों में से अधिकतर या तो प्रेम जाहिर करते हैं या फिर किसी की प्रेमाभिव्यक्ति पाते हैं। लेकिन यह प्रेम है क्या जो हम सभी को इतनी खुशी और गम देता है? एक आलेख में प्रेम के संबंध में इन सभी के विचार और दृष्टिकोण को समेट पाना मुश्किल है। मैं हिंदी फिल्मों की अपनी यादों के प्रतिबिंबों के सहारे प्रेम के रूपों को रेखांकित करने की कोशिश करूंगा। माता-पिता, कवि, पैगंबर, उपदेशक, मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक अपनी-अपनी तरह से प्रेम को समझते हैं। हिंदी फिल्मकारों की भी अपनी समझ है। मदर इंडिया का प्रेम समय की धुंध हटाने के साथ मैं खुद को एक सिनेमाघर में पाता हूं। एक श्वे

नहीं उतरता जल्दी यश पाने का नशा-महेश भट्ट

पुरानी यहूदी कहावत है- अगर लंबी उम्र चाहते हो तो यशस्वी मत बनो। हाल ही में जेल जाते और वहां से निकलते कमजोर संजय दत्त और समर्पण के लिए जोधपुर जाने से पहले अपने घर की बैलकनी से पीले पड चुके सलमान खान को हाथ हिलाते दिखाकर राष्ट्रीय मीडिया ने हलचल मचा दी। यह सब देखते हुए मुझे लगा कि जिंदगी की सर्वोत्तम चीजें मुफ्त में नहीं मिलतीं। किसी मशहूर हस्ती के जीवन की ट्रैजडी मीडिया के लिए सोने का खजाना होती है। यही कारण है कि मीडिया किसी मशहूर हस्ती की जिंदगी की छोटी से छोटी घटनाओं को भी वैश्विक मनोरंजन में बदल देता है। यश के आकर्षक वृत्त में जीने वाले हम सभी को यह सच समझ लेना चाहिए। सिनेमा, क्रिकेट या राजनीति, सभी क्षेत्रों के सुपरस्टार ने मीडिया की कमाई बढाने में योगदान किया है। केबल और सैटेलाइट टेलीविजन ने भारत के मध्यमवर्ग को सिनेमाघरों से निकाल लिया। इन दिनों सारे चैनल दर्शकों को उनके पसंदीदा स्टार की जिंदगी की सारी कहानियां परोस रहे हैं, जबकि फिल्मों की कहानियां तो काल्पनिक होती हैं। इसलिए जब एक चैनल के मालिक ने बताया कि टीवी नेटवर्क की कमाई 600 करोड से बढकर 2000 करोड हो गई है तो में चौंका न

कोई नहीं बच पाता ऩफरत के जाल से-महेश भट्ट

दो हवाई जहाजों का न्यूयार्कके व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकराने का बिंब मानव चेतना में नफरत के प्रतिबिंब के रूप में अनंत काल तक जीवित रहेगा। 11 सितंबर, 2001 को आतंकवादियों ने पेन नाइफ और बॉक्स कटर जैसे टुच्चे हथियारों से अमेरिकी हवाई जहाज का अमेरिका में ही अपहरण किया और हजारों निर्दोष व्यक्तियों की जान ले ली। यह आतंकवादी घटना स्पष्ट रूप से टीवी के लिए डिजाइन की गई थी। इस घटना के बाद निस्संदेह हमारी दुनिया हमेशा के लिए बदल गई। कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा। आस्था का आधार आज इस लेख को लिखते समय भी पूरी दुनिया के अखबारों में ग्लासगो में जलती कार लेकर हमला करने वाले दब्बू डॉक्टर की खबरें सुर्खियां बनी हुई हैं। मेरी चिंता का विषय यह है कि मानव जाति के कथित नेतागण जिस प्रकार से इसे निपटा रहे हैं, उससे नफरत कम होने के बजाय बढती ही जा रही है। विश्वास मारता है। धर्मपरायण (कट्टर) हिंदू या धर्मपरायण (कट्टर) मुसलमान किसी नास्तिक से अधिक खतरनाक होता है, क्योंकि दोनों ही अपने विश्वास की रक्षा के लिए अपनी जान दे सकते हैं। आस्तिक उन सभी से नफरत करते हैं, जो उनके विश्वास को नहीं मानते। मानव इतिहास की सबसे बडी

ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से-महेश भट्ट

संबंधों में मिले विश्वासघात का जख्म बडा गहरा होता है और वह शायद कभी नहीं भरता। अपनी आत्मकथा पर आधारित फिल्म वो लमहे के दौरान अपने अस्तव्यस्त अतीत के भंवर में फिर से डूबने-उतराने और टाइम मैगजीन के कवर पर छपी परवीन बॉबी के साथ अपने खत्म हो चुके संबंधों को याद करते हुए मैंने उन जख्मों को फिर से एक बार देखा। खतरनाक तरीके से जीने के उन दिनों में हम लोग जोनाथन लिविंग स्टोन सीगल को पढते थे, जॉन लेनन को सुनते थे और मुक्त प्रेम की बातें करते थे। मैं परवीन बॉबी के साथ रहता था और रजनीश का शिष्य भी था, उनके संप्रदाय का संन्यासी। स्वच्छंद प्रेम में ईष्या के बीज हम मर्जी से उनके संप्रदाय में शामिल हुए थे। हमें बताया गया था कि स्वच्छंद जीवन जीने से ही प्रबोधन होता है। हम इस भ्रम में जीते थे कि नशे की आड लेकर और उन्मुक्त संबंध निभाकर निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है, समाधि की स्थिति प्राप्त की जा सकती है। हर बंधन से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी ही कई बातें हम सोचा करते थे..। एक शाम मैं साधना में लीन था, तभी एक ब्लैंक कॉल आया। दूसरी तरफ की चुप्पी ने सब कुछ कह दिया। मैं समझ गया कि फोन पर वही मशहूर फिल्म स्टार

मीलों तक फैली हुई है तनहाई: महेश भट्ट

चवन्नी को अजय ब्रह्मात्मज के सौजन्य से महेश भट्ट के कुछ लेख मिले हैं,इन लेखों में उन्होंने एहसास की बात की है.अपने जीवन और फिल्मों के आधार पर लिखे इन लेखों में महेश भट्ट पूरे संजीदगी और ईमानदारी से ख़ुद को अभिव्यक्त किया है. अकेलापन, तनहाई..नाम कोई भी हो, लेकिन यह अद्भुत एहसास हमें हमेशा खुद से जोडे रहता है, दुनिया की भीड में एकाकीपन का आनंद ही अलग है। मशहूर कवि रिल्के ने कहा था कि अवसाद और अकेलापन रचनात्मकता को जन्म देता है। यही हमें सृजन की दुनिया में ले जाता है..। जब से मैंने खुद को जाना, तनहाई ही मेरी बहन और भाई है। तनहाई के गर्भ में समाने के बाद ही मैंने जाना कि इंसान के दिल में अकेलेपन का कितना बडा खजाना छिपा है..। इस तनहाई ने ही श्रव्य और दृश्य माध्यम से कहानी सुनाने की मेरी योग्यता को छीला और आकार दिया है। बस एक पल लगता है गुब्बारे के धागे को हाथ से छूटने में सिर्फ एक पल लगता है। हाथ बढा कर धागा फिर से पकड लिया तो ठीक गुब्बारा फिर से बच्चों का खिलौना बन जाता है, वर्ना एक बार दरवाजे से बाहर निकल गया और उसमें गैस भरी हो तो वह ऊपर ही चढता जाता है। हालांकि जमीन पर छूट गए बच्चे गुब्

25 साल पहले 24 जून को रिलीज हुई थी 'अर्थ'

-अजय ब्रह्मात्मज देश इस समय व‌र्ल्डकप में भारत की जीत की 25वीं वर्षगांठ पर जश्न मना रहा है। जश्न और खुशी के इस माहौल में अगर याद करें तो पच्चीस साल पहले व‌र्ल्ड कप के दिनों में ही महेश भट्ट निर्देशित अर्थ रिलीज हुई थी। स्मिता पाटिल, शबाना आजमी और कुलभूषण खरबंदा अभिनीत इस फिल्म ने रिलीज के साथ ही दर्शकों को प्रभावित किया था। मुख्यधारा की फिल्म होने के बावजूद समाज के सभी वर्गो में अर्थ की सराहना हुई थी। हिंदी फिल्मों में महिलाओं के चित्रण के संदर्भ में इसे क्रांतिकारी फिल्म माना जाता है। अर्थ की रिलीज की पच्चीसवीं वर्षगांठ के अवसर पर खास बातचीत में महेश भट्ट ने कहा कि मैं आज जो भी हूं, वह इसी फिल्म की बदौलत हूं। पच्चीस सालों के बाद भी अर्थ का महत्व बना हुआ है। मुझे इस फिल्म के लिए ही याद किया जाता है। उन्होंने बेहिचक स्वीकार किया कि अर्थ उनकी और परवीन बॉबी के संबंधों पर आधारित आत्मकथात्मक फिल्म थी। चूंकि विवाहेतर संबंध की परेशानियों को में स्वयं भुगत चुका था, इसलिए शायद मेरी ईमानदारी दर्शकों को पसंद आई। फिल्म के नायक इंदर मल्होत्रा (कुलभूषण खरबंदा)से दर्शकों की कोई सहानुभूति नहीं होती। द

चुंबन और सेक्स

महेश भट्ट शर्म और दुख की बात यह है कि रिचर्ड गैर और शिल्पा शेट्टी के बीच के औपचारिक चुंबन और व्यवहार को दुष्कर्म के रूप में पेश किया गया है। दो सार्वजनिक व्यक्तियों के बीच की सामान्य घटना को मुद्दा बनाने वालों ने अगर इसकी आधी सक्रियता भी बालिकाओं की भ्रूण-हत्या के खिलाफ दिखाई होती, तो बड़ी बात होती। सच तो यह है कि घर-परिवार और समाज में हो रही स्त्रियों की दिन-रात की बेइज्जती पर आम नागरिकों की खामोशी खलती है। क्या हमारे समाज में चुंबन और सेक्स वर्जित है? मुंबई और दूसरे शहरों में प्रेमी युगलों को पार्क और अन्य सार्वजनिक स्थलों से पुलिस द्वारा भगाने की खबरों को पढ़ कर भी हैरत होती है कि आखिर हम किधर जा रहे हैं? यकीन भी नहीं होता कि इसी देश में कभी वात्सयायन ने कामसूत्र की रचना की थी और खजुराहो के मंदिरों में हमारे पूर्वजों ने यौनाचार की मुद्राओं को पत्थरों में उकेरा था। चुंबन और सेक्स मनुष्य की स्वाभाविक क्रियाएं हैं। एक उम्र के बाद हर मनुष्य इस अहसास से गुजरता है। हां, सामान्य रूप से समाज के बनाए नियमों का पालन करना और अभद्र और अश्लील आचरण से बचना जरूरी है, लेकिन इस अहसास को दबाना कतई जर