25 साल पहले 24 जून को रिलीज हुई थी 'अर्थ'

-अजय ब्रह्मात्मज
देश इस समय व‌र्ल्डकप में भारत की जीत की 25वीं वर्षगांठ पर जश्न मना रहा है। जश्न और खुशी के इस माहौल में अगर याद करें तो पच्चीस साल पहले व‌र्ल्ड कप के दिनों में ही महेश भट्ट निर्देशित अर्थ रिलीज हुई थी। स्मिता पाटिल, शबाना आजमी और कुलभूषण खरबंदा अभिनीत इस फिल्म ने रिलीज के साथ ही दर्शकों को प्रभावित किया था। मुख्यधारा की फिल्म होने के बावजूद समाज के सभी वर्गो में अर्थ की सराहना हुई थी। हिंदी फिल्मों में महिलाओं के चित्रण के संदर्भ में इसे क्रांतिकारी फिल्म माना जाता है। अर्थ की रिलीज की पच्चीसवीं वर्षगांठ के अवसर पर खास बातचीत में महेश भट्ट ने कहा कि मैं आज जो भी हूं, वह इसी फिल्म की बदौलत हूं। पच्चीस सालों के बाद भी अर्थ का महत्व बना हुआ है। मुझे इस फिल्म के लिए ही याद किया जाता है। उन्होंने बेहिचक स्वीकार किया कि अर्थ उनकी और परवीन बॉबी के संबंधों पर आधारित आत्मकथात्मक फिल्म थी। चूंकि विवाहेतर संबंध की परेशानियों को में स्वयं भुगत चुका था, इसलिए शायद मेरी ईमानदारी दर्शकों को पसंद आई।
फिल्म के नायक इंदर मल्होत्रा (कुलभूषण खरबंदा)से दर्शकों की कोई सहानुभूति नहीं होती। दर्शक कुछ समय तक पूजा (शबाना आजमी) और कविता (स्मिता पाटिल) दोनों के आग्रहों को सही मानते हैं। लेकिन आखिरकार उन्हें पूजा का उठाया कदम उचित लगता है। इस फिल्म की यही जीत थी कि पूजा का पति जब उसे छोड़ देता है तो वह आर्थिक आत्मनिर्भरता के साथ एक स्वतंत्रता भी हासिल करती है। वह दोबारा किसी पुरुष का सहारा नहीं लेती। न तो वह पति को दोबारा स्वीकार करती है और न ही प्रेमी का सहारा लेती है। महेश भट्ट ने आगे कहा कि इस फिल्म में जब शबाना आजमी अपनी प्रेमिका से निराश होकर लौटे पति कुलभूषण खरबंदा को फिर से स्वीकार करने से मना करती है तो वास्तव में वह औरतों की एक लंबी लड़ाई जीत लेती है।
मुझे याद है कि इस फिल्म को समाज के हर तबके की औरतों ने सराहा और स्वीकार किया था। हालांकि फिल्म में कोई भी नारीवादी भाषण या नारा नहीं था, मगर समाजशास्त्रियों ने इसे नारी मुक्ति और स्वतंत्रता की फिल्म कहा था। उन्होंने यह भी बताया कि फिल्म 1982 के दिसंबर महीने में सेंसर हो गई थी, लेकिन सिनेमाघरों में यह 1983 के जून महीने में पहुंची।
महेश भट्ट ने स्वीकार किया कि इन दिनों उनकी या किसी और की फिल्मों में पूजा जैसी औरत नहीं दिखाई पड़ती। अर्थ की रिलीज के पच्चीस सालों के बाद भी हमारी फिल्मों में औरतों का रिग्रेसिव और दकियानूसी चित्रण होता है। खुद मेरे बैनर की फिल्में भी इस भेड़चाल में शामिल है।

Comments

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वाकई पूजा जैसी नायिका अब फिल्मों में नजर नहीं आती। ना ही अर्थ फिल्म जैसा संगीत!
इस फिल्म में शबाना, स्मिता, कलभूषण खरबंदा के अलावा एक और कलाकार ने कमाल का अभिनय किया था और वे थे राजकिरण!
मेरी पसंदीदा फिल्म के बारे लिखने के लिये धन्यवाद।

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