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सिनेमालोक : उभरे कलाकार की फीस

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सिनेमालोक उभरे कलाकार की फीस अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों एक प्रोडक्शन हाउस में बैठा हुआ था. उनकी नई फिल्म की योजना बन रही है. इस फिल्म में एक जबरदस्त भूमिका पंकज त्रिपाठी को ध्यान में रखकर लिखी गई है. चलन के मुताबिक वे लीड में नहीं है, लेकिन उनका रोल हीरो के पैरेलल है. उनके होने से फिल्म के दर्शनीयता बढ़ जाएगी. पंकज अपनी फिल्मों में एक रिलीफ के तौर पर देखे जाते हैं. उनकी मौजूदगी दर्शकों का इंटरेस्ट बढ़ा देती है. कई बार अनकहा दारोमदार उनके ऊपर होता है. जाहिर सी बात है कि उभरी पहचान और जरूरत से उनकी मांग बढ़ी है. हफ्ते के सात दिन और दिन के चौबीस घंटों में ही उन्हें फिल्मों के साथ अपनी तकलीफ ,तफरीह और परिवार के लिए भी जरूरी समय निकालना पड़ता है. मांग और आपूर्ति के पुराने आर्थिक नियम से पंकज त्रिपाठी के भाव बढ़ गए हैं. पंकज के भाव का बढ़ना ही इस प्रोडक्शन हाउस की मुश्किलों का सबब बन गया है. बात चली कि आप तो उन्हें जानते हैं? हां में सिर हिलाने के बाद आग्रह होता है, उनसे एक बार बात कीजिए ना! बताइए उन्हें हमारे बारे में और फिल्म के बारे में. निजी तौर पर मैं इस तरह की बैठकोण और

सिनेमालोक : अब की पति पत्नी और वो

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सिनेमालोक अब की पति पत्नी और वो -अजय ब्रह्मात्मज 41 साल पहले 12 मई 1978 में आई बीआर चोपड़ा की फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ की रीमेक 6 दिसंबर 2019 को रिलीज होगी. सामाजिक विषयों पर गंभीर और उत्तेजक फिल्मों के निर्देशन-निर्माण के लिए मशहूर बीआर चोपड़ा ने अपनी मुख्य शैली से विक्षेप लेकर ‘पति पत्नी और वो’ का निर्माण और निर्देशन किया था. आज के दर्शकों को मालूम नहीं होगा कि इसे हिंदी के प्रसिद्ध लेखक कमलेश्वर ने लिखा था. कमलेश्वर ने पुरुष के जीवन में पत्नी के अलावा वो की कल्पना से इस कॉमिक सिचुएशन की फिल्म सोची थी. सामाजिक सच्चाई तो यही है कि समाज में ऐसे किस्से’सुनते को मिलते रहते हैं और वो की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है. कमलेश्वर ने पुरुष की फितरत के रूप में वो की कल्पना की थी. मूल फिल्म में पहले एक एनिमेशन आता है, जिसमें आदम और हव्वा को दिखाया गया है. आदम और हव्वा निषिद्ध सेव खाते हैं और उनके अंदर कामेच्छा जगती है. इसकी वजह से उन्हें स्वर्ग से निकालकर धरती पर धकेल दिया जाता है. कहते हैं आदम और हव्वा धरती पर रहते हैं और कभी-कभी उनकी जिंदगी में वह निषिद्ध फल वो की तरह आ ही जाता है. फिल

सिनेमालोक : बड़े सितारों की चूक

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सिनेमालोक बड़े सितारों की चूक - अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते आई साजिद नाडियाडवाला की   फिल्म ' हाउसफुल 4' ने दर्शकों और समीक्षकों को निराश किया. इसकी वजह से फिल्म का कारोबार अपेक्षा से बहुत कम रहा. निर्माता को उम्मीद थी की दिवाली के मौके पर रिलीज हो रही यह फिल्म पहले 3 दिनों में ही 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लेगी. ट्रेड पंडितों का अनुमान था कि पहले दिन ही फिल्म का कारोबार 25 से 35 करोड़ के बीच होगा. अक्षय कुमार   समेत तीन अभिनेताओं और कृति ससैनन समेत तीन अभिनेत्रियों की यह फिल्म रिलीज के पहले से तहलका मचा रही थी.   एक गीत ' बाला बाला बाला शैतान का साला ' विचित्र नृत्य मुद्राओं की वजह से लोकप्रिय हो गया था.बाला चैलेंज के तहत फिल्म बिरादरी के सदस्य और आम प्रशंसक हास्यास्पद वीडियो सोशल मीडिया पर डाल रहे थे. उन्हें निर्माता रिट्वीट कर रहे थे. यूँ लग रहा था कि फ़िल्म को इस श्रेणी की पुरानी फिल्मों की तरह भारी कामयाबी मिलेगी. ऐसा नहीं हो सका. अक्षय कुमार की लोकप्रियता से पहले दिन थोड़े दर्शक आये , लेकिन अगले दिन दर्शक सससससस Z कम हो गए. कामयाब फिल्मों का एक ट्रेंड है क

सिनेमालोक : गांधी के विचारों पर बनेगी फिल्में

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सिनेमालोक गांधी के विचारों पर बनेगी फिल्में -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों आमिर खान, शाह रुख खान,राजकुमार हिरानी और एकता कपूर समेत फ़िल्म बिरादरी के 45-50 सदस्य प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. छन्नू लाल मिश्र और एक-दो शास्त्रीय गायक भी इस मुलाकात में शामिल थे. सेल्फी सक्रिय फ़िल्म बिरादरी ने मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर प्रधान मंत्री के पहल और सुझाव की तारीफ की झड़ी लगा दी. प्रधानमंत्री ने उनके ट्वीट के जवाब दिए और उनके प्रयासों की सराहना की. सभी ने अलग-अलग शब्दों और बयानों में मोदी जी की बात दोहराई और जुछ ने महात्मा गांधी की प्रासंगिकता की भी बात कही। इस साल 2 अक्टूबर से गांधी की 150वीं जयंती की शुरुआत हो चुकी है. सरकार और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने गंफ़ही जयंती पर कोई खास सक्रियता नहीं डिझायी है. खबर तो यह थी कि दो साल पहले ही एक समिति बनी थी,जिसे 150 वीं जयंती की रणनीति तय करनी थी। क्या रणनीति बनी? बहरहाल, प्रधान मंत्री से फ़िल्म बिरादरी के सदस्यों की मुलाक़ात और विशेष बैठक उल्लेखनीय है. इसका महत्व तब और बढ़ जाता है,जब हम देखते हैं कि कुछ सालों पहले भक्तों के निशाने पर आएआम

सिनेमालोक : मामी फिल्म फेस्टिवल

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सिनेमालोक मामी  फिल्म फेस्टिवल - अजय ब्रह्मात्मज   मामी (मुंबई एकेडमी ऑफ मूवी इमेजेज) के नाम से मशहूर मुंबई का इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल पिछले 20 सालों में फिल्मों के चयन, प्रदर्शन और विमर्श से ऐसे मुकाम पर आ गया है कि देश भर के सिनेप्रेमी सात दिनों के लिए मुंबई पहुंचते हैं. देश में और भी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल हैं. छोटे शहरों और कस्बों से लेकर मीडिया घरानों तक के अपने-अपने फेस्टिवल चल रहे हैं और कमाल है कि सभी इंटरनेशनल हैं. इनके आयोजन और लोकप्रियता से बढ़ती फिल्मों की समझदारी के बावजूद देश में ‘वॉर’ और ‘कबीर सिंह’ जैसी हिंदी फिल्में अपार कामयाबी हासिल कर लेती हैं. पिछले सालों में देश-विदेश की बेहतरीन फिल्में देखने का सिलसिला बढ़ा है. लेकिन हम या तो विदेशियों को सिखा-बता रहे हैं या उनसे ही सीख-समझ रहे हैं. देश की भाषाओँ में बनी फिल्मों की हमें खास जानकारी नहीं रहती. मुझे लगता है कि फिलहाल देश में एक राष्ट्रीय यानि कि नेशनल फेस्टिवल की जरूरत है. सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन कार्यरत फिल्म निदेशालय और एनएफडीसी पुणे स्थित राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार की मदद से पहल कर सकते है

सिनेमालोक : कुछ फिल्में गांधी की

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सिनेमालोक   कुछ फिल्में गांधी की   - अजय ब्रह्मात्मज   भक्त विदुर ( 1921) - निर्देशक कांजीलाल राठौड़ ने कोहिनूर फिल्म कंपनी के लिए ' भक्त विदुर ' का निर्देशन किया था. फिल्म के निर्माता द्वारकादास संपत और माणिक लाल पटेल थे. दोनों ने फिल्म में क्रमशः विदुर और कृष्ण की भूमिकाएं निभाई थीं. इस फिल्म में विदुर ने गांधी टोपी और खद्दर धारण किया था. यह मूक फ़िल्म दर्शकों को भा गई थी. इतनी भीड़ उमड़ी थी कि पुलिस को लाठीचार्ज भी करना पड़ा. इस फिल्म को ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था. आदेश में लिखा था , ' हमें पता है कि आप क्या कर रहे हैं ? यह विदुर नहीं है , यह गांधी है और हम इसकी अनुमति नहीं देंगे. ' ' भक्त विदुर ' भारत की पहली प्रतिबंधित फ़िल्म थी. महात्मा गांधी टॉक्स(1931) – अमेरिका की फॉक्स मूवीटोन कंपनी ने गांधी जी से बातचीत रिकॉर्ड की थी. इसके लिए वे बोरसाद गांव गए थे. गांधी जी की आधुनिक तकनीकी चीजों में कम रूचि थी, फिर भी उन्होंने इसे रिकॉर्ड की अनुमति दी. वैसे उन्होंने कहा भी कि ‘मैं ऐसी चीजें पसंद नहीं करता, लेकिन मैंने खुद को समझा लिया है. महात्

सिनेमालोक : थिएटर से आए एक्टर

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सिनेमालोक थिएटर से आए एक्टर पारसी थियेटर के दिनों से फिल्मों में थिएटर से एक्टर आते रहे हैं. आज भी एनएसडी, बीएनए और अन्य नाट्य संस्थाओं और समूहों से एक्टरों की जमात आती रहती है. ड्रामा और थिएटर किसी भी एक्टर के लिए बेहतरीन ट्रेनिंग ग्राउंड हैं. ये कलाकारों को हर लिहाज से अभिनय के लिए तैयार करते हैं. थिएटर के   प्रशिक्षण और अभ्यास से एक्टिंग की बारीकियां समझ में आती हैं. हम देख रहे हैं कि हिंदी फिल्मों में थिएटर से आये एक्टर टिके हुए हैं. वे लंबी पारियां खेल रहे हैं. लोकप्रिय स्टारों को भी अपने कैरियर में थिएटर से आये एक्टर की सोहबत करनी पड़ती है. लॉन्चिंग से पहले थिएटर एक्टर ही   स्टारकिड को सिखाते, दिखाते और पढ़ाते हैं, आमिर खान चाहते थे कि उनके भांजे इमरान खान फिल्मों की शूटिंग आरंभ करने से पहले रंगकर्मियों के साथ कुछ समय बिताएं. वे चाहते थे कि लखनऊ के राज बिसारिया की टीम के साथ वे कुछ समय रहें और उनकी टीम के साथ आम रंगकर्मी का जीवन जियें. फिल्मों में आ जाने के बाद किसी भी कलाकार/स्टार के लिए साधारण जीवन और नियमित प्रशिक्षण मुश्किल हो जाता है. अपनी बातचीत में आमिर खान ने ह

सिनेमालोक : करण देओल की लॉचिंग

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सिनेमालोक करण देओल की लॉचिंग -अजय ब्रह्मात्मज अगले हफ्ते सनी देओल के बेटे और धर्मेंद्र के पोते करण देओल की पहली फिल्म ‘पल पल दिल के पास’ रिलीज होगी. इसका निर्माण और निर्देशन खुद सनी देओल ने किया है. शुरू में खबर आई थी कि इम्तियाज अली या राहुल रवैल इस फिल्म का निर्देशन करेंगे, लेकिन सनी देओल ने बेटे की लॉचिंग की कमान किसी और को नहीं सौंपी. जब उनसे पूछा गया कि किसी और को निर्देशन की जिम्मेदारी क्यों नहीं दी तो उनका जवाब था कि मैं खुद निर्देशक हूं. सच्ची, इस तथ्य से कौन इंकार कर सकता है, लेकिन यह बात तो जहन में आती है कि सनी देओल निर्देशित फिल्मों का क्या हश्र हु? पुत्रमोह में सब कुछ अपनी मुट्ठी में रखना हो तो कोई भी कारण, प्रश्न या तर्क समझ में नहीं आएगा, इस फिल्म के ट्रेलर और गानों से यह एहसास तो हो रहा है कि ‘पल पल दिल के पास’ खूबसूरत लोकेशन पर बनी फिल्म है’ इस फिल्म की शूटिंग के लिए पूरी यूनिट ने दुर्गम घाटियों की चढ़ाई की. करण देवल और सहर बांबा ने मुश्किल स्टंट किए. फिल्म एक्शन और रोमांस से भरपूर है. कोशिश है कि दादा धर्मेंद्र और पिता सनी देओल की अभिनय छटा और छवि के साथ

सिनेमालोक : लागत और कमाई की बातें

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सिनेमालोक लागत और कमाई की बातें -अजय ब्रह्मात्मज निश्चित ही हम जिस उपभोक्ता समाज में रह रहे हैं, उसमें कमाई, आमदनी, वेतन आदि का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है, काम से पहले दाम की बात होती है, सालाना पैकेज पर चर्चा होती है, जी हां, पहले हर नौकरी का मासिक वेतन हुआ करता था. अब यह वार्षिक वेतन हो चुका है. समाज के इस ट्रेंड का असर फिल्म इंडस्ट्री पर भी पड़ा है. आये दिन फिल्मों के 100 करोड़ी होने की खबर इसका नमूना है. अब तो मामला कमाई से आगे बढ़कर लागत तक आ गया है. निर्माता बताने लगे हैं कि फलां सीन, फला गाने और फला फिल्म में कितना खर्च किया गया? कुछ महीने पहले खबर आई थी कि साजिद नाडियाडवाला की नितेश तिवारी निर्देशित ‘छिछोरे’ के एक गाने के लिए 9 करोड़ का सेट तैयार किया गया था. फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा कि सेट की वजह से उक्त गाना कितना मनोरंजक या प्रभावशाली बन पाया? फिलहाल 9 करोड़ की लागत अखबार की सुर्खियों के काम आ गई. सोशल मीडिया. ऑनलाइन और दैनिक अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा. मीडिया के व्यापक कवरेज से फिल्म के प्रति जिज्ञासा बढ़ ही गई होगी. जाहिर सी बात है कि सामा

सिनेमालोक : गेट बचा रहेगा आरके का

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सिनेमालोक गेट बचा रहेगा आरके का -अजय ब्रह्मात्मज दो साल पहले 16 सितंबर 2017 को आरके स्टूडियो में भयंकर आग लगी थी. इस घटना के बाद कपूर खानदान के वारिसों में तय किया कि वे इसे बेच देंगे. इसे संभालना, संरक्षित करना या चालू रखने की बात हमेशा के लिए समाप्त हो गई. आग लगने के दिन तक वहां शूटिंग चल रही थी. यह आग एक रियलिटी शो के शूटिंग फ्लोर पर लगी थी. देखते ही देखते आरके की यादें जलकर खाक हो गईं. कोई कुछ भी सफाई दे, लेकिन कपूर खानदान के वारिसों की लापरवाही को नहीं भुलाया जा सकता. स्मृति के तौर पर रखी आरके की फिल्मों से संबंधित तमाम सामग्रियां इस आगजनी में स्वाहा हो गईं. अगर ढंग से रखरखाव किया गया रहता और समय से बाकी इंतजाम कर दिया गया होता तो आग नहीं लगती. आरके स्टूडियो की यादों के साक्ष्य के रूप में मौजूद संरचना, इमारतें,स्मृति चिह्न और शूटिंग फ्लोर सब कुछ बचा रहता. पिछले हफ्ते खबर आई कि आरके स्टूडियो खरीद चुकी गोदरेज प्रॉपर्टीज कंपनी ने तय किया है कि इस परिसर के अंदर में जो भी कंस्ट्रक्शन हो इसके बाहरी रूप में बदलाव् नहीं किया जाएगा. आरके स्टूडियो का गेट जस का तस बना रहेगा. कह

सिनेमालोक : अभिनेत्रियों की तू तू... मैं मैं...

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सिनेमालोक अभिनेत्रियों की तू तू... मैं मैं... -अजय ब्रह्मात्मज निश्चित ही वे हंस रहे होंगे. उनके लिए यह मौज-मस्ती और परनिंदा का विषय बन गया होगा. ‘जजमेंटल है क्या’ की रिलीज के कुछ पहले से अभिनेत्रियों के बीच टिप्पणियों की धींगामुश्तीआरंभ हुई है. यह खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. कंगना रनोट और तापसी पन्नू आमने-सामने हैं. दोनों की तरफ से टिप्पणियां चल रही है. एक दूसरे में कमियां निकालने का क्रम जारी है. कहीं न कहीं इस अनावश्यक विवाद से दोनों को लाभ ही हो रहा है. दोनों चर्चा में हैं. सामने से मीडिया और पीछे से इंडस्ट्री का खास तबका मजे ले रहा है. दो बिल्लियों की लड़ाई चल रही है और बाकी उनकी ‘म्याऊं-म्याऊं’ पर सीटी और ताली बजा रहे हैं. ‘जजमेंटल है क्या’ की रिलीज के पहले तापसी पन्नू के ट्वीट का संदर्भ लेते हुए कंगना रनोट की बहन रंगोली चंदेल ने तापसी पन्नू पर टिप्पणी करते हुए उन्हें अपनी बहन की ‘सस्ती कॉपी’ कह दिया. उनकी इस टिप्पणी पर अनुराग कश्यप ने ‘प्रतिटिप्पणी’ की तो रंगोली चंदेल उन पर भी टूट पड़ीं. मामला आगे बढ़ा और ‘जजमेंटल है क्या’ के प्रमोशन के समय कंगना रनोट के हर इंटरव्य

सिनेमालोक : लोकेशन मात्र नहीं है कश्मीर

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सिनेमालोक लोकेशन मात्र नहीं है कश्मीर - -अजय ब्रह्मात्मज कश्मीर पृष्ठभूमि, लोकेशन और विषय के तौर पर हिंदी फिल्मों में आता रहा है. देश के किसी और राज्य को हिंदी फिल्मों में यह दर्जा और महत्व हासिल नहीं हो सका है. याद करें तो कुछ गाने भी मिल जाएंगे हिंदी फिल्मों के, जिनमें कश्मीर के नजारो और खूबसूरती की बातें की गई हैं. कश्मीर की वादियों की तुलना स्वर्ग से की जाती है. अमीर खुसरो से लेकर हिंदी फिल्मों के गीतकरों तक ने कश्मीर को जन्नत कहा है. कश्मीर का प्राकृतिक सौंदर्य हर पहलू से फिल्मकारों को आकर्षित करता रहा है. 1990 के पहले की हिंदी फिल्मों में यह मुख्य रूप से लोकेशन के तौर पर ही इस्तेमाल होता रहा है. ‘जब जब फूल खिले’ जैसी दो-चार फिल्मों में वहां के किरदार दिखे थे. अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के फिल्मकारों से आग्रह किया है कि वे जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में अपनी फिल्मों की शूटिंग करें, इससे वहां के लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे, फिल्मों की शूटिंग से कुछ हफ्तों और महीनों के लिए स्थानीय लोगों को अनेक तरह के रोजगार मिल जाते हैं, अगर फिल्म लोकप्रिय हो जाए

सिनेमालोक : इतिहास लेखन में आलस्य -

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सिनेमालोक इतिहास लेखन में आलस्य -अजय ब्रह्मात्मज भारतीय सिनेमा का इतिहास 100 साल से अधिक पुराना हो चुका है, लेकिन इस इतिहास पर दर्जन भर किताबें भी नहीं मिलती हैं. भारतीय सिनेमा के इतिहास पर बहुत कम लिखा गया है. ज्यादातर किताबें बीसवीं सदी में ही लिखी गईं. 100 साल पूरे होने पर शताब्दी समरोह के तहत भारतीय सिनेमा के बारे में पत्र-पत्रिकाओं में खूब लिखा गया. लगभग हर फिल्मी और गैर फिल्मी संस्था और संगठन में 100 सालों के भारतीय सिनेमा का बखान हुआ. सभी अपनी सीमित जानकारी से गुणगान करते रहे. आज भी गौरव गाथाएं प्रकाशित होती हैं. अतीत की तारीफ और वर्तमान की आलोचना/भर्त्सना होती रहती है. कहा जाता है कि सिनेमा के हर क्षेत्र में क्षरण हुआ है. दरअसल, समाज में हमेशा कुछ लोग अतीतजीबी होते हैं और देखा गया है कि वे वाचाल और सक्रिय भी रहते हैं. उन्हें वर्तमान से शिकायत रहती है. उनका भी ध्यान इतिहास लेखन की और नहीं रहता. अतीतगान से निकल के जरा सोचें और देखें तो हम पाएंगे कि सिनेमा के इतिहास के दस्तावेजीकरण का काम हमने नहीं किया है. भारत की किसी भी भाषा की फिल्म इंडस्ट्री का व्यवस्थित इतिह