हिट और फ्लॉप का समीकरण-२

कल के पोस्ट को काफी लोगों ने padhaa .कुछ ने चवन्नी को फ़ोन भी किया.लेकिन चवन्नी का अनुभव है कि कुछ भावुक या अतीत के बखान में कुछ लिखो तो लोग टिप्पण्णियाँ करते हैं.आज की बात करो तो लोग पढ़ कर किनारा कर जाते हैं.उन्हें शायद लगता हो कि यह तो हम भी जानते हैं.चवन्नी कोई शिक़ायत नही कर रहा.ब्लॉग की दुनिया में भी रहीम का कथन उपयुक्त है...रहिमन निज मन की व्यथा मन ही रखो गोय ,सुनी इठलैंहै लोग सब बांटि न लैंहै कोय ।

बहरहाल,बात आगे शुरू करें .चवन्नी के मित्र ने ब्रिटेन से सूचित किया कि लंदन और न्यूयॉर्क के टिकेट राते सही नही हैं.सही देना मकसद नही था.चवन्नी का सारा ध्यान इस तथ्य को सामने लाने में था कि इन दिनों फिल्मों के व्यापारी (निर्माता,निर्देशक और एक्टर) यह नही देखते कि उनकी फिल्म को कितने दर्शकों ने देखा.उनके लिए वह रकम खास होती है जो दर्शक देते हैं.महानगरों,विदेशी शहरों और मल्टीप्लेक्स से प्रति दर्शक ज्यादा पैसे आते हैं,इसलिए फिल्म के विषय और परिवेश पर उन दर्शकों की रूचि का प्रभाव दिखता है।

यह अचानक नही हुआ है कि हिन्दी फिल्मों में सिर्फ संवाद हिन्दी में होते हैं,बाकी सब में सावधानी बरती जाती है कि हिन्दी जैसा न दिखे.चवन्नी यहं हिन्दी का प्रयोग स्थान और जाति (nationality) के संदर्भ में कर रहा है.हिन्दी को डाउन मार्केट समझा जाता है.हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में आप किसी को नमस्ते कह दें तो वह चौंक जाता है.हेलो का चलन है और गाल पर चुम्बन चिपकाना फैशन हो गया है। निर्देशक लंदन में बैठ कर फिल्म लिखते हैं और उसकी शूटिंग अमेरिका में करते हैं.आजकल तो संवाद भी अंग्रेजी में बोले जाने लगे हैं।

अगर कोई फिल्म मुम्बई,लंदन और न्यूयॉर्क में चली हो तभी उसे हिट मन जाता है.पटना,लखनऊ ,भोपाल और जयपुर में चलने से फिल्में हिट नही होतीं.सीधी सी वजह है कि इन शहरों से आया रिटर्न मुम्बई,लंदन और न्यूयॉर्क कि कमाई का पासंग भी नहीं होता.विवाह उत्तर भारत में चली और खूब चली,लेकिन उसे फ्लॉप कहा जा रहा है.इसके विपरीत लगे रहो मुन्नाभाई नही चली,तो भी वह हिट है.हिन्दी बेल्ट में कोई फिल्म हिट हो तो भी हिट नही मानी जाती,जबकि मुम्बई में औसत रही फिल्म भी हिट मान ली जाती है।

तात्पर्य यह कि मुम्बई का हिट ही हिट है,बाकी सब जगह कि हिट सिर्फ फ्लॉप है.

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सचमुच. इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है कि हिन्दी के प्रसार का सबसे बड़ा कारण मानी जाने वाली फिल्में भी अंग्रेजियत के बोझ से लद गईं.

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