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उल्लेखनीय और दर्शनीय है जोधा अकबर

-अजय ब्रह्मात्मज हिदायत-मोबाइल फोन बंद कर दें, सांसें थाम लें, कान खुले रखें और पलकें न झुकने दें। जोधा अकबर देखने के लिए जरूरी है कि आप दिल-ओ-दिमाग से सिनेमाघर में हों और एकटक आपकी नजर पर्दे पर हो। सचमुच लंबे अर्से में इतना भव्य, इस कदर आकर्षक, गहरी अनुभूति का प्रेम, रिश्तों की ऐसी रेशेदारी और ऐतिहासिक तथ्यों पर गढ़ी कोई फिल्म आपने नहीं देखी होगी। यह फिल्म आपकी पूरी तवज्जो चाहती है। इस धारणा को मस्तिष्क से निकाल दें कि फिल्मों का लंबा होना कोई दुर्गुण है। जोधा अकबर भरपूर मनोरंजन प्रदान करती है। आपको मौका नहीं देती कि आप विचलित हों और अपनी घड़ी देखने लगें। जैसा कि अमिताभ बच्चन ने फिल्म के अंत में कहा है- यह कहानी है जोधा अकबर की। इनकी मोहब्बत की मिसाल नहीं दी जाती और न ही इनके प्यार को याद किया जाता है। शायद इसलिए कि इतिहास ने उन्हें महत्व ही नहीं दिया। जबकि सच तो यह है कि जोधा अकबर ने एक साथ मिल कर चुपचाप इतिहास बनाया है। इसी इतिहास के कुछ पन्नों से जोधा अकबर वाकिफ कराती है। मुगल सल्तनत के शहंशाह अकबर और राजपूत राजकुमारी जोधा की प्रेमकहानी शादी की रजामंदी के बाद आरंभ होती है। आशुतोष ग

जोधा अकबर:चवन्नी के पाठकों का मत

चवन्नी ने अपने ब्लॉग पर पाठकों से पूछा था क्या लगता है जोधा अकबर का? चलेगी या नहीं चलेगी? इस बार पाठकों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की और पहले दिन से ही नहीं चलेगी का दावा करने वालों की तादाद ज्यादा रही.बीच में एक बार चलेगी और नहीं चलेगी का पलड़ा बराबर हो गया था,लेकिन बाद में फिर से नहीं चलेगी के पक्ष में ज्यादा मत आए। यह मत फ़िल्म रिलीज होने के पहले का है.आज फ़िल्म रिलीज हो रही है,हो सकता है कि मुंहामुंही फ़िल्म की तारीफ हो फिर दर्शक बढ़ें.फिलहाल चवन्नी के पाठकों में से ३३ प्रतिशत की राय है कि फ़िल्म चलेगी और ६७ प्रतिशत मानते हैं कि नहीं चलेगी। अगर आप ने फ़िल्म देखी हो तो अपनी राय लिखें और अपनी समीक्षा भी भेजे.चवन्नी को अआप कि समीक्षा प्रकाशित कर खुशी होगी.

प्रेमीयुगल अभिषेक और ऐश्वर्या

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आज हर जगह रोमांस और प्रेम का जिक्र हो रहा है.चवन्नी ने सोचा कि क्यों नहीं फ़िल्म इंडस्ट्री की कोई प्रेमकहानी बताई जाए.वैसे तो कई प्रेमीयुगल हैं,जिनकी प्रेम्कहानियाँ आकर्षित करती हैं और उनसे पत्र-पत्रिकाओं की सुर्खियाँ बनती है.टीवी चैनलों के ब्रेकिंग न्यूज़ बनते हैं.हालांकि पूरा देश ऐसी खबरों को महत्व दिए जाने की निंदा करता है,लेकिन उन्हें देखता भी है.यह एक सच्चाई है,जिसे अमूमन लोग स्वीकार नहीं करते.पॉपुलर कल्चर के प्रति एक घृणा भाव समाज में व्याप्त है। चवन्नी अभिषेक और ऐश्वर्या की जोड़ी को अद्भुत मानता है.दोनों की शादी को मीडिया ने विवादों में भले ही ला दिया हो और हमेशा उन पर नज़र रखने का सिलसिला कम नहीं हुआ हो,इसके बावजूद दोनों बेहद सामान्य पति-पत्नी की तरह की जिंदगी के मजे ले रहे हैं.चवन्नी यह बात फिलहाल दावे के साथ इसलिए कह सकता है कि,उसने हाल ही में दोनों से मुलाक़ात की और ऐसे ही मुद्दों पर बात की.कहते हैं उनका हनीमून अभी तक ख़त्म नहीं हुआ है.मौका मिलते ही दोनों एक जगह हो जाते हैं.उनके पास ऐसी सुविधाएं हैं की वे भौगोलिक दूरी को अपने प्रेम के आड़े नहीं आने देते.हालांकि मीडिया इस बात से

एपिक रोमांस है जोधा अकबर : आशुतोष गोवारिकर

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आशुतोष गोवारिकर से अजय ब्रह्मात्मज की लंबी बातचीत का यह एक हिस्सा है.कभी मौका मिला तो पूरी बातचीत भी आप यहाँ पढ़ सकेंगे... मध्ययुगीन भारत की प्रेमकहानी ही क्यों चुनी और वह भी मुगल काल की? मैंने यह पहले से नहीं सोचा था कि मुगल पीरियड पर एक फिल्म बनानी है। लगान के तुरंत बाद हैदर अली ने मुझे जोधा अकबर की कहानी सुनायी। कहानी का मर्म था कि कैसे उनकी शादी गठजोड़ की शादी थी और कैसे शादी के बाद उनके बीच प्रेम पनपा। मुझे उस कहानी ने आकर्षित किया। आखिर किस परिस्थिति में आज से 450 साल पहले एक राजपूत राजकुमारी की शादी मुगल शहंशाह से हुई? मुझे लगा कि यह भव्य और गहरी फिल्म है और उसके लिए पूरा शोध करना होगा। हमने तय किया कि पहले स्वदेस पूरी करेंगे और साथ-साथ जोधा अकबर की तैयारियां शुरू कर देंगे। दूसरा एक कारण था कि मैं एक रोमांटिक लव स्टोरी बनाना चाहता था। लगान और स्वदेस में रोमांस था, लेकिन वे रोमांटिक फिल्में नहीं थीं। मुझे 1562 की यह प्रेमकहानी अच्छी लगी कि कैसे दो धर्म और संस्कृति के लोग साथ में आए और कैसे शादी के बाद दोनों के बीच प्रेम हुआ। आप इसे एपिक रोमांस कह रहे हैं। इतिहास के पन्नों से ली ग

मान्यता की माँग में सिन्दूर

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मान्यता की माँग में सिन्दूर देख कर कई लोगों को हैरत हो रही होगी.दुबई से मुम्बई आई एक सामान्य सी लड़की की आंखों में कई सपने रहे होंगे.इन सपनों को बुनने में हमारी हिन्दी फिल्मों ने ताना-बाना का काम किया होगा.तभी तो वह मुम्बई आने के बाद फिल्मों में पाँव टिकने की कोशिश करती रही.उसे कभी कोई बड़ा ऑफर नहीं मिला.हाँ,प्रकाश झा ने उसे 'गंगाजल'में एक आइटम गीत करने का मौका दिया। मान्यता ने वहाँ से संजय की संगिनी बनने तक का सफर अपनी जिद्द से तय किया। गौर करें कि यह किसी भी सामान्य लड़की का सपना हो सकता है कि वह देश के सबसे चर्चित और विवादास्पद फिल्म ऐक्टर की की संगिनी बने.चवन्नी बार-बार संगिनी शब्द का ही इस्तेमाल कर रहा है.इसकी भी ठोस वजह है.अभी मान्यता को पत्नी कहना ठीक नहीं होगा.संजय दत्त के इस भावनात्मक उफान के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता.कल को वे किसी और के साथ भी नज़र आ सकते हैं.दोनों की शादी का मकसद सिर्फ साथ रहना है.दोनों दो सालों से साथ रह ही रहे थे.दवाब में आकर संजय ने भावनात्मक उद्रेक में शादी की बात मान ली। चवन्नी इसे मान्यता के दृष्टिकोण से बड़ी उपलब्धि के तौर पर देख रहा है.जिस

संजय को मान्यता मिली

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संजय ने आखिरकार मान्यता के संग शादी कर ली.यह उनकी तीसरी शादी है.सबसे पहले उनकी शादी ऋचा शर्मा के साथ हुई थी.यह शादी लंबे समय तक नहीं चल सकी. संजय दत्त की अकेली बेटी त्रिशाला की माँ ऋचा शर्मा ही थीं.ऋचा शर्मा की मौत हो चुकी है. मुम्बई बम विस्फोट में फंसने के बाद संजय दत्त को जेल जाना पड़ा था.वे जेल से निकले तो रिया पिल्लै ने उनसे जबरदस्त हमदर्दी दिखाई और कालांतर में उनकी बीवी बन गयी.भावनाओं के उफान में की गयी यह शादी यथार्थ की कठोर सच्चाईयों से टकराने पर टिक नहीं सकी.रिया पिल्लै बाद में लिएंडर पेस के बच्चे की माँ बनी । इस बार फिर संजय के जेल का सिलसिला चला तो उन्हें मान्यता के साथ देखा गया.कयास लगाया जाता रहा कि दोनों ने शादी कर ली है ...हालांकि संजय दत्त ने हाँ या ना नहीं की.इन्हीं कयासों के बीच उन्होंने आखिरकार मान्यता को अपनी संगिनी बना लिया. इस शादी में संजत दत्त की बहनें मौजूद नहीं थीं.उनकी नामौजूदगी बहुत कुछ कहती है.आप क्या कहते हैं?

सुपर स्टार: पुराने फार्मूले की नई फिल्म

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-अजय ब्रह्मात्मज यह रोहित जुगराज की फिल्म है। निश्चित रूप से इस बार वे पहली फिल्म जेम्स की तुलना में आगे आए हैं। अगर कोई कमी है तो यही है कि उन्होंने हमशक्लों के पुराने फार्मूले को लेकर फिल्म बनायी है। कुणाल मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है। बचपन से फिल्मों के शौकीन कुणाल का सपना है कि वह फिल्म स्टार बने। उसके दोस्तों को भी लगता है कि वह एक न एक दिन स्टार बन जाएगा। अभी तक उसे तीसरी लाइन में चौथे स्थान पर खड़े होकर डांस करने का मौका मिला है। कहानी में टर्न तब आता है,जब उसके हमशक्ल करण के लांच होने की खबर अखबारों में छपती है। पूरे मुहल्ले को लगता है कि कुणाल को फिल्म मिल गयी है। कुणाल वास्तविकता जानने के लिए फिल्म के दफ्तर पहुंचता है तो सच्चाई जान कर हैरत में पड़ जाता है। नाटकीय मोड़ तब आता है,जब कुणाल से कहा जाता है कि वह करण के बदले फिल्म में काम करे। प्रोड्यूसर पिता की समस्या है कि करण को एक्टिंग-डांसिंग कुछ भी नहीं आती और उन्होंने फिल्म के लिए बाजार से पैसे उगाह लिए हैं। कुणाल राजी हो जाता है। कहानी आगे बढ़ती है। एक और जबरदस्त मोड़ आता है,जब करण की मौत हो जाती है और कुणाल को रियल लाइफ म

मिथ्या: अधूरे चरित्र, कमजोर पटकथा

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-अजय ब्रह्मात्मज रजत कपूर ने अलग तरह की फिल्में बनाकर एक नाम कमाया है। ऐसा लगने लगा था कि इस दौर में वे कुछ अलग किस्म का सिनेमा कर पा रहे हैं। उनकी ताजा फिल्म मिथ्या इस उम्मीद को कम करती है। इस फिल्म में वे अलग तरीके से हिंदी फिल्मों के फार्मूले के शिकार हो गए है। मिथ्या निराश करती है। वीके एक्टर बनने की ख्वाहिश रखता है। वह कोशिश करता है और किसी प्रकार जूनियर आर्टिस्ट बन पाया है। उसकी मुश्किल तब खड़ी होती है,जब वह मुंबई के एक डॉन राजे सर का हमशक्ल निकल आता है। विरोधी गैंग के लोग उसे अगवा करते हैं और उसे अद्भुत एक्टिंग एसाइनमेंट देते हैं। उसे राजे सर बन जाना है और फिर अगवा किए गैंग का काम करना है। मजबूरी में वह तैयार हो जाता है। इस एक्टिंग की अपनी दिक्कतें हैं। वह किसी तरह इस जंजाल से निकलना चाहता है। इस कोशिश में उससे ऐसी गलतियां होती हैं कि वह दोनों गैंग का टारगेट बन जाता है। और जैसा कि ऐसी स्थिति में होता है। आखिरकार उसे अपनी जान देनी पड़ती है। हिंदी फिल्मों में हमशक्ल का फार्मूला इतना पुराना और बासी हो गया है कि रजत कपूर उसमें कोई नवीनता नहीं पैदा कर पाते। हमशक्ल की फिल्मों में लॉजि

छोटे फिल्म फेस्टिवल की सार्थकता

-अजय ब्रह्मात्मज गोरखपुर, पटना, गया, भोपाल, जयपुर, शिमला जैसे शहरों के साथ ही मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों में भी छोटे पैमाने पर अनेक फिल्म फेस्टिवल होते रहते हैं। दरअसल, देश की दूसरी तमाम गतिविधियों की तरह फिल्म फेस्टिवल के भी श्रेणीकरण और वर्गीकरण हो गए हैं। और उन श्रेणियों और वर्गो के आधार पर उनकी चर्चा होती है और उनका पैमाना भी तय होता है। एक इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल है, जोकि पिछले चार सालों से गोवा में ही हो रहा है। भारत सरकार ने तय किया है कि वह हर साल इसे गोवा में ही आयोजित करेगी और चंद सालों में उसे कान, बर्लिन, वेनिस और टोरंटो की तरह महत्वपूर्ण इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल बना देगी। हालांकि पिछले चार सालों में ऐसा कोई संकेत नहीं मिला। लेकिन हो सकता है कि पांचवें साल में कोई चमत्कार हो जाए। गोवा के अतिरिक्त कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, पुणे और तिरुअनंतपुरम के फिल्म फेस्टिवल राष्ट्रीय महत्व रखते हैं। क्योंकि इन फेस्टिवलों में भी सिनेप्रेमी और फिल्मकार पहुंचते हैं। चूंकि इन सभी फिल्म फेस्टिवल का बजट अपेक्षाकृत ज्यादा होता है, इसलिए फिल्मों का चुनाव अच्छा रहता है। देश और

सेंसर हो गयी 'जोधा अकबर'

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चवन्नी को जानकारी मिली है की कल मुम्बई में जोधा अकबर को सेंसर प्रमाणपत्र मिल गया है.कल ही यह फिल्म क्षेत्रीय सेंसर बोर्ड में भेजी गयी थी.मुम्बई में सेंसर बोर्ड के सदस्यों ने इसे देखा और बगैर किसी कतरब्योंत के सार्वजनिक प्रदर्शन की अनुमति दी। जोधा बाई के नाम को लेकर चल रहे विवाद को ध्यान में रख कर आशुतोष गोवारिकर ने एक डिस्क्लेमर डाला था,लेकिन आदतन वह अंग्रेजी में लिखा था.सेंसर बोर्ड ने सिफारिश की है कि यह डिस्क्लेमर हिन्दी में भी दिया जाना चाहिए.साथ ही यह लिखने का भी निर्देश दिया गया है कि जोधा के और भी कई नाम हैं.आशुतोष ने इस मामले में पहले भी स्पष्टीकरण दिया है कि उन्होंने जयपुर के राजघराने की सहमति से जोधा बाई नाम रखा है.आशु ने यह भी कहा है कि अकबर के साथ जोधा का नाम मुगलेआज़म के कारण विख्यात हो चुका है. वे उसे बदलकर किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहते. सेंसर बोर्ड ने यह भी सिफारिश की है कि फिल्म में इस आशय का भी एक डिस्क्लेमर हो कि इस फिल्म में वर्णित ऐतिहासिक तथ्य निर्देशक की व्याख्या है.निर्देशक की व्याख्या से इतर व्याख्याएँ भी हो सकती हैं। हाँ,सेंसर बोर्ड ने जोधा अकबर को यूए