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सरकारी सेंसर के आगे..

-अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों फिक्की फ्रेम्स में अभिव्यक्ति की आजादी और सामाजिक दायित्व पर परिसंवाद आयोजित किया गया था। इस परिसंवाद में शर्मिला टैगोर, प्रीतिश नंदी, श्याम बेनेगल, जोहरा चटर्जी और महेश भट्ट जैसी फिल्मों से संबंधित दिग्गज हस्तियां भाग ले रही थीं। गौरतलब है कि शर्मिला टैगोर इन दिनों केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की चेयरमैन हैं, जिसे हम सेंसर बोर्ड के नाम से जानते रहे हैं। ताज्जुब की बात यह है कि सेंसर शब्द हट जाने के बाद भी फिल्म ट्रेड में प्रचलित है। बहरहाल, उस दोपहर शर्मिला टैगोर अभिभावक की भूमिका में थीं और सभी को नैतिकता का पाठ पढ़ा रही थीं। उन्होंने फिल्मकारों को उनके दायित्व का अहसास कराया। इसी प्रकार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से संबंधित जोहरा चटर्जी यही बताती रहीं कि सरकार ने कब क्या किया? श्याम बेनेगल बोलने आए, तो उन्होंने अपने अनुभवों के हवाले से अपनी चिंताएं जाहिर कीं। उन्होंने बताया कि मुझे अपनी फिल्मों को लेकर कभी परेशानी नहीं हुईं। मैं जैसी फिल्में बनाता हूं, उनमें मुझे केवल सेंसर बोर्ड के दिशानिर्देश का खयाल रखना पड़ता था। मेरी या किसी और की फिल्म को सार्वजनि

बॉक्स ऑफिस :१०.०४.२००८

पिछले हफ्ते तीन फिल्में रिलीज हुई। तीनों का ही बॉक्स आफिस पर बुरा हाल रहा। किसी भी फिल्म को बीस प्रतिशत से अधिक दर्शक नहीं मिले। पाकिस्तान से आई खुदा के लिए के प्रति उत्सुकता थी। मुंबई में इसे दर्शक भी मिले। बाकी शहरों में दर्शकों ने अधिक रुचि नहीं दिखाई। इस फिल्म की रिलीज से दर्शक वाकिफ नहीं थे। अगर इस फिल्म का कायदे से प्रचार किया गया होता तो और ज्यादा दर्शक मिल सकते थे। हां, समीक्षकों ने इसे अधिक पसंद किया। इस फिल्म में कोई बड़ा स्टार नहीं था, इसलिए फिल्म को आरंभिक दर्शक नहीं मिले। शौर्य जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं करने के बावजूद होम वीडियो के जरिए दर्शकों के बीच बनी रहती हैं। समर खान को अपनी फिल्म की ऐसी ही मौजूदगी से संतुष्ट होना पड़ेगा। पवन कौल की भ्रम को लेकर दर्शक भ्रमित नहीं रहे। वे सिनेमाघरों में नहीं गए। अश्वनी धीर की वन टू थ्री भी दर्शकों ने खारिज कर दी। आम तौर पर कामेडी फिल्में औसत व्यवसाय कर लेती हैं, लेकिन इस फिल्म का अनुभव अच्छा नहीं रहा। अब्बास मस्तान की रेस के दर्शक कम हुए हैं। यह फिल्म बड़े शहरों में अभी तक ठीक-ठाक व्यवसाय कर रही है, लेकिन छोटे शहर

प्यार का मर्म समझाएगी यू मी और हम : अजय देवगन

अप्रैल का महीना अजय के लिए खुशियों की सौगात बनकर आया है। दो अप्रैल को अजय का जन्मदिन था और इसी शुक्रवार उनके निर्देशन में बनी पहली फिल्म यू मी और हम प्रदर्शित हो रही है। यही नहीं फिल्म की नायिका उनकी पत्नी काजोल है। अजय ब्रह्मात्मज इस मौके पर उनसे खास बातचीत की- निर्देशन में आने का फैसला क्यों लिया? निर्देशन वैसे ही मेरा पहला पैशन था। एक्टर बनने से पहले मैं सहायक निर्देशक था और अपनी फिल्में बनाता था। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि एक्टर बनना है। मेरा ज्यादा इंटरेस्ट डायरेक्शन में था। एक्टिंग में तो मुझे धकेल दिया गया कि चलो फूल और कांटे फिल्म कर लो। वह फिल्म हिट हो गयी और मेरा रास्ता ही बदल गया। मैं एक्टिंग में चला गया। एक स्थापित एक्टर को निर्देशक की कुर्सी पर बैठने की जरूरत क्यों महसूस हुई? बहुत ज्यादा मैंने नहीं सोचा कि अभी मुझे डायरेक्ट करना है, इसलिए कोई सब्जेक्ट खोजूं। ऐसा इरादा भी नहीं था। मैंने अपने दिल की बात मानी। एक विचार दो-तीन सालों से मुझे मथ रहा था। मैं उसे बनाना चाहता था। ऐसा इसलिए क्योंकि अपने आइडिया को सबसे अच्छे तरीके से मैं ही अभिव्यक्त कर पाऊंगा। फिल्म को लेकर मन में

खुदा के लिए: मुस्लिम समाज का सही चित्रण

-अजय ब्रह्मात्मज पाकिस्तान से आई फिल्म खुदा के लिए वहां के हालात की सीधी जानकारी देती है। निर्देशक शोएब अख्तर ने अमेरिका, ब्रिटेन और पाकिस्तान की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान के उदारमना मुसलमानों की मुश्किलों को कट्टरपंथ के उभार के संदर्भ में चित्रित किया है। उन्होंने बहुत खूबसूरती से जिहाद की तरफ भटक रहे युवकों व कट्टरपंथियों की हालत, 11 सितंबर की घटना के बाद अमेरिका में मुसलमानों के प्रति मौजूद शक, बेटियों के प्रति रुढि़वादी रवैया आदि मुद्दों को पर्दे पर उतारा है। ताज्जुब की बात है कि ऐसी फिल्म पाकिस्तान से आई है। पाकिस्तान में मंसूर और उसके छोटे भाई को संगीत का शौक है। दोनों आधुनिक विचारों के युवक हैं। उनके माता-पिता भी उनका समर्थन करते हैं। छोटा भाई एक दोस्त की सोहबत में कट्टरपंथी मौलाना से मिलता है और उनके तर्कों से प्रभावित होकर संगीत का अभ्यास छोड़ देता है। माता-पिता उसके स्वभाव में आए इस बदलाव से दुखी होते हैं। बड़ा भाई संगीत की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला जाता है। वहां उसकी दोस्ती एक अमेरिकी लड़की से होती है। वह उससे शादी भी कर लेता है। 11 सितंबर की घटना के बाद उसे आतंकवादियों से संबं

अभिनेत्रियों का अभिनय

-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियों को आप एक तरफ से देखें और उन पर जरा गौर करें और फिर बताएं कि उनमें से कितनी अभिनेत्रियां गंभीर और गहरी भूमिकाओं के लिए उपयुक्त हैं! इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारी ज्यादातर अभिनेत्रियां ग्लैमरस रोल के लिए फिट हैं और वे उनमें आकर्षक भी लगती हैं, लेकिन जैसे ही उनकी भूमिकाओं को निर्देशक गहरा आयाम देते हैं, वैसे ही उनकी उम्र और सीमाएं झलकने लगती हैं। एक सीनियर निर्देशक ने जोर देकर कहा कि हमारी इंडस्ट्री में ऐसी अभिनेत्रियां नहीं हैं कि हम बंदिनी, मदर इंडिया, साहब बीवी और गुलाम जैसी फिल्मों के बारे में अब सोच भी सकें। उन्होंने ताजा उदाहरण खोया खोया चांद का दिया। इस फिल्म में मीना कुमारी की क्षमता वाली अभिनेत्री चाहिए थी। सोहा अली खान इस भूमिका में चारों खाने चित्त होती नजर आई। सोहा का उदाहरण इसलिए कि उन्होंने खोया खोया चांद जैसी फिल्म की। अगर अन्य अभिनेत्रियों को भी ऐसे मौके मिले होते, तो शायद उनकी भी कलई खुलती! अभी की ऐक्टिव अभिनेत्रियों में केवल ऐश्वर्या राय ही गंभीर और गहरी भूमिकाओं के साथ न्याय कर सकती हैं। उनकी देवदास और चोखेर बाली के सबूत द

मैसेज भी है क्रेजी 4 में: राकेश रोशन

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राकेश रोशन ने अपनी फिल्म कंपनी फिल्मक्राफ्ट के तहत अब तक जितनी भी फिल्में बनाई हैं, सभी का निर्देशन उन्होंने खुद किया है, लेकिन क्रेजी-4 उनकी कंपनी की पहली ऐसी फिल्म है, जिसे दूसरे निर्देशक ने निर्देशित किया है। फिल्म में खास क्या है, बातचीत राकेश रोशन से। अपनी कंपनी की फिल्म क्रेजी 4 आपने बाहर के निर्देशक जयदीप सेन को दी। वजह? बात दरअसल यह थी कि कृष के बाद मैं बहुत थक गया था। इसलिए सोचा कि साल-डेढ़ साल तक कोई काम नहीं करूंगा, लेकिन छह महीने भी नहीं बीते कि बेचैनी होने लगी। एक आइडिया था, इसलिए मैंने सोचा कि यही बनाते हैं। मैंने जयदीप सेन से वादा किया था कि एक फिल्म निर्देशित करने के लिए दूंगा। इसलिए उनसे आइडिया शेयर किया। वह आइडिया सभी को पसंद आया और वही अब क्रेजी 4 के रूप में आ रही है। जयदीप के अलावा, अनुराग बसु भी मेरे लिए एक फिल्म निर्देशित कर रहे हैं। उनकी फिल्म गैंगस्टर से प्रभावित होकर मैंने रितिक रोशन और बारबरा मोरी की फिल्म काइट्स उन्हें दी है। मैं आगे भी नए और बाहर के निर्देशकों को फिल्में दूंगा। मेरे अंदर ऐसा गुरूर नहीं है कि अपने बैनर की सारी फिल्में मैं ही निर्देशित करूं। आ

हिंदी सिनेमा में हॉलीवुड का इन्टरेस्ट

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-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों के ट्रेड पंडित भले ही संजय लीला भंसाली की फिल्म सांवरिया को फ्लॉप घोषित कर चुके हों, लेकिन मुंबई में सक्रिय सोनी पिक्चर्स के अधिकारी इस फिल्म से संतुष्ट हैं और इसीलिए वे आगे भी हिंदी फिल्म के निर्माण के बारे में सोच रहे हैं। सिर्फ सोनी पिक्चर्स ही नहीं, बल्कि हाल-फिलहाल में हॉलीवुड की अनेक प्रोडक्शन कंपनियों ने मुंबई में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है और इसीलिए वायाकॉम, डिज्नी, वार्नर ब्रदर्स, सोनी बीएमजी और ट्वेंटीएथ सेंचुरी फॉक्स के अधिकारी हिंदी फिल्मों के निर्माताओं के साथ संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं। कहते हैं, इस बार वे निश्चित इरादों और रणनीति के साथ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की गलियों में घूम रहे हैं। पिछले दिनों इंटरनेशनल पहचान की अभिनेत्री के इंटरव्यू के लिए प्रतीक्षा करते समय उनसे मिलने आए डिज्नी के अधिकारियों से मुलाकात हो गई। सारे अधिकारी अमेरिका से आए थे। उनके इरादों का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उनके विजिटिंग कार्ड में एक तरफ सारी जानकारियां हिंदी में छपी थीं। इन दिनों हिंदी फिल्मों के निर्माता-निर्देशकों के विजिटिंग कार्ड में हिंदी का अ भी न

बॉक्स ऑफिस:२६.०३.२००८

पहली तिमाही की आखिरी फिल्म रेस से ट्रेड पंडितों की उम्मीद पूरी हो गई। इस फिल्म को ओपनिंग अच्छी मिली और पहले तीन दिनों में इसका कारोबार अस्सी प्रतिशत से ऊपर रहा। जनवरी सेमार्च तक आशुतोष गोवारिकर की जोधा अकबर के अलावा किसी और फिल्म का बिजनेस संतोषजनक नहीं रहा था। ऐसे में रेस के कारोबार से इंडस्ट्री में खुशी की लहर आई है। फिल्म के निर्माता रमेश तौरानी ने फिल्म के प्रदर्शन की आक्रामक रणनीति अपनाई। उन्होंने खाली सिनेमाघरों में अपनी फिल्म भर दी। उन्होंने करण जौहर और यश चोपड़ा की तरह फिल्म के अधिकतम प्रिंट जारी किए और पहले तीन दिनों की भरपूर कमाई का पुख्ता इंतजाम किया। सूत्रों के मुताबिक रेस के 1100 से अधिक प्रिंट सिनेमाघरों में चल रहे हैं। रेस का मल्टीस्टारर होना दर्शकों को सिनेमाघरों में खींचने का अच्छा जरिया बना। सैफ अली खान, अक्षय खन्ना और अनिल कपूर के साथ कैटरीना कैफ और बिपाशा बसु का ग्लैमर काम आया। समीक्षकों ने फिल्म की आलोचना तो की लेकिन एक स्तर तक अब्बास-मस्तान की स्टाइल को सराहा। इस फिल्म को युवा दर्शक मिल रहे हैं। उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म के सारे किरदार बुरे क्यों हैं? प

आमिर खान का माफीनामा

आमिर खान पिछले दिनों टोरंटो में थे.वहाँ पहुँचने के पहले उन्होंने अपने ब्लॉग के जरिये टोरंटो के ब्लॉगर मित्रों को संदेश दिया था कि आप अपना सम्पर्क नम्बर दें.अगर मुझे मौका मिला तो आप में से कुछ मित्रों को बुलाकर मिलूंगा.इस सुंदर मंशा के बावजूद आमिर खान टोरंटो में समय नहीं निकाल सके.उन्होंने टोरंटो के अपने सभी ब्लॉगर मित्रों से माफ़ी मांगी है,लेकिन वादा किया है कि वे भविष्य में अपने ब्लॉगर मित्रों से जरूर मिलेंगे.टोरंटो के एअरपोर्ट से उन्होंने यह पोस्ट डाली है। गजनी के नए गेटउप में आमिर खान के कान काफी बड़े-बड़े दिख रहे हैं.आमिर खान ने बताया है कि उन्हें बचपन में बड़े कान वाला लड़का कहा जाता था.बचपन में उनका एक नाम बिग इअर्स (big ears) ही पड़ गया था.

खेमों में बंटी फ़िल्म इंडस्ट्री, अब नहीं मनती होली

-अजय ब्रह्मात्मज हर साल होली के मौके पर मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मिथक बन चुकी आरके स्टूडियो की होली याद की जाती है। उस जमाने में बच्चे रहे अनिल कपूर, ऋषि कपूर, रणधीर कपूर से बातें करें, तो आज भी उनकी आंखों में होली के रंगीन नजारे और धमाल दिखाई देने लगते हैं। कहते हैं, होली के दिन तब सारी फिल्म इंडस्ट्री सुबह से शाम तक आरके स्टूडियो में बैठी रहती थी। सुबह से शुरू हुए आयोजन में शाम तक रंग और भंग का दौर चलता रहता था। विविध प्रकार के व्यंजन भी बनते थे। वहां आर्टिस्ट के साथ तकनीशियन भी आते थे। कोई छोटा-बड़ा नहीं होता था। उस दिन की मौज-मस्ती में सभी बराबर के भागीदार होते थे। एक ओर शंकर-जयकिशन का लाइव बैंड रहता था, तो दूसरी ओर सितारा देवी और गोपी कृष्ण के शास्त्रीय नृत्य के साथ बाकी सितारों के फिल्मी ठुमके भी लगते थे। सभी दिल खोल कर नाचते-गाते थे। स्वयं राजकपूर होली के रंग और उमंग की व्यवस्था करते थे। दरअसल, हिंदी सिनेमा के पहले शोमैन राजकपूर जब तक ऐक्टिव रहे, तब तक आरके स्टूडियो की होली ही फिल्म इंडस्ट्री की सबसे रंगीन और हसीन होली बनी रही। उन दिनों स्टार के रूप में दिलीप कुमार और