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रेस: बुरे किरदारों की एंटरटेनिंग फिल्म

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-अजय ब्रह्मात्मज प्रेम, आपसी संबंध और संबंधों में छल-कपट की कहानियां हमें अच्छी लगती हैं। अगर उनमें अपराध मिल जाए तो कहानी रोचक एवं रोमांचक हो जाती है। साहित्य, पत्रिकाएं और अखबार ऐसी कहानियों से भरे रहते हैं। फिल्मों में भी रोमांचक कहानियों की यह विधा काफी पॉपुलर है। हम इस विधा को सिर्फ थ्रिलर फिल्मों के नाम से जानते हैं। निर्देशक अब्बास मस्तान ऐसी फिल्मों में माहिर हैं। हालांकि उनकी 36 चाइना टाउन और नकाब को दर्शकों ने उतना पसंद नहीं किया था। इस बार वे फॉर्म में दिख रहे हैं। रणवीर और राजीव सौतेले भाई हैं। ऊपरी तौर पर दोनों के बीच भाईचारा दिखता है, लेकिन छोटा भाई ग्रंथियों का शिकार है। वह अंदर ही अंदर सुलगता रहता है। उसे लगता है कि बड़ा भाई रणवीर हमेशा उस पर तरस खाता रहता है। वह उसके प्रेम को भी उसका दिखावा समझता है। रणवीर घोड़ों के धंधे में है। उसमें आगे रहने की ललक है और वह हमेशा जीतने की कोशिश में रहता है। दूसरी तरफ राजीव को शराब की लत लग गई है। रणवीर की जिंदगी में दो लड़कियां हैं। एक तो उसकी नयी-नयी बनी प्रेमिका सोनिया और दूसरी सोफिया, जो उसकी सेक्रेटरी है। राजीव की नजर सोनिया पर

गंजे हो गए आमिर खान

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अपनी नई फ़िल्म 'गजनी' के लिए आमिर खान को गंजा होना था.कल टोरंटो जाने से पहले अपने आवास पर उन्होंने हेयर स्टाइलिस्ट अवाँ कांट्रेक्टर को घर पर बुलाया।बीवी किरण राव और गीतकार प्रसून जोशी के सामने उन्होंने बाल कटवाए और गजनी के लुक में आ गए.आमिर खान ने अपनी फिल्मों के किरदार के हिसाब से लुक बदलने का रिवाज शुरू किया.गजनी में उन्हें इस लुक में इसलिए रहना है कि सिर पर लगा जख्म दिखाया जा सके.आमिर ने फ़िल्म के निर्देशक मुर्गदोस से अनुमति लेने के बाद ही अपना लुक बदला.ऐसा कहा जा रहा है कि 'गजनी'में मध्यांतर के बाद वे इसी लुक में दिखेंगे.

दस साल का हुआ मामी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल

-अजय ब्रह्मात्मज हर साल मुंबई में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का आयोजन होता है। इस साल 7 से 13 मार्च के बीच आयोजित फेस्टिवल में 125 से अधिक फिल्में दिखाई गई। सात दिनों के इस फेस्टिवल में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी कई नामी हस्तियों ने हिस्सा भी लिया। सबसे सुखद बात यह रही कि कई सक्रिय फिल्मकारों ने दर्शकों, फिल्म प्रेमियों और फिल्मों में आने के इच्छुक व्यक्तियों से आमने-सामने बातें भी कीं। उन्होंने उनके साथ फिल्म निर्माण से संबंधित मुद्दों पर बातें कीं और उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया और उसके बाद अपनी विशेषज्ञता शेयर की। मुंबई का मामी फिल्म फेस्टिवल इस मायने में विशेष है कि इसके आयोजन में फिल्म इंडस्ट्री के सदस्यों की भागीदारी रहती है। हालांकि महाराष्ट्र की सरकार आर्थिक मदद करती है, लेकिन फेस्टिवल से संबंधित किसी भी फैसले में कोई सरकारी दबाव और हस्तक्षेप नहीं रहता। इस फेस्टिवल की कई उपलब्धियां हैं। मशहूर निर्देशक नागेश कुकनूर को पहली बार इसी फेस्टिवल से पहचान मिली। कोंकणा सेन शर्मा इसी फेस्टिवल के जरिए हिंदी निर्माता-निर्देशकों से परिचित हुई थीं। देश-विदेश की कई विख्यात फिल्में पहली बार

बॉक्स ऑफिस १९.०३.०८

ऐसा लग ही रहा था कि 26 जुलाई ऐट बरिस्ता बाक्स आफिस पर डूब जाएगी। वही हुआ भी। इस फिल्म के हश्र पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। फिल्म पूरे भारत में रिलीज भी नहीं हो सकी थी। फिल्म ट्रेड के एक विशेषज्ञ की राय में निर्देशक मोहन शर्मा ने विषय तो महत्व का चुना था, लेकिन उसके साथ वह न्याय नहीं कर सके। उन्होंने एक संभावना भी खत्म कर दी। उनकी राय में किसी अच्छे विषय पर बुरी फिल्म बन जाए तो निर्माता उस विषय को फिर से छूने में कतराते हैं। ब्लैक एंड ह्वाइट के बारे में सुभाष घई जो भी पोस्टर छपवा और महानगरों की दीवारों पर सटवा रहे हों, सच तो यही है कि बाक्स आफिस पर फिल्म विफल रही। समीक्षकों ने अवश्य तारीफ की, मगर उनकी तारीफों का दर्शकों पर कोई असर नहीं हुआ। वैसे ब्लैक एंड ह्वाइट दिल्ली और महाराष्ट्र में टैक्स फ्री हो चुकी है। उम्मीद है कि दर्शक बढ़ेंगे और फिल्मकारों का नुकसान कम होगा। बाक्स आफिस पर कोई भी प्रतियोगिता नहीं होने से जोधा अकबर के दर्शक ज्यादा नहीं घटे हैं। यह फिल्म सप्ताहांत में दर्शक खींच रही है। इस हफ्ते अब्बास मस्तान की थ्रिलर रेस आ रही है।

चुंबन चर्चा : हिन्दी फ़िल्म

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हिन्दी फिल्मों में चुम्बन पर काफी कुछ किखा जाता रहा है.२००३ में मल्लिका शेरावत की एक फ़िल्म आई थी ' ख्वाहिश'. इस फ़िल्म में उन्होंने लेखा खोर्जुवेकर का किरदार निभाया था.फ़िल्म के हीरो हिमांशु मल्लिक थे.मल्लिक और मल्लिका की यह फ़िल्म चुंबन के कारन चर्चित हुई थी.इस फ़िल्म में एक,दो नहीं.... कुल १७ चुंबन थे। 'ख्वाहिश' ने मल्लिका को मशहूर कर दिया था और कुछ समय के बाद आई 'मर्डर' ने तो मोहर लगा दी थी कि मल्लिका इस पीढ़ी की बोल्ड और बिंदास अभिनेत्री हैं। १७ चुंबन देख कर या उसके बारे में सुन कर दर्शक दांतों तले उंगली काट बैठे थे और उनकी पलकें झपक ही नहीं रहीं थीं.हिन्दी फिल्मों के दर्शक थोड़े यौन पिपासु तो हैं ही. बहरहाल चवन्नी आप को बताना चाहता है कि १९३२ में एक फ़िल्म आई थी 'ज़रीना',उस फ़िल्म में १७.१८.२५ नहीं .... कुल ८६ चुंबन दृश्य थे.देखिये गश खाकर गिरिये मत.उस फ़िल्म के बारे में कुछ और जान लीजिये। १९३२ में बनी इस फ़िल्म को ८६ चुंबन के कारण कुछ दिनों के अन्दर ही सिनेमाघरों से उतारना पड़ा था.फ़िल्म के निर्देशक एजरा मीर थे.एजरा मीर बाद में डाक्यूमेंट्री फिल्मों

हिन्दी फ़िल्म:महिलायें:वर्तमान दशक

यह दशक अभी समाप्त नहीं हुआ है.अगले दो साल में अभी न जाने किस-किस अभिनेत्री का दीदार होगा और न जाने किसका जादू दर्शकों के सिर चढ़ कर बोलेगा?फिलहाल दीपिका पदुकोन और सोनम कपूर अपने-अपने हिसाब से जलवे बिखेर रही हैं.दोनों एक ही दिन ९ अक्टूबर २००७ को परदे पर आयीं और छ गयीं.दीपिका की पहली फिम 'ओम शान्ति ओम' थी,जिसे फराह खान ने निर्देशित किया था.सोनम के निर्देशक संजय लीला भंसाली हैं.उनकी 'सांवरिया' से सोनम का आगमन हुआ.ऐसा लगता है कि दोनों का सफर लंबा है.हाँ,रास्ते अलग-अलग हैं. अब थोड़ा पीछे चलें. प्रीति जिंटा को शेखर कपूर पेश करने वाले थे.उनकी फ़िल्म नहीं बन सकी.मणि रत्नम की 'दिल से' में प्रीति की झलक दिखी थी.उनकी ज्यादातर फिल्में इसी दशक में आई हैं.इसी दशक में अमृता राव एक सामान्य सी फ़िल्म 'अब के बरस' से आयीं.धीरे-धीरे उनहोंने अपनी तरह की जगह बना ली.हेमामालिनी की बेटी एषा देओल अभी तक कोई मुकाम नही छू सकी हैं.करिश्मा कपूर की बहन करीना कपूर ने जे पी दत्ता की फ़िल्म 'रिफ्यूजी' से धमाकेदार शुरूआत की,लेकिन उनका सफर ठीक नहीं रहा.पिछले साल 'जब वी

कामयाबी की कीमत चुकाती करीना कपूर

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कामयाबी की कीमत सभी को चुकानी पड़ती है। इन दिनों करीना कपूर इसी फेज से गुजर रही हैं। दरअसल, जब वी मेट के बाद उनकी जिंदगी हर लिहाज से इसलिए बदल गई, क्योंकि सोलो हीरोइन के रूप में उनकी फिल्म रातोंरात हिट हो गई। इस फिल्म में उनके काम की तारीफ की गई और इसीलिए अब पुरस्कारों की बरसात हो रही है। अभी तक दो बड़े पुरस्कार उनकी झोली में आ चुके हैं और ऐसा माना जा रहा है कि देश-विदेश के सारे पुरस्कार इस बार अकेले करीना कपूर ही ले जाएंगी। पुरस्कारों की बात चलने पर आंतरिक खुशी से उनका चेहरा दीप्त हो उठता है। वे सूफियाना अंदाज में कहती हैं, पुरस्कारों का मिलना अच्छा लगता है। कई बार नहीं मिलने पर भी दुख नहीं होता, लेकिन यदि जब वी मेट के लिए पुरस्कार नहीं मिलता, तो जरूर बुरा लगता। करीना कपूर अभी से लेकर अगले साल के अप्रैल महीने तक व्यस्त हैं, लेकिन उन्होंने सोच रखा है कि समय से सूचना मिल गई, तो वे हर पुरस्कार लेने जाएंगी और कुछ अवार्ड समारोह में परफॉर्म भी करेंगी। करीना पर इधर बेवफाई का आरोप लगा है। कुछ लोगों की राय में उन्होंने शाहिद कपूर को छोड़ कर अच्छा नहीं किया। वास्तव में करीना के प्रशंसक आज भी सै

हिन्दी फ़िल्म:महिलायें:आखिरी दशक

पिछली सदी का आखिरी दशक कई अभिनेत्रियों के लिए याद किया जायेगा.सबसे पहले काजोल का नाम लें.तनुजा की बेटी काजोल ने राहुल रवैल की 'बेखुदी'(१९९२) से सामान्य शुरुआत की.'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे' उनकी और हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री की अभी तक सबसे ज्यादा हफ्तों तक चलनेवाली फ़िल्म है.यह आज भी मुम्बई में चल ही रही है. ऐश्वर्या राय १९९४ में विश्व सुंदरी बनीं और अगला कदम उन्होंने फिल्मों में रखा,उन्होंने मणि रत्नम की फ़िल्म 'इरुवर'(१९९७) से शुरूआत की.आज वह देश की सबसे अधिक चर्चित अभिनेत्री हैं और उनके इंटरनेशनल पहचान है.जिस साल ऐश्वर्या राय विश्व सुंदरी बनी थीं,उसी साल सुष्मिता सेन ब्रह्माण्ड सुंदरी घोषित की गई थीं.सुष्मिता ने महेश भट्ट की 'दस्तक'(१९९६) से फिल्मी सफर आरंभ किया. रानी मुख़र्जी 'राजा की आयेगी बारात' से फिल्मों में आ गई थीं,लेकिन उन्हें पहचान मिली विक्रम भट्ट की 'गुलाम' से.'कुछ कुछ होता है' के बाद वह फ़िल्म इंडस्ट्री की बड़ी लीग में शामिल हो गयीं.इस दशक की संवेदनशील अभिनेत्री ने तब्बू ने बाल कलाकार के तौर पर देव आनंद की फ़ि

हिन्दी फ़िल्म:महिलायें:नौवां दशक

नौवें दशक में आई मधुर मुस्कान माधुरी दीक्षित को दर्शक नहीं भूल पाये हैं.धक्-धक् गर्ल के नाम से मशहूर हुई इस अभिनेत्री ने अपने नृत्य और अभिनय से सचमुच दर्शकों की धड़कनें बढ़ा दी थीं.राजश्री कि १९८४ में आई 'अबोध' से उनका फिल्मी सफर आरंभ हुआ.उनकी पॉपुलर पहचान सुभाष घई की 'राम लखन' से बनी.'तेजाब'के एक,दो ,तीन.... गाने ने तो उन्हें नम्बर वन बना दिया.माधुरी की तरह ही जूही चावला की १९८४ में आई पहली फ़िल्म 'सल्तनत' पर दर्शकों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.हाँ,१९८८ में आमिर खान के साथ 'कयामत से कयामत तक' में वह सभी को पसंद आ गयीं. श्रीदेवी की 'सोलवा सावन' भी नहीं चली थी,लेकिन १९८३ में जीतेन्द्र के साथ 'हिम्मतवाला' में उनके ठुमके भा गए .पद्मिनी कोल्हापुरे कि शुरूआत तो देव आनंद की 'इश्क इश्क इश्क' से हो गई थी,लेकिन उन्हें दर्शकों ने राज कपूर की 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' से पहचाना.इस फ़िल्म में उन्होंने जीनत अमन के बचपन का रोल किया था.इस दशक की अन्य अभिनेत्रियों में अमृता सिंह,मंदाकिनी,किमी काटकर आदि का उल्लेख किया जा सकता है.

उम्मीदों पर पानी फेरती 26 जुलाई..

-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म का संदर्भ और बैकड्राप सिनेमाघरों में दर्शकों को खींच सकता है। आप पूरी उम्मीद से सिनेमा देखने जा सकते हैं लेकिन, अफसोस कि यह फिल्म सारी उम्मीदों पर पानी फेर देती है। 2005 में मुंबई में आई बाढ़ को यह फिल्म असंगत तरीके से छूती है और उस आपदा के मर्म तक नहीं पहुंच पाती। घटना 26 जुलाई, 2005 की है। उस दिन मुंबई में बारिश ने भयावह कहर ढाया था। चूंकि घटना ढाई साल ही पुरानी है, इसलिए अभी तक हम सभी की स्मृति में उसके खौफनाक दृश्य ताजा हैं। मुंबई के अंधेरी उपनगर में स्थित एक बरिस्ता आउटलेट में चंद नियमित ग्राहक आते हैं। बाहर वर्षा हो रही है। वह तेज होती है और फिर खबरें आती हैं कि भारी बारिश और बाढ़ के कारण शहर अस्त-व्यस्त हो गया है। टीवी पर चंद फुटेज दिखाए जाते हैं। इसी बरिस्ता में राशि और शिवम भी फंसे हैं। एक फिल्म लेखक हैं। एक सरदार दंपती है। दो-चार अन्य लोगों के साथ बरिस्ता के कर्मचारी हैं। इनके अलावा कुछ और किरदार भी आते हैं। फिल्म में बैंक डकैती, एड्सग्रस्त महिला, खोई हुई बच्ची का प्रसंग आता है। रात भर की कहानी सुबह होने के साथ समाप्त हो जाती है। हम देखते हैं कि राशि और