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मलखंभ : मल्लिका और खम्भा

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मल्लिका और खम्भा को एक साथ मिला देन तो यही शब्द बनेगा.अगर इस शब्द में किसी को कोई और अर्थ दिख रहा हो तो आगे न पढ़ें। कमल हसन की फ़िल्म दसावतारम आ रही है.इस फ़िल्म में कमल हसन ने दस भूमिकाएं निभायीं हैं.कमल हसन को रूप बदलने का पुराना शौक है.बहरहाल एक रूप में उनका साथ दे रही हैं मल्लिका शेरावत.मल्लिका शेरावत ने अभिनेत्री के तौर पर भले ही अभी तक कोई सिक्का न जमाया हो,लेकिन उनकी चर्चा होती रहती है.इसी फ़िल्म के मुसिक रिलीज के मौके पर वह चेन्नई में मौजूद थीं और ऐसा कहते हैं की जब खास मेहमान के तौर पर आए जैकी चान से उछारण की गलतियां होने लगीं तो मल्लिका ने उनकी मदद की.आखी वह उनकी फ़िल्म में काम जो कर चुकी हैं.पिछले साल वह गुरु में मैंया मैंया गति नज़र आई थीं.और हाँ हिमेश रेशमिया की फ़िल्म आपका सुरूर में भी दिखी थीं.दोनों ही फिल्मों में उनके आइटम गीत थे.बस... मल्लिका शेरावत के बारे में आप क्या सोचते हैं और क्या इस मलखंभ के लिए दसावतारम देखने जायेंगे? और हाँ बिग बी के लिए काफी सवाल आए.कुछ सवालों के जवाब अमिताभ बच्चन ने दिए हैं.जल्दी ही आप उनके जवाब यहाँ पढेंगे.

आमिर खान के भतीजे इमरान खान

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आमिर खान ने अपने भतीजे इमरान खान को पेश करने के लिए एक फ़िल्म बनाई है-जाने तू.यह उनके प्रोडक्शन की तीसरी फ़िल्म होगी.आमिर को उम्मीद है की लगान और तारे ज़मीन पर की तरह यह भी कामयाब होगी और इस तरह वे कामयाबी की हैट्रिक लगन्र में सफल रहेंगे। आप सभी जानते होंगे की आमिर खान को उनके चाचा नासिर खान ने पेश किया था.फ़िल्म थी क़यामत से क़यामत त और उसके निर्देशक थे मंसूर खान.आमिर ने परिवार की उसी परम्परा को निभाते हुए अपने भतीजे को पेश किया है.उनकी फ़िल्म के दिरेक्टोर हैं अब्बास टायरवाला । आज कल की फिल्मों और नए सितारों को पेश करने की चलन से थोड़े अलग जाकर इमरान खान को पड़ोसी चेहरे के तौर पर पेश किया जा रहा है.अगर याद हो तो आमिर खान भी इसी छवि के साथ आए थे। और हाँ याद रखियेगा की इमरान खान को पहली बार आप ने चवन्नी के ब्लॉग पर देखा.

बिग बी के लिए सवाल

big b ke liye aapke paas kai sawal honge.kal hamari mulaqat tay hui hai.chavanni chahta hai ki aap ki jigyashayen bhi unke saamne rakhi jaayen.please apne sawal jaldi se jaldi post karen. maaf karen aaj yah post nagri mein tabdeel nahin ho pa raha hai.shayad server tang kar raha hai. chhonki jaldi baaji hai,isliye aaj roman mein hi padh len. aap apne sawal alag se bhi bhej sakte hain,pataq hoga; chavannichap@gmail.com

पैसे कमाने का शॉर्टकट हैं मल्टीस्टारर फिल्में

-ajay brahmatmaj पिछले साल की कामयाब फिल्मों पर सरसरी निगाह डालने पर हम पाते हैं कि उन फिल्मों में से अधिकांश में एक से अधिक स्टार थे। अक्षय कुमार, सलमान खान, गोविंदा और बाकी स्टार भी जमात में आने पर ही कामयाब हो सके। ऐसा लगता है कि सोलो हीरो की फिल्मों का रिस्क बढ़ गया है और इसीलिए उनके प्रति दर्शकों की रुचि भी अब कमहो गई है। सैफ अली खान का ही उदाहरण लें। हां, इस साल उनकी रेस कामयाब जरूर हुई, लेकिन पिछले साल ता रा रम पम पिट गई। हालांकि आमिर खान और शाहिद कपूर अपवाद कहे जा सकते हैं, क्योंकि तारे जमीं पर और जब वी मेट में उन्होंने अकेले ही दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। ओम शांति ओम में भी अकेले शाहरुख खान थे, लेकिन एक स्तर पर उसमें भी स्टारों की भारी भीड़ थी। भले ही वह भीड़ एक गाने में रही हो! दरअसल, इस साल भी वही ट्रेंड आगे बढ़ता दिख रहा है। रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय के भावपूर्ण अभिनय से सजी फिल्म जोधा-अकबर को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी। उसकी तुलना में रेस साधारण फिल्म थी, लेकिन सैफ, अक्षय खन्ना, अनिल कपूर, कैटरीना कैफ और बिपाशा बसु की मौजूदगी ने दर्शकों को आकर्षित किया। इस हफ्ते रिली

बॉक्स ऑफिस:२४.०४.२००८

तनुजा चंद्रा की होप एंड ए लिटिल शुगर से फिल्म इंडस्ट्री को बहुत लिटिल होप थी। एक तो यह फिल्म अंग्रेजी में है और सीमित प्रिंट के साथ रिलीज हुई है। रिलीज होने के बाद दर्शकों ने पाया कि फिल्म में दम नहीं है। विषय अच्छा था। फिल्म नहीं बन सकी। यह समस्या कई फिल्मकारों के साथ है कि वे संवेदनशील विषय चुनते हैं, पर फिल्म पूरी करने में चूक जाते हैं। इससे विषय का नुकसान हो जाता है। दावा है कि अजय देवगन की यू मी और हम ने दस दिनों में 41 करोड़ का बिजनेस कर लिया है और पहली बार अजय की फिल्म विदेशों में चल रही है। इस फिल्म को समीक्षकों ने सराहा, लेकिन फिल्म अध्येताओं को यू मी और हम अच्छी नहीं लगी। जयदीप सेन की क्रेजी 4 सामान्य बिजनेस कर रही है। लगता है कॉमेडी फिल्मों के प्रति दर्शक उदासीन हो रहे हैं या फिर कॉमेडी के नाम पर उदासी परोसी जा रही है। यू मी और हम तथा क्रेजी 4 औसत फिल्में साबित होंगी। इस हफ्ते 2008 की पहली छमाही की धमाकेदार फिल्म टशन का इंतजार है। यशराज फिल्म्स की टशन बॉक्स ऑफिस की रंगत बदल सकती है।

टशन: एक फंतासी

-अजय ब्रह्मात्मज इसे यशराज फिल्म्स की टशन ही कहेंगे। इतने सारे स्टार, ढेर सारे खूबसूरत लोकेशन, चकाचक स्टाइल और लुक, नई तकनीक से लिए गए एक्शन दृश्य, थोड़ा-बहुत सीजीआई (कंप्यूटर जेनरेटड इमेजेज), नॉर्थ इंडिया का कनपुरिया लहजा और इन सभी को घोल कर बनायी गयी टशन। ऊपर से आदित्य चोपड़ा की क्रिएटिव मार्केटिंग ़ ़ ़ हिंदी फिल्मों के सबसे बड़े और कामयाब प्रोडक्शन हाउस से आई फिल्म है टशन का बाजार गर्म था। यही तो यशराज फिल्म्स की टशन है। सिंपल सी कहानी है। कानपुर शहर में एक उचक्का रिक्शेवाला एक बेटी के सामने उसके बाप की हत्या कर देता है। बेटी उस हत्यारे के पीछे लग जाती है और अपने पिता की अस्थियां विसर्जित करने के साथ ही उस हत्यारे से पिता के खून का बदला लेती है। वह साफ कहती है कि हम सीधे और शरीफ लोग नहीं हैं। हम कमजोर भी नहीं हैं। वक्त पड़ने पर एक-दूसरे की मदद से कुछ भी कर सकते हैं। टशन में कुछ भी कर दिखाने की जिम्मेदारी पूजा सिंह (करीना कपूर), बच्चन पांडे (अक्षय कुमार) और जिम्मी क्लिफ (सैफ अली खान) की है। इन दिनों खल किरदारों को लेकर फिल्म बनाने का चलन जोरों पर है। इस फिल्म के ही सारे किरदार खल स

प्रकाश झा से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत-2

पिछले से आगे... डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का यह रुझान तात्कालिक ही लगता है, क्योंकि आप फीचर फिल्मों की तरफ उन्मुख थे? उन दिनों फीचर फिल्म कोई दे नहीं रहा था। डॉक्यूमेंट्री में कम लागत और कम समय में कुछ कर दिखाने का मौका मिल जाता था। 1975 से 1980.81 तक मैं डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाता रहा और सैर करता रहा। यहां फिल्में बनाता था। और पैसे जमा कर कभी इंग्लैंड, कभी जर्मनी तो कभी फ्रांस घूम आता था। विदेशों में जाकर थोड़ा काम कर आता था। कह सकते हैं कि छुटपुटिया काम ही करता रहा। 1979 में बैले डांसर फिरोजा लाली ... । उनके साथ वाक्या ये हुआ था कि वे बोलशेवे तक चली गई थीं। रॉयल एकेडमी में सीखा उन्होंने सिंगापुर में भी रहीं, लेकिन कभी लाइमलाइट में नहीं रहीं। उनके पिता पूरी तरह समर्पित थे बेटी के प्रति। मुझे बाप-बेटी की एक अच्छी कहानी हाथ लगी। मैंने उन पर डॉक्यूमेट्री शुरू कर दी। उसी सिलसिले में मुझे रूस जाना पड़ा। रूस में बोलवेशे से उनके कुछ फुटेज निकालने थे। फिर लंदन चला गया। उनकी फिल्म पूरी करने के लिए। उसमें मुझे काफी लंबा समय लग गया। थोड़ी लंबी डॉक्यूमेंट्री थी। पैसों की दिक्कत थी। इधर-उधर

प्रकाश झा से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

शुरू से बताएं। फिल्मों में आने की बात आपने कब और क्यों सोची? मैं तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में फिजिक्स ऑनर्स की पढ़ाई कर रहा था। उस समय अचानक लगने लगा कि क्या यही मेरा जीवन है? ग्रेजुएशन हो जाएगा, फिर आईएएस ऑफिसर बनकर सर्विसेज में चले जाएंगे। पता नहीं क्यो वह विचार मुझे पसंद नहीं आ रहा था। काफी संघर्ष dरना पड़ा उन दिनों परिवार की आशंकाएं थीं। उन सभी को छोड़-लतार कर... बीच में पढ़ाई छोड़ कर मुंबई आ गया। पैसे भी नहीं लिए पिताजी से... पिताजी से मैंने कहा कि जो काम आप नहीं चाहते मैं करूं, उस काम के लिए मैं आप से पैसे नहीं लूंगा। चलने लगा तो घर के सारे लोग उदास थे... नाराज थे। मेरे पास तीन सौ रूपये थे। मैं मुंबई आ गया... फिल्मो के लिए नहीं, पेंटिंग में रुचि थी मेरी। जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स का नाम सुना था। मैंने कहा कि वहीं जाऊंगा। वहां जाकर जीवन बनाऊंगा घर छोड़कर चला आया था। मंबई आने के बाद जीविका के लिए कुछ.कुछ करना पड़ा। ट्रेन में एक सज्जन मिल गए थे.राजाराम। आज भी याद है। दहिसर - मुंबई का बाहरी इलाका-में बिल्डिंग वगैरह बनाते थे। उनके पास यूपी जौनपुर के बच्चे रहते थे। वहीं हमको भी सोने की जगह मि

बया में 'पहली सीढ़ी' सीरिज़ में प्रकाश झा का इंटरव्यू

पहली सीढ़ी मैं प्रवेश भारद्वाज का कृतज्ञ हूं। उन्होंने मुझे ऐसे लंबे, प्रेरक और महत्वपूर्ण इंटरव्यू के लिए प्रेरित किया। फिल्मों में डायरेक्टर का वही महत्व होता है, जो किसी लोकतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री का होता है। अगर प्रधानमंत्री सचमुच राजनीतिज्ञ हो तो वह देश को दिशा देता है। निर्देशक फिल्मों का दिशा निर्धारक, मार्ग निर्देशक, संचालक, सूत्रधार, संवाहक और समीक्षक होता है। एक फिल्म के दरम्यान ही वह अनेक भूमिकाओं और स्थितियों से गुजरता है। फिल्म देखते समय हम सब कुछ देखते हैं, बस निर्देशक का काम नहीं देख पाते। हमें अभिनेता का अभिनय दिखता है। संगीत निर्देशक का संगीत सुनाई पड़ता है। गीतकार का शब्द आदोलित और आलोड़ित करते हैं। संवाद लेखक के संवाद जोश भरते हैं, रोमांटिक बनाते हैं। कैमरामैन का छायांकन दिखता है। बस, निर्देशक ही नहीं दिखता। निर्देशक एक किस्म की अमूर्त और निराकार रचना-प्रक्रिया है, जो फिल्म निर्माण \सृजन की सभी प्रक्रियाओं में मौजूद रहता है। इस लिहाज से निर्देशक का काम अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। श्याम बेनेगल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि यदि आप ईश्वर की धारणा में यकीन करते हों

शाहरुख़ की हिन्दी पर वाह कहें!!!!

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शाह शाहरुख़ खान का प्यार का नाम है.उनके करीबी उन्हें इसी नाम से पुकारते है.चवन्नी ने सोचा कि नाम लेकर ही शाहरुख़ के करीब होने का भ्रम पाल लिया जाए.मजाक एक तरफ़...इस पोस्ट में चवन्नी शाहरुख़ की हिन्दी से आपको परिचित कराएगा.चवन्नी को अच्छी तरह मालूम है कि शाहरुख़ को हिन्दी आती है.कम से कम वे हिन्दी बोल और समझ सकते हैं.आज के अभिनेता-अभिनेत्री तो हिन्दी बोलने की बात आने पर ही कसमसाने लगते हैं.शाहरुख़ को पांचवी पास इतनी हिन्दी अवश्य आती है.चवन्नी हिन्दी लिखने और पदने के सन्दर्भ में यह बात कर रहा है.चूंकि वे दिल्ली में रहे हैं और परिवार में दिल्ली की भाषा ही बोली जाती थी,इसलिए वे समझ भी सकते हैं.चवन्नी को आश्चर्य होता है कि हिन्दी के नाम पर नाक-भौं सिकोरने वाले शाह को हिन्दी लिखने की क्या जरूरत पड़ गई है.यह मनोरंजन की माया है,जहाँ राजनीति की तरह हिन्दी ही चलती है.पिछले दिनों शाहरुख़ खान ने हिन्दी में एक संदेश लिखा.बड़ा भारी जलसा था....वहाँ शाहरुख़ खान ने यह संदेश स्वयं लिखा.अब आप ऊपर की तस्वीर को ठीक से देखें.आप पायेंगे कि शाह को पढ़ते रहिये के ढ के नीचे बिंदी लगाने की जरूरत नहीं महसूस हुई.उन