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फ़िल्म समीक्षा:दिल्ली ६

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हम सब के अन्दर है काला बन्दर -अजय ब्रह्मात्मज ममदू, जलेबी, बाबा बंदरमार, गोबर, हाजी सुलेमान, इंस्पेक्टर रणविजय, पागल फकीर, कुमार, राजेश, रज्जो और कुमार आदि 'दिल्ली ६' के जीवंत और सक्रिय किरदार हैं। उनकी भागीदारी से रोशन मेहरा (अभिषेक बच्चन) और बिट्टू (सोनम कपूर) की अनोखी प्रेम कहानी परवान चढ़ती है। इस प्रेमकहानी के सामाजिक और सामयिक संदर्भ हैं। रोशन और बिट्टू हिंदी फिल्मों के आम प्रेमी नही हैं। उनके प्रेम में नकली आकुलता नहीं है। परिस्थितियां दोनों को करीब लाती हैं, जहां दोनों के बीच प्यार पनपता है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने बिल्कुल नयी शैली और मुहावरे में यह प्रेमकहानी रची है। न्यूयार्क में दादी (वहीदा रहमान) की बीमारी के बाद डाक्टर उनके बेटे राजन मेहरा और बहू फातिमा को सलाह देता है कि वे दादी को खुश रखने की कोशिश करें, क्योंकि अब उनके दिन गिनती के बचे हैं। दादी इच्छा जाहिर करती हैं कि वह दिल्ली लौट जाएंगी। वह दिल्ली में ही मरना चाहती हैं। बेटा उनके इस फैसले पर नाराजगी जाहिर करता है तो पोता रोशन उन्हें दिल्ली पहुंचाने की जिम्मेदारी लेता है। भारत और दिल्ली-6 यानी चांदनी चौक प

विश्वास और भावनाओं से मैं भारतीय हूं: अभिषेक बच्चन

-अजय ब्रह्मात्मज अभिषेक बच्चन की फिल्म 'दिल्ली 6' शुक्रवार को रिलीज हो रही है। यह फिल्म दिल्ली 6 के नाम से मशहूर चांदनी चौक इलाके के जरिए उन मूल्यों और आदर्शो और सपनों की बात करती है, जो कहीं न कहीं भारतीयता की पहचान है। अभिषेक बच्चन से इसी भारतीयता के संदर्भ में हुई बात के कुछ अंश- आप भारतीयता को कैसे डिफाइन करेंगे? हमारा देश इतना विशाल और विविध है कि सिर्फ शारीरिक संरचना के आधार पर किसी भारतीय की पहचान नहीं की जा सकती। विश्वास और भावनाओं से हम भारतीय होते हैं। भारतीय अत्यंत भावुक होते हैं। उन्हें अपने राष्ट्र पर गर्व होता है। मुझमें भी ये बातें हैं। क्या 'दिल्ली 6' के रोशन मेहरा और अभिषेक बच्चन में कोई समानता है? रोशन मेहरा न्यूयार्क में पला-बढ़ा है। वह कभी भारत नहीं आया। इस फिल्म में वह पहली बार भारत आता है, तो किसी पर्यटक की नजर से ही भारत को देखता है। यहां बहुत सी चीजें वह समझ नहीं पाता, जो शायद आप्रवासी भारतीय या विदेशियों के साथ होता होगा। मैं अपने जीवन के आरंभिक सालों में विदेशों में रहा, इसलिए राकेश मेहरा ने मेरे परसेप्शन को भी फिल्म में डाला। इससे भारत को अलग

दिल्ली ६ के बारे में राकेश ओमप्रकश मेहरा

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अभिषेक बच्चन और सोनम कपूर के साथ दिल्ली 6 में दिल्ली के चांदनी चौक इलाके की खास भूमिका है। चांदनी चौक का इलाका दिल्ली-6 के नाम से भी मशहूर है। राकेश कहते हैं, मुझे फिल्मों के कारण मुंबई में रहना पड़ता है। चूंकि मैं दिल्ली का रहने वाला हूं, इसलिए मुंबई में भी दिल्ली खोजता रहता हूं। नहीं मिलने पर क्रिएट करता हूं। आज भी लगता है कि घर तो जमीन पर ही होना चाहिए। अपार्टमेंट थोड़ा अजीब एहसास देते हैं। क्या दिल्ली 6 दिल्ली को खोजने और पाने की कोशिश है? हां, पुरानी दिल्ली को लोग प्यार से दिल्ली-6 बोलते हैं। मेरे नाना-नानी और दादा दादी वहीं के हैं। मां-पिता जी का भी घर वहीं है। मैं वहीं बड़ा हुआ। बाद में हमलोग नयी दिल्ली आ गए। मेरा ज्यादा समय वहीं बीता। बचपन की सारी यादें वहीं की हैं। उन यादों से ही दिल्ली-6 बनी है। बचपन की यादों के सहारे फिल्म बुनने में कितनी आसानी या चुनौती रही? दिल्ली 6 आज की कहानी है। आहिस्ता-आहिस्ता यह स्पष्ट हो रहा है कि मैं अपने अनुभवों को ही फिल्मों में ढाल सकता हूं। रंग दे बसंती आज की कहानी थी, लेकिन उसमें मेरे कालेज के दिनों के अनुभव थे। बचपन की यादों का मतलब यह कतई न लें

हिन्दी टाकीज:फिल्में देखने का मज़ा तो दोस्तों के साथ ही आता है-निशांत मिश्रा

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हिन्दी टाकीज-२५ इस बार निशांत मिश्रा के संस्मरण...निशांत ने बड़े प्यार से उन दिनों को याद किया है और हिन्दी टाकीज कि कड़ी को आगे बढाया है.उनके संस्मरण के साथ हिन्दी टाकीज २५ वें पड़ाव पर आ चुका है.योजना के मुताबिक अभी ७५ पड़ाव बाकी हैं.चवन्नी को उम्मीद है कि हु सब मंजिल तक अवश्य पहुंचेंगे। निशांत अपने बारे में लिखते हैं...मूलतः भोपाल का रहने वाला हूँ, उम्र ३४ साल। पेशे से भारत सरकार के नई दिल्ली स्थित एक कार्यालय में अनुवादक हूँ। सैंकडों चीज़ों के बारे में जानता हूँ, माहिर किसी में नहीं हूँ। हिन्दी में अनुवाद करके एक ब्लॉग पर ज़ेन कथाएँ और अन्य नैतिक कथाएँ पोस्ट करता हूँ। एक ब्लॉग चित्रगीत पर पुराने फिल्मी गीतों के वीडियो गीतों के बोलों के साथ पोस्ट करता हूँ। मेरी पसंद की दूसरी बातों के बारे में मेरे ब्लौगर प्रोफाइल से जानकारी मिल सकती है। मेरा फ़ोन नम्बर है : 9868312120 और मेरा ई-मेल है : the.mishnish@gmail.com लगभग ३4 साल का हो गया हूँ और सिनेमाहाल में सैंकडों फिल्में देख चुका हूँ। चवन्नी-चैप पर बहुतों की यादें पढ़कर मैंने भी सोचा कि फिल्मों के बारे में कुछ लिखा जाए। मेमोरी मेरी पहले काफ

फ़िल्म समीक्षा:बिल्लू

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मार्मिक और मनोरंजक -अजय ब्रह्मात्मज शाहरुख खान की कंपनी रेड चिलीज ने प्रियदर्शन की प्रतिभा का सही उपयोग करते हुए बिल्लू के रूप में मार्मिक और मनोरंजक फिल्म पेश की है। विश्वनाथन की मूल कहानी लेकर मुश्ताक शेख और प्रियदर्शन ने पटकथा विकसित की है और मनीषा कोराडे ने चुटीले और सारगर्भित संवाद लिखे हैं। लंबे समय के बाद किसी फिल्म में ऐसे प्रासंगिक और दृश्य के अनुकूल संवाद सुनाई पड़े हैं। बिल्लू सच और सपने को मिलाती भावनात्मक कहानी है, जो एक स्तर पर दिल को छूती और आंखों को नम करती है। इस फिल्म का सच है बिल्लू, जिसे इरफान खान ने पूरे संयम से निभाया है। फिल्म का सपना साहिर खान है, जो शाहरुख खान की तरह ही अतिनाटकीय है। सच, सपना और कल्पना का घालमेल भी किया गया है। साहिर खान के रोल में शाहरुख खान को लेना और शाहरुख खान की अपनी फिल्मों को साहिर खान की फिल्मों के तौर पर दिखाना एक स्तर पर उलझन और भ्रम पैदा करता है। बिल्लू में ऐसी उलझन अन्य स्तरों पर भी होती है। फिल्म की कहानी उत्तरप्रदेश के बुदबुदा गांव में घटित होती है। उत्तर प्रदेश के गांव में नारियल के पेड़, बांध और पहाड़ एक साथ देखकर हैरानी

फ़िल्म समीक्षा:जुगाड़

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-अजय ब्रह्मात्मज निर्माता संदीप कपूर ने चाहा होगा कि उनकी जिंदगी के प्रसंग को फिल्म का रूप देकर सच, नैतिकता और समाज में प्रचलित हो रहे जुगाड़ को मिलाकर दर्शकों को मनोरंजन के साथ संदेश दिया जाए। जुगाड़ देखते हुए निर्माता की यह मंशा झलकती है। उन्होंने एक्टर भी सही चुने हैं। सिर्फ लेखक और निर्देशक चुनने में उनसे चूक हो गई। इरादे और प्रस्तुति के बीच चुस्त स्क्रिप्ट की जरूरत पड़ती है। उसी से फिल्म का ढांचा तैयार होता है। ढांचा कमजोर हो तो रंग-रोगन भी टिक नहीं पाते। जुगाड़ दिल्ली की सीलिंग की घटनाओं से प्रेरित है। संदीप कपूर की एक विज्ञापन कंपनी है,जो बस ऊंची छलांग लगाने वाली है। सुबह होने के पहले विज्ञापन कंपनी के आफिस पर सीलिंग नियमों के तहत ताला लग जाता है। अचानक विज्ञापन कंपनी सड़क पर आ जाती हैं और फिर अस्तित्व रक्षा के लिए जुगाड़ आरंभ होता है। इस प्रक्रिया में दिल्ली के मिजाज, नौकरशाही और बाकी प्रपंच की झलकियां दिखती है। विज्ञापन कंपनी के मालिक संदीप और उनके दोस्त आखिरकार सच की वजह से जीत जाते हैं। रोजमर्रा की समस्याओं को लेकर रोचक, व्यंग्यात्मक और मनोरंजक फिल्में बन सकती हैं

दरअसल:मनोरंजन जगत में कहां है मंदी?

-अजय ब्रह्मात्मज एक तरफ से देखें, तो मनोरंजन जगत भी मंदी की मार से नहीं बच सका है। कई फिल्मों का निर्माण रुक गया है। प्रोडक्शन कंपनियां निर्माणाधीन फिल्मों पर पुनर्विचार कर रही हैं। बजट कम किया जा रहा है। फिल्म स्टारों के पारिश्रमिक कतरे जा रहे हैं। मोटे तौर पर कहा जा रहा है कि फिल्म इंडस्ट्री सावधान हो गई है। मंदी की मार से खुद को बचाने के लिए सुरक्षा इंतजाम शुरू हो गए हैं। उसी के तहत सब कुछ दुरुस्त किया जा रहा है। अब दूसरी तरफ से देखें, तो कोई मंदी नहीं दिखाई पड़ती। फिल्म इंडस्ट्री का कारोबार बढ़ा है। पिछले तीन-चार महीनों में हिंदी फिल्मों का कलेक्शन ज्यादा हो गया है। इन महीनों में ही गजनी जैसी फिल्म आई, जिसने लगभग 240 करोड़ के कुल आय से नया रिकार्ड स्थापित कर दिया। मंदी के इस दौर में आय के रिकार्ड बन रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2008 के आखिरी तीन महीनों में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने 680 करोड़ रुपयों का बिजनेस किया। पिछले साल के पहले नौ महीनों में अधिकांश फिल्मों के फ्लॉप होने के कारण इंडस्ट्री में उदासी का माहौल था। अक्टूबर से दिसंबर के बीच की कामयाब फिल्मों ने इंडस्ट्री की उदास

हिन्दी टाकीज:तब मां भी साथ होती और सिनेमा भी-विनीत कुमार

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हिन्दी टाकीज-२४ विनीत कुमार मीडिया खासकर टीवी पर सम्यक और संयत भाव से लिख रहे हैं। समझने-समझाने के उद्देश्य से सकारात्मक सोच के साथ मीडिया के प्रभाव पर हिन्दी में कम लोग लिख रहे हैं.विनीत की यात्रा लम्बी है.चवन्नी की उम्मीद है कि वे भटकेंगे नहीं.विनीत के ब्लॉग का नाम गाहे-बगाहे है,लेकिन वे नियमित पोस्ट करते हैं.उनके ब्लॉग पर जो परिचय लिखा है,वह महत्वपूर्ण है...टेलीविजन का एक कट्टर दर्शक, कुछ भी दिखाओगे जरुर देखेंगे। इस कट्टरता को मजबूत करने के लिए इसके उपर डीयू से पीएच।डी कर रहा हूं। एम.फिल् में एफएम चैनलों की भाषा पर काम करने पर लोगों ने मुझे ससुरा बाजेवाला कहना शुरु कर दिया था,इस प्रसंग की नोटिस इंडियन एक्सप्रेस ने ली और इसके पीछे का तर्क भी प्रकाशित किया। मुझे लगता है कि रेडियो हो या फिर टीवी सिर्फ सूचना,मनोरंजन औऱ टाइमपास की चीज नहीं है,ये हमारे फैसले को बार-बार बदलने की कोशिश करते हैं,हमारी-आपकी निजी जिंदगी में इसकी खास दख़ल है। एक नयी संस्कृति रचते हैं जो न तो परंपरा का हिस्सा है और न ही विरासत में हासिल नजरियों का। आए दिन बदल जानेवाली एक सोच। इस सोच को समझने के लिए जरुरी है लगा

फ़िल्म समीक्षा:देव डी

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आत्मलिप्त युवक की पतनगाथा -अजय ब्रह्मात्मज घिसे-पिटे फार्मूले और रंग-ढंग में एक जैसी लगने वाली हिंदी फिल्मों से उकता चुके दर्शकों को देव डी राहत दे सकती है। हिंदी फिल्मों में शिल्प और सजावट में आ चुके बदलाव का सबूत है देव डी। यह फिल्म आनंद और रसास्वादन की पारंपरिक प्रक्रिया को झकझोरती है। कुछ छवियां, दृश्य, बंध और चरित्रों की प्रतिक्रियाएं चौंका भी सकती हैं। अनुराग कश्यप ने बहाना शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के देवदास का लिया है, लेकिन उनकी फिल्म के किरदार आज के हैं। हम ऐसे किरदारों से अपरिचित नहीं हैं, लेकिन दिखावटी समाज में सतह से एक परत नीचे जी रहे इन किरदारों के बारे में हम बातें नहीं करते। चूंकि ये आदर्श नहीं हो सकते, इसलिए हम इनकी चर्चा नहीं करते। अनुराग कश्यप की फिल्म में देव, पारो, चंदा और चुन्नी के रूप में वे हमें दिखते हैं। देव डी का ढांचा देवदास का ही है। बचपन की दोस्ती बड़े होने पर प्रेम में बदलती है। एक गलतफहमी से देव और पारो के रास्ते अलग होते हैं। अहंकारी और आत्मकेंद्रित देव बर्दाश्त नहीं कर पाता कि पारो उसे यों अपने जीवन से धकेल देगी। देव शराब, नशा, ड्रग्स, सेक्स वर्कर और दला

दरअसल:अक्षय, ऐश्वर्या और हेलन की सेवाएं

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-अजय ब्रह्मात्मज इस साल अक्षय कुमार, ऐश्वर्या राय बच्चन और हेलन को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। हर साल कुछ फिल्मकारों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है। अभी तक देश के 252 व्यक्तियों को पद्मविभूषण, 1033 व्यक्तियों को पद्मभूषण और 2188 व्यक्तियों को पद्मश्री से गौरवान्वित किया गया है। भारत रत्न के बाद केंद्र सरकार द्वारा दिया जाने वाला यह दूसरा बड़ा नागरिक सम्मान है। पद्म पुरस्कार से सम्मानित होने का मतलब है उक्त व्यक्ति ने अपने श्रेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया है और अपनी सेवाओं से समाज को लाभ पहुंचाया है। शीर्षक में मैंने सिर्फ अभिनेता-अभिनेत्रियों के नाम लिखे हैं। इस साल के पद्म पुरस्कारों से गौरवान्वित होने वालों में कुमार सानू, उदित नारायण, पीनाज मसानी और हृदयनाथ मंगेशकर भी हैं। इन सभी का भी फिल्मों से संबंध रहा है। इन दिनों हर पुरस्कार और सम्मान की घोषणा के पहले कयास आरंभ हो जाता है और ऐसा माना जाता है कि सत्ता के गलियारे में कुछ जोड़-तोड़ भी चलता रहता है। सुपौल जिले के उदित नारायण के नाम पर आपत्ति प्रकट की जा रही थी कि वे तो मूल रूप से नेपाली हैं। मालूम नहीं, उनके ज