Posts

मोबाइल से फिल्‍म बनाएं और दिखाएं

क्‍या आप फिल्‍ममेकर बनना चाहते हैं या और किसी रूप में सिनेमा से जुड़ना चाहते हैं। मन में यह डर है कि यह महंगा शौक है और आप सोच से ही निठलले हो रहे हैं। सक्रिय हों। टॉम क्रूज के साइट पर बहुत सही जानकारी दी गई हैं। चवन्‍नी यहां लिंक दे रहा है...आप खुद पढें और चालू हो जाएं... यह पहला भा्ग है। दूसरा भाग जल्‍दी ही... http://www.tomcruise.com/blog/2011/10/05/aspiring2actwritedirect-aspiring-mobile-filmmaker-guide-learn-how-to-make-professional-quality-films-with-a-smartphone-or-tablet-computer/

फिल्म समीक्षा : लव ब्रेकअप्‍स जिंदगी

Image
प्रोफेशन बनाम इमोशन -अजय ब्रह्मात्‍मज साहिल संघा की इस फिल्म के हीरो-हीरोइन जायद खान और दीया मिर्जा हैं। दोनों फिल्मी टाइप किरदार हैं। उन्हें एक-दूसरे के प्रति प्यार का एहसास होता है और फिल्म के अंत तक अपनी झिझक और झेंप में वे उलझे रहते हैं। लव बेकअप्स और जिंदगी को थोड़े अलग नजरिए से देखें तो ध्रुव (वैभव तिवारी) और (राधिका) पल्लवी शारदा ज्यादा तार्किक और आधुनिक यूथ के रूप में उभरते हैं। अगर उन दोनों को नायक-नायिका के तौर पर पेश किया जाता तो बात ही अलग होती। दोनों इमोशनल होने के साथ समझदार भी हैं, लेकिन हिंदी फिल्मों में नायक-नायिका होने के लिए जरूरी है कि आप रोमांटिक हों। अगर आप व्यावहारिक, तार्किक और प्रोफेशनल हुए तो उसे निगेटिव और ग्रे बनाने-समझाने में हमारे निर्देशक और दर्शक नहीं चूकते। बहरहाल, साहिल संघा ने रिश्तों और प्रेम की इस कहानी को पारंपरिक ढांचे में ढालने की कोशिश की है। फिल्म इंटरवल के पहले काफी लंबी खिंच गई है। किरदारों को स्थापित करने में इतना समय न लेकर लेखक-निर्देशक सीधे रिश्तों की उलझन और प्रेम के एहसास पर आ जाते तो कहानी सिंपल और सटीक हो जाती। फिल्म में सब क

फिल्‍म समीक्षा : रासकल्‍स

Image
- बड़े पर्दे पर बदतमीजी अजय ब्रह्मात्‍मज सफल निर्देशक अपने करियर की सीढि़यां उतरते समय कितने डगमगाते और डांवाडोल रहते हैं? कम से कम डेविड धवन के उतार को समझने केलिए रास्कल्स देखी जा सकती है। उन्हें संजय दत्त और अजय देवगन जैसे लोकप्रिय अभिनेताओं के साथ कंगना रनौत भी मिली हैं, लेकिन फिल्म भोंडे़पन और अश्लीलता से बाहर नहीं निकल पाती। मुमकिन है डेविड धवन के निर्देशन में ऐसा उतार पहले भी आया हो, लेकिन वे साधारण किस्म की मनोरंजक कामेडी फिल्मों के उस्ताद तो थे। चेतन और भगत दो ठग हैं। सचमुच पॉपुलर लेखक चेतन भगत फिल्म इंडस्ट्री में मजाक के पात्र बन चुके हैं। इन किरदारों का नाम सलीम और जावेद या जुगल और हंसराज रख दिया जाता तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता। चेतन और भगत एक-दूसरे को ठगते और क्लाइमेक्स में ठगी में पार्टनर बनते हुए अपने-अपने तरीके से कंगना रनौत को फांसने का प्रयास करते हैं। लतीफे, चुहलबाजी, छेड़खानी और ठगी को लेकर बनी यह फिल्म बड़े पर्दे पर जारी बड़े स्टारों की बदतमीजी का ताजा नमूना है। अनुभवी और सीनियर स्टार संजय दत्त और अजय देवगन की कंगना रनौत के साथ की गई ऊलजलूल और अ

इंडिपेंडेट सिनेमा -अनुराग कश्‍यप

Image
इन दिनों इंडिपेंडेट सिनेमा की काफी बातें चल रही हैं। क्या है स्वतंत्र सिनेमा की वास्तविक स्थिति? बता रहे हैं अनुराग कश्यप.. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के व्यापक परिदृश्य पर नजर डालें तो इंडिपेंडेट फिल्ममेकिंग की स्थिति लचर ही है। फिल्म बनने में दिक्कत नहीं है। फिल्में बन रही हैं, लेकिन उनके प्रदर्शन और वितरण की बड़ी समस्या है। आप पिछले दो सालों की फिल्मों की रिलीज पर गौर करें तो पाएंगे कि जब बड़ी और कामर्शियल फिल्में नहीं होती हैं, तभी एक साथ दस इंडिपेंडेट फिल्में रिलीज हो जाती हैं। या फिर जब ऐसा माहौल हो कि बड़ी फिल्में किसी वजह से नहीं आ रही हों तो इकट्ठे सारी स्वतंत्र फिल्में आ जाती हैं। नतीजा यह होता है कि इन फिल्मों को कोई देख नहीं पाता है। दर्शक नहीं मिलते। आप इतना मान लें कि इंडिपेंडेट फिल्ममेकिंग को मजबूत होना है तो उसे तथाकथित 'बॉलीवुड' के ढांचे से बाहर निकलना होगा। आप आइडिया के तौर पर घिसी-पिटी फिल्में बना रहे हैं तो हिंदी फिल्मों के ट्रेडिशन से कहां अलग हो पाए? सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री के पैसे नहीं लगने या स्टार के नहीं होने से फिल्म इंडिपेंडेट नहीं हो जाती। बॉलीवुड के बर्डन

फिल्म समीक्षा : मौसम

Image
कठिन समय में प्रेम -अजय ब्रह्मात्मज पंकज कपूर की मौसम मिलन और वियोग की रोमांटिक कहानी है। हिंदी फिल्मों की प्रेमकहानी में आम तौर पर सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं की पृष्ठभूमि नहीं रहती। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक और गंभीर अभिनेता जब निर्देशक की कुर्सी पर बैठते हैं तो वे अपनी सोच और पक्षधरता से प्रेरित होकर अपनी सृजनात्मक संतुष्टि के साथ महत्वपूर्ण फिल्म बनाने की कोशिश करते हैं। हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय ढांचे और उनकी सोच में सही तालमेल बैठ पाना मुश्किल ही होता है। अनुपम खेर और नसीरुद्दीन शाह के बाद अब पंकज कपूर अपने निर्देशकीय प्रयास में मौसम ले आए हैं। पंकज कपूर ने इस प्रेमकहानी के लिए 1992 से 2002 के बीच की अवधि चुनी है। इन दस-ग्यारह सालों में हरेन्द्र उर्फ हैरी और आयत तीन बार मिलते और बिछुड़ते हैं। उनका मिलना एक संयोग होता है, लेकिन बिछुड़ने के पीछे कोई न कोई सामाजिक-राजनीतिक घटना होती है। फिल्म में पंकज कपूर ने बाबरी मस्जिद, कारगिल युद्ध और अमेरिका के व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर के आतंकी हमले का जिक्र किया है। पहली घटना में दोनों में से कोई भी शरीक नहीं है। दूसरी घटना में हैरी

मौसम में मुहब्बत है-सोनम कपूर

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज मौसम को लेकर उत्साहित सोनम कपूर को एहसास है कि वह एक बड़ी फिल्म का हिस्सा हैं। वे मानती हैं कि पंकज कपूर के निर्देशन में उन्हें बहुत कुछ नया सीखने को मिला.. आपके पापा की पहली फिल्म में पंकज कपूर थे और आप उनकी पहली फिल्म में हैं..दो पीढि़यों के इस संयोग पर क्या कहेंगी? बहुत अच्छा संयोग है। उम्मीद है पापा की तरह मैं भी पंकज जी के सानिध्य में कुछ विशेष दिखूं। मौसम बहुत ही इंटेंस लव स्टोरी है। जब मुझे आयत का किरदार दिया गया तो पंकज सर ने कहा था कि इसके लिए तुम्हें बड़ी तैयारी करनी होगी। पहले वजन कम करना होगा, फिर वजन बढ़ाना होगा। बाडी लैंग्वेज चेंज करनी पड़ेगी। ज्यादा मेकअप नहीं कर सकोगी। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया रही? मैंने कहा कि इतना अच्छा रोल है तो मैं सब कुछ कर लूंगी। इस फिल्म में चार मौसम हैं। मैंने हर सीजन में अलग उम्र को प्ले किया है। इस फिल्म में मैं पहले पतली हुई, फिर मोटी और फिर और मोटी हुई। अभी उसी वजन में हूं। वजन कम नहीं हो रहा है। वजन का खेल आपके साथ चलता रहा है। पहले ज्यादा फिर कम..। बार-बार वजन कम-ज्यादा करना बहुत कठिन होता है। पहले तो अपनी लांचिंग फिल्

मुझे हंसी-मजाक करने में मजा आता है-जूही चावला

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज कलर्स पर आज से बच्चों के लिए जूही चावला लेकर आ रही हैं 'बदमाश कंपनी'। शो में वह नजर आएंगी होस्ट की भूमिका में.. क्या है 'बदमाश कंपनी'? 'बदमाश कंपनी' का टाइटल मुझे अच्छा लगा है। शीर्षक से ही जाहिर है कि यह सीधा-स्वीट प्रोग्राम नहीं है। इसमें शरारत है। इस प्रोग्राम को देखते हुए आप हंसेंगे जरूर। बच्चे कभी-कभी अपनी बातों से हमें शर्मिदा या चौंकने पर मजबूर कर देते हैं। वे कुछ सोच कर वैसा नहीं बोलते। सच्चे मन से बोल रहे होते हैं। वे कभी-कभी ऐसी बातें बोल देते हैं, जो आप सोच भी नहीं सकते। जब वे थोड़े बड़े हो जाते हैं, तो फिर हम उन्हें अपनी तरह बना देते हैं। फिर वे सोच कर बोलते हैं और सही चीजें ही बोलते हैं। आप इस 'बदमाश कंपनी' में क्या कर रही है? आप मुझे उनके साथ प्रैंक करते देखेंगे। बंद कमरे में एक सेगमेंट है। फिर एक सेगमेंट बच्चों और पैरेंट्स का है। आपको लगता है कि आप अपने बच्चे को जानते हैं, तो फिर चेक कर लेते हैं कि आप कितना जानते हैं? छोटे-छोटे गेम्स होंगे और फिर हम बच्चों और पैरेंट्स से उनके बारे में पूछेंगे। हमने जवाब पहले से रिकार्ड कर

अब बीवी रोती-बिसूरती नहीं है-तिग्‍मांशु धूलिया

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ साहब बीवी और गैंगस्टर ’ ़ ़ ़ इस फिल्म का नाम सुनते ही गुरुदत्त अभिनीत ‘ साहब बीवी और गुलाम ’ की याद आती है। 1962 में बनी इस फिल्म का निर्देशन अबरार अल्वी ने किया था। इस फिल्म में छोटी बहू की भूमिका में मीना कुमारी ने अपनी जिंदगी के दर्द और आवाज को उतार दिया था। उस साल इस फिल्म को चार फिल्मफेअर पुरस्कार मिले थे। यह फिल्म भारत से विदेशी भाषा की कैटगरी में आस्कर के लिए भी भेजी गई थी। इस मशहूर फिल्म के मूल विचार लेकर ही तिग्मांशु धूलिया ने ‘ साहब बीवी और गैंगस्टर ’ की कल्पना की है। तिग्मांशु धूलिया के शब्दों में , ‘ हम ने मूल विचार पुरानी फिल्म से ही लिया है। लेकिन यह रिमेक नहीं है। हम पुरानी फिल्म से कोई छेड़छाड़ नहीं कर रहे हैं। ‘ साहब बीवी और गैंगस्टर ’ संबंधों की कहानी है , जिसमें सेक्स की राजनीति है। यह ख्वाबों की फिल्म है। जरूरी नहीं है कि हर आदमी मुख्यमंत्री बनने का ही ख्वाब देखे। छोटे ख्वाब भी हो सकते हैं। कोई नवाब बनने के भी ख्वाब देख सकता है। ’ इस फिल्म में गुलाम की जगह गैंगस्टर आ गया है। उसके आते ही यह आंसू और दर्द की कहानी र

केरल के ममूटी

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके और बाबा साहेब अंबेडकर की भूमिका निभा चुके ममूटी की तस्वीर दिखाकर भी उनका नाम पूछा जाए, तो उत्तर भारत में बहुत कम फिल्मप्रेमी उन्हें पहचान पाएंगे। हिंदी सिनेमा के दर्शक अपने स्टारों की दुनिया से बाहर नहीं निकल पाते। पत्र-पत्रिकाओं में भी दक्षिण भारत के कन्नड़, तमिल, मलयाली या तेलुगू स्टारों पर हमारा ध्यान नहीं जाता। हम हॉलीवुड की फिल्मों और स्टारों से खुश होते हैं। यह विडंबना है। ममूटी ने दक्षिण के दूसरे पॉपुलर स्टारों की तरह हिंदी में ज्यादा फिल्में नहीं की हैं। हिंदी फिल्मों के निर्देशक उनके लिए भूमिकाएं नहीं चुन पाते। मैंने तो यह भी सुना है कि हिंदी के कुछ पॉपुलर स्टार दक्षिण के प्रतिभाशाली स्टारों के साथ काम करने से घबराते हैं। उन्हें डर रहता है कि उनकी पोल प˜ी खुल जाएगी। उल्लेखनीय है कि दक्षिण के स्टारों के पास अपनी भाषा में ही इतना काम रहता है कि वे हिंदी की तरफ देखते भी नहीं। प्रतिष्ठा, फिल्में और पैसे हर लिहाज से वे संपन्न हैं तो भला क्यों मुंबई आकर प्रतियोगिता में खड़े हों? बहरहाल, पिछले 7 सितंबर को ममूटी का जन्मदिन था। अब वे सा

स्‍टैंड आउट करेगी 'मौसम'-शाहिद कपूर

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज समाज के बंधनों को पार करती स्वीट लव स्टोरी है 'मौसम'। मैं हरिंदर सिंह उर्फ हैरी का किरदार निभा रहा हूं। कहानी पंजाब के एक छोटे से गांव से शुरू होती है। हरिंदर की एयरफोर्स में नौकरी लगती है। जैसे-जैसे मैच्योरिटी के ग्राफ में अंतर आता है, आयत से उसका प्यार भी उतना ही खूबसूरत अंदाज लेता जाता है। ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में 'मौसम' के शुद्ध प्यार से दर्शक जुड़ पाएंगे क्या? कुछ साल पहले जब मैंने 'विवाह' की थी, तब भी ऐसे सवाल उठे थे कि क्या कोई पति ऐसी पत्नी को स्वीकार करेगा जिसका चेहरा झुलस गया हो? ऐसी फिल्में बननी कम हो गई हैं। मुझे लगता है कि 'मौसम' स्टैंड आउट करेगी। इसमें लड़का-लड़की मिलना चाहते हैं, लेकिन दूसरे कारणों से वे मिल नहीं पाते। दुनिया में कई ऐसी चीजें घटती हैं, जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं रहता, लेकिन उनकी वजह से हमारा जीवन प्रभावित होता है। फिल्म के प्रोमो में आप और सोनम एक-दूसरे को ताकते भर रहते हैं..मिलने की उम्मीद या जुदाई ही दिख रही है? मिलना और बिछुड़ना दोनों ही हैं फिल्म में। 1992 से 2001 तक दस साल की कहानी है। छोटे शहरों म