Posts

बांबे टाकीज का शीर्षक गीत

Image
 हिंदी फिल्‍मों के सितारों पर चित्रित बांबे टाकीज का शीर्षक गीत भारतीय सिनेमा तो क्‍या हिंदी सिनेमा को भी परिभाषित नहीं कर रहा है। हां हम जिसे कथित बालीवुड कहते हैं। उसके रूंप-रंग का जरूर बखान करता है यह गीत। जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां अरे हम हैं वहीं, हम थे जहां सौ बरस का हुआ फिर भी है जवां अपना सिनेमा रहेगा सदा ही यह जवां पर्दे पर चमत्‍कार है यह चढ़ता सा बुखार है सर पे जुनून सवार है ख्‍वाबों का कारोबार है एक्‍शन इमोशन आप चुन लो सब हिट है चाहे फ्लॉप सुन लो दिल का छेड़ेंगे तार सुन लो देखेंगे बारम्‍बार सुन लो ये रिश्‍तों का संगम है अपना बांबे टाकीज बांबे बांबे टाकीज बांबे बांबे टाकीज सब कहते मायाजाल है यह जो भी है कमाल है जो फिल्म ना हो यार सुन लो तो जीना हो बेकार सुन लो     हर दिल की धड़कन है अपना बांबे टॉकीज यह सिखलाती है प्यार सुन लो ढिशुम ढिशुम मार सुन लो सेल्‍युलाइट डिजिटल अपना बांबे टॉकीज टॉकीज टॉकीज टॉकीज टॉकीज पिक्‍चर की कल्‍चर है अपना बांबे टाकीज ठुमका है झुमका है अपना बांबे टाकीज हो लटका है झटका है अपना बांबे टाकीज रॉकिंग ह

हकीकत और फसानों की एक सदी : तब्बसुम

Image
आप उन्हें बेबी तब्बसुम के नाम से जानते हैं. टेलीविजन के इतिहास में शायद ही किसी सेलिब्रिटी टॉक शो को इतनी लोकप्रियता मिली होगी जितनी फूल खिले हैं गुलशन गुलशन को मिली थी. 21 सालों तक लगातार बेबी तब्बसुम के संचालन में इस शो का प्रसारण किया जाता रहा. इस शो की लोकप्रियता की खास वजह यह थी कि इस शो में हिंदी सिनेमा जगत की लगभग सारी हस्तियां शामिल होती थीं और सभी बहुत अनौपचारिक बातें किया करते थे. चूंकि खुद बेबी तब्बसुम भी ढाई साल की उम्र से ही हिंदी सिने जगत का हिस्सा थीं. तब्बसुम ने अपने 67 साल इस इंडस्ट्री को दिये हैं. वे हिंदी सिनेमा की रग रग से वाकिफ हैं. हर सदी से वाकिफ हैं.  ऐसे में जब भारतीय सिनेमा 100वें साल में प्रवेश कर रहा है, तो बेबी तब्बसुम ने बेहतरीन शख्सियत और कौन होतीं. हिंदी सिनेमा व हिंदी सिने जगत की हस्तियों के साथ पली बढ़ी तब्बसुम की जिंदगी सिनेमा में ही रची बसी है. हिंदी सिनेमा के  100 साल के अवसर पर बेबी तब्बसुम ने अपनी यादों के पिटारे में से हस्तियों के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े कुछ ऐसी ही दिलचस्प किस्से अनुप्रिया अनंत से सांझा कीं... आधी इंडस्

शमशाद बेगम : खामोश हो गयी खनकती शोख आवाज

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     1932 में सिर्फ 13 साल की उम्र में शमशाद बेगम ने गुलाम हैदर के संगीत निर्देशन में पंजाबी गीत ‘हथ जोड़ा पंखिया दा’ गाया था। इसके आठ सालों के बाद उन्होंने पंचोली आर्ट फिल्म की ‘यमला जट’ के लिए पहला पाश्र्व गायन किया। यह प्राण की पहली फिल्म थी। प्राण 3 मई को दादा साहेब फालके पुरस्कार से सम्मानित होंगे। पंचोली की फिल्मों में वह नूरजहां के साथ गाने गाती रहीं। उन दिनों लता मंगेशकर ने शमशाद बेगम के साथ कोरस गायन किया और फिर  मशहूर होने के बाद लता मंगेशकर ने उनके साथ अनेक डुएट (दोगाने) गाए। उनके संरक्षक संगीत निर्देशक गुलाम हैदर को शमशाद बेगम की आवाज में झरने की गति और सहजता दिखती थी तो ओ पी नय्यर को उनकी आवाज मंदिर की घंटी से निकली गूंज की तरह लगती थी। शमशाद की आवाज पतली नहीं थी। वह खुले गले से गाती थीं। किशोर उम्र का चुलबुला कंपन से उनके गाए गीतों के शब्द कानों में अठखेलियां करते थे। आजादी के पहले की वह अकेली आवाज थीं,जो लता मंगेशकर की गायकी का साम्राज्य स्थापित होने पर भी स्वायत्त तरीके से श्रोताओं का चित्त बहलाती रहीं। उन्होंने 1972 में ‘बांके लाल’ के लिए आखिरी गीत

फिल्म रिव्यू : आशिकी २

  दो दशक पहले आई आशिकी में आशिक की मोहब्बत और जिंदगी का मकसद कुछ और था। अपने उद्दाम प्रेम और सोच से वह सब कुछ हासिल कर सका और विजयी रहा। आशिकी 2 में भी आशिक की मोहब्बत और जिंदगी का एक मकसद है। इस बार भी उद्दाम प्रेम है। यह 21 वीं सदी का दूसरा दशक है। इस समय ऐसी मोहब्बत की हम कल्पना नहीं कर सकते, इसलिए आशिकी 2 स्वाभाविक नहीं लगती। फिल्म की हीरो अपनी हताश हरकतों से हमें निराश करता है। वह विजयी नहीं है। अपनी माशूका के लिए उठाया गया उसका कदम वाजिब तो हरगिज नहीं कहा जा सकता। वह हमें प्रेरित नहीं करता। वह उदास करता है। मोहित सूरी ने 21 वीं सदी में प्रेम की उदास कहानी कही है। इस कहानी में परंपरा में मिले त्याग और बलिदान का टच है, लेकिन क्या आज ऐसा होता है या हो सकता है? राहुल के करिअर में आया उफान उतार पर है। वह चिड़चिड़ा और तुनकमिजाज हो चुका है। अपनी असुरक्षा में वह हारे हुए कलाकारों की तरह आत्महंता व्यवहार करता है। वह खोई कामयाबी तो चाहता है, लेकिन सृजन के प्रति आवश्यक समर्पण खो चुका है। उसे आरोही की आवाज असरदार लगती है। वह उसे सही मुकाम तक लाने की कोशिश में लग जाता है। फिल

है सुकून विद्या बालन की जिंदगी में

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     विद्या बालन की शादी हो चुकी है। वह अपने पति सिद्धार्थ राय कपूर के साथ जुहू में समुद्र किनारे के एक अपार्टमेंट में रहती हैं। घर बसाने के बाद वह घर सजा रही हैं। यह उनका अपना बसेरा है। इस बसेरे में सुकून है। अब वह यहीं रहती है। शादी के बाद जिंदगी बदल रही है। रूटीन बदल रहा है। मां-बहन की सिखायी सुनायी बातों के अर्थ अब खुल रहे हैं। किसी और के साथ होने से सोच बदलती है। और उसी के साथ रहने से बहुत कुछ बदल जाता है। आचार, व्यवहार, सोना, जागना, खाना-पीना और भी बहुत कुछ। अभी तक भारतीय समाज में लड़कियां ही अपना घर छोड़ती हैं। एक नए परिवार के साथ रिश्ते बनाती हैं। अगर नवदंपति ने स्वतंत्र और परिवार से अलग रिहाइश रखी तो भी लडक़े के परिवार से अधिक करीबी और भागीदारी होती है। धीरे-धीरे मायका छूट जाता है। लडक़ी एक नए परिवार में प्रत्यारोपित हो जाती है। आरंभिक उलझनों और सामंजस्य के बाद जीवन का नया अध्याय आरंभ होता है।     विद्या बालन के जीवन का नया अध्याय आरंभ हो चुका है। अब वह नए बसेरे से ही शूटिंग, इवेंट और मेलजोल के लिए निकलती हैं और फिर लौट कर यहीं आती हैं। कुंवारी जिंदगी बंद कमर

अफवाहें हंसने के लिए होती हैं- सोनाक्षी सिन्हा

Image
सोनाक्षी सिन्हा की ब्लॉकबस्टर सफलता का सीक्रेट जानने की रघुवेन्द्र सिंह ने कोशिश की 'रामायण' कभी केवल शत्रुघ्न सिन्हा का पता हुआ करता था. इस बंगले का नाम लेते ही लोग आपको उनके घर तक पहुंचा देते थे. मगर वक्त के साथ दो चीजें परिवर्तित हो चुकी हैं. पहली- अब बंगले के स्थान पर एक सात मंजिला आलीशान इमारत खड़ी हो चुकी है और दूसरी- अब इसमें केवल एक नहीं, बल्कि दो स्टार रहते हैं. जुहू स्थित 'रामायण' वर्तमान की लोकप्रिय अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा का भी पता बन चुका है. शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने बेटे लव, कुश और बेटी सोनाक्षी सिन्हा को एक-एक फ्लोर दे दिया है, जिसकी आंतरिक साज-सज्जा आजकल वे स्वेच्छा से करने में जुटे हैं. लिफ्ट के जरिए हम सातवें फ्लोर पर पहुंचते हैं, तो सोनाक्षी की करीबी दोस्त और मैनेजर भक्ति हमारा स्वागत करती हैं. कुछ ही पल के बाद सोनाक्षी हाजिर होती हैं और फिल्मफेयर हिंदी की तरक्की के बारे में चर्चा करती हैं. आपको याद दिला दें कि दबंग गर्ल और अब राउड़ी गर्ल सोनाक्षी सिन्हा फिल्मफेयर हिंदी की पहली कवर गर्ल थीं. अनौपचारिक बातचीत के बाद हमने सवाल

फिल्‍म समीक्षा : एक थी डायन

Image
यह किस्सा है। यह खौफ है। यह विभ्रम है। यह हॉरर फिल्म है। यह सब का मिश्रण है। क्या है 'एक थी डायन' एकता कपूर और विशाल भारद्वाज की प्रस्तुति एक थी डायन के निर्देशक कन्नन अय्यर हैं। इसे लिखा है मुकुल शर्मा और विशाल भारद्वाज ने। उन्होंने भारतीय समाज में प्रचलित डायन कथा को नया आयाम दिया है। मुख्यधारा के चर्चित कलाकारों को प्रमुख भूमिकाएं सौंप कर उन्होंने दर्शकों को भरोसा तो दे ही दिया है कि यह हिंदी में बनी आम हॉरर फिल्म नहीं है। हां,इसमें इमरान हाशमी हैं। उनके साथ कोंकणा सेन शर्मा,कल्कि कोइचलिन और हुमा कुरेशी भी हैं। संयोग ऐसा हुआ कि इस फिल्म का क्लाइमेक्स मैंने पहले देख लिया और फिर पूरी फिल्म देखी। इसके बावजूद फिल्म में रुचि बनी रही और मैं उस क्षण की प्रतीक्षा करता रहा जहां फिल्म चौंकाती है। अप्रत्याशित घटनाएं हमेशा रोचक और रोमांचक होती हैं। फिल्म जादू“र बोबो इमरान हाशमी के मैजिक शो से आरंभ होती है। बोबो को मतिभ्रम होता है कि उसे कोई अनदेखी शक्ति तंग कर रही है। तार्किक जादूगर अपने मनोवैज्ञानिक मित्र की मदद लेता है। प्निोसिस के जरिए अपने अतीत में पहुंचने पर उसे

धारा के खिलाफ इरफान - अनुप्रिया वर्मा

Image
अनुप्रिया वर्मा पीढ़ीगत सीमाओं के बावजूद उत्‍तरोत्‍तर तीक्ष्‍ण और सारगर्भित लिख रही हैं। यह लेख उनके ब्‍लॉग अनुख्‍यान से साधिकार चवन्‍नी के पाठकों कें लिए लिया गया है। कुछ लोग इसे प्रभात खबर में पढ़ चुके होंगे। आप पढ़ें और इस लेख की कमियां बताएं। कमियां न सूझें तो तारीफ जरूर करें। और हां उनके ब्‍लॉग अनुख्‍यान पर यहां से जा सकते हैं। पान सिंह तोमर के लिए वर्ष 2012 का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्टÑीय पुरस्कार पानेवाले इरफान की अदाकारी की पूरी दुनिया मुरीद है. एक ऐसे समय में जब सिनेमा का आंकलन 100 करोड़ क्लब के आधार पर किया जा रहा है. इरफान हिंदी सिनेमा की उस अल्पसंख्यक बिरादरी के सदस्य के तौर पर हमसे रूबरू होते हैं, जो यहां मुख्यत: कलात्मक कमिटमेंट के कारण टिके हैं. जो कला को सिर्फ पैसे कमाने का जरिया न मानकर अपने आप में उपलब्धि मानते हैं. इरफान की सफलता ऐसे सभी लोगों के लिए खुशी मनाने का मौका है, जो धारा के खिलाफ चलने में विश्वास रखते हैं. जो धारा में बहने नहीं बल्कि धारा बनने में यकीन करते हैं.धारा के खिलाफ नयी धारा गढ़ते इरफान पर यह आवरण कथा.  वर्ष 2012 में रिलीज हु

आलिया भट्ट

Image
आलिया भट्ट के प्रशंसकों के लिए उनके पिता महेश भट्ट की भेंट...उन्‍होंने आज सुबह ट्विट किया...Not in our wildest dream did we imagine that this 'Sumo wrestler' would transform herself into ALIA BHATT

पिता पुत्र की डबल कामयाबी

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे पुराने कपूर परिवार की चौथी पीढ़ी के रणबीर कपूर और करीना कपूर लोकप्रिय और सक्रिय हैं। प्रेम और शादी की व्यस्तताओं से करीना कपूर करिअर पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे सकीं तो उनकी पिछली कुछ फिल्मों का बाक्स आफिस प्रदर्शन बुरा हुआ। अभी वह प्रकाश झा की ‘सत्याग्रह’  कर रही हैं। उम्मीद है कि प्रकाश झा की रियलस्टिक सिनेमा में वह ‘चमेली’ और  ‘ओमकारा’ की तरह अपना वास्तविक प्रभाव दिखा सकेंगी। उनके चचेरे भाई रणबीर कपूर इन दिनों दर्शकों के दिलों की धडक़न बने हुए हैं। अभिनय, अपीयरेंस, व्यवहार, बातचीत और विनम्रता से उन्होंने सभी को आकर्षित कर रखा है। अच्छी बात है कि वे अपनी भूमिकाओं में निरंतर प्रयोग कर रहे हैं। ‘रॉकस्टार’ के बाद ‘बर्फी’ की विविधता से उन्होंने प्रशंसा और पुरस्कार दोनों बटोरे। हालांकि ‘बर्फी’ में कुछ विदेशी फिल्मों के दृश्यों की नकल से विवाद उठा, लेकिन रणबीर कपूर के परफारमेंस में किसी को कभी नहीं दिखाई दी।     रणबीर कपूर और करीना के पिता ऋषि कपूर और रणधीर कपूर अपने समय के लोकप्रिय अभिनेता रहे हैं। ऋषि कपूर ने अभिनय जारी रखा। रणधीर कपूर थो