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शत्रुघ्‍न सिन्‍हा से बातचीत

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शत्रुघ्‍न सिन्‍हा से हुई बातचीत का आखिरी अंश...यह बातचीत पुानी है,लेकिन शत्रुघ्‍न सिन्‍हा की सोच और समझदारी को ऐतिहासिक संदर्भ देती है।  - अच्छा अगर हम मान लें आप बिहार के मुख्य मंत्री होने जा रहे हैं तो बिहार की तीन महत्वपूर्ण समस्या क्या होगी जिसे आप खत्म करेंगे ? 0 आप ये मान कर चले रहे हैं कि मैं मुख्यमंत्री बनूंगा परंतु मैं एक आम नागरिक के तरह बात कर रहा हूं। भारतीय जनता पार्टी के एक पदाधिकारी या कार्यकर्ता हैसियत से बात कर रहा हूं। ये आपका बड़प्पन है कि आपने मुझे सम्मान दिया तीनों चीजें एक दूसरे जुड़ी हुई है अलग नहीं हैं वे एक दूसरे की पूरक हैं दरअसल मैं चार चीज कहूंगा पर चारों एक दूसरे से जुड़ी हुई है सबसे पहले शांति अगर होगी तब लोग सुरक्षित महसूस करेंगे। सुरक्षित जब महसूस करेंगे तभी विकास होगा। विकास होगा तभी प्रगति होगी। विकास होगा तभी गरिमा आएगी। खुशहाली आएगी। ये चार चीज है शांति , सुरक्षा , विकास और गरिमा चारों अलग-अलग ले लें, परंतु चारों एक दूसरे से जुड़ी हुई है तब तक शांति नहीं होगी जातिवाद खत्म नहीं होगा। दहशत की आंधी खत्म नहीं होगी लोग एक गांव से दूसरे गांव तक

फिल्‍म समीक्षा : चेन्‍नई एक्‍सप्रेस

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  रोहित शेट्टी और शाहरुख खान की फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' इस जोनर की अन्य फिल्मों की तरह ही समीक्षा से परे हैं। ऐसी फिल्मों में बताने, समझने और समझाने लायक गुत्थियां नहीं रहतीं। फिल्म सरल होती हैं और देश के आम दर्शकों से सीधा संबंध बनाती हैं। फिल्म अध्येताओं ने अभी ऐसी फिल्मों की लोकप्रियता के कारणों को नहीं खोजा है। 'चेन्नई एक्सप्रेस' आमिर खान की 'गजनी' और रोहित शेट्टी की 'गोलमाल' से हुई धाराओं का संगम है। यह एंटरटेनिंग है। रोहित शेट्टी की फिल्मों में उदास रंग नहीं होते। लाल, गुलाबी, पीला, हरा अपने चटकीले और चटखीले शेड्स में रहते हैं। कलाकारों के कपड़ों से लेकर पृष्ठभूमि की प्रापर्टी तक में यह कंटीन्यूटी बनी रहती है। सारे झकास रंग होते हैं और बिंदास प्रसंग रहते हैं। 'चेन्नई एक्सप्रेस' में पहली बार शाहरुख खान और रोहित शेट्टी साथ आए हैं। शुक्र है कि रोहित शेट्टी ने उन्हें अजय देवगन जैसे सीक्वेंस नहीं दिए हैं। अजय और रोहित की जोड़ी अपनी मसखरी में भी सौम्य बनी रहती है। यहां कोई बंधन नहीं है। हास्य दृश्यों में शा

तमगा नहीं हो सकता मेरे लिए मुख्‍यमंत्री पद-शत्रुघ्‍न सिन्‍हा

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 शत्रुघ्‍न सिन्‍हा यह इंटरव्‍यू उनके राज्‍य सभा सदस्‍य चुने जाने के समय किया गया था। राजनीति के छात्र और पत्रकारों के लिए यह उपयोगी हो सकता है। पुरानी फाईल से इसे निकाल रहा हू। कल अगला और अंतिम हिसा पोस्‍ट करूंगा। -अजय ब्रह्मात्‍मज - पहली बार किस राजनीतिज्ञ से मिले ? 0 पहली बार जिन्हें देखा और उनके साथ तस्वीर भी खिचवाई और वे बहुत अच्छे भी लगे,वे थे जवाहर लाल नेहरू। बहुत छोटा था बच्चा था , राज भवन में मिलने गया था। बालकनजी बाड़ी की ओर से मैं चार खने की बुश्‍शर्ट पहने था। और उनसे मुलाकात हुई भारत के प्रधानमंत्री से अपने आप को बड़ा भाग्यशाली समझा तस्वीर भी खिंचवाई हवा में उड़ता रहा। फोटो के छपने और प्रिंट आने का इंतजार करता रहा। चाचा नेहरू की उनकी छवि थी। वैसी छवि पेश की गई थी अब जैसे अमिताभ बच्चन को एंग्री यंग मैन राजेश खन्ना को सुपर स्टार और मुझे शॉटगन कहा जाता है। उसी तरह वह चाचा नेहरू थे। उन से मिलकर मैं बहुत उल्लास और जोश में रहा,लेकिन सबसे पहले जिसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ वे थे जयप्रकाश नारायण। ये सीतामढ़ी आए थे वहां मेरे चाचा पुलिस में थे। वे मुझे लेकर ग

दरअसल : कब बदलेगी वितरण प्रणाली (डिस्‍ट्रीब्‍यूशन सिस्‍टम)

-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्मों के बाजार के विकास के साथ इसकी वितरण प्रणाली तालमेल नहीं बिठा पा रही है। मल्टीप्लेक्स आने के बाद प्रदर्शन में सुधार हुआ है। अब वितरण में सुधार आवश्यक है। दर्शकों तक फिल्म पहुंचाने के तीन चरणों में निर्माण, वितरण और प्रदर्शन में वितरण ही वह कड़ी है, जो फिल्मों को थिएटर तक ले जाती है। फिल्मों के प्रदर्शन का विस्तार हो चुका है। अब केवल थिएटर ही माध्यम नहीं रह गया है। रिलीज होने के बाद हर फिल्म देर-सबेर सैटेलाइट, टीवी, इंटरनेट, मोबाइल, डीवीडी आदि के जरिए दर्शकों तक पहुंच रही है। आम दर्शक विभिन्न माध्यमों से फिल्में देख रहे हैं, जबकि पुरानी वितरण प्रणाली अभी तक थिएटर को ही ध्यान में रख कर रणनीति बनाती है। थिएटर रिलीज में भी बड़ी और महंगी फिल्में छोटी फिल्मों के शो निगल जाती हैं। सम्यक सोच और व्यवस्था के अभाव में छोटी फिल्में दर्शकों के बावजूद थिएटर से उतार दी जाती हैं। वक्त आ गया है कि निर्माता और फिल्मकार वितरण के आवश्यक सुधार पर ध्यान दें और पहल करें।     थिएटर में वीकएंड कलेक्शन पर जोर दिया जाता है। बड़ी फिल्मों के अधिकतम प्रिंट एक साथ जारी किए ज

फिल्‍मी जिज्ञासा 1 : 27 जुलाई 2013

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पिछले महीने 27 जुलाई को मैंने आप मित्रों की जिश्रासाओं के जवाब दिए थे।उन्‍हें यहां चवन्‍नी चैप ब्‍लॉग पर सहेज दिया है। भविष्‍य में किसी और के भी काम आ सकते हैं ये जवाब... Ajay Brahmatmaj Thakur Ashish Anand koi naya aadmi production me aana chahe to kya karna adega uske liye???  0 aajkal production ki padhayi bhi hoti hai.mumbai ke whistling wood mein hai.doosra tarika hai ki kisi production house ke saath judein aur kaam seekhein.aakhiri tarika hai ki aap ke paas paise hon aur aap producer ban jaayein. 28 July at 07:55 · Edited · Like · 2 Ajay Brahmatmaj Prashant Live सीनेमा के तकनीकी पक्षों तथा फिल्म निर्माण के अद्यतन हलचलों को समेटे को ढंग की पत्रिका हो तो बताएं। स्क्रीन या फिल्मफेयर छोडकर  0 अफसोस भारत में ऐसी नियमित पत्रिकाएं नहीं हैं। कुछ संस्‍थान निजी प्रयास से वर्ष में एक-दो बार पत्रिकाएं निकालती हैं। लेकिन आप गूगल की मदद से सब कुछ जान सकते हैं। तकनीकी ज्ञान तो संस्‍कृति और भाषा की सीमाओं से परे है। 28 July at 07:59 · Like