तमगा नहीं हो सकता मेरे लिए मुख्‍यमंत्री पद-शत्रुघ्‍न सिन्‍हा



 शत्रुघ्‍न सिन्‍हा यह इंटरव्‍यू उनके राज्‍य सभा सदस्‍य चुने जाने के समय किया गया था। राजनीति के छात्र और पत्रकारों के लिए यह उपयोगी हो सकता है। पुरानी फाईल से इसे निकाल रहा हू। कल अगला और अंतिम हिसा पोस्‍ट करूंगा।
-अजय ब्रह्मात्‍मज
- पहली बार किस राजनीतिज्ञ से मिले?
0 पहली बार जिन्हें देखा और उनके साथ तस्वीर भी खिचवाई और वे बहुत अच्छे भी लगे,वे थे जवाहर लाल नेहरू। बहुत छोटा था बच्चा था, राज भवन में मिलने गया था। बालकनजी बाड़ी की ओर से मैं चार खने की बुश्‍शर्ट पहने था। और उनसे मुलाकात हुई भारत के प्रधानमंत्री से अपने आप को बड़ा भाग्यशाली समझा तस्वीर भी खिंचवाई हवा में उड़ता रहा। फोटो के छपने और प्रिंट आने का इंतजार करता रहा। चाचा नेहरू की उनकी छवि थी। वैसी छवि पेश की गई थी अब जैसे अमिताभ बच्चन को एंग्री यंग मैन राजेश खन्ना को सुपर स्टार और मुझे शॉटगन कहा जाता है। उसी तरह वह चाचा नेहरू थे। उन से मिलकर मैं बहुत उल्लास और जोश में रहा,लेकिन सबसे पहले जिसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ वे थे जयप्रकाश नारायण। ये सीतामढ़ी आए थे वहां मेरे चाचा पुलिस में थे। वे मुझे लेकर गए थे। वहां देखा सौम्य शांत गोरे-चिट्टे . ; ; धूप पड़ने से उनका चेहरा लाल हो गया था। उनका मधुर स्वभाव धीरे-धीरे बातचीत बात करने का अंदाज उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ।फिर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई उनके बारे में जानकारी मिलती गई थोड़ा-थोड़ा समझता गया उसके बाद पढ़ता गया कुछ उनकी जुबानी, कुछ लोगों की जुबानी उनके बारे में। नि:स्वार्थ भाव से देश को दिशा देने का उनका अधिक प्रयास और उनका चिंतन,संघर्ष करने की क्षमता और सबसे बड़ी बात अपने लिए किसी महत्वाकांक्षा नहीं रखने की ये बात भा गई।
- व्यक्तिगत संपर्क में कौन पहले आया?
0 वे थे नाना जी देशमुख। उनका बहुत प्यार मिला उनकी बातों को मैं बहुत गंभीरता से सुनता था और समझने की कोशिश करता था। लगा कि ये नेता ही सही माने चरितार्थ करते हैं। नानाजी देशमुख जैसे नेता उदाहरण हैं तन समर्पित, मन समर्पित और ये जीवन समर्पित चाह है इस देश की धरती तुझे कुछ और दूं। लगा कि सारा जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित कर दिया है भले ही मैं शोर-शराबे और ग्लैमर के चकाचौंध में था,लेकिन अंदर मुझे आवाज थी कुछ करने की,कुछ पकडऩे की कोई मंत्र समझने के फिराक में था। सिर्फ शराब-शबाब-कबाब इस जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिए जो कि दिख रहा था। फिल्म इंडस्ट्री उसी का नमूना है और ज्‍यादातर लोग राजनीति से उनका मतलब केवल गालियां देना है। अंग्रेजी नहीं आती है तो भी अंग्रेजी में गाली देंगे ताकि ज्‍यादा महत्व हो। ये सब माटी की मूरत है गोबर गणेश से बदतर तो सिर्फ अपने व्यक्तित्व को निखारने की ही बात थी उसके और अपने व्यक्तित्व का सदुपयोग कैसे करूं समाज के प्रति, देश के प्रति, लोगों के प्रति ऐसे में जरूर एक प्रेरणा स्रोत और प्रकाशपुंज बनकर नाना जी देशमुख आए। उनसे बहुत कुछ सीखने, समझने का मौका मिला न केवल उनकी जीवन शैली बल्कि उनके जीवन, धैर्य, उद्देश्य को समझा। उन्होंने ही सबसे पहल आवाज दी थी कि साठ साल की उम्र में आदमी को रिटायर हो जाना चाहिए। उनकी इस बात को लोगों ने पसंद नहीं किया, लेकिन उन्होंने खुद कुर्सी छोड़ दी थी। आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो घने काले बादलों के बीच सुनहरी किरण की तरह चमकते दिखाई पड़ते हैं। फिर बाद में आडवाणी जी से अटल जी से स्नेह पाने का सौभाग्य मिला।
वी पी सिंह के बहुत करीब नहीं रहा कभी। कभी मिल लिए या नाश्ता पानी कर लिया बस इतना ही आदर किया आज भी आदर करता हूं। ठीक है इस सैद्धांतिक तौर पर हमारे रास्ते अलग हैं, लेकिन आज भी कोई अगर उनके बारे में भ्रष्टाचार का आरोप लगाए कोई गंगा में खड़ा हो के भी सौगंध खाए तो यकीन नहीं करूंगा जैसे सीबीआई के रिपोर्ट से आडवाणी के नाम आने से। यकीन नहीं होता है वीपी सिंह के लिए...वोट के लिए वे भ्रष्ट हो सकते हैं लेकिन नोट के लिए भ्रष्ट नहीं हो सकते। फतवा ले सकते हैं। पुष्टि कर सकते हैं। मंडल-कमंडल कर सकते हैं। वोट के किसी हद तक जा सकते हैं, लेकिन नोट के लिए नहीं। वी पी सिंह से मिला था उनकी कद्र करता था उनसे मिलता था उनके बातों से लगा वे कांग्रेस का विकल्प निकल रहे हैं। और हमें भी एक विकल्प थी कांग्रेस की जो लोग कहते हैं मैंने दल बदला उन्होंने अपना होमवर्क नहीं किया। मैंने केवल समर्थन किया मैं जतना दल का सदस्य नहीं था इसलिए दल बदलने की बात ही नहीं उठती। पहली बार तो सब कुछ सोच समझ कर अनुभव कर भाजपा में शामिल हुआ। मुझे भी देशवासियों की तरह जनता दल से उम्मीद थी। कांग्रेस के विकल्प के रूप में कांग्रेस ने देश के विकास का नारा दिया और विनाश की ओर ले गई। देश को तोड़ती-फोड़ती गई। गरीबी हटाओ की नारा देते गई और गरीबी देती गई। आजादी के छियालीस वर्ष बाद भी देश सभी मामलों में पिछड़ गया। मैं तो यहां तक कहता हूं कि प्रगतिशील और बेईमान प्रधानमंत्री ज्यादा पसंद करूंगा बनिस्पत उसके जो ईमानदार और ठंडा हो हमारे देश में कुछ ऐसे मुख्यमंत्री हुए थोड़े बेईमान जरूर थे । उन्होंने अपने राज्यों के लिए बहुत काम किए अगर वे ईमानदार भी होते तो सोने पर सुहागा होता। वीपी सिंह के राज्य में जब त्राहि माम त्राहि माम होने लगा तो मैंने अपना समर्थन वापस ले लिया। जिसके लिए कभी कहता था। कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। उन्हीं के बारे में मुझे आगे कहना पड़ा। जिन पत्थरों को हमने अता की थी धड़कनें,उन्हें जुवा मिली तो हम पर ही बरस परे, जनता दल को जब मैंने समर्थन दिया,तब संयुक्त विपक्ष के रूप में मैंने उसका समर्थन दिया था। विपक्ष भी टूट गया तब मैंने उनमें से सबसे बेहतर चुन लिया।
      तो ये कहानी शुरू होती है ऐसे जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात, जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख का मंत्र लेखन बाजपेयी और आडवाणी का अनुभव उनके अनुभव से सीखता हुआ। सामाजिक जिम्मेदारी के तहत कांग्रेस का विकल्प खोजने के प्रयास में वीपी सिंह का समर्थन करता हुआ तो आखिरकार चुनने का वक्त आया तो मैंने भाजपा को चुना, जो मेरी दृष्टि और दृष्टिकोण मे सही राष्ट्रवाद से घिरी हुई देश भक्ति से भरी हुई।
- राजनीति में आपने की जो प्रक्रिया रही उस में आपकी तरफ से कितनी कोशिश थी और पार्टी कितना चाहती थी?
0 ताली दोनों तरफ से बजी। पार्टी को लगा इस लडक़े में लगन है इसके अंदर शक्ति है देश के लिए भक्ति है कुछ कर दिखाने का लगन है अगर इसे सही दिशा मिल जाए निर्देशन और गुरू दिक्षा मिल जाए तो उपयोगी सिद्ध हो सकता है। और मुझे भी लगा कि अपनी ऊर्जा और शक्ति को केन्द्रित करने को एक सुगठित पार्टी का साथ चाहिए ऐसे नेताओं का साथ चाहिए जिनके पास दिशा भी है दृष्टिकोण भी है।
- लालू ने पिछले दिनों कहा जिसके मां बाप ने ही अपने बेटे का नाम शत्रु रख दिया है उसके बारे में क्या कहूं। आप क्या कहना चाहेंगे?
0 लालू से ऐसे ही लल्लू बात की अपेक्षा कर सकते हैं अगर ये बाकई पढ़े-लिखे होते, मां बाप ने मेरे नाम शत्रु नहीं रखा उन्होंने शत्रुहन रखा है और इसका मतलब शत्रुओं का नाश करने वाला होता है। अगर अब वो शत्रु बने रहे या हैं तो अब उनका वक्त आ गया है राजनीतिक तरीके से नाश होने का।
- लालू के विकल्प के रूप में आप बिहार जाने की बात कहां तक सच है और उसके लिए आप कितना तैयार हैं?
0 जहां तक मेरी बात है, मैंने अभी तक कोई गलतफहमी या खुशफहमी नहीं रखी। मैं ढंग का संतरी बन जाऊं यही मेरे लिए बड़ी उपलब्धि होगी। मुख्यमंत्री बनने की बात ना मेरी ख्वाहिश है ना मैं उसे बहुत बड़ी उपलब्धि समझूंगा।
- अगर चुनौती दी गई तो कैसे लेंगे?
0 मेरे लिए यह कोई लॉलीपॉप नहीं है। राज्य सभा का मैं सदस्य बन गया कोई शोर शराबा नहीं, कोई हो हल्ला नहीं। मैं इसको सामान्य तरीके से ले रहा हूं। मैं इन चीजों से ऊपर हूं। मैं पूरे सम्मान के साथ कहना चाहता हूं जब राज्य सभा में नहीं आम सभा में था तब भी मेरी बात, तब भी मेरी खबरें ऐसे ही छपती थी । यह मेरे लिए कोई तमगा नहीं हो सकता मुख्यमंत्री पद के लिए न मेरी कोशिश है ना मेरी कामना है लेकिन कल अगर पार्टी मुझे किसी पद के लिए उपयोगी समझेगी तो मैं करूंगा। सत्‍ता मेरे लिए सेवा का माध्यम है। मेरे लिए मेवा का माध्यम नहीं है और ना हो सकता है। तीसरी बात यह मैं उस जिम्मेदारी को तभी तक निभाऊंगा जब तक जरूरत है उसके बाद ना सिर्फ खुद के आगे बढऩे के लिए बल्कि देश को आगे बढ़ाने के लिए और भी कुछ काम करो। मेरी कुछ और उपयोगिता हो। मैं तभी तक कोई पद संभालूंगा जब तक उस पद के अधीन आने वाले जख्मों को भर नहीं देता। उसके बाद दूसरे जख्मों के लिए मरहम बनना चाहूंगा।
- बिहार में आपको लीडर के तौर पे स्वीकार नहीं किया जा रहा है?
0 पहली बात तो यह मैं लीडरशिप मांग ही नहीं रहा हूं। दूसरी यह मुझे लीडरशिप नहीं चाहिए। तीसरी बात अगर जनता चाहती है, स्वीकारती है मुझे आज नहीं तो कल कल नहीं तो परसों उसके बाद भी लोकल नेता रूकाबट डालने की कोशिश करेंगे ना सिर्फ यह उनकी नादानी और बेवकूफी होगी बल्कि पार्टी के साथ सबसे बड़ी दुश्मनी होगी। यह मुझ पर नहीं पार्टी पर चोट है। मैं तो यही कहूंगा अगर कभी ऐसा वक्त आए तो समय की नजाकत को समझना वक्त के साथ चलना यही सबसे सीख होगी। सीख जाएंगे तो अच्छा होगी वरना जनता उन्हें ही रोंदती हुई आगे निकल जाएगी।
- इनकी एक शिकायत है कि ये फील्ड के नहीं, टपके हुए नेता? उभरे हुए नेता नहीं हैं?
0 खैर मैं तो नेता हूं ही नहीं सहयोगी हूं जो लोग ऐसा कहते हैं उनसे मैं कहूंगा मेरे खिलाफत करने  से कुछ नहीं होगा। बेहतर है शामिल हो जाओ आप मुझे मात नहीं दे सकते हैं। इसलिए बेहतर है आप मेरे साथ हो जाएं मेरे साथ शामिल रहोगे खुश रहोगे। मार देने की कोशिश करोगे तो दुखी हो जाओगे। ये मैं पहले भी कह चुका हूं आज भी कह रहा हूं। ये बात जो टपकाया हुआ हूं ये गलत है। पहली बार जो भी नेता मेरा विरोध कर रहे हैं उनमें से किसी का नाम बिहारी बाबू नहीं पड़ा। देश के किसी कोने में उनको लोग उनकी जगह, गांव से नहीं जानते हैं कोई बेगुसराय बाबू नहीं होगा, लख्खीसराय बाबू नहीं होगा। दूसरा अगर तथा कथित टपकाया गया भी हूं जो नाम जो पहचान जो एक उम्मीद की लहर जो एक सिल्‍वर लाईनिंग जिस में लोग देखते हैं कि वो इच्छाओं की पूर्ती करेगा भले वो मैं करूं ना करूं जो हमारी समस्याओं का समाधान कर सकता है हमारे बिहार के एक गरीमा प्रदान कर सकता है बिहार को खुशहाल कर सकता है, करूं ना करूं बात दूसरी है लेकिन वे लोग मुझ में ही वो देख रहे हैं। ये उन्हें भी पता है मुझे भी पता है इसमें कोई दो राय नहीं है तो अगर मैं तथाकथित बिहार में टपकाया गया ही हूं वो भी बिहार में ना रहते हुए भी पर जो उम्मीद हौसला हिम्मत और एक किस्म का गौरव की भावना जो मैं पहुंचा रहा हूं जो बिहार में रह के भी नहीं दे पा रहा है तो बताइए कौन टपकाया हुआ है? बताइए कौन बिहारी है मैं तो सोचता हूं शायद ये टपकाए हुए हैं। मैं तो दिन रात वहीं हूं आज मैं बम्बई में बैठा इंटरव्यू दे रहा हूं फिर भी आज पूछिए जो चाहते जो प्यार जो मान सम्मान जो हर जाति का आदमी चाहे वो हरिजन हो दलित हो, शोषित हो कि आदिवासी हो जो हो चाहे शर्मा हो या वर्मा हो बिहारी बाबू हमारा है यही कहेंगे। मैं जातिवाद से ऊपर हूं तो ये कहना टपकाया गया हूं मूर्खतापूर्ण बात है एक और बात जो पहले कहते थे लोग कि साहब बहुत जुनियर हैं तो मैं हंसता हूं ऐसी बात से ये बहुत ही बचकाना बात है इस बात का कोई आधार ही नहीं है सचिन तेंदुलकर को अगर भारत का कप्तान बनाने का अवसर आ गया। क्या आप ये कह कर निकाल देंगे कि ये जुनियर है? जुनियर और सीनियर तो बाद वाली बात है। अजहर से भी सीनियर कपिलदेव थे मगर उन्हें कप्तान नहीं बनाया गया। मामला सीनियर और जुनियर का नहीं है। बात ये है कि पार्टी को कौन ज्यादा फायदा पहुंचा सकता है। दूसरा कौन वह एक व्यक्ति है जो समाज को हर वर्ग को साथ लेकर चल सकता है। तीसरा किसके चरित्र पर ईमानदारी पे, छवि पे सबसे ज्यादा भरोसा किया जा सकता है। ये तीनों बातें सबसे महत्वपूर्ण हैं। मैं ये कहना चाहता हूं कि अगर साठ साल से एक गधा ईंटा ढो रहा हो तो वो हाथी नहीं बन जाएगा वो गधा गधा ही रहेगा। और उसी तरह से अगर एक हाथ का बच्चा है तो सात साल में बहुत बड़ा हाथी बन जाएगा। पर गधा गधा ही रहेगा। इसलिए ये नहीं कह सकते हमारे पीछे आया है।
- जब आपका नाम राज्य सभा के लिए सुझाया गया था तो आपके पार्टी के लोगों ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था हम उन्हें इसलिए राजनीति में ला रहे हैं ताकि हमारे अगले एलेक्शन में वो काम आए, प्रचार के काम आए इसको आप किस रूप में लेंगे? पार्टी कभी ये मानती है कि आप भीड़ जुटाने वाले आदमी हैं उनके लिए?
0 नहीं मैंने सुना जिस तरह से प्रमोद महाजन ने बयान दिया अब या तो कुछ उमर की कमी है उनमें या हो सकता है कि अनुभव की भी कमी हो, जोश में कह गए हों। बहरहाल मैं हर आदमी की बात का बुरा तो नहीं मान सकता हूं। मुझे लगता है प्रमोद महाजन ने व्यक्तिगत रूप से ये कहा होगा। पार्टी की ऐसी कोई मनसा नहीं रही होगी।
- बात सही है क्योंकि प्रचारक बनने के लिए राज्य सभा का सदस्य बनना जरूरी नहीं?
0 ये बिल्कुल गलत है कि राज्य सभा का सदस्य मुझे प्रचार करने के लिए इनाम के तौर पे मिला। मैं बहुतों को को खुद इनाम दे सकता हूं। मैं खुद इनाम से या एवॉर्ड से दूर रहता हूं। वैसे भी मैं इस पोजिशन पे नहीं कि किसी से इनाम लूं या किसी को इनाम दूं। बहरहाल प्रमोद महाजन मेरे कोई नेता नहीं हैं सहयोगी जरूर हैं पार्टी के जिम्मेदार पदाधिकारी है हो सकता है मानसिक रूप से तैयार ना रहते हुए ये कह गए हों लेकिन बहुत बात में सच्चाई है मेरे साथ ये समस्या हो गई थी कि जो शायद प्रमोद महाजन के साथ नहीं थी कि मैं कहां से चुनाव लड़ूं। चुनाव लडऩे की किसी भी जगह से मेरे सामने समस्या नहीं थी। बम्बई से दो जगह से राजस्थान अलग चिल्ला रहा था, गुजरात से अलग मेरे पास प्रस्ताव आए दिल्ली में ऐसे ही लोग कह रहे थे। बिहार में तो हाहाकार मचा ही हुआ था कि आना है आना है आपको। तो ये समस्या मेरे लिए भी थी और मेरे पार्टी के नेताओं के लिए भी मैं कहां से चुनाव ना लड़ूं। इस बार का चुनाव काफी महत्वपूर्ण है और मैं किसी एक क्षेत्र का बन जाऊंगा। इसलिए प्रमोद महाजन ने जो कहा है हो सकता है उस वक्त मानसिक रूप से तैयार ना होने के कारण कहने का उनका ढंग बदल गया हो, लेकिन उनकी बात ऐसा नहीं है कि बिल्कुल गलत ये कुछ हद तक सही है एक चुनाव क्षेत्र में बांध देने से ये समस्या आती ही है। मैं एक क्षेत्र का रह जाता और फिर पूरे देश में प्रचार के लिए समस्या होती तो उनके कहने का ढंग थोड़ा ठीक नहीं था। ये मुझे महसूस हुआ लेकिन जैसा मैंने कहा कि अनुभव की कमी, उम्र की बात, मानसिक रूप से तैयार न होने की भी वजह हो सकता है। मैं उनकी बात का बुरा नहीं मानता क्योंकि वो मेरी नजर में अच्छे इंसान हैं।
- ये बात कहां तक सही है कि आप फिल्मों से सन्यास ले रहे हैं?
0 ऐसा नहीं है वो थोड़ा बढ़ चढ़ कर आ गया है जब आपने जिम्मेदारी का सवाल पूछा था तो मैंने ये कहा था कि ये मेरे लिए तमगा नहीं है मेरे लिए जिम्मेवारी का एहसास है और उन्होंने कहा अगर आप कल मंत्री बना दिए जाते हैं तो? मैंने कहा कब नौ मन तेल होगा और कब राधा नाचेगी वो बात दूर की है परंतु उन्होंने पूछा कल कि कल अगर आपकी जिम्मेवारी बढ़ जाती है तब आपके फिल्मों का क्या होगा? इससे दो चीज होती है फिल्मों में काम करने का एक मकसद ये है कि राजनीति आज कल महंगा व्यापार है। आज मैं फिल्में कम कर रहा हूं परंतु इतना जरूर कर रहा हूं ताकि मैं पारिवारिक सामाजिक जिम्मेवारियों का निर्वाह कर सकूं और दूसरा कि मैं बचनबद्ध हूं कि जन जीवन को मैं कमाई का जरिया नहीं बना सकता हूं इसलिए मुझे अपने ही दायरे से अपना खर्चा निकालना पड़ेगा। इसलिए कम ही सही पर फिल्में कर रहा हूं लेकिन अगर कल जिम्मेदारियां और बढ़ी नौ मन तेल हो गया और राधा का नाचने का वक्त आ गया और अगर मुझे ये फैसला करना पड़ा कि रील लाईफ चाहिए या रीयल लाईफ तो मैं अब तैयार हूं रीयल लाईफ को अपनाने के लिए कहने का तात्पर्य ये है कि मैं जिम्मेवारियों से मुंह मोड़ लूंगा वैसे तो चाहूंगा कि ये चलता रहे क्योंकि फिल्मों से मुझे लगाव है। एक्टिंग से मुझे लगाव है, लेकिन ऐसी संभावना अगर बन गई तो मैं रीयल लाईफ को ही चुनूंगा ये फैसला मैंने गंभीरता पूर्वक चूना है। ये वैसी बात नहीं होगी कि रात गई बात गई। अब इतना रिहर्सल, इतने रीटेक हो चुके हैं कि मैं पूरी तरह से तैयार हूं।
- अब आप रीयल पॉलिटीक्स में जा रहे हैं उसमें जाने के बाद हो सकता है कि अंदरूनी चीजें जो हमारे सिस्टम में खराबी पैदा करती है उनसे दो-चार हों आप अब तक आप ऊपरी तौर पर जुड़े थे परंतु अब एक पद संभालने जा रहे हैं? सिस्टम जो अपने आप में भ्रष्ट है वो आपको अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करेगा?
- आपका कहना बिल्कुल सही है। इस क्षेत्र में उतरने के बाद मेरा सामना ऐसे कई लोगों से हो गया है जो मेरे दुश्मन हैं या हो जाएंगे। ऐसा भी होगा दोस्त के रूप में दुश्मन सामने नजर आएंगे लेकिन ऐसे वक्त पे मुझे अंग्रेजी का वो मंत्र काफी हिम्मत देता है कि वेन गोइंग गेटस टफ द दफ गेटस गोइंगजिसके अंदर मुसीबतों को झेलने की क्षमता होगी वही आगे बढ़ पाएगा। मुझे लगता है मैं तैयार हूं मेरे अंदर वह शक्ति है और इन छोटी-छोटी बातों में मुझे महात्मा गांधी के वो बात याद आती है कि किसी भी अभियान को आंदोलन को सम्मान तक पहुंचने से पहले चार दौर से गुजरना नितांत आवश्यक है। उपहास, उपेक्षा, तिरस्कार और उन सब से निकल गए तो दमन और मगर दमन से निकल गए तो सम्मान। पहले लोग आपका मजाक उड़ाते हैं। नेता जो बनने निकल गए उससे अगर आप निकल गए सही ढंग से काम करते रहे तो लोग कहेंगे ठीक है पर नजर अंदाज करो उससे अगर निकल गए... तो गाली देंगे ये तिरस्‍कार है वे वजह गाली इससे भी अगर आगे निकल गए तो अरे लोग कहेंगे अरे ये तो निकलता ही ही जा रहा है मारो इसको। गिरफ्तार करो सीबीआई लगेगी। मतलब ये कि कभी ये कभी वो इन सबसे निकल गए तो सम्मान आपके तरफ पहुंचेगी। इन दिनों मैं दमन और सम्मान के बीच लटका हूं।

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम