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डिटेक्‍ट‍िव ब्‍योमकेश बख्‍शी एक सधी हुई परिघटना है - अविनाश दास

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-अविनाश दास  सबसे अच्‍छी कहानी वो होती है, जो खुद के कहे जाने तक खामोशियों का छिड़काव करती रहे। क्‍योंकि सिनेमा सिर्फ कहानी नहीं होता, वहां प्रकाश से लेकर कला और अभिनय के तमाम पहलू इस छिड़काव में हाथ बंटाते हैं। इस लिहाज से डिटेक्‍ट‍िव ब्‍योमकेश बख्‍शी 2015 में सिनेमा की एक सधी हुई परिघटना है। इस फिल्‍म को देखने से पहले मैं उन तमाम समीक्षाओं से गुज़र चुका था, जिसमें इसे बड़ा बकवास और भारी ब्‍लंडर घोषित किया जा चुका था। सबसे पहली समीक्षा मैंने केआरके उर्फ कमाल राशिद खान की समीक्षा देखी, जिसमें वे डिटेक्टिव ब्‍योमकेश बख्‍शी को डिजास्‍टर बता रहे थे और बाद में सोशल मीडिया पर एक-दो को छोड़ कर तमाम बुद्धिजीवी मित्र इस फिल्‍म से मुतास्सिर और मुतमइन नहीं थे। चूंकि दिबाकर बनर्जी मेरे प्रिय फिल्‍मकारों में से हैं, लिहाजा मैं समझ नहीं पा रहा था कि उनसे कहां चूक हुई होगी। मैंने फिल्‍म देखा, तो मुझे झटका लगा कि केआरके की सिनेमाई समझ और मेरे अधिकांश मित्रों की सिनेमाई समझ में रत्तीभर भी फर्क नहीं है। और यही सबसे बड़ा डिजास्‍टर है कि हम सिनेमा को क्‍या समझ बैठे हैं। ब्‍योमकेश बख्‍श

पीछे नहीं देख सकती अब : कंगना रनोट

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-अजय ब्रह्मात्मज कंगना रनोट को नेशनल अवार्ड मिल चुका है। ‘क्वीन’ की रिलीज के बाद से ही माना जा रहा था कि कंगना इस साल सारे पुरस्कार समारोहों की रानी बनेंगी। अफसोस पॉपुलर अवार्ड समारोहों ने उन्हें नजरअंदाज किया, लेकिन नेशनल अवार्ड की ज्यूरी ने उन्हें उनकी कोशिश पर मुहर लगाई। कंगना के करियर पर गौर करें तो इसकी जोरदार शुरुआत 2011 में आई ‘तनु वेड्स मनु’ से होती है। हालांकि इसके पहले ‘फैशन’ में कंगना को बेस्ट सपोर्टिंग अभिनेत्री का अवार्ड मिल चुका था। पिछले दिनों कंगना हरियाणा के झझर इलाके में ‘तनु वेड्स मनु रिटन्र्स’ की शूटिंग कर रही थीं। 23 मार्च को वह 28 की हो गईं।     कंगना मानती हैं कि हिंदी फिल्मों में इन दिनों छोटे शहरों पर ध्यान दिया जा रहा है। दर्शक भी ऐसी कहानियां पसंद कर रहे हैं। वह इस ट्रेंड का श्रेय आनंद राय की फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ को देती हैं, ‘मेरी फिल्म पहली और नई कोशिश थी, जिसमें हमने छोटे शहरों की डिफरेंट लव स्टोरी कही थी। कानपुर की तनु के बाद अलग-अलग शहरों की तनु जैसी लड़कियां फिल्मों में आ रही हैं। गौर करें तो हिंदी फिल्मों को एक नया कैरेक्टर ही मिल गया। मुंहफट, तेज

दरअसल : सिनेमा की सोच और ग्रामर बदल रहा है फैंटम

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-अजय ब्रह्मात्मज चार साल पहले तीन निर्देशकों ने एक निर्माता के साथ मिल कर एक प्रोडक्शन कंपनी खड़ी की। यशराज फिल्म्स स्टूडियो में विक्रमादित्य मोटवाणी की फिल्म ‘लूटेरा’ से इसका उद्घाटन हुआ। रणवीर सिंह और सोनाक्षी सिन्हा की श्ह फिल्म फैंटम ने बालाजी फिल्म्स के साथ मिल कर बनाई थी। फिल्म की तारीफ हुई। फिल्म अच्छा व्यवसाय नहीं कर सकी। फैंटम का उद्देश्य था कि इसके निदेशकों में फिल्मों के निर्देशक हैं,जिन्हें अपने शिल्प का ज्ञान हो। कारपोरेट घरानों के आने के बाद से देखा जा रहा है कि एमबीए कर के आए अधिकारी फिल्मों की क्रिएटिविटी तय कर रहे हैं। नतीजतन न तो फिल्में बन पा रही हैं और न बिजनेस हो पा रहा है। रिलाएंस जैसी आर्थिक रूप से मजबूत कंपनी ने भी अपना डेरा-डंडा समेट लिया है। पिछले दिनों खबर आई थी कि रिलाएंस ने फैंटम के साथ स्ट्रेटजिक एलाएंस किया है। इस एलाएंस के जो भी मायने निकलते हों। एक चीज तो स्पष्ट है कि फैंटम ने अपनी मौजूदगी धमक दे दी है। फैंटम के मुख्श् कर्ता-धर्ता मधु मंटेना,अनुराग कश्यप,विक्रमादित्य मोटवाणी और विकास बहल हैं। चारों ने मिल कर नई किस्म की फिल्मों का प्रोडक्शन

जासूस जासूस है हाड़ मांस का बना एक आदमी - विमल चंद्र पाण्‍डेय

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- विमल चंद्र पाण्‍डेय दिबाकर बनर्जी निर्देशित डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी देख कर लौटा हूँ और सोच रहा हूँ कि इतना खूबसूरत और सुलझा हुआ क्लाइमेक्स हिंदी सिनेमा में इसके पहले कब देखा था. हर फ्रेम कुछ कहता हुआ, फिल्म की रगों में दौड़ता मानीखेज़ पार्श्व संगीत और दिबाकर का प्रिय कोलकाता जो इस फिल्म से गुज़रते हुए हमारा थोड़ा और प्रिय हो जाता है. दिबाकर बनर्जी निर्देशित डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी देख कर लौटा हूँ और सोच रहा हूँ कि नीरज काबी तो सँजो कर रखे जाने वाले हीरे हैं, ऐसा अभिनय जो हर कदम किरदार को धीरे-धीरे खोलता हुआ हमारे सामने लाता है. दिबाकर और उर्वी की पटकथा सिखाती है कि कहानी को किस तरह बुना जाता है. दिबाकर डिटेलिंग के मास्टर हैं और इस फिल्म में वह अपने उरूज पर है. ब्योमकेश बहुत साधारण इंसान है, कौन सा निर्देशक अपने हीरो को इंट्रोडक्शन सीन में किसी चरित्र अभिनेता से थप्पड़ मरवाएगा. यह काम दिबाकर करते हैं और इस तरह करते हैं कि वह थप्पड़ लार्जर दैन लाइफ हीरो की हमारी अवधारणा पर पड़ता है. कौन सा निर्देशक होगा जो अपने नायक, वह भी जासूस, को क्लाइमेक्स में बेहोश कर देगा. वह जब उठेगा तो खून खराबा ह

हिंदी टाकीज 2 (7) : सिनेमा की पगडंडी पर ज़िंदगी का सफ़र -उमेश पंत

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हिंदी टाकीज 2 का सिलसिला चल रहा है। इस बार उमेश पंत यादों की गलियों में लौटे है और वहां से अपने अनुभवों को लेकर आए हैं। उमेश पंत लगातार लिख रहे हैं। विभिन्‍न विधाओं में में अपने कौशल से वे हमें आकरूर्िात कर रहे हैं। यहां उन्‍होंने सिनेमा के प्रति अपने लगाव की रोचक कहानी लिखी है,जो उनकी पीढ़ी के युवकों की सोच और अनुभव से मेल खा सकती है।    सिनेमा की पगडंडी पर ज़िंदगी का सफ़र -उमेश पंत  मैं इस वक्त उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में हूं।अपने ननिहाल में।कुछ हफ्ते भर पहले रिलीज़ हुई एनएच 10 देखने का मन है।पर अफ़सोस कि मैं उसे   बड़े परदे पर नहीं देख पाऊंगा।क्यूंकि ज़िला मुख्यालय होते हुए भी यहां एक सिनेमाघर नहीं है जहां ताज़ा रिलीज़ हुई मुख्यधारा की फ़िल्में देखी जा सकें।एक पुराना जर्ज़र पड़ा सिनेमाघर है जिसके बारे में मेरी मामा की लड़की ने मुझे अभी अभी बताया है - “वहां तो बस बिहारी (बिहार से आये मजदूर) ही जाते हैं   ..।वहां जैसी फ़िल्में लगती हैं उनके पोस्टर तक देखने में शर्म आती है”। 28 की उम्र में पूरे दस साल बाद आज मैं अपने ननिहाल आया हूं..।सिनेमा को लेकर दस साल पहले जो हालात थे आज भी ए

फिल्‍म समीक्षा - डिटेक्टिव ब्‍योमकेश बक्‍शी

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कलकत्‍ता -1943  पृष्‍ठभूमि शरदिंदु बनर्जी ने 1932 में जासूस ब्योमकेश बक्शी के किरदार को गढ़ा था। उन्होंने कुल 32 कहानियां लिखी थीं। इन कहानियों को बंगाल में फिल्मों और धारावाहिकों में ढाला गया है। हिंदी में भी एक धारावाहिक 'ब्योमकेश बक्शी' नाम से ही बना था,जिसमें रजत कपूर ने शीर्षक भूमिका निभाई थी। ताजा हाल रितुपर्णो घोष की बंगाली फिल्म 'सत्यान्वेषी' मे ब्योमकेश बक्शी की भूमिका में 'कहानी' के निर्देशक सुजॉय घोष दिखे थे। दिबाकर बनर्जी ने शरदिंदु बनर्जी की सभी 32 कहानियों के अधिकार लेकर उन्हें अपनी फिल्म 'डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी' में सुविधानुसार इस्तेमाल किया है। दिबाकर बनर्जी की यह फिल्म यशराज फिल्म्स के सहयो" से आई है। इसमें ब्योमकेश बक्शी की भूमिका सुशांत सिंह राजपूत निभा रहे हैं। 'डिटेक्टिव ब्योकेश बक्शी' के आरंभ में फिल्म का प्रमुख सहयोगी किरदार अजीत बंद्योपाध्याय का वॉयसओवर सुनाई पड़ता है, '1942। कलकत्ता। सेकेंड वर्ल्ड वॉर जोर पर था। जापान की फौज इंडिया-वर्मा बोर्डर से कलकत्ता पर अटैक करने का मौका

दरअसल : सिनेमाघर पहुंचें महिलाएं

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-अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों नवदीप सिंह की फिल्म एनएच 10 आई। सराहना और कामयाबी की वजह से यह फिल्म उल्लेखनीय हो गई है। फिल्म की निर्माता और मुख्य अभिनेत्री अनुष्का शर्मा हैं। उनके इस जुड़ाव के प्रति आम दर्शक और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का रवैया और व्यवहार सहज नहीं है। जब कभी अभिनेत्रियां निर्माता बनती हैं या मेन लीड में आती हैं तो ट्रेड सर्किल और आम दर्शक दोनों ही अतिरिक्त पारखी हो जाते हैं। वे खूबियों से अधिक कमियों की बात करते हैं। फिल्म के समर्थक के बजाए वे विरोधी के तौर पर खड़े हो जाते हैं। बताने लगते हैं कि यह फिल्म तो अवश्य ही असफल होगी। दर्शकों का उत्साह भी संतोषजनक और समर्थक नहीं रहता। तमाम संशयों के बावजूद एनएच 10 सफल रही। फिल्म के निर्देशक का सोया करिअर जाग गया। स्वयं अनुष्का शर्मा समकालीन अभिनेत्रियों में एक कदम आगे दिख रही हैं।  एनएच 10 के प्रति आम दर्शकों के रवैए और व्यवहार पर गौर करें तो उनकी सोच के सामाजिक आधार नजर आएंगे। दर्शकों के समूह को हम एक ईकाई मान लेते हैं। ऐसा है नहीं। दर्शकों के समूह में हर उम्र,लिंग और आर्थिक पृष्ठभूमि के दर्शक होते हैं। सबकी अपनी पृष्

किंगमेकर बनते कास्टिंग डायरेक्टर

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- स्मिता श्रीवास्तव --------------------------- डॉली अहलूवालिया, सुशांत सिंह राजपूत, राजकुमार राव, रणवीर सिंह, ताहिर भसीन, धृतिमान चटर्जी, फ्रीडा पिंटो, देव पटेल, बलजिंदन कौर, दुर्गेश कुमार में एक कॉमन चीज है। वह यह कि वे जिनकी खोज हैं, उन्हें कास्टिंग डायरेक्टर कहते हैं। साथ ही उपरोक्त अधिसंख्य नाम पॉपुलर और समर्थ कलाकार के तौर पर दर्ज हो रहे हैं। ‘काइ पो छे’ , ‘हाईवे’, ‘विकी डोनर’, ‘शाहिद’, ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ आदि फिल्मों की एक अहम धुरि कास्टिंग डायरेक्टर रहे हैं। इस तरह कि उक्त फिल्में सिर्फ कमाल की कहानियों के लिए ही विख्यात नहीं हुई, बल्कि अलहदा कलाकारों की मौजूदगी से फिल्म के रियलिच्म में चार चांद लग गए। रणवीर सिंह और ताहिर भसीन शानु शर्मा की खोज हैं तो सुशांत सिंह राजपूत, राजकुमार राव और हाईवे के दुर्गेश कुमार जैसे असाधारण कलाकार मुकेश छाबड़ा की। आंखोदेखी जैसी परफॉरमेंस केंद्रित फिल्मों में कमाल के कलाकारों की खोज भी कास्टिंग डायरेक्टरों ने की और नतीजतन वह फिल्म राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय फिल्म सर्किट से लेकर बॉक्स ऑफिस तक पर क्या कीर्तिमान रच रही है, वह सब को पता है। कास्टिंग डाय

जासूस बन देखें ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी’ : दिबाकर बनर्जी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज -इस फिल्म को देखने के लिए ऑडिएंस को किस तरह तैयार होना चाहिए। दर्शक आप की फिल्मों को लेकर द्वंद्व में रहते हैं। 0 बड़ा अच्छा सवाल किया आपने, लेकिन डायरेक्टर ही दर्शकों को बताता फिरे कि मेरी फिल्म को इस तरह देखो तो वह जरा अजीब सा लगता है। बहरहाल,मेरे हिसाब से हमारी फिल्मों में आजकल खाली टाइम बढ़ गया है। मैं पाता हूं कि सीन में गाने चल रहे हैं। डायलॉग चल रहा है, पर ऑडिएंस मोबाइल पर बातें कर रहे हैं। सिनेमा के बीच से बाहर जा चक्कर लगा कर आ रहे हैं। फिर वे कहना शुरू कर देते हैं कि यार हम तो बोर हो रहे हैं। इधर हिंदी फिल्में दर्शकों को बांधकर नहीं रख पा रही हैं। साथ ही सिनेमा के प्रति दर्शकों के समर्पण में भी कमी आई है। वे भी समर्पित भाव से फिल्में नहीं देखते। मेरा कहना है कि यार इतना आरामदेह सिनेमहॉल है। बड़ी सी हाई क्वॉलिटी स्क्रीन है। डॉल्बी साउंड है। अगर हम उस फिल्म के प्रति सम्मोहित न हो गए तो फिर फायदा क्या? कॉलेज स्टूडेंट को देखता हूं कि सिनेमा हॉल में बैठ वे आपस में तफरीह कर रहे हैं। मस्ती कर रहे हैं। सामने स्क्रीन पर चल रही फिल्म तो उनके लिए सेकेंडरी चीज है। सा

दरअसल: विधु विनोद चोपड़ा की कोशिश

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अजय ब्रह्मात्मज     पिछले हफ्ते आमिर खान और अमिताभ बच्चन ने विधु विनोद चोपड़ा की अंग्रेजी फिल्म ' ब्रोकेन हॉर्सेज Ó के ट्रेलर की लॉन्चिंग की। इन दिनों ट्रेलर लॉन्चिंग एक इवेंट बन गया है। टीवी और सोशल मीडिया के लिए फोटो और फुटेज मिल जाते हैं। हालांकि लॉन्चिंग के कुछ मिनटों के बाद ट्रेलर , गाने और प्रोमो यू-ट्यूब पर उपलब्ध हो जाते हैं। फिर भी ऐसे इवेंट का अपना महत्ब बनता और बढ़ता जा रहा है। समकालीन घटनाओं को रिकार्ड और संरक्षित करना बेहद जरूरी काम है। ऐसे इवेंट पर सोच-समझ के साथ या बेखयाली में कही गई बातों का भी ऐतिहासिक संदर्भ बनता है। ' ब्रोकेन हॉर्सेज Ó के ट्रेलर लॉन्च पर विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी ख्वाहिशों का जिक्र किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर लक्ष्य स्पष्ट हो और लगन व मेहनत में कोई कमी न रहे तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। उन्होंने अपनी कोशिश का उदाहरण दिया। कश्मीर के हिंदी मीडियम में डीएवी स्कूल से पढ़ा लड़का इसी लगन और मेहनत से आज अंग्रेजी फिल्म बना सका है।     डीएवी स्कूल में पढ़ते समय विधु विनोद चोपड़ा ने पढ़ाई के साथ धर्मशिक