Posts

बॉम्‍बे वेल्‍वेट के गीत -मोहब्‍बत बुरी बीमारी

Image
मोहब्‍बत बुरी बीमारी लगी तूझे तो तेरी जि़म्‍मेदारी मोहब्‍बत बुरी बीमारी ये बेरहम जिसको काटे पानी नहीं दारू वो मांगे महबूब की तस्‍वीर टांगे लगती है हल्‍की पड़ती है भारी मोहब्‍बत बुरी बीमारी छूने से होती नहीं ये नज़रों के रस्‍ते से आए झगड़ा है इसका अक़ल से मासूम दिल पे क़ब्‍ज़ा जमाए सूरत से भोली नियत शिकारी मोहब्‍बत बुरी बीमारी

जीवन के फ्लैशबैक में सिने-प्रेम -विवेक भटनागर

Image
आज चालीस की उम्र पार चुके फिल्मप्रेमी जब अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखते हैं, तो उन्हें फिल्मों के प्रति उनकी दीवानगी और घरवालों की बंदिशों के बीच तमाम रोचक प्रसंग याद आ जाते हैं। इन्हींदिलचस्प संस्मरणों को समेटा गया है हाल में प्रकाशित 'सिनेमा मेरी जान' में... विवेक भटनागर सिनेमा हमेशा से सामान्य लोगों के लिए जादू की दुनिया रहा है। तीन-चार दशक पहले तो यह जादू सिर चढ़कर बोलता था, क्योंकि उस समय मनोरंजन का एकमात्र सस्ता और आधुनिक साधन फिल्में थीं। दूसरे टाकीजों का रिक्शों पर लाउड स्पीकर पर रोचक ढंग से प्रचार, फिल्म का प्रमुख सीन समेटे पेंटिंग-पोस्टर, बाजार में फिल्म की कहानी, डायलॉग और उसके गानों से सजी आठ-दस पेज की चौपतिया का बिकना भी उस दौर के बच्चों और युवाओं का ध्यान फिल्मों की ओर खींचते थे। इसके अलावा फिल्म देखकर आए फिल्मी सहपाठियों का बड़े रोचक ढंग से कहानी सुनाने, मुंह से ढिशुं-ढिशुं... ढन..ढन...निकालने का अंदाज भी फिल्मों की ओर खींचता था। उस दौर में, सच में यह जादू ही था, जिसके मायाजाल में बच्चे न फंस सकेें, इसके सारे प्रयोजन घर के बड़े-बुजुर्ग

परिवार की रीढ़ है मां : दीपिका पादुकोण

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     दीपिका पादुकोण की शुजीत सरकार निर्देशित ‘पीकू’ रिलीज हो चुकी है। इम्तियाज अली निर्देशित ‘तमाशा’ की शूटिंग समाप्ति पर है। इन दिनों वह संजय लीला भंसाली की ‘बाजीराव मस्तानी’ की शूटिंग कर रही हैं। इसकी शूअिंग के सिलसिले में वह फिल्मसिटी के पास ही एक पंचतारा होटल में रह रही हैं। समय बचाने के लिए यह व्यवस्था की गई है। दीपिका पिछले दिनों काफी चर्चा में रहीं। ‘माई च्वॉयस’ वीडियो और डिप्रेशन की स्वीमृति के बारे में बहुत कुछ लिखा और बताया गया। दीपिका थोड़ी खिन्न हैं,क्योंकि सोशल मीडिया और मीडिया पर चल रहे विमर्श ने उसे अलग परिप्रेक्ष्य में रख दिया है। दीपिका देश की अन्य हमउम्र लड़कियों की तरह स्वतंत्र हैं। मिजाज की कामकाजी लड़की हैं। उन्हें परिवार से बेहद प्यार है। इधर मिली पहचान की वजह से वह अपनी फिल्मों के चुनाव और एक्टिंग के प्रति अधिक सचेत हो गई हैं। उन्हें इसके अनुरूप तारीफ भी मिल रही है।     ‘पीकू’ देख चुके दर्शकों को दीपिका के किरदार के बारे में मालूम होगा। पीकू के बारे में दीपिका के विचार कुछ यूं हैं, ‘वह कामकाजी लड़की है। अपने परिवार का भी ख्याल रखती है। अपने पित

कान में भारत का डंका : नीरज घेवन की मसान

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     नीरज घेवन की फिल्म ‘मसान’ इस साल कान फिल्म फेस्टिवल के अनसर्टेन रिगार्ड खंड में प्रदर्शित होगी। 2010 में विक्रमादित्य मोटवाणी की फिल्म ‘उड़ान’ भी इसी खंड के लिए चुनी गई थी। कान फिल्म फेस्टिवल में सुंदरियों की परेड की तस्वीरें तो हम विस्तार से छपते और देखते हैं, लेकिन युवा फिल्मकारों की उपलब्धियों पर हमारा ध्यान नहीं जाता। नीरज घेवन की फिल्म ‘मसान’ की पृष्ठभूमि बनारस की है। यह श्मशान के इर्द-गिर्द चल रहे कुछ किरदारों की तीन कहानियों का संगम है।     नीरज घेवन खुद को ‘दिल से भैया’ कहते हैं। उनका दिल बनारस में लगता है। मराठी मां-बाप की संतान नीरज का जन्म हैदराबाद में हुआ। वहीं आरंभिक पढ़ाई-लिखाई हुई। पारिवारिक और सामाजिक दवाब में उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। फिर एमबीए किया और फिर मोटी पगार की एक नौकरी भी कर ली। कॉलेज के दिनों में एफटीआईआई से आए एक समर नखाटे के लिए फिल्म संबंधी एक लेक्चर का ऐसा असर रह गया कि सालों बाद वह सिनेमा में रुचि के अंकुर की तरह फूटा। फिल्मों के मशहूर ब्लॉग ‘पैशन फॉर सिनेमा’ से परिचय हुआ। सिनेमा की रुचि शब्दों में ढलने लगी। आत्मविश्वास क

प्रशंसकों को थैंक्यू बोल कर आगे बढ़ना पड़ता है-अनुराग कश्यप

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज - बाॅम्बे वेलवेट के पूरे वेंचर को आप कैसे देख पा रहे हैं? इस फिल्म के जरिए हम जिस किस्म की दुनिया व बांबे क्रिएट करना चाहते थे, उसमें हम सफल रहे हैं। फैंटम समेत मुझ से जुड़े सभी लोगों के लिए यह बहुत बड़ी पिक्चर है। इस फिल्म के जरिए हमारा मकसद दर्शकों को छठे दशक के मुंबई में ले जाना है। लोगों को लगे कि वे उस माहौल में जी रहे हैं। लिहाजा उस किस्म का माहौल बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी है। -इस तरह की फिल्म हिंदी में रही नहीं है। जैसा बाॅम्बे आपने फिल्म में क्रिएट किया है, उसका कोई रेफरेंस प्वॉइंट भी नहीं रहा है..? बिल्कुल सही। हम लोगों को शब्दों में नहीं समझा सकते कि फिल्म में किस तरह की दुनिया क्रिएट की गई है। पता चले हम लोगों को कुछ अच्छी चीज बताना चाहते हैं, लोग उनका कुछ और मतलब निकाल लें। बेहतर यही है कि लोग ट्रेलर और फिल्म देख खुद महसूस करें कि हमने क्या गढ़ा है? बेसिकली यह एक लव स्टोरी है... -... पर शुरू में आप का आइडिया तीन फिल्में बनाने का था? वह अभी भी है। यह बनकर निकल जाए तो बाकी दो पाइपलाइन में हैं। इत्तफाकन तीनों कहानियों में कॉमन फैक्टर  शहर बाम्बे और एकाध

बॉम्‍बे वेल्‍वेट का हिंदी पोस्‍टर और आम हिंदुस्‍तानी गीत के बोल

Image
  हिंदी पत्रकारों और पत्र-पत्रिकाओं की सुविधा के लिए बॉम्‍बे वेल्‍वेट का हिंदी पोस्‍टर। अभी तक आप जिस भी तरीके से फिल्‍म का नाम लिखते रहे हों। आगे से इसका नाम बॉम्‍बे वेल्‍वेट ही लिखें तो नाम की एकरूपता बनी रहेगी।  साथ में पेश ही इसी फिल्‍म के एक गीत के बोल.... बाॅम्‍बे वेल्‍वेट मूल गीत रोमन हिंदी-अमिताभ भट्टाचार्य                                             लिप्‍यंतरण हिंदी- रामकुमार सिंह आम हिंदुस्‍तानी धोबी का कुत्‍ता जैसे, घर का ना घाट का पूरी तरह ना इधर का ना उधर का सुन बे निखट्टू तेरा वही तो हाल है जिंदगी की रेस में, जो मुंह उठा के दौड़ा जिंदगी ने मारी लात पीछे छोड़ा, तू है वो टट्टू गधे सी जिसकी चाल है प्‍यार में ठेंगा, बार में ठेंगा, क्‍योंकि बोतल भी गोरों की गुलाम है रूठी है महबूबा, रूठी रूठी शराब है आम हिंदुस्‍तानी तेरी किस्‍मत खराब है आसमान से यूं गिरा खजूर पै तू अटका तेरे हालात ने उठाके तुझको पटका की ऐसी चंपी कि तेरे होश उड़ गए बेवफाई देख के ना आई तुझको हिचकी चौड़ी छाती तेरी चुटकियों में पिचकी गम की पप्‍पी मिली तो बाल झड़ गए प्‍यार मे

दरअसल : आत्मघाती मुस्कान

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     इन दिनों लगातार खबरें आ रही हैं कि हालीवुड की फिल्में हिंदी फिल्मों से अच्छा कारोबार कर रही हैं। पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनलों पर इन खबरों को लिखते और बताते समय यह भाव भी रहता है कि हिंदी फिल्में दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पा रही हैं। इन खबरों में सच्चाई है,लेकिन इन्हें जिस अंदाज में परोसा जाता है,उससे यह जाहिर किया जाता है कि हिंदी फिल्मों के दिन लदने वाले हैं। हिंदी दर्शकों के बीच भी हालीवुड की फिल्मों का बाजार बनता जा रहा है। यह कोई नई बात नहीं है। हमारे स्वभाव में है कि हम किसी भी प्रकार के विदेशी प्रभाव से आए परिवर्त्तन को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं। हम हमेशा हीनग्रंथि में रहते हैं। फिलहाल हालीवुड की फिल्मों को इस ग्रंथि से लाभ मिल रहा है।     हालीवुड की प्रमुख प्रोडक्शन कंपनियों ने भारत में अपनी दुकानें खोल ली हैं। कुछ तो हिंदी फिल्मों के प्रोडक्शन में भी आ चुकी हैं। हालीवुड और हिंदी फिल्मों की सम्मिलित पैकेजिंग से वे लाभ और नुकसान में संतुलन बिठा लेती हैं। वैसे भी अंग्रेजी में बनी-बनायी फिल्मों को भारत में वितरित कर वे अतिरिक्त कमाई ही करते हैं। अगर हिंदी,तम

एक नायक का अंतर्द्वद्व

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज       फिल्‍मों का पत्रकार होने की एक मुश्किल यह रहती है कि हमें फिल्‍मी सितारों के बारे में चल रही अफवाहों और प्रचलित छवि के बारे में सभी की जिज्ञासाओं के जवाब देने पड़ते हैं। ये जिज्ञासाएं ज्‍यादातर आरोप और लांछन के रूप में होती हैं। मैंने महसूस किया है कि सभी इन कलाकारों के लिए तृतीय पुरूष वह का इस्‍तेमाल करते हैं। मुझे दिक्‍कत होती है। फिल्‍म कलाकरों के लिए आप संबोधन क्‍यों नहीं होता ? क्‍यों माना जाता है कि वे बदचलन,बददिमाग और बदमाश ही होते हैं ? पर्दे पर उन्‍हें देख कर हम भाव विभोर होते हैं। अपने आचार-व्‍यवहार में उनकी नकल करते हैं। मिलने या दिख जाने पर उल्‍लसित होते हैं। इन सभी के बावजूद कहीं न कहीं फिल्‍म कलाकारें के प्रति एक तिरस्‍कार और हेय भाव रहता है। यह हमारे समाज की विडंबना है कि हम जिन्‍हें चाहते हैं,उनसे घृणा भी करते हैं।       बुधवार 6 मई को को सलमान खान को सेशन कोर्ट ने पांच साल की सजा सुनाई और हाई कोर्ट ने चंद घंटों के अंदर ही उन्‍हें दो दिनों की अंतरिम जमानत दे दी। शुक्रवार को उनकी सजा निलंबित करने के साथ जमानत दे दी गई। खबर है कि वे श

फिल्‍म समीक्षा : पीकू

Image
-अजय ब्रह्मात्‍म्‍ाज  **** चार स्‍टार  कल शाम ही जूही और शूजीत की सिनेमाई जुगलबंदी देख कर लौटा हूं। अभिभूत हूं। मुझे अपने पिता याद आ रहे हैं। उनकी आदतें और उनसे होने वाली परेशानियां याद आ रही हैं। उत्तर भारत में हमारी पीढ़ी के लोग अपने पिताओं के करीब नहीं रहे। बेटियों ने भी पिताओं को अधिक इमोशनल तवज्जो नहीं दी। रिटायरमेंट के बाद हर मध्यीवर्गीय परिवार में पिताओं की स्थिति नाजुक हो जाती है। आर्थिक सुरक्षा रहने पर भी सेहत से संबंधित रोज की जरूरतें भी एक जिम्मेदारी होती है। अधिकांश बेटे-बेटी नौकरी और निजी परिवार की वजह से माता-पिता से कुढ़ते हैं। कई बार अलग शहरों मे रहने के कारण चाह कर भी वे माता-पिता की देखभाल नहीं कर पाते। 'पीकू' एक सामान्य बंगाली परिवार के बाप-बेटी की कहानी है। उनके रिश्ते को जूही ने इतनी बारीकी से पर्दे पर उतारा है कि सहसा लगता है कि अरे मेरे पिता भी तो ऐसे ही करते थे। ऊपर से कब्जियत और शौच का ताना-बाना। हिंदी फिल्मों के परिप्रेक्ष्य में ऐसी कहानी पर्दे पर लाने की क्रिएटिव हिम्मत जूही चतुर्वेदी और शूजीत सरकार ने दिखाई है। 'विकी डोनर' के बाद एक बार

अाज्ञाकारी अभिनेता है अमिताभ बच्‍चन : इरफान

Image
-अजय ब्रह्मात्मज पहली बार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने से अभिभूत इरफान उनकी तारीफ करते नहीं थकते। उन्होंने झंकार के साथ अमिताभ बच्चन से जुड़ी अपनी यादें ताजा कीं और अभिनेता अमिताभ बच्च्न को भी सहयोगी अभिनेता की नजर से डिकोड किया। बुडापेस्ट से लौटने के बाद इरफान ‘तलवार’ की शूटिंग में व्यस्त हो गए हैं। महाद्वीपों को लांघते हुए इरफान कभी भारत में हिंदी और अन्य भाषाओं की फिल्में कर रहे होते हैं तो हॉलीवुड की फिल्म के सिलसिले में पश्चिम के किसी देश में डेरा डाल देते हैं। इस मायने में वे हिंदी फिल्मों के अलहदा कलाकार हैं, जो समान गति से देश-विदेश की फिल्में कर रहे हैं। इस हफ्ते उनकी हिंदी फिल्म ‘पीकू’ रिलीज होगी। इसमें वह अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण के साथ दिखेंगे। इन दोनों कलाकारों के साथ यह उनकी पहली फिल्म है। कुछ महीने पहले एक अनौपचारिक बातचीत में इरफान ने बताया था कि लंबे समय के बाद अमिताभ बच्चन इंटेंस भूमिका में दिखेंगे। इस फिल्म में उन्हें काम करते हुए देखने का मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। बात यहीं से शुरू होती है। इरफान बताते हैं, ‘बच्चन साहब का अपना एक ओरिएंटेशन रहा है। उनकी एक त