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भारतीय(हिंदी) सिनेमा का विदेशी परिप्रेक्ष्‍य - नीलम मलकानिया

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चवन्‍नी के लिए तोकियो शहर में रह रही नीलम मलकानिया ने यह विशेष लेख भेजा। देश के बाहर विदेशियों के संपर्क और समझ से उन्‍होंने भारतीय सिनेमा और विशेष कर हिंदी सिनेमा के बारे में लिीखा है। यह सच है कि भारत सरकार और हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री विदेशों में फिल्‍मों के प्रसार और प्रभाव बढ़ाने की दिशा में कोई उल्‍लेखनीय कार्य नहीं कर रही है। क्‍वालालंपुर में चल रहे आइफा अवार्ड समारोह के दौरान इस लेख की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। यह अकादेमिक लेख नहीं है। इसे आरंभिक जानकारी के तौर पर पढ़ें। यह शोध और अकादेमिक लेख के लिए प्रेरित कर सकता है। धन्‍यवाद नीलम।   -नीलम मलकानिया               सिनेमा में भी मां है। ये संवाद हम न जाने कितनी बार अलग-अलग माध्यमों से सुन चुके हैं। भले ही हम इससे सहमत न हों और सिनेमा को इंसानी रिश्तों की उपमा दिए जाने को पूरी तरह न स्वीकार करें लेकिन यह सच है कि सिनेमा हम भारतीयों की ज़िदगी में एक ऐसी जगह ज़रूर रखता है जिसका कोई विकल्प नहीं है। चाहे बात मनोरंजन की हो या फिर इस उद्योग से जुड़ी आय की , बात हो समाज का सच दिखाते आईने की या फिर एक रूपहले संसार

फिल्‍म समीक्षा : दिल धड़कने दो

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स्‍टार ***1/2 साढ़े तीन स्‍टार  दरकते दिलों की दास्‍तान   -अजय ब्रह्मात्‍मज                  हाल ही में हमने आनंद राय की 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' में उत्तर भारत के मध्यरवर्गीय समाज और किरदारों की कहानी देखी। जोया अख्तरर की 'दिल धड़कने दो' में दिल्ली के अमीर परिवार की कहानी है। भारत में अनेक वर्ग और समाज हैं। अच्छी बात है कि सभी समाजों की मार्मिक कहानियां आ रही हैं। अगर कहानी आम दर्शकों के आर्थिक स्तर से ऊपर के समाज की हो तो तो उसमें अधिक रुचि बनती है, क्योंकि उनके साथ अभिलाषा और लालसा भी जुड़ जाती है। कमल मेहरा के परिवार में उनकी बेटी आएशा, बेटा कबीर, बीवी नीलम और पालतू कुत्ता प्लूटो है।                  यह कहानी प्लूटो ही सुनाता है। वही सभी किरदारों से हमें मिलाता है। प्लूटो ही उनके बीच के रिश्तों की गर्माहट और तनाव की जानकारी देता है। आएशा के दोस्ते सन्नी गिल ने ही कभी प्लूाटो को गिफ्ट किया था, जो उनके प्यार की निशानी के साथ ही परिवार का सदस्य बन चुका है।                कमल और नीलम की शादी के 30 साल हो गए हैं। कमल मेहरा बाजार में गिर रही अपनी साख को बचाने

....तो काम कैसे चलेगा - अनिल कपूर

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दोस्‍त होना चाहिए पिता को-अनिल कपूर -अजय ब्रह्मात्‍मज           जोया अख्‍तर की फिल्‍म ‘ दिल धड़कने दो ’ में अनिल कपूर मेहरा परिवार के मुखिया कमल मेहरा की भूमिका निभा रहे हैं। उन्‍होंने अपने पूरे परिवार को सी क्रूज के लिए बुलाया है। फिल्‍म का सारा ड्रामा इसी क्रूज पर होता है। -                   -आप ने यह भूमिका क्‍यों स्‍वीकार की ? 0 क्रम से बताऊं तो डायरेक्‍टर,स्क्रिप्‍ट,रोल और पैसों की वजह से मैंने हां की। सभी चीजें अच्‍छी थीं। साथी कलाकार भी नामी और मशहूर हैं। अच्‍छी फिल्‍म है। -पैसा आज भी मानी रखता है ? 0 पैसे नहीं होंगे तो काम कैसे चलेगा ? यह पहली और आखिरी महत्‍वपूर्ण चीज है। -रोल पर कितना ध्‍यान देते हैं ? 0 मेरे करिअर में रोल हमेशा महत्‍वपूर्ण रहा है। यह रोल खास तौर पर इसलिए पसंद आया कि मैं इसमें पिता बना हूं। ‘ लमहे ’ में भी मैं पिता था,लेकिन वह थोड़ा अलग था। ‘ विरासत ’ में अमरीश पुरी ने जो रोल किया था,वह मुझे बहुत पसंद है। वे परिवार के मुखिया हैं और पूरे गांव का भी खयाल रखते हैं। उसकी थोड़ी झलक सेकेंड हाफ में है। कुछ वैसे ह

पूर्वाग्रह तोड़ने निकली हूं - प्रियंका चोपड़ा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     अगर आप प्रियंका चोपड़ा के ट्विटर हैंडल के 98 लाख 26 हजार 796 फॉलोअर्स में से एक हैं तो आप का बताने की जरूरत नहीं है कि वह इन दिनों कितनी व्‍यस्‍त चल रही हैं।  देश में अहमदाबाद,चंडीगढ़ और दिल्‍ली की यात्राओं से मुंबई लौटती हैं तो यहां बैठकों और इंटरव्‍यू का सिलसिला चलता है। कुछ कमिटमेंट पूरे होते हैं और कुछ अगली बार के लिए टल जाते हैं। किसी भी फिल्‍म स्‍टार के लिए ऐसा वक्‍त बहुत नाजुक होता है,क्‍योंकि वह एक तरफ आपने नए प्रशंसक बना रहा होता है,लेकिन दूसरी तरफ पुराने समर्थक खो रहा होता है। हीरोइनों के मामले में मामला और संगीन हो जाता है। प्रियंका चोपड़ा अभी इसी दौर से गुजर रही हैं। उन्‍होंने जोया अख्‍तर की ‘ दिल धड़कने दो ’ में आएशा मेहरा की भूमिका निभाई है। इस फिल्‍म में रणवीर सिंह उनके भाई बने हैं। दोनों की पिछली फिल्‍म ‘ गुंडे ’ थी। उसमें वे रोमांस करते नजर आए थे। कहना मुश्किल है कि प्रेमी ’ प्रेमिका के रूप में रणवीर सिंह और प्रियंका चोपड़ा को देख चुके दर्शक भाई-बहन के रूप में उन्‍हें पसंद करेंगे कि नहीं ? शाह रूख खान और ऐश्‍वर्या राय की ‘ जोश ’ को

करना होता है यकीन - श्रद्धा कपूर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ एबीसीडी 2 ’ डांस और टैलेंट पर आधारित ‘ एबीसीडी ’ की सीक्‍वल है। फिल्‍म का संदेश है ‘ एनी बॉडी कैन डांस ’ ... पहली फिल्‍म की सफलता के बाद थोड़ पॉपुलर स्‍टारों का लेकर इस फिल्‍म का विस्‍तार किया गया है। इसमें वरूण धवन और श्रद्धा कपूर लीड भूमिकाओं में हैं। फिल्‍म के लिए उन्‍हें डांस की स्‍पंशन ट्रेनिंग भी लेनी पड़ी। पिछले दिनों इस फिल्‍म के एक गाने ‘ ओ साथिया,ओ माहिया,बरसा दे इश्‍क की स्‍याहियां ’ गानें के फिल्‍मांकन पर श्रद्धा ने बातें कीं। फिल्‍म का यह खास गाना श्रद्धा कपूर के किरदार की भावनाओं का जाहिर करता है। - ’ ओ साथिया,ओ माहिया ’ गाने के बारे में क्‍या कहना चाहेंगी ? 0 मुझे यह गाना बहुत पसंद है। सचिन जिगर ने इस गाने में मलोडी दी है। फिल्‍म में यह एक रोमांटिक ट्रैक है। इस गाने में मेरे साथ वरूण धवन भी हैं। मैं अपनी भावनाएं इस गाने में जाहिर करती हूं। फिल्‍म में अच्‍छी तरह समझ में आएगाा कि फिल्‍म में यह गाना क्‍यों रखा गया है ? - इस गाने में आप का डांस रेगुलर फिल्‍मी डांस से अलग हैं ? 0 जी, मुझे लिरिकल हिप हॉप के लिए कहा गया था। आप

फिल्‍म समीक्षा - वेलकम टू कराची

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-अजय ब्रह्मात्‍मज भारत और पाकिस्तावन के बीच पल रहे दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों को तोड़ती कुछ फिल्मों की कड़ी में ‘वेलकम 2 कराची’ को भी रखा जा सकता है। दोनों देशों के बीच किरदारों के मेल-मिलाप, हंसी-मजाक और हास्यास्पद प्रसंगों से मौजूद तनाव को कम करने के साथ समझदारी भी बढ़ सकती है। ‘फिल्मिस्तान’ ने यह काम बहुत खूबसूरती के साथ किया था। अफसोस कि ‘वेलकम 2 कराची’ का विचार तो नेक, कटाक्ष और मजाक का था, लेकिन लेखक-निर्देशक की लापरवाही से फिल्म फूहड़ और कमजोर हो गई। कई बार फिल्में पन्नों से पर्दे तक आने में बिगड़ जाती हैं।                                        याद करें तो कभी इस फिल्मं में इरफान खान थे। अभी जो भूमिका जैकी भगनानी ने निभाई है, उसी भूमिका को इरफान निभा रहे थे। क्या उन्होंने इसी स्क्रिप्ट के लिए हां की थी या जैकी के आने के बाद स्क्रिप्ट बदली गई और उसका यह हाल हो गया? सोचने की बात है कि हर कलाकार किसी और का विकल्पय नहीं हो सकता। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बेपरवाह रवैए की ओर भी यह फिल्म इंगित करती है। कैसे स्वार्थ और लोभ में विचारों की हत्या हो जाती है? कई बार सफल निर्माता की सोच म

दरअसल : रेड कार्पेट पर ल‍हराती अभिनेत्रियां

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     हर साल मई के दूसरे हफ्ते में फ्रांस के कान शहर में कान फिल्‍म समारोह का आयोजन होता है। विश्‍व भर से नामी फिल्‍मकरों की फिल्‍मों का विभिन्‍न खंडों और श्रेणियों में प्रदर्शन किया जाता है। माना जाता है कि वहां प्रदर्शित फिल्‍में कलात्‍मक दृष्टि से श्रेष्‍ठ और दर्शनीय होती हैं। भारत से इस साल दो फिल्‍में नीरज घेवन की ‘ मसान ’ और गुरविंदर सिंह की ‘ चौथी कूट ’ गई हैं। अफसोस की बात है कि भारतीय मीडिया में इन फिल्‍मों का नहीं के बराबर कवरेज या उल्‍लेख हुआ है। कान फिल्‍म समारोह का नाम लें तो सभी यही बताते मिलेंगे कि इस साल कट्रीना कैफ भी गई थीं। उन्‍होंने रेड कार्पेट पर रेड ड्रेस पहनी थी। उनके अलावा ऐश्‍वर्श्‍या राय और सोनम कपूर भी वहां थीं। सुना है कि मल्लिका सहरावत भी पहुंच गई थीं। इस साल तो ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन की आगामी फिल्‍म ‘ जज्‍बा ’ का फर्स्‍ट लुक भी वहां रिवील किया गया। बस,वास्‍जविकता की जानकारी नहीं रहेगी।     दरअसल,कान फिल्‍म समारोह फिल्‍मों का वार्षिक मेला है,जहां फिल्‍मों के साथ दुनिया भर के वितरक और खरीददार भी पहुंचते हैं। सभी अपने देशों और बाजार क

कान में मसान को मिले दो पुरस्‍कार

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-अजय ब्रहमत्‍मज पिछले रविवार को समाप्‍त हुए कान फिल्‍म समारोह में भारत से ‘ अन सर्टेन रिगार्ड ’ खंड में गई नीरज घेवन की ‘ मसान ’ को दो पुरस्‍कार मिले। नीरज को संभावनाशील निर्देशक का पुरस्‍कार मिला और फिल्‍म को समीक्षको के इंटरनेशनल संगठन फिपरेसी का पुरस्‍कार मिला। परंपरा और आधुनिकता के साथ बाकी स्थितियों की वजह से अपनी-अपनी जिंदगियों के चौमुहाने पर खड़े दीपक,देवी,पाठक,झोंटा और अन्‍य किरदारों की कहानी है ‘ मसान ’ । इसे नीरज घेवन ने निर्देशित किया है। भारत और फ्रांस के निर्माताओं के सहयोग से बनी इस फिल्‍म की पूरी शुटिं बनारस शहर और उसके घाटों पर हुई है। मराठी मूल के नीरज घेवन परवरिश और पढ़ाई-लिखाई हैदराबाद और पुणे में हुई। नीरज खुद को यूपीवाला ही मानते हैं। बनारस और उत्‍तर भारत की भाषा,संस्‍कृति और बाकी चीजों में उनकी रुचि और जिज्ञासा बनी रही। उन्‍होंने बनारस के बैकड्राप पर एक कहानी सोच और लिख रखी थी। वे अच्‍छी-खासी नौकरी कर रहे थे और उनकी शादी की भी बात चल रही थी,लेकिन तभी फिल्‍मों में उनकी रुचि बढ़ी। वे अनुराग कश्‍यप के संपर्क में आए। अनुराग के साथ वे ‘ गैंग्‍स ऑफ व

मुकेश छाबड़ा की कहानी पिता ताराचंद छाबड़ा की जुबानी

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मुकेश छाबड़ा के जन्‍मदिन वर चवन्‍नी का तोहफा उनके पिता के सौजन्‍य से...  कास्टिंग डायरेक्‍टर मुकेश छाबड़ा के पिता ताराचंद छाबड़ा ने अपने बेटे के बारे में उनके बचपन के दिनों और परवरिश के बारे में विस्‍तार से लिखा है। यह पिता का वात्‍सल्‍य मात्र नहीं है। यह एक व्‍यक्ति के व्‍यक्तित्‍व बनने की कहानी भी है। फादर्स डे से पहले ही हम एक पिता के इन शब्‍दों को शेयर करें तो समझ बढ़ेगी कि कैसे संतान के बचपन की  की रुचि भविष्‍य में पेशे में भी बदल सकती है और वह भी खुशगवार... .. लेखक- ताराचंद छाबड़ा तारीख 27 मई , वर्ष 1980. कपूर हॉस्पिटल , पूसा रोड , नई दिल्ली. सुबह 6 बजे एक डॉक्टर के मेरे पास आईं , मैं उनकी ओर एकटक देख रहा था. मैंने पूछा कि क्या हुआ , लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. फिर दूसरी , तीसरी और चौथी डॉक्टर आईं. सबकी आंखों में नींद भरी थी. लग रहा था कि सबको नींद से जगाकर बुलाया गया है. लगभग आधे घंटे के बाद मुुझे बताया गया कि बच्चा उल्टा है और डॉक्टरों ने मिलकर यह डिलीवरी करवायी है. मुझसे कहा गया कि एक कप चाय लेकर आइए , लड़का हुआ है. मैंने अपनी चिंता जाहिर की कि