समकालीन सिनेमा - डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी
समकालीन सिनेमा पर इस सीरिज की शुरूआत डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के लेख से हो रही है। अगली सात-आठ कडि़यों में यह लेख समाप्त होगा। इस सीरिज में अन्य निर्देशकों को भी पकड़ने की कोशिश रहेगी। अगर आप किसी निर्देशक से कुछ लिखवा या बात कर सकें तो स्वागत है। विषय है समकालीन सिनेमा.... डॉ.चंद्रप्रकाश द्विवेदी हिंदी सिनेमा कहते ही मुझे हिंदी साहित्य और संस्कृति की ध्वनि नहीं सुनाई पड़ती। जैसे कन्नड़ का एक अपना सिनेमा है, बंगाल का अपना एक सिनेमा है , तमिल का अपना एक सिनेमा है। उन भाषाओं के सिनेमा में वहां का साहित्य और संस्कृति है। कन्नड़ में गिरीश कासरवल्ली लगभग पच्चीस फिल्में बनाईं। वे कम दाम की रहीं , कम बजट की रहीं। उनकी सारी फिल्में किसी न किसी कथा , लघुकथा या उपन्यास पर आधारित हैं। उन्होंने पूरी की पूरी प्रेरणा साहित्य से ली। दक्षिण के ऐसे कई निर्देशक रहे जो लगातार समांतर सिनेमा और वैकल्पिक सिनेमा को लेकर काम करते रहे। हमारे यहां लंबे समय तक श्याम बेनेगल , गोविंद निहलानी उस सिनेमा के प्रतिनिधि रहे। उसके बाद मैं जिनको देख सकता हूं जिन्होंने समानांतर और व्याव