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इम्तियाज अली से विस्‍तृत बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्‍मज जमशेदपुर में हमारे घर में फिल्म देखने का रिवाज था , पर बच्चों का फिल्म देखना अच्छा नहीं समझा जाता था। थोड़ा सा ढक छिपकर लोग फिल्म देखा करते थे। मेरे माता - पिता को फिल्मों का शौक था। वह लोग अपने माता - पिता से छिपकर फिल्म देखने जाया करते थे। मेरी पैदाइश के बाद भी वह दोनों स्कूटर पर बैठकर फिल्म देखने जाया करते थे। मेरे ख्याल से वह एक सम्मोहन था , जैसा की हर बच्चे को होता है। मैं भी फिल्मों के प्रति बचपन में सम्मोहित था। मैं बड़ा होने पर पटना गया , तब भी फिल्मों को लेकर वही माहौल रहा। आज भी मेरे निजी घर में फिल्म मैगजीन नहीं आती है। लेकिन देखा गया है कि जिस चीज के लिए मना किया जाएं , उसके प्रति सम्मोहन बढ़ता ही जाता है। हमारे परिवार में एक रिश्तेदार थे। उनके जमशेदपुर में सिनेमा हॅाल थे , जहां के लाइनमैन और दरबान हम लोगों को जानते थे। हम लोग बिना घर में किसी को बताए , सिनेमा हॉल में चले जाते थे। मुझे य

फिल्‍म समीक्षा : तुम बिन 2

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फिल्‍म रिव्‍यू  याद और फरियाद के बीच  तुम बिन 2  -अजय ब्रह्मात्‍मज  2001 : 15 साल पहले पिया ने अमर से प्रेम किया था। अमर एक दुर्घटना में मारा गया। पिया अकेली रह गई। शेखर उसका सहारा बना। इस बीच अभिज्ञान को पिया अच्‍छी लगती है,लेकिन पिया तो शेखर से प्‍यार करने लगी है। शेखर पिया की जिंदगी से निकल जाना चाहता है। पिया अभिज्ञान से सगाई कर लेती है। शेखर अपना प्रेम छिपा नहीं पाता। अमर के परिवार के लोग भी मानते हैं कि शेखर ने बहुत कुछ किया है उनके लिए। अभिज्ञान पिया को शेखर के पास भेज देता है।  2016 : इस बार तरन का प्रेम अमर से होता है। अमर एक दुर्घटना का शिकार होता है। उसका पता नहीं चलता। दुखी तरन की जिंदगी में शेखर आ जाता है। तरन फिर से खुश रहने लगती है। वह शेखर की मदद से अपने पांव पर खड़ी होती है। शेखर उसकी नयी जिंदगी का हिस्‍सा बन चुका है,लेकिन अमर की यादें कायम हैं। इस बीच किसी चमत्‍कार की तरह अमर वापस लौट आता है। अब तरन की मुश्किल होती है। वह दोनों को पसंद करती है। अमर उसका अतीत है। शेखर उसका वर्तमान है। उसे अपना भविष्‍य तय करना है।  पिया और तरन के व्‍यक्तित्‍व में पंद्रह

फिल्‍म समीक्षा : फोर्स 2

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चुस्‍त और फास्‍ट फोर्स 2 -अजय ब्रह्मात्‍मज अभिनय देव की ‘ फोर्स 2 ’ की कहानी पिछली फिल्‍म से बिल्‍कुल अलग दिशा में आगे बढ़ती है। पिछली फिल्‍म में पुलिस अधिकारी यशवर्द्धन की बीवी का देहांत हो गया था। फिल्‍म का अंत जहां हुआ था,उससे लगा था कि अगर भविष्‍य में सीक्‍वल आया तो फिर से मुंबई और पुलिस महकमे की कहानी होगी। हालांकि यशवर्द्धन अभी तक पुलिस महकमे में ही है,लेकिन अपने दोस्‍त हरीश की हत्‍या का सुराग मिलने के बाद वह देश के रॉ डिपाटमेंट के लिए काम करना चाहता है। चूंकि वह सुराग लेकर आया है और उसका इरादा दुष्‍चक्र की जड़ तक पहुंचना है,इसलिए उसे अनुमति मिल जाती है। रॉ की अधिकारी केके(सोनाक्षी सिन्‍हा) के नेतृत्‍व में सुराग के मुताबिक वह बुदापेस्‍ट के लिए रवाना होता है। फिल्‍म की कहानी चीन के शांगहाए शहर से शुरू होती है। फिर क्‍वांगचओ शहर भी दिखता है। पेइचिंग का जिक्र आता है। हाल-फिलहाल में किसी फिल्‍म में पहली बार इतने विस्‍तार से चीन का रेफरेंस आया है। बदलाव के लिए चीन की झलकी अच्‍छी लगती है। फिल्‍म में बताया जाता है कि चीन में भारत के 20 रॉ ऑफिसर काम में लगे

दरअसल : किसे परवाह है बच्‍चों की

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-अजय ब्रह्मात्‍मज वैसे भी वर्तमान सरकार को पिछली खास कर कांग्रेसी सरकारों की आरंभ की गई योजनाएं अधिक पसंद नहीं हैं। उन योजनाओं को बदला जा रहा है। जिन्‍हें बदल नहीं सकते,उन्‍हें नया नाम दिया जा रहा है। लंबे समय तक 14 नवंबर बाल दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाता रहा है। 14 नवंबर देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्‍मदिन है। चूंकि बचचों से उन्‍हें अथाह प्रेम था,इसलिए उनके जन्‍मदिन को बाल दिवस का नाम दिया गया। 40 की उम्र पार कर चुके व्‍यक्तियों को याद होगा कि स्‍कूलों में बाल दिवस के दिन रंगारंग कार्यक्रम होते थे। बच्‍चों के प्रोत्‍साहन और विकास के लिए खेल और सांस्‍कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। कह सकते हैं कि तब बच्‍चों के लिए मनोरंजन के विकल्‍प कम थे,इसलिए ऐसे कार्यक्रमों में बच्‍चों और उनके अभिभावकों की अच्‍छी भागीदासरी होती थी। इस साल 14 नवंबर आया और गया। देश के अधिकांश नागरिकों का समय बाल दिवस के पहले कतारों में बीत गया। वे अपनी गाढ़ी कमाई के पुराने पड़ गए नोटों को बदलवाने में लगे थे। उन्‍हें अपने बच्‍चों की सुधि नहीं रही। कमोबेसा सिनेमा में भी यही

फिल्‍म समीक्षा : रॉक ऑन 2

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रॉक ऑन 2 पहली से कमतर -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍मों में सीक्‍वल पिछली या पुरानी फिल्‍मों से कम ही जुड़ते हैं। ‘ रॉक ऑन 2 ’ और ‘ रॉक ऑन ’ में अनेक चीजें जुड़ी हुई हैं। मुख्‍य किरदारों में आदि,जो और केडी हैं। पिछली फिल्‍म के बाद उनके रास्‍ते अलग हो चुके हैं। दोनों फिल्‍मों में आठ सालों का अंतर है। इस अंतर को रियल मान लें तो पिछले आठ सालों में   आदि मुंबई छोड़ कर मेघालय में बस गया है। वह वहां के एक गांव में कोऑपरेटिव सिस्‍टम से विकास के काम में लगा है। जो ने एक पॉश क्‍लब खोल लिया है और रियलिटी शो में जज बनता है। केछी अभी तक म्‍यूजिक के धंधे में है। केडी चाहता है कि फिर से सारे दोस्‍त मिलें और अपने बैंड ‘ मैजिक ’ को रिवाइव करें। आदि के जन्‍मदिन पर सभी दोस्‍म मेघालय में मिलते हैं। वहां फिर से बैंड को रिवाइव करने की बात उठती है। आदि राजी नहीं होता। बैकस्‍टोरी सामने आती है कि वह पश्‍चाताप में जल रहा है। उसे लगता है कि युवा म्‍यूजिशियन राहुल शर्मा ने उसके नजरअंदाज करने की वजह से ही जान ली। इस बीच एक हादसा और कई संयोग होते हैं। पिछली फिल्‍म से नई फिल्‍म को जोड़ने के लिए लेखक

फिल्‍म समीक्षा : चार साहिबजादे : द राइज ऑफ बंदा सिंह बहादुर

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बंदा बहादुर की शौर्य गाथा चार साहिबजादे : द राइज ऑफ बंदा सिंह बहादुर -अजय ब्रह्मात्‍मज सिखों के इतिहास में उनके 10 वें गुरू गोविद सिंह का खास स्‍थान है। उन्‍होंने अपने निधन से पहले यह घोषणा की थी कि उनके बाद कोई देहधारी गुरू नहीं होगा। उन्‍होंने धार्मिक ग्रंथ को गुरू ग्रंथ साहिब का दर्जा दिया था। उन्‍होंने ही पंज प्‍यारे को सिखों की कमान सौंपी थी। पंज प्‍यारों की देख ’ रेख में बंदा सिंह बहादुर ने मुगलों के खिलाफ जंग छेड़ी और सिखों की राजनीतिक प्रतिष्‍ठा हासिल की। एनीमेश फिल्‍म ‘ चार साहिबजादे : द राइज ऑफ बंदा सिंह बहादुर ’ मुख्‍य रूप से उनकी जीवनगाथा है। दो साल पहले हैरी बावेजा ने गुरू गोविंद सिंह के चारों बेटों की शहादत पर ‘ चार साकहबजादे ’ फिल्‍म बनाई थी। ‘ चार साहिबजादे : द राइज ऑफ बंदा सिंह बहादुर ’ उसकी की अगजी कड़ी है। नई फिल्‍म में गुरू गोविंद सिंह और उनके बेटों के संदर्भ से ही बंदा सिंह बहादुर की कहानी आगे बढ़ती है। लक्ष्‍मण दास ने कठोर तपस्‍या से ऋषि माधे दास नाम अर्जित किया था। वे तंत्र-मंत्र में दीक्षित थे। गुरू गोविंद सिंह ने नांदेड़ प्रवास के दौरा

फिल्‍म समीक्षा : डोंगरी का राजा

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डोंगरी का राजा -अजय ब्रह्मात्‍मज डोंगरी मुंबई की एक बस्‍ती है। अंडरवर्ल्‍ड के सरगनाओं के लिए कुख्‍यात यह बस्‍ती सदियों पुरानी है। अंग्रेजों के समय बसाई गई इस बस्‍ती का इतिहास 400 साल से अधिक का है। आजादी के बाद के दिनों में हाजी मस्‍तान,करीम लाला,दाउद इब्राहिम,छोटा शकील,अरूण गवली और रामा नाईक की वजह से यह बस्‍ती अंडरवर्ल्‍ड गतिविधियों का प्रमुख केंद्र मानी जाती है। हादी अली अबरार की फिल्‍म ‘ डोंगरी का राजा ’ टायटल की वजह से जिज्ञासा बढ़ाती है। पहला अनुमान यही होता है कि यह निश्चित ही अंडरवर्ल्‍ड की कहानी होगी। ‘ डोंगरी का राजा ’ अंडरवर्ल्‍ड की पृष्‍ठभूमि में एक प्रेमकहानी है। इस प्रेमकहानी के प्रमुख किरदारों को दो नए कलाकारों ने निभाया है। गशमीर महाजन और रिचा सिन्‍हा ने राजा और रितू की भूमिकाओं में हैं। राजा इस फिल्‍म का नायक है। वह डोंगरी के अंडरवर्ल्‍ड सरगना मंसूर अली का शार्प शूटर है। मंसूर अली की बीवी उसे अपने बेटे की तरह मानती है और मंसूर अली भी उसे पसंद करता है। युवा और ईमानदार पुलिस अधिकारी सिद्धांत उसे गिरफ्तार करने में असफल रहता है,क्‍योंकि मंसूर और राजा के खिल