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अलग दुनिया से होगा राब्‍ता - सुशांत सिंह राजपूत

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स्‍पांटिनिटी मेथड से ही आती है-सुशांत सिंह राजपूत -अजय ब्रह्मात्‍मज सुशांत सिंह राजपूत लगातार सुर्खियों में हैं। कभी बेवजह तो कभी फिल्‍मों की वजह से। वजह वाजिब हो तो चित्‍त प्रसन्‍न होता है। अगर खबरें बेवजह हों तो मन खिन्‍न होता है और फिर खटास बढ़ती है। शायद यही कारण है कि वे मीडियकर्मियों से दूरी बरतने लगे हैं। थोड़े सावधान रहते हैं। हां, कभी जवाब में ट्वीट भी कर देते हैं। उनकी ‘ राब्‍ता ’ रिलीज के लिए तैयार है। वे अगली फिल्‍म की तैयारियों में भी जुट चुके हैं। - बहरहाल,फिल्‍मों के फ्रंट पर क्‍या-क्‍या चल रहा है ? 0 मैंने ‘ ड्राइव ’ फिल्‍म पूरी कर ली है। ‘ चंदा मामा दूर के ’ की तैयारियां चल रही हैं। यह जुलाई के आखिरी हफ्ते में शुरू होगी। दो-तीन तरह की ट्रेनिंग है। एस्‍ट्रोनोट की जानकारियां दी जा रही हैं। फ्लाइंग के अनुभव दिए जा रहे हैं। अगले महीने हमलोग नासा जाएंगे। वहां भी ट्रेनिंग लेनी है। उसके बाद शूटिंग चालू होगी। मेरे लिए काफी चैलेंजिंग है। देश-दुनिया के दर्शकों ने ग्रैविटी देख ली है। ‘ लाइफ ’ देख चुके हें। हमारे पास हॉलीवुड का मेगाबजट नहीं है,लेकिन असर उसके

रब के बनाए रिश्‍ते हैं राब्‍ता - दिनेश विजन

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दिनेश विजन -अजय ब्रह्मात्‍मज दिनेश विजन पहले निर्माता बने और फिर उन्‍होंने निर्देशक की कमान संभली। उनके निर्देशन सुशांत सिंह राजपूत और कृति सैनन अभिनीत ‘ राब्‍ता ’ अगले हफ्ते रिलीज होगी। दिनेश विजन ने इस बातचीत में अपनी पसंद और यात्रा के बारे में बातें कीं।-क्‍या शुरू से ही निर्देशन में आने का इरादा था ? 0 मुझे तो यह भी मालूम नहीं था कि मैा फिल्‍में बनाऊंगा। 20साल की उम्र में अपने बहनोई के साथ एक ऐड फिल्‍म के शूट पर गया था। तब यह विचित्र दुनिया मुझे अच्‍छी लगी थी। वह आकर्षण तक ही रहा। मुझे बचपन से किस्‍से सुनाने का शौक रहा है। मैंने अपने पिता से कहा भी था कि मुझे फिल्‍म और टीवी के लिए   काम करना है। उन्‍होंने फिल्‍म इंडस्‍ट्री में आकर बर्बाद हुए अनेक लोगों के बारे में सुन रखा था। उन्‍होने साफ शब्‍दों में कहा कि आप एमबीए करोगे।उनके इस आदेश का एक फायदा हुआ कि मुझे बिजनेस की समझ हो गई। पिताजी चाहते थे कि मैं उनके बिजनेस को आगे बढ़ाऊं। मैाने होमी अदजानिया केसाथ मिल कर एक कंपनी बनाई। होमी ने ‘ बीइंग साइरस ’ की कहानी सुनाई थी। हम ने वह फिल्‍म अंग्रेजी में बना दी। उसके बाद भ

रोज़ाना : इतने सारे फाल्‍के अवार्ड?

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रोज़ाना इतने सारे फालके अवार्ड ? -अजय ब्रह्मात्‍मज कल अखबारों और चैनलों पर खबर थी कि प्रियंका चोपड़ा और कपिल शर्मा को दादा साहेब फाल्‍के अकादेमी अवार्ड से सम्‍मानित किया गया। इस खबर को पढ़ते समय पाठक ‘ अकादेमी ’ शब्‍द पर गौर नहीं करते। एक भ्रम बनता है कि उन्‍हें प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्‍के अवार्ड कैसे मिल गया ? देश में खास कर महाराष्‍ट्र में दादा साहेब फाल्‍के के नाम से और भी अवार्ड हैं। दादा साहेब फाल्‍के के नाम पर चल रहे इन पुरस्‍कारों से देश के सर्वोच्‍च फिल्‍म पुरस्‍कार की मर्यादा मलिन होती है। राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कारों की घोषणा के साथ या आसपास दादा साहेब फाल्‍के पुरस्‍कार की भी घोषणा होती है। यह पुरस्‍कार से अधिक सम्‍मन है। सिनेमा में अप्रतिम योगदान के लिए किसी एक फिल्‍मी हस्‍ती को यह पुरस्‍कार दिया जाता है। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन दिए जाने वाले राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार की यह श्रेणी अत्‍यंत सम्‍मानीय है। इस साल दक्षिण के के विश्‍वनाथ को इस पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया है। कायदे से सूचना एवं प्रसारण मंत्राालय को इस आशय की अधिसू

दरअसल : फिल्‍मों पर 28 प्रतिशत जीएसटी

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दरअसल... फिल्‍मों पर 28 प्रतिशत जीएसटी -अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ बाहुबली ’ और ‘ दंगल ’ की अद्वितीय कामयाबी और 1000 करोड़ से अधिक के कलेक्‍शन के बावजूद भारतीय सिनेमा की आर्थिक सच्‍चाई छिपी हुई नहीं है। बमुश्किल 10 प्रतिशत फिल्‍में मुनाफे में रहती हैं। बाकी फिल्‍मों के लिए अपनी लागत निकाल पाना भी मुश्किल होता है। फिल्‍में अगर नहीं चलती हैं तो उससे जुड़े दूसरे व्‍यापारों को भी नुकसान उठाना पड़ता है। अगर कोई फिल्‍म चल जाती है तो अ के पास के खोमचे वाले की भी बिक्री और आमदनी बढ़ जाती है। फिल्‍मों पर आजादी के पहले से टैक्‍स लग रहे हैं। विभिन्‍न सरकारें अपनी सोच के हिसाब से कर सुधार करती हैं। लंबे समय से फिल्‍म बिरादरी और दर्शकों की मांग रही है कि फिल्‍मों के टिकट पर कर नहीं लगना चाहिए। फिल्‍म व्‍यवसाय को बढ़ाने के लिए यह जरूरी है। सबसे पहले अंगेजों ने मनोरंजन कर आरंभ किया। फिल्‍मों के प्रदर्शन पर कर लादने के पीछे उनका दोहरा उद्देश्‍य था। उन्‍हें लगता था कि फिल्‍में देखने के लिए दर्शक जमा होते हैं। वहां उनके समूह को ग्रेजों के खिलाफ उकसाया जा सकता है। भीड़ कम करने की गरज से उन्‍ह

फिल्‍म समीक्षा : अ डेथ इन द गंज

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फिल्‍म रिव्‍यू अ डेथ इन द गंज -अजय ब्रह्मात्‍मज कोंकणा सेन शर्मा निर्देशित ‘ अ डेथ इन द गंज ’ बांग्‍ला फिल्‍मों की परिपाटी की हिंदी फिल्‍म है। इन दिनों बंगाल और देश के दूसरे हिस्‍सों से आए अनेक बांग्‍ला फिल्‍मकार हिंदी में फिल्‍में बना रहे हैं। पुराने बांग्‍ला फिल्‍मकारों की तरह वे बंगाल की पष्‍ठभूमि तो रखते हैं,लेकिन संस्‍कृति और संवेदना के लिहाज से उनमें बांग्‍ला टच नहीं रहता। ज्‍यादातर फिल्‍में उस शहरीकरण की शिकार होती है,जिसके तहत देश भर के दर्शकों का खुश करने की कोशिश रहती है। कोकणा सेन शर्मा की फिल्‍म में ऐसी कोशिश नहीं है। उनकी फिल्‍म बांग्‍ला के मशहूर फिल्‍मकारों की परंपरा में हैं। इस फिल्‍म के लिए कोंकणा सेन शर्मा ने अपने पिता मुकुल शर्मा की कहानी को आधार बनाया है। रांची के पास स्थित मैक्‍लुस्‍कीगंज में फिलम का परिवेश है और यह साल 1979 की बात है। कोकणा सेन शर्मा और उनकी टीम ने बहुत खूबसूरती से ततकालीन माहौल को पर्देपर रचा है। भाषा,परिवेश,परिधान और आचार-व्‍यवहार में पीरियड का यथोचित ध्‍यान रखा गया है। हां,भाषा को लेकर आम दर्शकों को दिक्‍कत हो सकती है,क्‍योंकि

रोज़ाना : फिल्‍में नहीं,चमके सितारे

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रोज़ाना फिल्‍में नहीं,चमके सितारे -अजय ब्रह्मात्‍मज भारत में सबसे अधिक फिल्‍में बनती हैं। यहां की फिल्‍म इंडस्‍ट्री हॉलीवुड के मुकाबले खड़ी है। अब तो ‘ दंगल ’ और ‘ बाहुबली ’ का उदाहरण दिया जा सकता है कि हमारी फिल्‍में 1000 करोड़ से अधिक का कलेक्‍शन करती हैं। निश्चित ही आगामी वर्षें में भारतीय फिल्‍मों का कैनवास बड़ा होगा। बड़े पैमाने पर तकनीकी गुण्‍वत्‍ता के साथ उनका निर्माण और वितरण होगा। अधिकाधिक आय की संभावनाएं बनेंगी। इस प्रयाण के बावजूद जब इंटरनेशनल फेस्टिवल और मंचों पर भारतीय फिल्‍में नहीं दिखतीं तो अफसोस होता है। मन मसोस कर रह जाना पड़ता है। हाल ही में संपन्‍न कान फिल्‍म समारोह की भारतीय मीडिया में चर्चा रही। रोजाना कुछ तस्‍वीरें छपती रहीं। मुख्‍य रूप से ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन,सोनम कपूर और दीपिका पादुकोण की आकर्षक और नयनाभिरामी तस्‍वीरों से पत्र-पत्रिकाएं भरी रहीं। हम ने यह भी देखा कि उन्‍हें घेरे फोटोग्राफर खड़ रहे और उन्‍होंने मटकते हुए रेड कार्पेट पर पोज किया। ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन 2002 से कान फिल्‍म समारोह में जा रही हैं। सोनम कपूर को भी छह साल हो गए। इस साल

रोज़ाना : जे पी दत्‍ता की ‘पलटन’

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रोज़ाना जे पी दत्‍ता की ‘ पलटन ’ -अजय ब्रह्मात्‍मज खबरें आ रही हैं कि जेपी दत्‍ता ‘ उमराव जान ’ की रिलीज के 11 सालों के बाद फिर से ‘ लाइट कैमरा एक्‍शन ’ कहने के लिए तैयार हैं। वे ‘ पलटन ’ नाम की फिल्‍म का निर्देशन करेंगे,जिसमें उनके चहेते फिल्‍म स्‍टार अभिषेक बच्‍चन रहेंगे। अभिषेंक बच्‍चन के साथ सूरज पंचोली और पुलकित सम्राट भी फिल्‍म में होगे। जेपी दत्‍ता की ‘ बोर्डर ’ के सीक्‍वल की खबरें लंबे समय तक चलीं। यह फिल्‍म धरी रह गई। सबसे बड़ी वजह बजट और कलाकारों की भागीदारी है। इन दिनों फिल्‍म स्‍टार किसी भी भी को 30 से 60 दिनों का समय देते हैं और चाहते हैं कि एक ही शेड्यूल में फिल्‍म पूरी हो जाए। अगर आज के माहौल में जेपी दत्‍ता की ‘ एलओसी कारगिल ’ की कल्‍पना करें तो वह असंभव हो जाएगी।   इस पैमाने,स्‍तर और समय के साथ अभी फिल्‍में बनाना मुश्किल हो चुका है। ऐसा लगता है कि ‘ बाहुबली ’ फिल्‍मों की कामयाबी ने ही जेपी दत्‍ता को अपने किस्‍म की एपिक फिल्‍म के लिए तैयार किया होगा। अभिशेक बच्‍चन और करीना कपूर की पहली फिल्‍म ‘ रिफ्यूजी ’ के निर्देशक जेपी दत्‍ता ही थे। उन्‍हें उ

रोज़ाना : बेटियों से शक्ति कपूर की अपील

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रोज़ाना शक्ति कपूर की बेटियों से अपील - अजय ब्रह्मात्‍मज हाल ही में अभिनेता शक्ति कपूर ने एक वीडियो संदेश जारी किया है। सभी जानते हैं कि शक्ति कपूर की बेटी श्रद्धा कपूर चर्चित और लोकप्रिय अभिनेत्री हैं। पिछले कुछ समय से शक्ति कपूर और श्रद्धा कपूर चर्चा में हैं। मुंबई की हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के गलियारों और फिल्‍मी पत्र-पत्रिकाओं में लगातार खबरें चल रही हैा कि ' रॉक ऑन ' के समय से फरहान अख्‍तर और श्रद्धा कपूर के बीच कुछ चल रहा है। दोनों की नजदीकियों के किस्‍से पहले तो फिल्‍म रिलीज के समय के प्रचार अभियान का किस्‍सा लगे , लेकिन बाद की खबरों से भान हुआ कि मामला गंभीर है। बीच में यह भी खबर आई कि शक्ति कपूर श्रद्धा कपूर को मना कर घर वापस ले आए थे। शक्ति कपूर के ताजा वीडियो संदेश के आशय पर गौर करें तो वे आम बेटियों के बहाने सीधे श्रद्धा कपूर को संबोधित कर रहे हैं। इस वीडियो संदेश में शक्ति कपूर ने कहा है कि मैं एक पिता हूं। मेरी एक बेटी है और एक बेटा भी है। अगली पंक्तियों में बात बेटी तक सिमट जाती है। वे कहते हैं कि हम ने तुम्‍हें लाड़ के साथ पढ़ाया।

रोज़ाना : ऑनलाइन प्‍लेटफॉर्म

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रोज़ाना ऑनलाइन प्‍लेटफॉर्म -अजय ब्रह्मात्‍मज कुछ दिनों पहले हालीवुड के स्‍टार ब्रैड पिट कुछ घंटों के लिए भारत आए थे। मौका उनकी नई फिल्‍म के भारत में इवेंट का था। ब्रैड पिट की यह फिल्‍म ‘ नेटफिल्‍क्‍स ’ के सहयोग से बनी है। नेटफिल्‍क्‍स ऑनलाइन प्‍लेटफॉर्म है। आप एक निश्चित रकम देकर नेटफिल्‍क्‍स पर फिल्‍में,टीवी शो और अन्‍य ऑडिये-विजुअल कार्यक्रम देख सकते हैं। भारत में नेटफिल्‍क्‍स के साथ अमैजॉन भी भविष्‍य की तैयारियों में है। ये दोनों प्‍लेटफॉर्म बड़ पैमाने पर भारतीय कंटेंट खरीद रहे हैं और भारतीय निर्माताओं व कलाकारों के सहयोग से नए कंटेंट तैयार कर रहे हैं। इन दिनों हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री का हर सक्रिय सदस्‍य किसी न किसी प्रकार इन दोनों ऑन लाइन फल्‍ेटफॉर्म में से किसी एक से जुड़ना चाह रहा है। ब्रैड पिट ने त्रवार मशीन ’ का निर्माण नेटफिल्‍क्‍स के लिए किया। यह फिल्‍म ऑनलाइन ही देखी जा सकेगी। माना जा रहा है कि सिनेमा का यही भविष्‍य है या फिर एक कमाईदार विकल्‍प है। ‘ वार मशीन ’ जैसी फिल्‍में थिएटर रिलीज को ध्‍यान में रख कर नहीं बनाई जा सकती थी। हालीवुड के स्‍टूडियो भी ऐस

फिल्‍म समीक्षा : सचिन

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फिल्‍म रिव्‍यू सचिन सचिन सचिन : अ बिलियन ड्रीम्‍स -अजय ब्रह्मात्‍मज ’ सचिन सचिन ’ की आवाज और गूंज के साथ यह फिल्‍म सभी दर्शकों दिल-ओ-दिमाग में प्रतिध्‍वनित होती है। सचिन भी बताते हैं ये दो शब्‍द ‘ सचिन सचिन ’ वे नहीं भूल पाए हैं। इन दो शब्‍दों में ही प्रशंसकों और देशवासियों का प्रेम समा जाता है। न तो यह फीचर फिल्‍म है और न डाक्‍यूमेंट्री। भारतीय क्रिकेट के के श्रेष्‍ठ खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के खेल जीवन के प्रसंगों और लाइव फुटेज को जोड़ कर बनायी गयी यह फिल्‍म एक खिलाड़ी के समर्पण,लगन और जीवन का परिचय देती है। फिल्‍म में एक जगह आमिर खान बिल्‍कुल सही कहते हैं कि सचिन हमारे सामूहिक गर्व के प्रतीक हैं। फिल्‍म में अमिताभ बच्‍चन भी बताते हैं कि सचिन के मैदान में मौजूद रहने पर सारी संभावनाएं कायम रहती हैं। यह फिल्‍म स्‍कूलों में अनिवार्य कर देनी चाहिए। बच्‍चे किसी भी क्षेत्र में अपनी रुचि से बड़ें,लेकिन उनमें लगन और समर्पण तो होना ही चाहिए। खेलप्रेमी खास कर क्रिकेटप्रेमी सचिन के बारे में सब कुछ जानते हैं। यह फिल्‍म सचिन के मैचों के फुटेज से वैसा ही रोमांच पैदा करती है। फ