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सिनेमालोक : जवार और जेएनयू के नरेन्‍द्र झा

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सिनेमालोक जवार और जेएनयू के नरेन्‍द्र झा -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले हफ्ते टीवी और फिल्‍मों में एक्टिंग से अपनी पहचान मजबूत कर रहे कलाकार नरेन्‍द्र झा का आकस्मिक निधन हो गया। अभी तक उनके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। रविवार की शाम मुंबई में उनकी स्‍मृति में आयोजित शोक सभा में उनके परिचित,मित्र और रिश्‍तेदार उन्‍हें अलग-अलग नामों से याद कर रहे थे। किसी के लिए वे बड़े भाई,किसी के लिए चाचा,किसी के गार्जियन तो किसी के गॉड फादर...। परिजनों के लिए वे नरेन,फूल बाबू और कन्‍हैया थे। उत्‍तर भारत के मध्‍यवर्गीय परिवारों में हर व्‍यक्ति को अनेक नामों से पुकारा और दुलारा जाता है। हिंदी फिल्‍मों में आए उत्‍तर भारत के कलाकार अपने सारे संबंधों का निर्वाह करते हैं। समृद्ध और मशहूर होने की वजह से उनकी जिम्‍मेदारी बढ़ जाती है। वे सभी के अपने हो जाते हैं। मामी के चचेरे भाई की साली के देवर का बेटा भी बड़े ह क से भैया कहते हुए उनसे उम्‍मीद रख सकता है। उत्‍तर भारत से आए कलाकारों के इर्द-गिर्द ऐसे रिश्‍तेदारों की भरमार होती है। उन्‍हें इन कलाकारों से पैसे,नौकरी और मौके सभी कुछ चाहिए होता है।

फिल्‍म समीक्षा : रेड

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फिल्‍म समीक्षा हिंदी समाज की बुनावट के चरित्रों की कहानी रेड -अजय ब्रह्मात्‍मज रितेश शाह की लिखी स्क्रिप्‍ट पर राज कुमार गुप्‍ता निर्देशित फिल्‍म ‘रेड’ के नायक अजय देवगन हैं। मुंबई में बन रही हिंदी फिल्‍मों में हिंदी समाज नदारद रहता है। रितेश और राज ने ‘रेड’ को लखनऊ की कथाभूमि दी है। उन्‍होंने लखनऊ के एक दबंग नेता के परिवार की हवेली में प्रवेश किया है। वहां की पारिवारिक सरंचना में परिवार के सदस्‍यों के परस्‍पर संबंधों के साथ उनकी समानांतर लालसा भी देखी जा सकती है। जब काला धन और छिपी संपत्ति उद्घाटित होती है तो उनके स्‍वार्थों का भेद खुलता है। पता चलता है कि संयुक्‍त परिवार की आड़ में सभी निजी संपत्ति बटोर रहे थे। घर के बेईमान मुखिया तक को खबर नहीं कि उसके घर में ही उसके दुश्‍मन और भेदी मौजूद हैं। इस फिल्‍म के मुख्‍य द्वंद्व के बारे में कुछ लिखने के पहले यह गौर करना जरूरी है कि हिंदी फिल्‍मों में उत्‍तर भारत के खल चरित्रों को इस विस्‍तार और बारीकी के साथ कम ही पर्दे पर उतारा गया है। प्रकाश झा की फिल्‍मों में सामंती प्रवृति के ऐसे नेता दिखते हैं,जो राजनीति क