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सामाजिक मुद्दे लुभाते हैं मुझे : अक्षय कुमार

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अक्षय कुमार -अजय ब्रह्मात्‍मज अक्षय कुमार इन दिनों परिवार के साथ वार्षिक छुट्टी पर हैं। उनकी फिल्‍म ‘ टॉयलेट : एक प्रेम कथा ’ का ट्रेलर 11 जून को दर्शकों के बीच आएगा। इस फिल्‍म को लेकर वह अतिउत्‍साहित हैं। उन्‍होंने छुटिटयों पर जाने के पहले अपने दफ्तर में इस फिल्‍म का ट्रेलर दिखाया और फिल्‍म के बारे में बातें कीं। तब तक ट्रेलर पूरी तरह तैयार नहीं हुआ था तो उन्‍होंने अपने संवाद बोल कर सुना दिए। ‘ टॉयलेट : एक प्रेम कथा ’ के बारे में उनका मत स्‍पष्‍ट है। वे कहते हैं कि मैाने मुद्दों को सींग से पकड़ा है। आम तौर पर फिल्‍मों में सीधे सामाजिक मुद्दों की बाते नहीं की जातीं,लेकि ‘ टॉयलेट : एक प्रेम कथा ’ में शौच की सोच का ऐसा असर है कि टायटल में टॉयलेट के प्रयोग से भी निर्माता,निर्देशक और एक्‍टर नहीं हिचके। -शौच के मुद्दे पर फिल्‍म बनाने और उसका हिस्‍सा होने का खयाल कैसे आया ? 0जब मुझे पता चला कि देश की 54 प्रतिशत आबादी के पास अपना टॉयलेट नहीं है तो बड़ा झटका लगा। मुझे लगा कि इस मुद्दे पर फिल्‍म बननी चाहिए। ऐसा नहीं है कि किसी दिक्‍कत या गरीबी की वजह से टॉयलेट की कमी है।

फिल्‍म समीक्षा : राब्‍ता

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फिल्‍म रिव्‍यू मिल गए बिछुड़े प्रेमी राब्‍ता -अजय ब्रह्मात्‍मज दिनेश विजन की ‘ राब्‍ता ’ के साथ सबसे बड़ी दिक्‍क्‍त हिंदी फिल्‍मों का वाजिब-गैरवाजिब असर है। फिल्‍मों के दृश्‍यों,संवादों और प्रसंगों में हिंदी फिल्‍मों के आजमाए सूत्र दोहराए गए हैं। फिल्‍म के अंत में ‘ करण अर्जुन ’ का रेफरेंस उसकी अति है। कहीं न कहीं यह करण जौहर स्‍कूल का गलत प्रभाव है। उनकी फिल्‍मों में दक्षता के साथ इस्‍तेमाल होने पर भी वह खटकता है। ‘ राब्‍ता ’ में अनेक हिस्‍सों में फिल्‍मी रेफरेंस चिपका दिए गए हैं। फिल्‍म की दूसरी बड़ी दिक्‍कत पिछले जन्‍म की दुनिया है। पिछले जन्‍म की भाषा,संस्‍कार,किरदार   और व्‍यवहार स्‍पष्‍ट नहीं है। मुख्‍य रूप से चार किरदारों पर टिकी यह दुनिया वास्‍तव में समय,प्रतिभा और धन का दुरुपयोग है। निर्माता जब निर्देशक बनते हैं तो फिल्‍म के बजाए करतब दिखाने में उनसे ऐसी गलतियां हो जाती हैं। निर्माता की ऐसी आसक्ति पर कोई सवाल नहीं करता। पूरी टीम उसकी इच्‍छा पूरी करने में लग जाते हैं। ‘ राब्‍ता ’ पिछली दुनिया में लौटने की उबासी से पहले 21 वीं सदी की युवकों की अनोखी प्रेमकह

फिल्‍म समीक्षा : बहन होगी तेरी

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फिल्‍म रिव्‍यू उम्‍मीद से कम बहन होगी तेरी -अजय ब्रह्मात्‍मज अजय पन्‍नालाल की ‘ बहन होगी तेरी ’ लखनऊ के एक मोहल्‍ले की कहानी है। एक ही गली में रह रहे गट्टू और बिन्‍नी की इस प्रेमकहानी में अनेक पेंच हैं। गट्टू और उस जैसे युवक ‘ मोहेल्‍ले की सभी लड़कियां बहन होती हैं ’ के दर्शन में यकीन नहीं रखते। राखी के दिन वे भागते फिरते हैं कि कहीं कोई लड़की राखी न बांध दे। सभी लड़कों को भाई बना कर लड़कियों की रक्षा की इस दकियानूसी सोच पर बेहद रोचक और मजेदार फिल्‍म की उम्‍मीद ‘ बहन होगी तेरी ‘ पूरी नहीं कर पाती। गट्टू मोहल्‍ले के दूसरे लड़कों की तरह ही राखी के दिन बचता फिरता है। दब्‍बू और लूजर गट्टू पड़ोस की बिन्‍नी को पसंद करता है। वह उसी के साथ शादी करना चाहता है। मोहल्‍ले के पुराने रिश्‍ते(भाई-बहन) उसके आड़े आते हैं। उसके अपने परिवार के साथ ही बिन्‍नी का परिवार भी उसे भाई होने और वैसे ही आचरण करने की शिक्षा देते हैं। गट्टू की लगातार कोशिशों के बाद बिन्‍नी उससे प्रेम करने लगती है,लेकिन परिवार के दबाव के आगे उसकी एक नहीं चलती। रिश्‍तेदारी और स्थितियां उलझती चली जाती हैं। लंबी उल

रोज़ाना : मनमोहन सिह पर बनेगी फिल्‍म

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रोज़ाना मनमोहन सिह पर बनेगी फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज किसी राजनीतिक व्‍यक्ति की जिंदगी फिल्‍म का रोचक हिस्‍सा हो सकती है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री की चुप्‍पी के इतने किस्‍से हैं। विरोधी पार्टियों और आलोचकों ने उन पर फब्तियां कसीं। उन्‍हें ‘ मौनमोहन ’ जैसे नाम दिए गए। मीडिया में उनका मखौल उड़ाया गया,फिर भी एक अर्थशास्‍त्री के रूप में उनके योगदार को भारत नहीं भुला सकता। आर्थिक उदारीकरण से लेकर विश्‍वव्‍यापी मंदी के दिनों में भी उन्‍होंने अपनी अर्थ नीतियों से विकासशील देश को बचाया। आर्थिक प्रगति की राह दिखाई। 2004 से 2008 तक उनके मीडिया सलाहकार रहे संजॉय बारू ने मनामोहन के व्‍यक्तित्‍व पर संस्‍मरणात्‍मक पुस्‍तक लिखी थी। 2014 में प्रकाशित इस पुस्‍तक का नाम ‘ द एक्‍सीडेटल प्राइममिनिस्‍टर - द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमाहन सिंह ’ है। इस पुस्‍तक के प्रकाशन के समय ही विवाद हुआ था। दरअसल,दृष्टिकोण और व्‍याख्‍या से तथ्‍यों की धारणाएं बदल जाती हैं। कई बार ऐसी किताबों की व्‍याख्‍या से प्रचलित धारणाओं की पुष्टि कर देती है। अब इसी पुस्‍तक पर एक फिल्‍म बनने जा रही है। इस फिल्‍म में अ

रोज़ाना : रानी की आएगी फिल्‍म

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रोज़ाना रानी की आएगी फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज दो महीने पहले 4 अर्पैल को रानी मुखर्जी की नई फिल्‍म ‘ हिचकी ’ की शूटिंग आरंभ हुई थी। दो महीनों के अंदर इसकी शूटिंग पूरी हो गई। 5 जून को यशराज फिल्‍म्‍स ने फिल्‍म की समाप्ति की तस्‍वीर भेजी। रानी मुखर्जी की ‘ हिचकी ’ फटाफट पूरी की गई है। उन्‍होंने अपने करिअर में सबसे ज्‍यादा फिल्‍में यशराज फिल्‍म्‍स के साथ ही की हैं। यशराज के साथ 2002 में ‘ साथिया ’ से आरंभ हुई उनकी यात्रा ‘ मर्दानी ’ तक पहुंची है। ‘ हिचकी ’ उनकी अगली फिल्‍म होगी। यशराज बैनर के तहत ‘ हिचकी ’ के निर्माता मनीष शर्मा हैं। इस व्‍यवस्‍था के अंतर्गत मनीष शर्मा की यह तीसरी फिल्‍म होगी। इसके पहले वे ’ दम लगा के हईसा ’ और ‘ मेरी प्‍यारी बिंदु ’ कर निर्माण कर चुके हैं। इनमें से पहली चली और प्रशंसित हुई थी,दूसरी फिसली और निंदित हुई है। रानी मुखर्जी का फिल्‍मी करिअर हिंदी में ‘ राजा की आएगी बारात ’ से आरंभ हुआ। बीस साल पहले 1997 में आई इस फिल्‍म से रानी मुखर्जी को पहचान मिल गई थी। आमिर खान के साथ ‘ गुलाम ’ में ‘ आती क्‍या खंडाला ’ गाती हुई वह दर्शकों की प्रिय

रोज़ाना : पर्दे पर भी सगे भाई

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रोज़ाना पर्दे पर भी सगे भाई -अजय ब्रह्मात्‍मज कबीर खान की ‘ ट्यूबलाइट ’ में सहोदर सलमान खान और सोहेल खान सगे भाइयों के रोल में नजर आएंगे। कबीर खान ने पर्देपर उन्‍हें लक्ष्‍मण और भरत का नाम दिया है। भरत और लक्ष्‍मण भारतीय मानस में भाईचारे के मिसाल रहे हैं। कहीं न कहीं कबीर उस मिथक का लाभ उठाना चाहते होंगे। ‘ ट्यूबलाइट ’ दो भाइयों की कहानी है। उनमें अटूट प्रेम और भाईचारा है। लक्ष्‍मण मतिमंद है,इसलिए सभी उसे ट्यूबलाइट कहते हैं। भारत-चीन युद्ध के उस दौर में एक भाई लड़ने के लिए सीमा पर चला जाता है और नहीं लौटता। दूसरे ट्यूबलाइट भाई को यकीन है कि युद्ध बंद होगा उसका भाई जरूर लौटेगा। अपने उस यकीन से वह कोशिश भी करता है। कबीर खान ने सगे भाइयों की भूमिका के नलए सलमान खान के साथ सोहेल खान को चुना। उनका मानना है कि पर्दे पर एक-दो सीन के साथ ही दर्शक उन्‍हें सगे भाइयों के तौर पर मान लेंगे। गानों और नाटकीय दृश्‍यों मेंद दोनों भाइयों का सगापन आसानी से जाहिर होगा। सलमान खान के अपने भाइयों से मधुर रिश्‍ते हैं। सलमान खान ने भी अपनी बातचीत में कहा कि भाई के रोल में किसी पॉपुलर और बड़

बचपन से थी कुछ कहने की ख्‍वाहिश - मनोज मुंतशिर

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कुछ कहने की ख्‍वाहिश बचपन से थी - मनोज मुंतशिर -अजय ब्रह्मात्‍मज बाहुबली 2 से चर्चा में आए मनोज मुंतशिर की कहानी। मनोज मुंतशिर ने ही ‘ बाहुबली 2 ’ के गीत और संवाद लिखे हैं। उत्‍तरप्रदेश के गौरीगंज के मूल निवासी मनोज मुंतशिर को बचपन से उर्दू और शायरी का शौक था। उम्र के साथ वह परवान चढ़ा। वे आज हिंदी फिल्‍मों के लोक्रिय गीतकार और संवाद लेखक हैं। -         सबसे पहले यह मुंतशिर क्या है? ० मुंतशिर तखल्लुस  है। मुझे एक तखल्लुस चाहिए था, क्योंकि यह रिवाज है। मैं जिस जमीन से आता हूं वहां शायरों का तखल्‍लुस होना चाहिए,जैसे मजरूह सुल्तानपुरी। मनोज शुक्ला तो चलता नहीं था शायरी में। फिर करें क्या। सागर और साहिर जैसे तखल्लुस उस वक्त बहुत आम थे। मुझे एक ऐसा तखल्लुस चाहिए था जो शायरी की दुनिया में किसी का ना हो। उधेड़बुन चल रही थी। तब क्लास दसवीं में था मैं। एक दिन गौरीगंज जो मेरा कस्बा है यूपी में। वहां सर्दियों की शाम थी। मैं एक चाय की दुकान के सामने से गुजर रहा था। रेडियो का जमाना था। रेडियो पर एक मुशायरा चल रहा था। उस मुशायरे में एक साहब सागर आजमी एक शेर पड़ रहे थे: म

अलग दुनिया से होगा राब्‍ता - सुशांत सिंह राजपूत

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स्‍पांटिनिटी मेथड से ही आती है-सुशांत सिंह राजपूत -अजय ब्रह्मात्‍मज सुशांत सिंह राजपूत लगातार सुर्खियों में हैं। कभी बेवजह तो कभी फिल्‍मों की वजह से। वजह वाजिब हो तो चित्‍त प्रसन्‍न होता है। अगर खबरें बेवजह हों तो मन खिन्‍न होता है और फिर खटास बढ़ती है। शायद यही कारण है कि वे मीडियकर्मियों से दूरी बरतने लगे हैं। थोड़े सावधान रहते हैं। हां, कभी जवाब में ट्वीट भी कर देते हैं। उनकी ‘ राब्‍ता ’ रिलीज के लिए तैयार है। वे अगली फिल्‍म की तैयारियों में भी जुट चुके हैं। - बहरहाल,फिल्‍मों के फ्रंट पर क्‍या-क्‍या चल रहा है ? 0 मैंने ‘ ड्राइव ’ फिल्‍म पूरी कर ली है। ‘ चंदा मामा दूर के ’ की तैयारियां चल रही हैं। यह जुलाई के आखिरी हफ्ते में शुरू होगी। दो-तीन तरह की ट्रेनिंग है। एस्‍ट्रोनोट की जानकारियां दी जा रही हैं। फ्लाइंग के अनुभव दिए जा रहे हैं। अगले महीने हमलोग नासा जाएंगे। वहां भी ट्रेनिंग लेनी है। उसके बाद शूटिंग चालू होगी। मेरे लिए काफी चैलेंजिंग है। देश-दुनिया के दर्शकों ने ग्रैविटी देख ली है। ‘ लाइफ ’ देख चुके हें। हमारे पास हॉलीवुड का मेगाबजट नहीं है,लेकिन असर उसके

रब के बनाए रिश्‍ते हैं राब्‍ता - दिनेश विजन

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दिनेश विजन -अजय ब्रह्मात्‍मज दिनेश विजन पहले निर्माता बने और फिर उन्‍होंने निर्देशक की कमान संभली। उनके निर्देशन सुशांत सिंह राजपूत और कृति सैनन अभिनीत ‘ राब्‍ता ’ अगले हफ्ते रिलीज होगी। दिनेश विजन ने इस बातचीत में अपनी पसंद और यात्रा के बारे में बातें कीं।-क्‍या शुरू से ही निर्देशन में आने का इरादा था ? 0 मुझे तो यह भी मालूम नहीं था कि मैा फिल्‍में बनाऊंगा। 20साल की उम्र में अपने बहनोई के साथ एक ऐड फिल्‍म के शूट पर गया था। तब यह विचित्र दुनिया मुझे अच्‍छी लगी थी। वह आकर्षण तक ही रहा। मुझे बचपन से किस्‍से सुनाने का शौक रहा है। मैंने अपने पिता से कहा भी था कि मुझे फिल्‍म और टीवी के लिए   काम करना है। उन्‍होंने फिल्‍म इंडस्‍ट्री में आकर बर्बाद हुए अनेक लोगों के बारे में सुन रखा था। उन्‍होने साफ शब्‍दों में कहा कि आप एमबीए करोगे।उनके इस आदेश का एक फायदा हुआ कि मुझे बिजनेस की समझ हो गई। पिताजी चाहते थे कि मैं उनके बिजनेस को आगे बढ़ाऊं। मैाने होमी अदजानिया केसाथ मिल कर एक कंपनी बनाई। होमी ने ‘ बीइंग साइरस ’ की कहानी सुनाई थी। हम ने वह फिल्‍म अंग्रेजी में बना दी। उसके बाद भ

रोज़ाना : इतने सारे फाल्‍के अवार्ड?

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रोज़ाना इतने सारे फालके अवार्ड ? -अजय ब्रह्मात्‍मज कल अखबारों और चैनलों पर खबर थी कि प्रियंका चोपड़ा और कपिल शर्मा को दादा साहेब फाल्‍के अकादेमी अवार्ड से सम्‍मानित किया गया। इस खबर को पढ़ते समय पाठक ‘ अकादेमी ’ शब्‍द पर गौर नहीं करते। एक भ्रम बनता है कि उन्‍हें प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्‍के अवार्ड कैसे मिल गया ? देश में खास कर महाराष्‍ट्र में दादा साहेब फाल्‍के के नाम से और भी अवार्ड हैं। दादा साहेब फाल्‍के के नाम पर चल रहे इन पुरस्‍कारों से देश के सर्वोच्‍च फिल्‍म पुरस्‍कार की मर्यादा मलिन होती है। राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कारों की घोषणा के साथ या आसपास दादा साहेब फाल्‍के पुरस्‍कार की भी घोषणा होती है। यह पुरस्‍कार से अधिक सम्‍मन है। सिनेमा में अप्रतिम योगदान के लिए किसी एक फिल्‍मी हस्‍ती को यह पुरस्‍कार दिया जाता है। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन दिए जाने वाले राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार की यह श्रेणी अत्‍यंत सम्‍मानीय है। इस साल दक्षिण के के विश्‍वनाथ को इस पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया है। कायदे से सूचना एवं प्रसारण मंत्राालय को इस आशय की अधिसू

दरअसल : फिल्‍मों पर 28 प्रतिशत जीएसटी

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दरअसल... फिल्‍मों पर 28 प्रतिशत जीएसटी -अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ बाहुबली ’ और ‘ दंगल ’ की अद्वितीय कामयाबी और 1000 करोड़ से अधिक के कलेक्‍शन के बावजूद भारतीय सिनेमा की आर्थिक सच्‍चाई छिपी हुई नहीं है। बमुश्किल 10 प्रतिशत फिल्‍में मुनाफे में रहती हैं। बाकी फिल्‍मों के लिए अपनी लागत निकाल पाना भी मुश्किल होता है। फिल्‍में अगर नहीं चलती हैं तो उससे जुड़े दूसरे व्‍यापारों को भी नुकसान उठाना पड़ता है। अगर कोई फिल्‍म चल जाती है तो अ के पास के खोमचे वाले की भी बिक्री और आमदनी बढ़ जाती है। फिल्‍मों पर आजादी के पहले से टैक्‍स लग रहे हैं। विभिन्‍न सरकारें अपनी सोच के हिसाब से कर सुधार करती हैं। लंबे समय से फिल्‍म बिरादरी और दर्शकों की मांग रही है कि फिल्‍मों के टिकट पर कर नहीं लगना चाहिए। फिल्‍म व्‍यवसाय को बढ़ाने के लिए यह जरूरी है। सबसे पहले अंगेजों ने मनोरंजन कर आरंभ किया। फिल्‍मों के प्रदर्शन पर कर लादने के पीछे उनका दोहरा उद्देश्‍य था। उन्‍हें लगता था कि फिल्‍में देखने के लिए दर्शक जमा होते हैं। वहां उनके समूह को ग्रेजों के खिलाफ उकसाया जा सकता है। भीड़ कम करने की गरज से उन्‍ह

फिल्‍म समीक्षा : अ डेथ इन द गंज

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फिल्‍म रिव्‍यू अ डेथ इन द गंज -अजय ब्रह्मात्‍मज कोंकणा सेन शर्मा निर्देशित ‘ अ डेथ इन द गंज ’ बांग्‍ला फिल्‍मों की परिपाटी की हिंदी फिल्‍म है। इन दिनों बंगाल और देश के दूसरे हिस्‍सों से आए अनेक बांग्‍ला फिल्‍मकार हिंदी में फिल्‍में बना रहे हैं। पुराने बांग्‍ला फिल्‍मकारों की तरह वे बंगाल की पष्‍ठभूमि तो रखते हैं,लेकिन संस्‍कृति और संवेदना के लिहाज से उनमें बांग्‍ला टच नहीं रहता। ज्‍यादातर फिल्‍में उस शहरीकरण की शिकार होती है,जिसके तहत देश भर के दर्शकों का खुश करने की कोशिश रहती है। कोकणा सेन शर्मा की फिल्‍म में ऐसी कोशिश नहीं है। उनकी फिल्‍म बांग्‍ला के मशहूर फिल्‍मकारों की परंपरा में हैं। इस फिल्‍म के लिए कोंकणा सेन शर्मा ने अपने पिता मुकुल शर्मा की कहानी को आधार बनाया है। रांची के पास स्थित मैक्‍लुस्‍कीगंज में फिलम का परिवेश है और यह साल 1979 की बात है। कोकणा सेन शर्मा और उनकी टीम ने बहुत खूबसूरती से ततकालीन माहौल को पर्देपर रचा है। भाषा,परिवेश,परिधान और आचार-व्‍यवहार में पीरियड का यथोचित ध्‍यान रखा गया है। हां,भाषा को लेकर आम दर्शकों को दिक्‍कत हो सकती है,क्‍योंकि