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रोज़ाना : झकास अनिल कपूर

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रोज़ाना झकास अनिल कपू -अजय ब्रह्मात्‍मज अनीस बज्‍मी की ‘ मुबारकां ’ के ट्रेलर लांच के मौके पर अनिल कपूर मौजूद थे। मंच पर उनकी उर्जा देख कर सभी खुश थे। उन्‍हें इस उम्र(61 वर्ष) में भी उर्जावान देख कर हैरानी नहीं होती। वे अपने समकालीनों में सबसे चुस्‍त-दुरुस्‍त हैं। वे लगातार काम कर रहे हैं। उन्‍होंने अभी तक अपने जूते नहीं टांगे हैं। इसकी कोई संीाावना भी नहीं है। इसी ट्रेलर लांच में जब आतिया शेट्टी और इलियाना डिक्रूज उन्‍हें बार-बार ‘ सर ’ संबोधित कर रही थीं तो उन्‍होंने बिफर कर कहा,क्‍या कभी मैंने तुम दोनों को मैथ्‍स या साइंस पढ़ाया है या मुझे ब्रिटेन की महारनी ने ‘ सर ’ का खिताब दिया है। प्‍लीज मुझे ‘ सर ’ न कहो। अनिल कपूर की यही झकास अदा है। वे जवानों के बीच उनसे भी अधिक जवान दिखते हैं। वे नहीं चाहते कि उन्‍हें बुजुर्ग बता कर दरकिनार कर दिया जाए। डेनी डेंजोग्‍पा उनके नियमित कसरत की तारीफ करते हैं। शूटिंग की व्‍यस्‍तता के बीच भी वे वाक और रन के लिए समय निकाल लेते हैं। अड़तीस साल हो गए। सन् 1979 में अनिल कपूर ने उमेश मेहरा की फिल्‍म ‘ हमारे तुम्‍हारे ’ में एक छोटी

रोज़ाना : फ्लेवर,फन और ज्‍वॉय

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रोज़ाना फ्लेवर,फन और ज्‍वॉय -अजय ब्रह्मात्‍मज गौर किया होगा...इम्तियाज अली ने अपनी फिल्‍म 'जब हैरी मेट सेजल' के पहले लुक और नाम की घोषणा दो पोस्‍टरों के साथ की थी। बाद में दोनों पोस्‍टर को एक पोस्‍टर में डाल कर पूरा नाम लिखा गया। इस फिल्‍म के नाम की चर्चा अभी तक नहीं थमी है। कुछ इसे इम्तियाज अली की पुरानी फिल्‍म से प्रेरित मानते हैं तो कुछ इसे लेखक-निर्देशक(इम्तियाज स्‍वयं) की सोच और कल्‍पना का दिवालियापन समझ रहे हैं। यह नाम चल तो रहा है,लेकिन गति नहीं पकड़ सका है। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ की संपूर्णता टुकड़ों में ही अपनी प्रेम कथा परोसेगी। हाल ही में ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ के मिनी ट्रेलर जारी किए गए। इस ट्रेलर को जारी करने के दो दिन पहले इम्तियाज अली और शाह रूख खान मीडिया से मिले थे। उन्‍होंने प्रायवेट स्‍क्रीनिंग के दौरान अपनी बातें रखी थं और बताया था कि वे ऐसा क्‍यों कर रहे हैं। दो-तीन छोटी झलकियों के बाद एक गाना जारी किया जाएगा। कोशिश यह है कि दर्शक फिल्‍म के फ्लेवर,फन और ज्‍वॉय के लिए तैयार हो सकें। इम्तियाज अली इसे नए मिजाज की फिल्‍म मानते हैं,इसलिए पारंपरिक

रोज़ाना : क्‍या ‘कन्‍हैया’ मिल पाएगा प्रधानमंत्री से

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रोज़ाना क्‍या ‘ कन्‍हैया ’ मिल पाएगा प्रधानमंत्री से -अजय ब्रह्मात्‍मज चौंके नहीं, कन्‍हैया राकेश ओमप्रकाश मेहरा की आगामी फिल्‍म ‘ मेरे प्रिय प्रधान मंत्री ’ का बाल नायक है। वह मुंबई के गांधीनगर(कल्पित) चाल में रहता है। अपनी मां के लिए व‍ि चिंतित है। चाल में शौखलय का इंतजाम न होने से उसकी मां को खुले में शौच के लिए जाना होता है। वह अपनी मां के लिए शौचालय बनवाना चाहता ह। इस कोशिश में उसे पता चलता है कि देश के प्रधान मंत्री उसकी मदद कर सकते हैं। वे स्‍वच्‍छ भारत भारत अभियान में शौच पर बहुत जोर देते हैं। यहां तक कि लाल किले के प्राचीर से भी उन्‍होंने देशवासियों का आह्वान किया था। कन्‍हैया उन्‍हें चिट्ठी लिखता है। वह उनसे मिलने की कोशिश करता है,लेकिन... राकेश ओमप्रकाश मेहरा को इस फिल्‍म का आयडिया पसंद आया। लगभग चार साल पहले वाया दिल्‍ली बिहार से मुंबई आए मनोज मैरता ने इस फिल्‍म के आयडिया पर काम किया। उन्‍हें इस फिल्‍म का आयडिया जमुनापार के इलाके में में दिल्‍ली मैट्रो से सफर के दौरान हुआ। उन्‍होने जमुना के किनारे झ़ग्‍गी-झोंपड़ी के औरतों और मर्दो को डब्‍बा उठाए शौच के ल

बेवकूफ हैं जंग के पैरोकार – सलमान खान

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जंग के पैरोकारों को लगता है, वे बच जाएंगे ! ...हाहाहा – सलमान खान हॉलीवुड में सुपरमैन और स्‍पाइडरमैन जैसे सुपरहीरो, जिन्‍हें देखने के लिए दुनिया के अधिकांश देशों के दर्शक इंतजार करते होंगे। भारत में खास कर हिंदी दर्शकों को तो सलमान( Sal Man ) का इंतजार रहता है। पिछले कुछ सालों से वे अपनी फिल्‍मों की ईदी लेकर दर्शकों के बीच मनोरंजन बांटने आ जाते हैं। उन्‍होंने धीरे-धीरे एक फार्मूला तैयार किया है। वे इस फार्मूले के दायरे के बाहर नहीं जाते। उन्‍होंने अपनी सीमाओं के अंदर ही खूबियां खोज ली हैं और दर्शकों के चहेते बने हुए हैं। इस साल ईद के मौके पर उनकी फिल्‍म ‘ ट्यूबलाइट ’ आ रही है। कबीर खान के साथ तीसरी बार उनकी जुगलबंदी नजर आएगी। ‘ एक था टाइगर ’ और ‘ बजरंगी भाईजान ’ की कामयाबी और तारीफ के बाद ‘ ट्यूबलाइट ’ में उनकी जोड़ी फिर से दर्शकों को हंसाने और रुलाने आ रही है। सलमान खान ने झंकार के पाठकों के लिए अजय ब्रह्मात्‍मज से बातें कीं। - ‘ ट्यूबलाइट ’ की रिलीज के मौके पर हिंदी प्रदेशों के दर्शकों को क्‍या बताना चाहेंगे ? 0 आप ने नोटिस किया होगा कि पिछले कुछ सालों से मैं वैसी

रोज़ाना : अनेक व्‍यक्तियों का पुंज होता है एक किरदार

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रोज़ाना अनेक व्‍यक्तियों का पुंज होता है एक किरदार -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍म रिलीज होने के पहले या बाद में हम लेखकों से बातें नहीं करते। सभी मानते हें कि किसी जमाने में सलीम-जावेद अत्‍यंत लोकप्रिय और मंहगे लेखक थे। उस जमाने में भी फिल्‍मों की रिलीज के समय उनके इंटरव्‍यू नहीं दपते थे। उन्‍होंने बाद में भी विस्‍तार से नहीं बताया कि ‘ जंजीर ’ के विजय को कैसे सोचा और गढ़ा। कुछ मोटीज जानकारियां आज तक मीडिया में तैर रही हैं। अमिताभ बच्‍चन स्‍वयं अपने किरदारों के बारे में अधिक बातें नहीं करते। वे लेखकों और निर्देशकों को सारा श्रेय देकर खुद छिप जाते हैं। अगर हिंदी फिल्‍मों के किरदारों को लेकर विश्‍लेषणात्‍मक बातें की जाएं तो कई रोचक जानकारियां मिलेंगी। क्‍यों कोई किरदार दर्शकों का चहेता बन जाता है और उसे पर्दे पर जी रहा कलाकार भी उन्‍हें भा जाता है ? इसे खोल पाना या डिकोड कर पाना मुश्किल काम है। अगर फिल्‍म किसी खास चरित्र पर नहीं है या बॉयोपिक नहीं है तो हमेशा प्रमुख चरित्र अनेक व्‍यक्तियों का पुंज होता है। जीवन में ऐसे वास्‍तविक चरित्रों का मिलना मुश्किल है। सबसे पहले लेखक

सात सवाल : दिलजीत दोसांझ

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सात सवाल -अजय ब्रह्मात्‍मज दिलजीत दोसांझ की ‘ सुपर सिंह ’ पंजाबी में आ रही है। पंजाबी की यह पहली सुपरहीरो फिल्‍म है। पंजाबी और हिंदी फिल्‍मों के परिचित और लोकप्रिय अभिनेता दिलजीत दोसांझ इसमें शीर्षक भूमिका निभा रहे हैं। यह फिल्‍म बड़े पैमाने पर पंजाब से बाहर यहां तक कि पाकिस्‍तान में भी रिलीज की जा रही है।‍ - ‘ सुपर सिंह ’ का खयाल कैसे आया ? 0 सुपरहीरो फिल्‍म पंजाब में बनाना चाहते थे। पिछले डेढ़-दो साल से निर्माता खोज रहे थे। बाकी पंजाबी फिल्‍मों से इसका बजट ज्‍यादा था। फायनली एकता कपूर की कंपनी बालाजी का सपोर्ट मिल गया। -क्‍या कांसेप्‍ट है ? यह कैसे अलग होगा या दिखेगा ? 0 पजाब की जड़ों से जुड़ी कहानी है। रामांटिक कॉमेडी के साथ सुपरहीरो का पावर भी है। हमें सीमित बजट में ही काम करना था। बहुत ज्‍यादा वीएफएक्‍स नहीं है,जो भी है वह स्‍तरीय है। -आप ने मास्‍क कम लगाया है और चड्ढी भी ऊपर से नहीं पहनी है ? 0मैंने शुरु में ही स्‍पष्‍ट कर दिया था कि चड्ढी ऊपर से नहीं पहननी है। बाकी ड्रेस आप तय कर लो। मुझे बहुत बुरी लगती है। मैंने सिर पर पगड़ी बांधी हुई है तो मैं ऐस

दरअसल : पाकिस्‍तान जाएगा सुपर सिंह

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दरअसल... पाकिस्‍तान जाएगा सुपर सिंह -अजय ब्रह्मात्‍मज आज पाकिस्‍तान के आठ शहरों के 36 सिनमाघरों में अनुराग सिंह निर्देशित ’ सुपर सिंह ’ रिलीज होगी। दिलजीत दोसांझ और सोनम बाजवा अभिनीत ‘ सुपर सिंह ’ एक पंजाबी सुपरहीरो की कहानी है। पंजाबी में सुपरहीरो क्रिएट करने की पहली कोशिश की गई है। पंजाबी में बनी यह फिल्‍म भारत के साथ पाकिस्‍नान में भी आज रिलीज हो रही है। एक अंतराल के बाद कोई भारतीय फिल्‍म पाकिस्‍तानी सिनेमाघरों में एक ही दिन रिलीज हो रही है। यह एक खुशखबर है,जो दोनों देशों के नागरिकों को करीब ले आएगी। याद करें तो पिछले साल ‘ ऐ दिल है मुश्किल ’ की रिलीज के समय भयंकर पाकिस्‍तान विरोधी माहौल था। मुंबई में एक राजनीतिक पार्टी ने खुली घोषणा कर दी थी कि अगर पाकिस्‍तानी कलाकार फवाद खान को भारत बुलाया गया तो हंगामा होगा। तब महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री ने निर्देशक करण जौहर और उक्‍त पार्टी के नेता के बीच मध्‍यस्‍थता की थी। उसके बाद दो हिंदी फिल्‍में आईं,जिनमें पाकिस्‍तानी कलाकार माहिरा खान और सबा कमर थीं। उन फिल्‍मों को लेकर कोई हंगामा नहीं हुआ। सबा कमर की फिल्‍म ‘ हिंदी मी

फिल्‍म समीक्षा : फुल्‍लू

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फिल्‍म रिव्‍यू चकाचौंध नहीं करती   फुल्‍लू -अजय ब्रह्मात्‍मज सीमित साधनों और बजट की अभिषेक सक्‍सेना निर्देशित ‘ फुल्‍लू ’ आरंभिक चमक के बाद क्रिएटिविटी में भी सीमित रह गई है। नेक इरादे से बनाई गई इस फिल्‍म में घटनाएं इतनी कम हैं कि कथा विस्‍तार नहीं हो सका है। फिल्‍म एकआयामी होकर रह जाती है। इस वजह से फिल्‍म का संदेश प्रभावी तरीके से व्‍यक्‍त नहीे हो पाता। महिलाओं के   बीच सैनीटरी पैड की जरूरत पर जोर देती यह फिल्‍म एक दिलचस्‍न व्‍यक्ति के निजी प्रयासों तक मिटी रहती है। लेखक ने कहानी बढ़ाने के क्रम में तर्क और कारण पर अधिक गौर नहीं किया है। प्रसंगों में तारतम्‍य भी नहीं बना रहता। उत्‍तर भारत के भोजुपरी भाषी गांव में फुल्‍लू अपनी मां और बहन के साथ रहता है। वह गांव की महिलाओं के बीच बहुत पॉपुलर है। शहर से वह गांव की सभी महिलाओं के लिए उनकी जरूरत के सामान ले आता है। मां उसे हमेशा झिड़कती रहती है। मां को लगता है कि उसका बेटा निकम्‍मा और ‘ मौगा ’ निकल गया है। वह चाहती है कि बेटा शहर जाकर कोई काम करे। कुछ पैसे कमाए। गांव के जवान मर्द रोजगार के लिए दूर शहरों में रहते हैं।

रोज़ाना : कभी चुपके तो कभी खुल के

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रोज़ाना कभी चुपके तो कभी खुल के -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍मों की सेंसरशिप कोई नई बात नहीं है। अंग्रेजों के जमाने से यह चल रहा है। देश आजाद होने के बाद भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सिनेमैटोग्राफ एक्‍ट 1952 के तहत फिल्‍मों के सार्वजनिक प्रदर्शन का नियमन करता है। इसके लिए केंद्रीय फिल्‍म प्रमाणन बोर्ड(सीबीएफसी-सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्‍म सर्टिफिकेशन) बना है,जिसे आम भाषा सेंसर कहा जाने लगा है। सभी यही मानते और समझते हैं कि फिल्‍में प्रदर्शन के पहले सेंसर के लिए भेजी जाती हैं। फिल्‍मों की सेंसर स्क्रिप्‍ट और कॉपी तैयार की जाती है। फिल्‍म परिवार के सदस्‍यों को अपने व्‍यवहार में सेंसर की जगह सर्टिफिकेशन शब्‍द चलाना होगा। फिर यह धारणा स्‍पष्‍ट होगी कि सीबीएफसी का काम सेंसर के बजाए सर्टिफिकेशन है। पहलाज निहलानी की अध्‍यक्षता में गठित सीबीएफसी लगातार चर्चा और विवादों में है। पहलाज निहलानी ने सिनेमैटोग्राफ के सुझावों और नियमों की खुद की व्‍याख्‍या कर ली है और आए दिन फिल्‍मों के दृश्‍यों और संवादों पर आपत्ति करते ाहते हैं। कम पाठकों को जानकारी होगी कि सीबीएफसी के एक सदस्‍य ड

रोज़ाना : चाहिए यूपी की कहानी

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रोज़ाना चाहिए यूपी की कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों फिल्‍मों में स्क्रिप्‍ट और संवाद लिख चुके जयपुर,राजस्‍थान के मूल निवासी रामकुमार सिंह ने दो ट्वीट किए। उन्‍होंने ट्वीट में राजस्थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे को टै ग किया और लिखा... मैडम , हम राजस्थान की कहानी सिनेमा में कहना चाहते हैं पर निर्माता हमसे यूपी की कहानी मांगते हैं , क्योंकि वहां सब्सिडी मिलती है। अगले ट्वीट में उन्‍होंने आग्रह किया... बॉलीवुड में राजस्थान और राजस्थानियों के बारे में कुछ सोचिये मैडम प्लीज। रामकुमार सिंह की इस व्‍यथा के दो पहलू स्‍पष्‍ट हैं। एक तो राजस्‍थान में कोई ठोस फिल्‍म नीति नहीं हैं। हालांकि पारंपरिक तौर पर राजे-रजवाड़ों के किलों की शूटिंग के लिए हिंदी फिल्‍मकार राजस्‍थान जाते रहे हैं। हाल ही में राजस्‍थान की पृष्‍ठभूमि की ‘ पद्मावती ’ की शूटिंग में संजय लीला भंसाली की शूटिंग में विध्‍न पड़ा और उन्‍हें उन दृश्‍यों की शूटिंग के लिए नासिक जाना पड़ा और मुंबई आना पड़ा। राजस्‍थान में सुविधाएं मिल जाती हैं,लेकिन किसी प्रकार की रियायत या सब्सिडी की व्‍यवस्‍था नहीं है। र

रोज़ाना : ‘बोर्डर के 20 साल

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रोज़ाना ‘ बोर्डर के 20 साल -अजय ब्रह्मात्‍मज 20 सालों पहले 13 जून 1997 को जेपी दत्‍ता निर्देशित ‘ बोर्डर ’ रिलीज हुई थी। 1971 के भारत-पाकिस्‍तान युद्ध के समय बीकानेर के पास लोंगोवाल सीमांत पर हुई मुठभेड़ में भारतीय सैनिकों की इस शौर्यगाथा को देश के दर्शकों ने खूब सराहा था। 1997 में बाक्‍स आफिस पर सबसे ज्‍यादा कलेक्‍शन करने वाली राष्‍ट्रीय भावना की इस फिल्‍म के साथ देश के दर्शकों का भावनात्‍मक रिश्‍ता है। हम इसे भारत के विजय प्रयाण के प्रतीक के रूप में भी देखते हैं। पिछले साल रक्षा मंत्रालय और फिल्‍म समारोह निदेशालय ने आजादी की 70 वीं सालगरिह की शुरुआत के मौके पर पिछले साल ‘ बोर्डर ’ का विशेष प्रदर्शन किया था। ‘ बोर्डर ’ को कुल 62 पुरस्‍कार मिले थे। पिछले रविार को जेपी दत्‍ता ने ‘ बोर्डर ’ के 20 साल पूरे होने के उपलक्ष्‍य में यूनिट और मीडिया के सदस्‍यों को याद किया। उन्‍होंने इस मौके पर ट्राफी बांटी। फिल्‍म के मुख्‍य कलाकार सनी देओल शहर से बाहर होने की वजह से नहीं पहुंच सके। सुनील शेट्टी,जैकी श्राफ,पूजा भट्ट ने इस मौके पर ‘ बोर्डर ’ के निर्माण के दिनों को याद किया

रोज़ाना : नाम और पोस्‍टर

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रोज़ाना नाम और पोस्‍टर -अजय ब्रह्मात्‍मज इम्तियाज अली की शाह रूख खान और अनुष्‍का शर्मा की फिल्‍म का टायटल फायनल हो गया। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ नाम से फिल्‍म के पोस्‍टर एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित किए गए है। गौर करें तो यह दो पोस्‍टर का सेट है,जिसमें पहले पोस्‍टर पर ‘ जब हैरी ’ और दूसरे पोस्‍टर पर ‘ मेट सेजल ’ लिखा बया है। दोनों किरदारों के नाम लाल रंग में लिखे गए हैं। पोस्‍टर में टैग लाइन है... ’ ह्वाट यू सीक इज सीकिंग यू ’ । जलालुद्दीन रुमी की यह पक्ति इम्तियाज अली को बेहद पसंद है। उन्‍होंने इस पंक्ति को फिल्‍म में संवाद के तौर पर रखा है। हिंदी साहित्‍य से परिचित पाठक लगभग इसी भाव पर लिखी रामनरेश त्रिपाठी की ‘ अन्‍वेषण ’ शीर्षक कविता याद कर सकते हैं... ’ मैं ढूँढता तुझे था , जब कुंज और वन में। तू खोजता मुझे था , तब दीन के सदन में। सारे संबंध पारस्‍परिक होते हैं। हम जिसकी तलाश में रहते है,वह खुद हमारी तलाश में रहता है। भारतीय दर्शन में ‘ तत् त्‍वम असि ’ भी कहा गया है। इम्तियाज अली भी अपनी फिल्‍मों में संबंधों और भावों की तलाश में रहते हैं। ऊपरी तौर पर उनकी फ

दरअसल : हिंदी सिनेमा का चीनी पहलू

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दरअसल... हिंदी सिनेमा का चीनी पहलू -अजय ब्रह्मात्‍मज कुछ सालों पहले हांगकांग से एक पत्रकार मुंबई आए थे। वे हिंदी फिल्‍मों में चीन के वर्णन और चित्रण पर शोध कर रहे थे। उन्‍हें बहुत निराशा हाथ लगी थी। उन्‍हें कहीं से पता चला था कि मैं चीन में रह चुका हूं और मैंने सिनेमा के संदर्भ में भारत-चीन पर कुछ लिखा है। हम मिले और हम ने विमर्श किया कि ऐसा क्‍यों हुआ कि भारतीय फिल्‍मों में चीन की उचित छवि नहीं पेश की गई है। चीनी किरदार दिखाए भी गए तो उन्‍हें विलेन या कॉमिकल किरदारों के रूप में दिखाया गया। उनका हमेश मजाक उड़ाया गया। अपने देश की आजादी और चीन की मुक्ति के बाद बुलंद हुआ ‘ हिंदी-चीनी भाई-भाई ’ का नारा अचानक 1962 के बाद सुनाई पड़ना बंद हो गया। भारतीय मीडिया में चीन को दुश्‍मन देश के रूप में पेश किया गया। यह बताया गया कि नेहरू की दोस्‍ती के प्रयासों को नजरअंदाज कर चीन ने भारत की पीठ में छूरा घोंप दिया। पचपन सालों के बाद भी हम उस मानसिकता से नहीं निकल पाए हैं। अभी हाल में ‘ नितेश तिवारी निर्देशित दंगल ने चीन में 700 करोड़ रुपयों से अधिक का कारोबार किया तो फिर से चीन सभी