खोया खोया चांद


-अजय ब्रह्मात्मज


सुधीर मिश्र की फिल्म खोया खोया चांद सातवें दशक की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बैकड्राप पर बनी है। माहौल, लहजा और पहनावे से सुधीर मिश्र ने उस पीरियड को क्रिएट किया है। खास बात है कि फिल्म में पीरियड कहानी पर हावी नहीं होता। वह दर्शकों को धीरे से सातवें दशक में ले जाता है। खोया खोया चांद के मुख्य किरदार किसी मृत या जीवित व्यक्ति पर आधारित नहीं हैं, लेकिन उनमें हम गुजरे दौर के अनेक कलाकारों और फिल्मकारों को देख सकते हैं। नायक जफर अली नकवी (शाइनी आहूजा) में एक साथ गुरुदत्त, कमाल अमरोही और साहिर लुधियानवी की झलक है तो निखत (सोहा अली खान) में मीना कुमारी और मधुबाला के जीवन की घटनाएं मिलती हैं। फिल्म की कहानी व्यक्ति केंद्रित नहीं है। जफर और निखत के माध्यम से सुधीर मिश्र ने उस दौर के द्वंद्व और मनोभाव को चित्रित करने की कोशिश की है। प्रेम कुमार (रजत कपूर) और रतनमाला (सोनिया जहां) सातवें दशक की फिल्म इंडस्ट्री के प्रतिनिधि किरदार हैं। जफर और निखत की निजी जिंदगी और उनके रिश्तों की अंतर्कथाओं में फिल्म उलझ जाती है। सुधीर मिश्र एक साथ कई पहलुओं को छूने और सामने लाने के प्रयास में मुख्य कहानी से भटक जाते हैं। सुधीर मिश्र के शिल्प की यह खासियत है कि उनकी फिल्म के मुख्य किरदार नायक और नायिका की भूमिका में नहीं रहते, लेकिन वह खासियत खोया खोया चांद जैसी फिल्म की कमी बन गई है। खोया खोया चांद मुख्यधारा की हिंदी फिल्मों की शैली में प्रस्तुत की गई है। ऐसे में सुधीर मिश्र का यथार्थवादी शिल्प आड़े आता है। फिल्म की कहानी सरल तरीके से संप्रेषित नहीं हो पाती। मुख्यधारा की फिल्मों में दर्शक किरदारों से सीधा संबंध चाहते हैं। उन्हें हर हाल में हीरो चाहिए। जफर हिंदी फिल्मों का पारंपरिक हीरो नहीं है। जफर की भूमिका में शाइनी आहूजा उपयुक्त नहीं लगते। शाइनी का नियंत्रित अभिनय जफर के व्यक्तित्व को उभार नहीं पाता। वे जफर के गुणों को पर्दे पर नहीं ला पाते। सोहा अली खान ने निखत को जीने की भरपूर कोशिश की है। संवाद अदायगी और उर्दू के उच्चारण में वह थोड़ा मार खा जाती हैं। आवाज में कशिश आ जाती तो निखत साकार हो जाती। रजत कपूर और सोनिया जहां ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। सोनिया जहां तो अपनी मौजूदगी से चौंकाती हैं। खोया खोया चांद में निर्माता और स्टूडियो के मालिक खोसा की भूमिका में सौरभ शुक्ला और प्रेम कुमार के सेक्रेटरी एवं जफर के दोस्त श्यामल की भूमिका में विनय पाठक हर लिहाज से उल्लेखनीय हैं। फिल्म का गीत-संगीत अलग से सुनने में अधिक मधुर और अर्थपूर्ण है। फिल्म में टुकड़ों-टुकड़ों में हुए उपयोग से गीत का मूल असर छिन्न-भिन्न हो गया है।

Comments

Manish Kumar said…
यानि फिल्म ना देखी जाए तो भी चलेगा?

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