वेलकम-रोचक आइडिया, नाकाम कोशिश

-अजय ब्रह्मात्मज

वेलकम का तामझाम भव्य और आकर्षक है। एक साथ नए-पुराने मिला कर आधा दर्जन स्टार, एक हिट डायरेक्टर और उसके ऊपर से हिट प्रोडयूसर ़ ़ ़ फिल्म फील भी दे रही थी कि अच्छी कामेडी देखने को मिलेगी, लेकिन वेलकम ऊंची दुकान, फीका पकवान का मुहावरा चरितार्थ करती है।

फिल्म का आइडिया रोचक है। दो माफिया डान हैं उदय शेट्टी और मंजनू। वो अपनी बहन की शादी किसी ऐसे लड़के से करना चाहते हैं, जो सीधा-सादा नेक इंसान हो। उनकी हर कोशिश बेकार जाती है, क्योंकि कोई भी शरीफ खानदान उनके परिवार से रिश्तेदारी नहीं चाहता। तीन संयोग बनते हैं। तीनों ही संयोगों में संजना और राजीव की जोड़ी बनती है। पहले संयोग में मंजनू को राजीव पसंद आता है। वह राजीव के मामा से रिश्ते की बात करता है। दूसरे संयोग में राजीव और संजना के बीच प्यार हो जाता है। तीसरे संयोग में मामा को राजीव के लिए संजना पसंद आती है। इस छोटी और अतिरेकी कहानी को लेखक-निर्देशक ने इतना लंबा खींचा कि फिल्म कमजोर पड़ जाती है। हंसी पैदा करने के लिए जोड़ी गई घटनाएं अलग प्रसंगों के तौर पर तो हंसाती हैं, पर कहानी में कुछ जोड़ नहीं पातीं। वेलकम बिखरी हुई कामेडी फिल्म है।

नाना पाटेकर और अनिल कपूर की जोड़ी हास्य की नयी स्थितियां पैदा करती है। अनिल कपूर टपोरी अंदाज में ज्यादा स्वाभाविक लगते हैं। नाना पाटेकर की मेहनत दिखाई पड़ती है। उन्हें अपनी विशेषताओं के साथ सीमाओं का भी ख्याल रखना चाहिए। फिल्म में मल्लिका शेरावत का ट्रैक अलग से चस्पा चिप्पी की तरह नजर आता है। परेश रावल और अक्षय कुमार की कामिकल जोड़ी की केमिस्ट्री अच्छी होती है। वह इस फिल्म में भी दिखती है। रहीं कैटरीना कैफ तो वह हिंदी फिल्मों के लिए आश्चर्यजनक घटना हैं। अभिनय और नृत्य में लचर होने के बावजूद सिर्फ कथित सौंदर्य के बल पर वह फिल्म-दर-फिल्म हासिल करने में कामयाब हो रही हैं। फिल्म के गीत-संगीत में कोई ताजगी नहीं है, जबकि तीन-तीन, चार-चार गीतकार और संगीतकार लिए गए हैं। ऐसा लगता है कि निर्माता-निर्देशक फिल्म को कामयाब बनाने के लिए इसे भी ले लो, उसे भी ले लो के फार्मूले से चल रहे थे। ऐसी जोड़-तोड़ फिल्मों में नही चलती.

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