कोई नहीं बच पाता ऩफरत के जाल से-महेश भट्ट

दो हवाई जहाजों का न्यूयार्कके व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकराने का बिंब मानव चेतना में नफरत के प्रतिबिंब के रूप में अनंत काल तक जीवित रहेगा।
11 सितंबर, 2001 को आतंकवादियों ने पेन नाइफ और बॉक्स कटर जैसे टुच्चे हथियारों से अमेरिकी हवाई जहाज का अमेरिका में ही अपहरण किया और हजारों निर्दोष व्यक्तियों की जान ले ली। यह आतंकवादी घटना स्पष्ट रूप से टीवी के लिए डिजाइन की गई थी। इस घटना के बाद निस्संदेह हमारी दुनिया हमेशा के लिए बदल गई। कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा।
आस्था का आधार
आज इस लेख को लिखते समय भी पूरी दुनिया के अखबारों में ग्लासगो में जलती कार लेकर हमला करने वाले दब्बू डॉक्टर की खबरें सुर्खियां बनी हुई हैं। मेरी चिंता का विषय यह है कि मानव जाति के कथित नेतागण जिस प्रकार से इसे निपटा रहे हैं, उससे नफरत कम होने के बजाय बढती ही जा रही है।
विश्वास मारता है। धर्मपरायण (कट्टर) हिंदू या धर्मपरायण (कट्टर) मुसलमान किसी नास्तिक से अधिक खतरनाक होता है, क्योंकि दोनों ही अपने विश्वास की रक्षा के लिए अपनी जान दे सकते हैं। आस्तिक उन सभी से नफरत करते हैं, जो उनके विश्वास को नहीं मानते। मानव इतिहास की सबसे बडी महामारी यह विश्वास है कि जो जीवन को हमारी तरह नहीं समझता और जीता, वह नफरत का अधिकारी है। युद्ध आख़िर है क्या? युद्ध भी तो ऐसे ही विचारों से नफरत को संगठित करने की प्रक्रिया का परिणाम है। हमारे दिल में बैठे ऐसे विश्वास को हवा देकर युद्धप्रेमी हमें भडकाते हैं और अपने कथित दुश्मनों से लडने के लिए ललकारते हैं। नफरत और विद्वेष इसी विश्वास से जन्म लेता है कि सच को जानने की एक ही राजनीतिक प्रणाली, धार्मिक विश्वास या दार्शनिक विचार सारिणी है। मेरा सिद्धांत है कि सभी सिद्धांतों को संदेह से देखो और मेरे खयाल में दुनिया का सबसे अधिक नुकसान उन लोगों ने ही किया है, जो अपने सिद्धांतों को सही मानते रहे हैं। खुद को परम न्यायसंगत और उचित मानने का मतलब है कि जो आपसे असहमत हैं, वे सर्वथा गलत और अनुचित हैं और जो सर्वथा गलत या अनुचित हैं, वे निश्चित रूप से समाज के लिए खतरनाक हैं। उनसे नफरत करनी चाहिए और उन्हें समाप्त कर देना चाहिए, ऐसे विचारों से ही गैस चैंबर और गैस ओवन तैयार किए जाते हैं।
हिटलरी युग की यादें
हिटलर की याद है? एक करिश्माई नेता ने जर्मनों के मन में यहूदियों के ख़िलाफ इतनी नफरत भर दी कि जब उन्हें गैस चैंबर में मारा जा रहा था तो वे आंखें मूंदे पडे थे। मानव जाति में व्याप्त परस्पर घृणा या नफरत को आंशिक रूप से नियंत्रित या पूर्णत: समाप्त किया जा सकता है, लेकिन उसके लिए हमें समझना होगा कि मनुष्य की समस्याओं को सुलझाने और उन्हें स्वर्ग की राह दिखाने का कोई एक तरीका, योजना या ब्लू प्रिंट ही अंतिम और अकेला नहीं है। जिस दिन हम यह समझ लेंगे कि हमारी समस्याओं का कोई एक समाधान नहीं है और किसी एक व्यक्ति की राय हमेशा सही नहीं होती, उस दिन नफरत गायब हो जाएगी। इस परिपक्वता से अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने के बाद ही हम अपने दिलों से नफरत मिटा सकते हैं।
नफरत कलाकारों की जिंदगी में
फिल्मों की दुनिया में जल्दी से जल्दी ऊपर पहुंचने की ललक से प्रतियोगिता इतनी बढ गई है कि हमारे सृजन से श्रेष्ठता विलुप्त हो रही है और हमारी निकृष्टताएं सामने आ रही हैं। गानों और पर्दे पर प्रेम का राग अलाप रहे कथित रूप से संवेदनशील और कलात्मक रुचि के लोग वास्तव में नफरत के घडे होते हैं। मुंबई के क्राइम ब्रांच के एक पुलिस अधिकारी ने मुझे एक कठोर जानकारी दी थी कि एक बी ग्रेड का हीरो अज्ञात नंबर से अनिल कपूर को धमकियां देता था। जब यह सब असहनीय हुआ तो नंबर की खोज की गई। पता चला कि एक अभिनेता मित्र फोन कर रहे थे, जिन पर शक ही नहीं हो सकता था।
मुंह में राम बगल में छुरी
किसी भी हिंदी फिल्म की रिलीज के समय उस फिल्म से जुडे सदस्यों के अलावा फिल्म बिरादरी के अन्य सदस्य फिल्म के बारे में बुरा ही सोचते हैं। फिल्म हिट हो गई तो उन्हें दुख होता है। पैसा, प्रसिद्धि और प्रभाव हासिल करने की उम्मीद में हम अपनी बिरादरी के लोगों से ही लडते रहते हैं। मुझे यह कहने में कोई शर्म नहीं है कि हम एक-दूसरे को ही निगलने की युक्ति में लगे रहते हैं। यहां जिसके दिल में सबसे ज्यादा नफरत है, वही विजेता साबित होता है। यह भी सच है कि अपने सभ्य समाज में हम अपनी नफरत को यों छिपा लेते हैं कि देखने वालों को पता ही नहीं चलता कि सामने गले मिल रहे दोनों व्यक्तियों के मुंह में राम और बगल में छुरी है। मनोवैज्ञानिकों की राय में दूसरों के प्रति नफरत की भावना वास्तव में आत्मरक्षा का अस्त्र है। जब व्यक्ति को खतरा महसूस होता है तो वह नफरत करने लगता है। किसी के स्व को आघात लगे तो वह विध्वंसक और हिंसक हो जाता है। अगर मनुष्य की जरूरतें नहीं समझीं और पूरी की जातीं तो वे नफरत में बदल जाती हैं। समाज की स्वीकृत मान्यताओं को लेकर चलने वाला व्यक्ति जहरीला नहीं होता। कमजोर व्यक्ति ही पीठ पर हमला करता है। क्या हमने नहीं देखा है कि दंगों में साधारण और कमजोर लोग सर्वाधिक सक्रिय होते हैं और हत्याएं करते हैं?
नफरत का विस्तार
इन दिनों टीवी पर चल रहे सारेगामापा और इंडियन आइडियल जैसे रियैलिटी शो और टैलेंट हंट शो नौजवानों को अपनी पहचान बनाने का मंच प्रदान कर रहे हैं। इससे दर्शकों के मन में भी उम्मीद बंधती है कि वे अपनी नफरत भरी गुमनामी की जिंदगी से निकलकर किसी दिन स्टारडम हासिल कर सकते हैं। हर वयस्क की जिंदगी में दो प्रेम कहानियां रहती हैं- एक यौन संबंधों से भरे प्रेम की खोज की और दूसरी दुनिया की मोहब्बत पाने की लालसा। अगर प्रेम में तिरस्कार मिलता है तो खतरनाक तरीके से नफरत जन्म लेती है। सभ्यता के आरंभ से ऐसी कहानियां मिल जाती हैं, जब तिरस्कृत स्त्री-पुरुष नफरत से उद्वेलित होकर प्रेमी-प्रेमिका और कथित प्रतिद्वंद्वी की हत्या करने से भी नहीं चूकते। दूसरी प्रेम कहानी में हम देखते हैं कि प्रतिद्वंद्वियों से अधिक प्यार पाने के लिए लोग दुष्चक्र में फंसते हैं। राजनीतिज्ञों, संतों और महात्माओं तक के बीच नफरत है। दुनिया के प्रेम को पाने के लिए सब लडते हैं।
शोषण के प्रति नफरत
छह साल की उम्र में सिनेमाघर के अंधेरे में पहली बार मैंने अपने अंदर नफरत की भावना महसूस की थी। मैं मदर इंडिया देख रहा था.. विधवा और दो बच्चों की मां नरगिस गांव के साहूकार (कन्हैया लाल) से भीख मांगने को मजबूर होती है। उसकी मदद करने के बजाय साहूकार उसका शारीरिक शोषण करना चाहता है। नरगिस को लालची नजरों से देखते हुए उसे छूने के लिए बढते साहूकार को देखकर मुझे गुस्सा आया और उससे नफरत हुई। ऐसा एहसास शायद इसलिए हुआ कि उस औरत को देखकर मुझे अपनी मां की याद आई, जिसने अकेले दम पर हमें पाला-पोसा। जब भी मैं किसी कमजोर और जरूरतमंद को सताते ताकतवर को देखता हूं तो मेरे भीतर गुस्सा भर जाता है। मुझे जॉर्ज बुश जैसे लोगों से घृणा है, जो इराक पर युद्ध थोपते हैं।
मीडिया ने नफरत को बिकाऊ एहसास में बदल दिया है। बलि का बकरा खोज कर उसके प्रति ऐसी नफरत जगाती है मीडिया कि आम पाठक-दर्शक उसके बारे में पढ-देखकर संतुष्ट होता है। निठारी कांड के हत्यारे कई दिनों तक टीवी पर छाए रहे। दाउद इब्राहिम भी मीडिया के लिए ऐसा ही चेहरा है, जिसे दिखाकर टीवी चैनल टीआरपी बढा लेते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कामयाबी का एक फॉर्मूला यह है कि दर्शक फिल्म के खलनायक से नफरत करें। आश्चर्य नहीं कि प्राण, मदन पुरी, अमरीश पुरी, शक्ति कपूर और गुलशन ग्रोवर की लोकप्रियता किसी हीरो से कम नहीं रही। एक बार करांची, पाकिस्तान की यात्रा में गुलशन ग्रोवर मेरे साथ थे और मैं यह देखकर चकित रह गया कि हिंदी फिल्मों का बैड मैन पॉपुलर स्टार है। हमने लोगों के बीच हीरो के प्रति प्यार का अनुभव किया है, लेकिन गुलशन ग्रोवर मुझे लगा कि पर्दे पर शिद्दत से पेश की गई नफरत भी लोकप्रिय हो जाती है।
विलेन की सफलता
मेरे फिल्मी करियर में महारानी किरदार ऐसा था, जिससे दर्शकों ने सबसे ज्यादा नफरत की। सडक में यह रोल सदाशिव अमरापुरकर ने निभाया था। शोले के गब्बर सिंह को कोई कैसे भूल सकता है। अमजद खान ने उसे पर्दे पर ऐसा उतारा कि दर्शक नफरत से भर गए। दुश्मन में आशुतोष राणा ने बलात्कारी डाकिया की भूमिका निभाई थी। अगर ये किरदार नहीं होते तो इन फिल्मों का क्या होता? जीवन के उद्यान में नफरत वह आवश्यक लता है, जिसके कारण प्रेम और करुणा के फूल का महत्व बढ जाता है।
मनोवैज्ञानिकों की राय
दूसरों के प्रति नफरत की भावना वास्तव में आत्मरक्षा का एक अस्त्र है। जब व्यक्ति को खतरा महसूस होता है तो वह नफरत करने लगता है। किसी भी व्यक्ति के स्व को आघात लगे तो वह नफरत से भर जाता है। विध्वंसक और हिंसक हो जाता है। अगर मनुष्य की जरूरतें नहीं समझी और पूरी की जातीं तो वे नफरत में बदल जाती हैं। समाज की स्वीकृत मान्यताओं को लेकर चलने वाला व्यक्ति जहरीला नहीं होता। कमजोर व्यक्ति ही पीठ पर हमला करता है। क्या हमने नहीं देखा है कि दंगों में साधारण और कमजोर लोग सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं और हत्याएं करते हैं?

Comments

अपने लेख में ढेरो सवाल उठाये है आपने ...ओर उन्हें वाजिब तर्कों से तोला भी है.....अच्छा विचारणीय लेख है......

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