हंसल-राजकुमार की पुरस्कृत जोड़ी की ‘सिटीलाइट्स’


-अजय ब्रह्मात्मज
    ‘शाहिद’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हंसल मेहता और राजकुमार राव की निर्देशक-अभिनेता जोड़ी एक नई फिल्म ‘सिट लाइट्स’ के साथ आ रही है। ‘सिटीलाइट्स’ महानगरों में आजीविका की तलाश में आए छोटे शहरों के विवश लोगों की प्रतिनिधि कहानी है। हंसल मेहता की ‘सिटी लाइट्स’ का नायक राजस्थान के एक छोटे से कस्बे से मुंबई आता है। भट्ट बंधुओं की कंपनी विशेष फिल्म्स के लिए बनी इस फिल्म के निर्माण में फॉक्स स्टार ने सहयोग किया है।
    संयोग ही है कि हंसल मेहता और राजकुमार राव एक साथ आए। पहले इस फिल्म के निर्देशन के लिए अजय बहल का चुनाव किया गया था। निर्माता मुकेश भट्ट से तालमेल नहीं बिठा पाने के कारण अजय बहल फिल्म से अलग हो गए थे। महेश भट्ट ने खुद ‘शाहिद’ देखी थी। उन्हें लगा कि हंसल मेहता ‘सिटी लाइट्स’ की थीम के साथ न्याय कर सकेंगे। यह फिलीपिंस की फिल्म ‘मैट्रो मनीला’ की आधिकारिक रिमेक है। हिंदी में इसके किरदार स्थानीयता की वजह से बदल गए हैं। फिल्म के लिए राजकुमार राव का चुनाव पहले हो चुका था। वे फिल्म में बने रहे। हंसल मेहता के आने के बाद निर्देशक-अभिनेता की जोड़ी को जल्दी ही एक और मौका मिल गया। हिंदी फिल्मों के इतिहास में देखा गया है कि डायरेक्टर और एक्टर की परस्पर समझदारी के प्रभावशाली परिणाम निकलते हैं। ‘सिटीलाइट्स’ भी ऐसी ही एक फिल्म हो सकती है।
    हंसल मेहता ने टीवी शो से करिअर की शुरुआत की। उनकी पहली फिल्म ‘जयते’ थी, जो सिनेमाघरों में रिलीज नहीं हो सकी थी। निराश हंसल मेहता अवसाद से गुजरे। फिर दोस्तों ने हिम्मत बंधायी तो उन्होंने मनोज बाजपेयी के साथ ‘दिल पे मत ले यार’ बनायी। यह फिल्म अपनी सोच, प्रकृति और प्रस्तुति में अपने समय से काफी आगे थी। फिल्म बाक्स आफिस पर विफल रही। विफलता के लंबे साए ने हंसल को कमर्शियल सिनेमा की गलीज गलियों में धकेल दिया। सफलता और कुछ कर गुजरने की उम्मीद में हंसल मेहता की कुछ फिल्मों का हश्र बुरा हुआ। हंसल मानते हैं कि वे फिल्में ईमानदार नहीं थीं, इसलिए अच्छी नहीं थीं। हंसल ने एक लंबा मौन धारण किया। वे लगभग निष्क्रिय हो गए। यह आत्ममंथन और अपनी ऊर्जा को सही दिशा देने का वक्त था। पुराने मित्र अनुराग कश्यप ने क्रिएटिव सहारा दिया। अनुराग कश्यप ने ‘जयते’ लिखी थी और वे हंसल के सहायक भी रहे थे। बहरहाल, सोच-विचार और मंथन के बाद ‘शाहिद’ की योजना बनी। उधर राजकुमार राव ने एफटीआईआई से अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद मुंबई का रुख किया। उन्हें दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘लव सेक्स और धोखा’ से आरंभिक पहचान मिली। ‘रागिनी एमएमएस’ ने उन्हें आम दर्शकों के बीच पहुंचा दिया। छोटी-मोटी भूमिकाएं मिलती रही और वे अपने अभिनय के निशान छोड़ते गए। पिछले साल आई ‘काय पो छे’ और ‘शाहिद’ ने उन्हें जरूरी पहचान के साथ नाम भी दिया।
    ‘शाहिद’ की भूमिका के लिए कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा ने उनका नाम हंसल मेहता को सुझाया था। मुंबई के वकील शाहिद आजमी की जिंदगी की प्रेरक घटनाओं पर आधारित इस फिल्म ने सुधी दर्शकों को झकझोर दिया। आजादी के सालों बाद भी समाज में मुसलमानों की स्थिति का वास्तविक बयान करती यह फिल्म देश के सामाजिक और राजनीतिक विरोधाभास को जाहिर करती है। इस साल राष्ट्रीय पुरस्कारों में ‘शाहिद’ को श्रेष्ठ अभिनेता और निर्देशक का पुरस्कार मिला है। अब देखना है कि हंसल मेहता और राजकुमार राव की पुरस्कृत जोड़ी ‘सिटीलाइट्स’ में किस मुकाम तक पहुंचती है।
    विदेशों में पुरस्कृत होने के बाद फिल्मों के प्रति वहां के दर्शकों की ललक बढ़ जाती है। आए दिन हमें ऑस्कर से पुरस्कृत फिल्मों की जानकारी मिलती है। पुरस्कृत कलाकार, निर्देशक और तकनीशियनों की अगली फिल्मों के पोस्टर में उनके पुरस्कारों का उल्लेख किया जाता है। अपने देश का दुर्भाग्य है कि यहां पुरस्कृत फिल्मों को संग्रहालय की सामग्री मान लिया जाता है। पोस्टर पर लिखा या बताया नहीं जाता कि यह पुरस्कृत निर्देशक या कलाकार की अगली फिल्म है। ‘सिटीलाइट्स’ के पोस्टर पर अगर हंसल मेहता और राजकुमार राव के पुरस्कारों का उल्लेख किया जाए तो उसे अतिरिक्त वफादार दर्शक मिल सकते हैं।
    ‘सिटीलाइट्स’ माइग्रेशन के शिकार युवा दंपति के सरवाइवल और संघर्ष की उत्तेजक कहानी है। फिल्म के उदास रंग में किरदारों की बेबस जिंदगी का चित्रण यकीनन दर्शकों को द्रवित करेगा।

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