फ़िल्म समीक्षा:गुलाल

-अजय ब्रह्मात्मज
इस दशक में आए युवा निर्देशकों में अनुराग कश्यप ने अपनी नयी शैली, आक्रामक रूझान, सशक्त कथ्य और नयी भाषा से दर्शकों के बीच पैठ बना ली है। अपनी हर फिल्म में वे किसी नए विषय से जूझते दिखाई पड़ते हैं। गुलाल राजस्थान की पृष्ठभूमि पर बनी राजनीतिक फिल्म है। यह परतदार फिल्म है। इसकी कुछ परतें उजागर होती है और कुछ का आभास होता है। गुलाल हिंदी समाज की फिल्म है।
किरदारों और कहानी की बात करें तो यह दिलीप (राजा सिंह चौधरी) से आरंभ होकर उसी पर खत्म होती है। दिलीप के संसर्ग में आए चरित्रों के माध्यम से हम विकट राजनीतिक सच का साक्षात्कार करते हैं। दुकी बना (के। के। मेनन) अतीत के गौरव को लौटाने का झांसा देकर आजादी के बाद लोकतंत्र की राह पर चल रहे देश में फासीवाद के खतरनाक नमूने के तौर पर उभरता है। दुकी बना और उसका राजनीतिक अभियान वास्तव में देश की व‌र्त्तमान राजनीति का ऐसा नासूर है, जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अनुराग कश्यप ने किसी व्यक्ति, जाति,, समुदाय या धर्म पर सीधा कटाक्ष नहीं किया है। समझदार के लिए इशारा ही काफी है। दर्शक समझ जाते हैं कि क्या बातें हो रही हैं और किरदारों के बीच के संघर्ष की वजह क्या है? इस फिल्म के किरदारों के साक्ष्य देश में उपलब्ध हैं।
अनुराग कश्यप की फिल्मों में आए प्रतीक और बिंब गहरे सामाजिक संदर्भ से युक्त होते हैं। अगर समाज, राजनीति, साहित्य और आंदोलनों की सामान्य समझ नहीं हो तो अनुराग की फिल्म के विषय और कथ्य का निर्वाह दुरूह लगने लगता है। गुलाल इस मायने में उनकी पिछली फिल्मों से थोड़ी सरल है। फिर भी फिल्म का कथा विन्यास पारंपरिक नहीं है, इसलिए कहानी समझने में कुछ वक्त लगता है। इस फिल्म के संवाद महत्वपूर्ण है। अगर संवादों में प्रयुक्त शब्द सुनने से रह गए तो दृश्य का मर्म समझने में चूक हो सकती है। गुलाल ऐसी फिल्म है, जिसे अच्छी तरह समझने के लिए जरूरी है कि सिनेमाघरों में आंख और कान खुले हों और दिमाग के दरवाजे बंद न हों। यह आम हिंदी फिल्म नहीं है, इसलिए खास तवज्जो चाहती है। अनुराग के कथ्य को पियूष मिश्रा ने गीतों से मजबूत किया है। लंबे समय के बाद फिल्म के कथ्य के मेल में भावपूर्ण और गहरे अर्थो के शब्दों से रचे गीत सुनाई पड़े हैं। निर्देशक के भाव को गीतकार ने यथायोग्य अभिव्यक्ति दी है।
पियूष मिश्रा का गीत-संगीत गुलाल को उचित ढंग से प्रभावशाली बनाता है। फिल्म का पालिटिकल मोजरा (जैसे दूर देश के टावर में घुस गयो रे ऐरोप्लेन), रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां , प्यासा की ये दुनिया से प्रेरित गीत और शहर ़ ़ ़ जैसी अभिव्यक्ति उल्लेखनीय है। अनुराग कश्यप की गुलाल समूह के सामाजिक संदर्भ से आरंभ होकर व्यक्ति की वैयक्तिक ईष्र्या पर खत्म होती है। समाज के स्वार्थी तत्वों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा व्यक्ति सही समझ के अभाव में खुद ही खुद के विनाश का कारण बन जाता है। फिल्म का नायक दिलीप इस समाज में लाचार, विवश और पंगु हो रहे व्यक्ति का प्रतिनिधि है। वह नपुंसक नहीं है, लेकिन अपने सामाजिक परिवेश से कटे होने के कारण सच से टकराने पर खौफजदा रहता है। परिस्थितियों में फंसने पर वह डरपोक, कायर और भ्रमित दिखता है। अनुराग कश्यप ने गुलाल में राजा सिंह चौधरी, दीपक डोबरियाल,आयशा मोहन और अभिमन्यु सिंह जैसे नए कलाकारों से सुंदर काम लिया है। दृश्यों की तीव्रता इन कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का पर्याप्त अवसर देती है। पियूष मिश्रा के योगदान के बगैर गुलाल इस रूप और प्रभाव में सामने नहीं आ पाती। उन्होंने अपने अभिनय, स्वर और गीत से फिल्म को उठा दिया है। के के मेनन और आदित्य श्रीवास्तव जैसे सधे अभिनेताओं की अलग से तारीफ लिखने की जरूरत नहीं है। दोनों ही अनुराग कश्यप के भरोसेमंद और मददगार अभिनेता हैं।

***1/2

Comments

कुश said…
कल गुलाल देख ली जाएगी.. ये ऐसी फिल्म में जिसका मैं बहुत समय से इंतेज़ार कर रहा हू.. अदाकारो की तारीफ़ में तो कुछ कहने की ज़रूरत ही नही.. पीयूष मिश्रा साहब का लेखन तो है ही बढ़िया.. इस फिल्म को टीम एफर्ट ही कहना चाहिए.. बहरहाल आपकी समीक्षा ने उत्सुकता में और इज़ाफा किया है..
बढीया सर जी. गुलाल तो देखना ही पडेगा.
- हारिस
Anurag's hard work over the years has paid off now.We can see that in his movies.
Anonymous said…
film on politics.......
need bpo jobs without a single rupee!!!!!!!! a genuine job from home.

Work from home

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