फिल्‍म समीक्षा : तुम मिले

पुनर्मिलन का पुराना फार्मूला

-अजय ब्रह्मात्‍मज

पहले प्राकृतिक हादसों की पृष्ठभूमि पर काफी फिल्में बनती थीं। बाढ़, सूखा, भूकंप और दुर्घटनाओं में परिवार उजड़ जाते थे, किरदार बिछुड़ जाते थे और फिर उनके पुनर्मिलन में पूरी फिल्म निकल जाती थी। परिवारों के बिछुड़ने और मिलने का कामयाब फार्मूला दशकों तक चला। कुणाल देशमुख ने पुनर्मिलन के उसी फार्मूले को 26-7 की बाढ़ की पृष्ठभूमि में रखा है।

मुंबई आ रही फ्लाइट के बिजनेस क्लास में अपनी सीट पर बैठते ही अक्षय को छह साल पहले बिछड़ चुकी प्रेमिका की गंध चौंकाती है। वह इधर-उधर झांकता है तो पास की सीट पर बैठी संजना दिखाई पड़ती है। दोनों मुंबई में उतरते हैं और फिर 26 जुलाई 2005 की बारिश में अपने ठिकानों के लिए निकलते हैं। बारिश तेज होती है। अक्षय पूर्व प्रेमिका संजना के लिए फिक्रमंद होता है और उसे खोजने निकलता है। छह साल पहले की मोहब्बत के हसीन, गमगीन और नमकीन पल उसे याद आते हैं। कैसे दोनों साथ रहे। कुछ रोमांटिक पलों को जिया। पैसे और करिअर के मुद्दों पर लड़े और फिर अलग हो गए। खयालों में यादों का समंदर उफान मारता है और हकीकत में शहर लबालब हो रहा है। खौफनाक भीगे माहौल में दोनों प्रेमियों का मन भी भीगता है और गलतफहमियों की मैल धुल जाती है। दोनों की समझ में आता है कि वे एक-दूसरे के लिए ही बने हैं।

महेश भट्ट की प्रस्तुति में हर निर्देशक की फिल्म रोमांस को जरूर टच करती है। उनकी फिल्मों में रोमांस को बढ़ाने और व्यक्त करने में मधुर गीतों का सुंदर इस्तेमाल होता है। भट्ट कैंप की फिल्मों में संगीत के साथ गीत के शब्दों पर अपेक्षित ध्यान दिया जाता है। शायरी नजर आती है और नए शब्दों में पुराने भाव कहे जाते हैं। तुम मिले का गीत-संगीत मधुर हैं और देर तक कानों में गूंजता रहता है।

कुणाल देशमुख बिछुड़े प्रेमियों के पुनर्मिलन की कहानी दिखाने में सफल रहे हैं, लेकिन 26 जुलाई की बाढ़ को रिक्रिएट करने में उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। सीमित बजट का दबाव साफ नजर आता है। मुंबईवासी 26 जुलाई की भयावहता और दहशत से आज भी नहीं निकल पाए हैं। दो दिन तेज बारिश हो जाए तो अफवाहें तैरने लगती हैं। वह भयावहता फिल्म में उभर नहीं पायी है। शहर में पानी भरने के दृश्य और सड़कों पर फंसे लोगों की अफरा-तफरी के चित्रण में कुणाल देशमुख विफल रहे हैं।

इमरान हाशमी और सोहा अली खान ने अपने चरित्रों का सुंदर और प्रभावशाली निर्वाह किया है। दोनों के अभिनय में निखार दिखता है। इस फिल्म में किरदारों की स्टाइलिंग और लुक पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। सोहा अली खान के परिधानों से उनके किरदार की अमीरी नहीं झलकती। वैसे भी सोहा अली खान स्टाइल और अपीयरेंस के प्रति सचेत नहीं दिखतीं।

Comments

यह ऐसे ही होता है टाइटैनिक जैसी फिल्म बनाना आसान नही है जिसमे विभीषिका भी है और प्रेम कथा भी ।

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