ये पिक्चर फिल्मी है!

-अजय ब्रह्मात्‍मज

कुछ हफ्ते पहले डर्टी पिक्चर की छवियां और ट्रेलर दर्शकों के बीच आए, तो विद्या बालन की मादक अदाओं को देख कर सभी चौंके। यह फिल्म नौवें दशक की दक्षिण की अभिनेत्री सिल्क स्मिता के जीवन से रेफरेंस लेकर बनी है। भारतीय सिनेमा में वह एक ऐसा दौर था, जब सेक्सी और कामुक किस्म की अभिनेत्रियों के साथ फिल्में बनाई जा रही थीं। हिंदी और दक्षिण भारतीय भाषाओं में ऐसी अभिनेत्रियों को पर्याप्त फिल्में मिल रही थीं। सिल्क स्मिता, डिस्को शांति, नलिनी और दूसरी अभिनेत्रियों ने इस दौर में खूब नाम कमाया। नौवें दशक की ऐसी अभिनेत्रियों को ध्यान में रख कर ही मिलन लुथरिया ने डर्टी पिक्चर की कल्पना की।

डर्टी पिक्चर का निर्माण बालाजी टेलीफिल्म कर रही है। इस प्रोडक्शन कंपनी के प्रभारी तनुज गर्ग स्पष्ट कहते हैं, ''हमारी फिल्म पूरी तरह से कल्पना है। यह किसी अभिनेत्री के जीवन पर आधारित नहीं है। हम ने नौवें दशक की फिल्म इंडस्ट्री की पृष्ठभूमि में एक फिल्म की कल्पना की है। इसमें मुख्य भूमिका में विद्या बालन को इसलिए चुना है कि आम दर्शक इसे फूहड़ या घटिया प्रयास न समझें।''

विद्या बालन की वजह से डर्टी पिक्चर की गरिमा और जिज्ञासा बढ़ गई है। पिछले साल आई इश्किया में विद्या बालन ने अपने इस मादक अंदाज की झलक दी थी, लेकिन तस्वीरों और ट्रेलर के आधार पर साफ दिख रहा है कि डर्टी पिक्चर विद्या बालन की इमेज के विपरीत बोल्ड और ओपन फिल्म है। विद्या बालन डर्टी पिक्चर को अपने कॅरियर की बड़ी चुनौती मानती हैं। वे कहती हैं, ''इस फिल्म के लिए मैंने अपनी झेंप और आशंकाएं खत्म कर दीं। फिल्म के कथ्य से सहमत होने के बाद मुझे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई।''

हिंदी फिल्मों की बात करें तो हमारे फिल्मकार जीवनी और बॉयोपिक फिल्मों के निर्माण से बचते रहे हैं। कुछ डाक्यूमेंट्री मिल जाएंगी, लेकिन फीचर फिल्म का घोर अभाव है। कानूनी और संवेदनात्मक समस्याओं के कारण भारत में बहुत कम बॉयोपिक बनती हैं। कुछ ऐतिहासिक हस्तियों पर सरकारी देखरेख में अवश्य फिल्में बनी हैं, लेकिन ज्यादातर फिल्मकार किसी बड़ी हस्ती की जीवनी को फिल्म में ढालने से डरते रहे हैं। अभी तक महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और सरदार पटेल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों पर ही फिल्में बनी हैं। आजादी के बाद की चर्चित राजनेता इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी पर फिल्मों की योजनाओं की खबरें आती रहती हैं, लेकिन कोई ठोस प्रगति नजर नहीं आती।

फिल्मों में फिल्म इंडस्ट्री और फिल्मी हस्ती दो प्रकार से आते रहे हैं। कुछ फिल्में फिल्मों की पृष्ठभूमि पर बनी हैं। रंगीला और लक बाई चांस को ऐसी फिल्में मान सकते हैं। ऐसी फिल्मों में स्टार, स्ट्रगलर, डायरेक्टर और अन्य किरदारों के जरिए फिल्म इंडस्ट्री के तनावों, मुश्किलों, संघर्षो और विजय की कहानियां कही जाती हैं। दर्शकों को ऐसी फिल्में अच्छी लगती हैं, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री की कार्यप्रणाली, गतिविधि और अंतर्विरोधों से वे परिचित होते हैं। दूसरी तरफ महेश भट्ट जैसे निर्देशक हैं। उन्होंने अपनी जीवन के अंशों पर अर्थ, जनम, वो लम्हे और जख्म जैसी फिल्मों की कहानियां लिखीं और उन्हें रोचक एवं मनोरंजक तरीके से पेश किया। महेश भट्ट बताते हैं, ''मैं फैशन और ट्रेंड के मुताबिक चालू फिल्में बना कर हार गया था। कहीं कोई राह नहीं दिख रही थी। ऐसे मुश्किल वक्त में मानवीय संवेदना की सारांश और विवाहेतर संबंधों को लेकर अर्थ का मैंने निर्देशन किया। अर्थ पूरी तरह से मेरे और परवीन बॉबी के संबंधों पर आधारित फिल्म थी। अपने जीवन की भावनात्मक समस्या को मैंने फिल्म का रूप दे दिया और उसे विवाहेतर संबंध की शिकार निर्दोष औरत के दृष्टिकोण से पेश किया था। अर्थ दर्शकों को खूब पसंद आई थी।''

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ख्वाहिशों की इंडस्ट्री है। यहां आने के लिए लालायित व्यक्तियों की जिंदगी और संघर्ष को भी कुछ फिल्मकारों ने चित्रित किया है। असरानी की चला मुरारी हीरो बनने और मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं ऐसी ही फिल्में थीं। इस विधा में और भी कुछ फिल्में आई हैं, लेकिन उतनी चर्चित नहीं हो सकीं। हॉलीवुड बॉलीवुड में दीपा मेहता ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को अलग नजरिए से देखा। फराह खान की ओम शांति ओम भी एक स्ट्रगलर और स्टार की कहानी थी। शाहरुख खान के डबल रोल की यह फिल्म खूब चली।

डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी जीवनी फिल्मों को पीरियड फिल्मों का विस्तार मानते हैं। वे कहते हैं, ''अपने यहां पीरियड पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसी फिल्मों के कथ्य विवादास्पद हो जाते है, इसलिए फिल्मकार हाथ लगाने से डरते हैं। इसके अलावा स्टार के परिवेश को भी गढ़ना होता है। मैं डर्टी पिक्चर देखना चाहूंगा। मुझे उम्मीद है कि मिलन लूथरिया ने नौवें दशक के परिवेश को वास्तविक रंग दिया होगा।''

खबर है कि अनुराग बसु किशोर कुमार के जीवन पर एक फिल्म की प्लानिंग कर चुके हैं, जिसमें रणबीर कपूर मुख्य भूमिका निभाएंगे। कुछ समय पहले चर्चा थी कि गुरदत्त के जीवन पर एक फिल्म अनुराग कश्यप लिख रहे हैं। बाद में वह फिल्म अटक गई। अनुराग कश्यप बताते हैं, ''अपने यहां मर्यादा और नैतिकता बड़ी सीमा है। इनकी वजह से जिंदगी की सच्चाइयों को पर्दे पर नहीं लाया जा सकता। हम अपने जीवन के प्रति ही ईमानदारी नहीं रखते।''

युवा फिल्मकार प्रवेश भारद्वाज कहते हैं, ''अपने यहां ईमानदार बायोग्राफी ही नहीं लिखी गई है। किसी के मर जाने पर आप कुछ भी कह लें, उसे काटने या विरोध करने तो कोई नहीं आता। कुछ लोग अपने अतीत के बारे में ऐसे बातें करते हैं, जैसे वे ही सब कुछ डिक्टेट करते थे।'' प्रवेश भारद्वाज फिल्म संबंधी बॉयोपिक फिल्मों में श्याम बेनेगल की भूमिका और परेश मोकाशी की हरिश्चंद्राची फैक्ट्री का उल्लेख करते हैं।

श्याम बेनेगल की भूमिका हंसा वाडकर के जीवन पर आधारित फिल्म थी जिसमें स्मिता पाटिल ने उनकी भूमिका निभायी थी। यह फिल्म हंसा के निजी जीवन के साथ उनके प्रोफेशनल कॅरियर को भी समेटती चलती है। स्मिता पाटिल के भावपूर्ण अभिनय ने इसे विश्वसनीय रूप दिया था। कहते हैं कि इसके प्रीमियर में हंसा वाडकर स्वयं आई थीं और उन्होंने स्मिता पाटिल के अभिनय की तारीफ की थी।

देखना है कि डर्टी पिक्चर के बाद बायोपिक या फिल्म हस्तियों से प्रेरित फिल्मों का ट्रेड बढ़ता है या नहीं!

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