ऑन स्‍क्रीन ऑफ स्‍क्रीन : रिश्तों के इर्द-गिर्द घूमती हैं करण जौहर की फिल्में

रिश्तों के इर्द-गिर्द घूमती हैं करण जौहर की फिल्में-अजय ब्रह्मात्‍मज

युवा फिल्मकारों में करण जौहर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के प्रतिनिधि चेहरे हैं। अपने व्यक्तित्व और फिल्मों से उन्होंने खास जगह हासिल की है। हिंदी फिल्मों की शैलीगत विशेषताओं को अपनाते हुए उसमें नए लोकप्रिय तत्व जोडने का काम उन्होंने बहुत खूबसूरती से किया है। वे एक साथ शर्मीले और मुखर हैं, संकोची और बेधडक हैं। स्पष्ट और गूढ हैं। खुशमिजाज और गंभीर हैं। विरोधी गुणों और पहलुओं के कारण वे एक ही समय में जटिल और सरल नजर आते हैं। व्यक्तित्व के इस द्वैत की वजह से उनमें अद्भुत आकर्षण है। वे यूथ आइकन हैं। वे देश के एकमात्र लोकप्रिय निर्देशक हैं, जिनकी लोकप्रियता और स्वीकृति किसी स्टार से कम नहीं है।

सुरक्षित माहौल की परवरिश

लोकप्रियता और स्वीकृति के इस मुकाम तक पहुंचने में करण जौहर की लंबी यात्रा रही है। यह यात्रा सिर्फ उम्र की नहीं है, बल्कि अनुभवों की सघनता सामान्य व्यक्ति को सलेब्रिटी बनाती है। करण जौहर ने खुद को गमले में लगे सुंदर पौधे की तरह ढाला है, जो धरती और मिट्टी से जुडे बिना भी हरा-भरा और खिला रहता है। महानगरों के सुरक्षित माहौल में पले-बढे सलेब्रिटी की आम समस्या है कि वे ज्ञानी, अनुभवी और प्रतिभासंपन्न होने के बावजूद अपने समाज और देश की वास्तविक आकांक्षाओं से थोडे कटे होते हैं।

करण जौहर 21वीं सदी के उत्तर आधुनिक दौर के सलेब्रिटी हैं, इसलिए उनकी सीमाएं स्पष्ट हैं। वे अपनी प्रगल्भता से इन सीमाओं को जाहिर नहीं होने देते।

सच और झूठ की दुविधा

करण के व्यक्तित्व में दोहरापन है। बचपन से वे सच और झूठ की दुविधा में जी रहे हैं। उनके खंडित व्यक्तित्व की शुरुआत स्कूल के दिनों से होती है। वे जिस स्कूल में पढते थे, वहां उनके सहपाठियों में से कोई भी हिंदी फिल्मों की बातें नहीं करता था। हिंदी फिल्में हीन समझी जाती थीं। लिहाजा करण ने अपने पिता की गलत पहचान दी थी। उन्होंने सहपाठियों को बता रखा था कि उनके पिता एक्सपोर्टर हैं। करण जौहर जब नौवीं कक्षा में थे तो उनके पिता की फिल्म मुकद्दर का फैसला की होर्डिग महालक्ष्मी में लगी। करण के सहपाठियों ने होर्डिग में जौहर का नाम देखा तो करण से पूछना शुरू किया, यश जौहर तो तुम्हारे पिता का नाम है न? क्या ये तुम्हारे पिता हैं? करण साफ मुकर गए। उन्होंने कहा, मेरे पिता तो एक्सपोर्टर हैं। हिंदी फिल्मों के निर्माण से उनका कोई रिश्ता नहीं है।

हिंदी फिल्मों से दूरी

उन दिनों करण दक्षिण मुंबई में रहते थे। सितारों के बेटे-बेटियों की बर्थडे पार्टी में वे कभी-कभार जुहू आते थे। जुहू में उनकी मुलाकात आदित्य चोपडा, अभिषेक बच्चन और उनकी बहन श्वेता से होती थी। इन पार्टियों से करण बहुत खुश नहीं होते थे। वे झल्ला कर घर लौटते थे और अपनी मां से कहते थे कि उन्हें जुहू न भेजा करें। जुहू की पार्टियों में केवल हिंदी फिल्मों की बातें होती हैं और वे लोग हिंदी में बातें करते हैं। हिंदी और हिंदी फिल्मों से बैर भाव के बावजूद करण को अमिताभ बच्चन की सिलसिला बहुत अच्छी लगी थी। स्कूल से लौटने के बाद वे सिलसिला देखा करते थे। उन्होंने कभी यह बात भी स्वीकार की थी कि कम से कम 40 बार उन्होंने यह फिल्म देखी है। फिल्मी माहौल, फिल्मी परिवार और फिल्मी दोस्तों की संगत का अप्रत्यक्ष असर उन पर पड रहा था। वह अंदर ही अंदर अंकुरित हो रहा था। इसका एहसास स्वयं करण को भी नहीं था।

इरादा तो कुछ और था

करण ने स्कूल की पढाई खत्म करने के बाद फ्रांसीसी भाषा सीखी। उनका इरादा मास कम्युनिकेशन की पढाई करके पत्रकार बनने का था। वे इसकी तैयारी कर चुके थे। पेरिस के एक इंस्टीट्यूट में प्रवेश भी मिल गया था। इस बीच एक क्रिएटिव संयोग हुआ। कॉलेज के दिनों में ही आदित्य चोपडा से नजदीकियां बढ गई थीं। दोनों मिलते थे और हिंदी फिल्मों की बातें किया करते थे। साथ में हिंदी फिल्में देखते थे। एक दिन आदित्य चोपडा ने उन्हें फोन किया कि उन्होंने एक फिल्म की कहानी सोची है और उसे वे करण को सुनाना चाहते हैं। तब करण मालाबार हिल में रहते थे। आदित्य चोपडा ने उन्हें दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे की कहानी सुनाई। कहानी करण को अच्छी लगी। इस फिल्म की स्क्रिप्ट पर दोनों लगातार बातें करते रहे। करण अपना इनपुट देते रहे और आदित्य करण की सलाह पर गौर करते रहे। तीन-चार हफ्तों तक चले इस सिलसिले के बाद आदित्य चोपडा ने करण के सामने प्रस्ताव रखा कि वह फिल्म के साथ अभिन्नता से जुडे हैं। इस फिल्म के निर्देशन में वह आदित्य को असिस्ट करें। अब करण के चौंकने की बारी थी। उनका जवाब था, हिंदी फिल्म और मैं, नो वे। मैं तो हिंदी फिल्मों के बारे में सोच ही नहीं सकता। मेरे अंदर वह बात ही नहीं है। आदित्य ने फिर भी करण को राजी किया। जब करण के पिता यश जौहर को यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि अच्छा होगा कि करण यश चोपडा को असिस्ट करें। बहरहाल, करण ने तय किया कि वे आदित्य को असिस्ट करेंगे। हिंदी फिल्मों को एक साल देंगे। अगर कोई राह निकलती है तो ठीक, अन्यथा लौट आएंगे।

हिंदी फिल्मों का नशा

हिंदी फिल्मों का नशा गोंद की तरह चिपकता है। इनके भंवर में फंसने पर कोई भी पार नहीं निकलता। करण जौहर के साथ वही हुआ। पहले असिस्टेंट और फिर स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर उन्होंने पहचान बनाई। पहली ही फिल्म से अपना सिक्का जमाया। बाद में वे सफल प्रोड्यूसर बने। उनका करियर ग्राफ आदित्य चोपडा के समानांतर विकसित होता गया। यशराज फिल्म्स और धर्मा प्रोडक्शन के विस्तार और विकास का अध्ययन फिल्म इंडस्ट्री का रोचक अध्ययन हो सकता है। आदित्य चोपडा और करण जौहर के योगदान से उनकी कंपनियां आज देश की प्रमुख प्रोडक्शन कंपनियां बन चुकी हैं। दोनों बैनरों में नए निर्देशकों और फिल्म निर्माण से संबंधित अन्य प्रतिभाओं को मौके मिल रहे हैं। आदित्य चोपडा और करण जौहर की कार्यप्रणाली में कई समानताएं हैं, लेकिन कुछ अंतर भी हैं। करण जौहर ने यह अंतर पैदा किया है। इस अंतर के साथ वे धर्मा प्रोडक्शन को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं।

करण जौहर की स्वतंत्र शुरुआत और पहचान में शाहरुख खान का मजबूत हाथ रहा है। वही करण की प्रेरणा और वही गाइड हैं। स्विट्जरलैंड में फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे की शूटिंग में आपसी बातचीत के दौरान शाहरुख खान ने करण को अपनी फिल्म बनाने की सलाह दी। शाहरुख की बात का समर्थन फिल्म की नायिका काजोल ने भी किया। हालांकि करण कहते हैं कि इस सलाह को उन्होंने मजाक में लिया और कहा कि अगले सात-आठ सालों में वह जरूर निर्देशक बन जाएंगे। शाहरुख ने करण के बहाने नहीं सुने। उन्होंने जोर देकर करण की निर्देशित फिल्म में काम करने की भी पेशकश की। काजोल ने भी फिल्म में काम करने का वादा किया। फिर भी करण जौहर इसे हंसी-मजाक समझते रहे। फिल्म शूटिंग के दरम्यान कई बार ऐसे हलके-फुलके प्रसंग आते हैं, जब फिल्म स्टार किसी असिस्टेंट की झूठी तारीफ करके उसे बेवकूफ बनाते हैं। करण कहते हैं, मुझे लगा कि आज बेवकूफ बनने की मेरी बारी है। हालांकि तब मैंने शाहरुख खान को पूरी गंभीरता से जवाब देते हुए कहा कि कुछ समय की ट्रेनिंग के बाद ही मैं निर्देशन की बात सोच सकता हूं।

ऐसे बनी पहली फिल्म

करण ने एक इंटरव्यू में शाहरुख खान से अपने लगाव और उनके पितातुल्य व्यवहार का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था, शाहरुख खान मेरे बडे भाई, पिता और संरक्षक की तरह हैं। उन्होंने हर मौके पर मुझे प्रोत्साहित किया। हमेशा वे मेरे साथ रहे। दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे की शूटिंग के समय उन्होंने मुझे निर्देशक बनने के लिए प्रेरित किया। शूटिंग के बाद मुंबई लौटने पर उन्होंने एक बार मुझे बुलाया और कहा कि वह अक्टूबर-नवंबर में खाली हैं। उन तारीखों में मैं अपनी फिल्म की शूटिंग प्लान कर सकता हूं। तब तक न तो मैंने निर्देशक बनने का मन बनाया था और न मेरे पास कोई कहानी थी। खैर, शाहरुख खान के दबाव और आदित्य चोपडा के प्रोत्साहन में करण ने फिल्म की कहानी सोचनी शुरू कर दी। आरंभ में दो कहानियों पर काम किया, जो बाद में एक ही फिल्म कुछ कुछ होता है की स्क्रिप्ट बन गई। इस फिल्म के कथ्य के स्तर पर कुछ भी नया नहीं था, लेकिन प्रस्तुति और कलाकारों की केमिस्ट्री और स्फूर्ति ने दर्शकों को बांधे रखा। कुछ कुछ होता है ने भारत से ज्यादा विदेशों में बिजनेस किया। इस फिल्म की सफलता ने शाहरुख को अप्रवासी भारतीयों का चहेता स्टार बना दिया। आदित्य चोपडा ने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे से एनआरआई या डॉलर सिनेमा की जो शुरुआत की, उसे करण जौहर ने ठोस स्वरूप और आकार दिया।

रिश्तों की आत्मीयता पर जोर

करण ने अभी तक कुल चार फिल्में निर्देशित की हैं। कुछ कुछ होता है, कभी खुशी कभी गम, कभी अलविदा न कहना और माय नेम इज खान। इन चारों फिल्मों में से आरंभिक तीन फिल्में एक स्वरूप और स्तर की हैं, लेकिन अपनी अंतिम फिल्म माय नेम इज खान में करण अलग नजरिये और कथ्य के साथ आए। उन्होंने के अक्षर से अपना मोह और अंधविश्वास तोडा। कहते हैं कि लगे रहो मुन्नाभाई में अंक और अक्षर ज्योतिष की आलोचना देखकर करण को एहसास हुआ कि के अक्षर से फिल्में नहीं चलतीं, बल्कि फिल्मों के चलने के लिए उनका बेहतर होना आवश्यक है। इसके अलावा उन्होंने हिंदी फिल्मों के फॉम्र्युले का अपना ढर्रा भी तोडा। करण जौहर की फिल्मों में भारतीय मूल्यों के साथ रिश्तों की आत्मीयता पर जोर रहता है। अंतिम फिल्म में उनके किरदार समाज और अपने समय की धारणाओं से टकराते नजर आते हैं। हालांकि करण जौहर अपनी सोच की सीमाओं के कारण भावनात्मक निदान ही सोचते हैं, लेकिन इससे उनकी फिल्मों का क्रिएटिव शिफ्ट जाहिर हुआ।

कडवाहट जाहिर नहीं करते

धर्मा प्रोडक्शन के बैनर के तहत करण जौहर ने फिल्में प्रोड्यूस करने का सिलसिला जारी रखा है। इन फिल्मों में उन्होंने नए निर्देशकों को मौका दिया। दूसरे निर्देशकों-निर्माताओं की तरह उन्होंने फिल्मों की प्रस्तुति में अपनी सोच डालने की कोशिश नहीं की। उनकी फिल्मों में निर्देशकों को विषयों के स्वतंत्र निर्वाह की छूट रहती है। विषय-चुनाव के समय ही करण अपना प्रभाव डालते हैं। अभी भी उनके प्रोडक्शन की फिल्मों की मोटी समानताएं खोजी जा सकती हैं। कल हो न हो, काल, दोस्ताना, वेकअप सिड, आई हेट लव स्टोरीज, वी आर फैमिली, अग्निपथ और एक मैं एक तू में करण ने मुख्य रूप से नए निर्देशकों को मौके दिए। कुछ फिल्में सफल रहीं। कुछ निर्देशकों से संबंध टूटे, लेकिन करण ने कभी अपनी खटास जाहिर नहीं की। वे मृदु स्वभाव के हैं। किसी के प्रति कटु हों तो भी कटुता जाहिर नहीं करते। मैंने गौर किया है कि कैमरा ऑन होते ही उनके चेहरे की भंगिमा बदल जाती है। वे मुस्कराने लगते हैं। कैमरा ऑफ होते ही गंभीर हो जाते हैं।

..और किया वजन कम

करण के सार्वजनिक व्यक्तित्व में निखार कॉफी विद करण से आया। वर्ष 2004 में आरंभ हुए इस सलेब्रिटी शो में करण ने फिल्म इंडस्ट्री के सभी चर्चित स्टारों को बुलाया और उनसे बेलाग बातचीत की। बातचीत में स्टारों ने अपनी जिंदगी के वे राज भी बताए, जिन्हें प्राइवेट और निजी कहते हुए वे पत्रकारों से छिपा लेते हैं या टाल देते हैं। फिल्म बिरादरी से उनके संबंधों के कारण कॉफी विद करण बेहद पॉपुलर हुआ। टीवी पर आने और लोगों के घरों में सीधे पहुंचने के इस अवसर का लाभ करण ने अपने व्यक्तित्व में लिया। उन्होंने वजन कम किया, डिजाइनर कपडे पहने और किसी स्टार की तरह प्रभामंडल विकसित किया।

िफलहाल करण हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे चर्चित व लोकप्रिय निर्देशक हैं। वे सभा-सोसाइटी और सेमिनार में भी बोलते नजर आते हैं। एक तरफ वे यश चोपडा के उत्तराधिकारी प्रतीत होते हैं तो दूसरी तरफ फिल्म इंडस्ट्री के मुखर प्रवक्ता के रूप में प्रभावित करते हैं। इन दिनों वे अपनी नई फिल्मों की तैयारी कर रहे हैं। वे परिपक्व और सचेत हुए हैं। उम्मीद है कि भविष्य में हिंदी सिनेमा की दिशा तय करने में उनकी सक्रिय भूमिका बनी रहेगी।

Comments

Sonu Upadhyay said…
वाह करण जौहर पर इतना संतुलित और उनके ज टिल व्‍यक्‍ितत्‍व को इतनी सरलता के साथ पेश करने वाले इस आलेख का अपना व्‍यक्‍तित्‍व भी काबिले तारीफ है. बढिया और बेहतरीन जानकारी परख आलेख बधाइयां

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