अच्छी फिल्मों का कोई फार्मूला नहीं होता, फिर भी एक उनमें एक तथ्य सामान्य होता है। वह है विषय और परिवेश की नवीनता। निर्देशक नीला माधव पांडा और लेखक संजय चौहान ने एक निश्चित उद्देश्य से आई एम कलाम के बारे में सोचा, लिखा और बनाया, लेकिन उसे किसी भी प्रकार से शुष्क, दस्तावेजी और नीरस नहीं होने दिया। छोटू की यह कहानी वंचित परिवेश के एक बालक के जोश और लगन को अच्छी तरह रेखांकित करती है। मां जानती है कि उसका बेटा छोटू तेज और चालाक है। कुछ भी देख-पढ़ कर सीख जाता है, लेकिन दो पैसे कमाने की मजबूरी में वह उसे भाटी के ढाबे पर छोड़ जाती है। छोटू तेज होने केसाथ ही बचपन की निर्भीकता का भी धनी है। उसकी एक ही इच्छा है कि किसी दिन वह भी यूनिफार्म पहनकर अपनी उम्र के बच्चों की तरह स्कूल जाए। उसकी इस इच्छा को राष्ट्रपति अबदुल कलाम आजाद के एक भाषण से बल मिलता है। राष्ट्रपति कलाम अपने जीवन के उदाहरण से बताते हैं कि लक्ष्य, शिक्षा, मेहनत और धैर्य से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कर्म ही सब कुछ है। उस दिन से छोटू खुद को कलाम कहने लगता है। उसकी दोस्ती रजवाड़े केबालक रणविजय सिंह से होती है। दोनों एक-दूसर
Comments
है(सम्भोग) और जब मै किसी से मिलता हू तो हैरान होता हू क्योकि वे बात करती है ईस्वर की...आत्मा की...परमात्मा की... वैश्या भी उसी समाज का हिस्सा है वैसे जैसे एक बड़े घर में कही कोने में
तालाबंद कोई कमरा जिसमे जाने आने का रास्ता कोई चोर खिडकी है......फिल्म में sunny leoan को क्यों लिया गया या फिल्म में किस विषय को उठाया गया है ये मुझे नही पता पर ये एक तरह से ठीक
है की कमरे का ताला खोला जाये कमरे का जुडाव घर से हो ताकि कुछ समय बाद आने वाली पीढियो के लिए ये सवाल ही ना बचे की उस कमरे में ताला क्यों लगा है...मतलब आखिरकार वैश्या का जन्म हुआ
कैसे ??? मैंने एक लेख कुछ दिनों पहले पढ़ा की सबसे पहली बार भारतीय सिनेमा में kiss scene तबू ने किया था तब उस फिल्म को अश्लील का दर्जा दिया गया था और आज क्या हालत है की ये एक
सामान्य सी बात बन गयी है हमारे सिनेमा और आम जगत के लिए.....समाज को आप जीतना छूट देंगे वो उतना ही सुन्दर और अच्छा बनेगा ना की खराब मै तो निर्माता और निर्देशक की हिम्मत की प्रसंसा
करूँगा की उन्होंने इतना साहसी कदम उठाया