सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को
सिनेमालोक साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों जमशेदपुर की फिल्म अध्येता और लेखिका विजय शर्मा के साथ उनकी पुस्तक ‘ऋतुपर्ण घोष पोर्ट्रेट ऑफ अ डायरेक्टर’ के संदर्भ में बात हो रही थी. उनकी यह पुस्तक नॉट नल पर उपलब्ध है. विजय शर्मा ने बांग्ला के मशहूर और चर्चित निर्देशक ऋतुपर्ण घोष के हवाले से उनकी फिल्मों का विवरण और विश्लेषण किया है. इस पुस्तक को पढ़ते हुए मैंने गौर किया कि उनके अधिकांश फिल्में किसी ने किसी साहित्यिक कृति पर आधारित हैं. उनकी ज्यादातर फिल्में बांग्ला साहित्य पर केंद्रित हैं. दो-तीन ही विदेशी भाषाओं के लेखकों की कृति पर आधारित होंगी. विजय शर्मा से ही बातचीत के दरमियान याद आया कि भारतीय और विदेशी भाषाओं की फिल्मों में साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों की प्रबल धारा दिखती है. एक बार कन्नड़ के प्रसिद्ध निर्देशक गिरीश कसरावल्ली से बात हो रही थी. उन्होंने 25 से अधिक फिल्में साहित्य से प्रेरित होकर बनाई हैहैं. मलयालम, तमिल, तेलुगू में भी साहित्यिक कृतियों पर आधारित फ़िल्में मिल जाती हैं. सभी भाषाओं के फिल्मकारों ने अपनी संस्कृति और भाष...
Comments
है(सम्भोग) और जब मै किसी से मिलता हू तो हैरान होता हू क्योकि वे बात करती है ईस्वर की...आत्मा की...परमात्मा की... वैश्या भी उसी समाज का हिस्सा है वैसे जैसे एक बड़े घर में कही कोने में
तालाबंद कोई कमरा जिसमे जाने आने का रास्ता कोई चोर खिडकी है......फिल्म में sunny leoan को क्यों लिया गया या फिल्म में किस विषय को उठाया गया है ये मुझे नही पता पर ये एक तरह से ठीक
है की कमरे का ताला खोला जाये कमरे का जुडाव घर से हो ताकि कुछ समय बाद आने वाली पीढियो के लिए ये सवाल ही ना बचे की उस कमरे में ताला क्यों लगा है...मतलब आखिरकार वैश्या का जन्म हुआ
कैसे ??? मैंने एक लेख कुछ दिनों पहले पढ़ा की सबसे पहली बार भारतीय सिनेमा में kiss scene तबू ने किया था तब उस फिल्म को अश्लील का दर्जा दिया गया था और आज क्या हालत है की ये एक
सामान्य सी बात बन गयी है हमारे सिनेमा और आम जगत के लिए.....समाज को आप जीतना छूट देंगे वो उतना ही सुन्दर और अच्छा बनेगा ना की खराब मै तो निर्माता और निर्देशक की हिम्मत की प्रसंसा
करूँगा की उन्होंने इतना साहसी कदम उठाया