मैं सिर्फ और सिर्फ दीपिका के लिए फिल्म देखूंगा. उनके मामले में मुझे इस बात से बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता कि वो क्या पहनी है,क्या नहीं.फिल्म की थीम क्या है और ट्रीटमेंट क्या है ? तीन घंटे स्टिल ही रोल करके दिखाता रहे तो भी देखूंगा. अजय सर आपने मेरी सुबह बना दी. बिना नाश्ता किए ही भरा-भरा लग रहा है.
कोई सम्बन्ध ही नहीं, दोनों का। फिल्म फिर भी देखेंगे..
Anonymous said…
कोई सम्बन्ध ही नहीं, दोनों का। फिल्म फिर भी देखेंगे.. ha ha ha ha mast
Anonymous said…
Tasveer to aapne dikha di hi h,film dekhne k liye ye zaruri ni h.aajkal internet me sabkuch mil jata h.film k pahle din ka response dekhne k baad hum jayenge.
- अजय ब्रह्मात्मज सिस्टम खास कर एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाती और उसके अंतर्विरोधों का मखौल उड़ाती राजकुमार हिरानी की 3 इडियट्स शिक्षा और जीवन के प्रति एक नजरिया देती है। राजकुमार हिरानी की हर फिल्म किसी न किसी सामाजिक विसंगति पर केंद्रित होती है। यह फिल्म ऊंचे से ऊंचा मार्क्स पाने की होड़ के दबाव में अपनी जिंदगियों को तबाह करते छात्रों को बताती है कि कामयाबी के पीछे भागने की जरूरत ही नहीं है। अगर हम काबिल हो जाएं तो कामयाबी झख मार कर हमारे पीछे आएगी। 3 इडियट्स अनोखी फिल्म है, जो हिंदी फिल्मों के प्रचलित ढांचे का विस्तार करती है। राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी इस फिल्म में नए कथाशिल्प का प्रयोग करते हैं। राजू रस्तोगी,फरहान कुरैशी और रणछोड़ दास श्यामल दास चांचड़ उर्फ रैंचो इंजीनियरिंग कालेज में आए नए छात्र हैं। संयोग से तीनों रूममेट हैं। रैंचो सामान्य स्टूडेंट नहीं है। सवाल पूछना और सिस्टम को चुनौती देना उसकी आदत है। वह अपनी विशेषताओं की वजह से अपने दोस्तों का आदर्श बन जाता है, लेकिन प्रिंसिपल वीरू सहस्रबुद्धे उसे फूटी आंखों पसंद नहीं करते। यहां तक कि वे फरहान और राजू के घरव
अच्छी फिल्मों का कोई फार्मूला नहीं होता, फिर भी एक उनमें एक तथ्य सामान्य होता है। वह है विषय और परिवेश की नवीनता। निर्देशक नीला माधव पांडा और लेखक संजय चौहान ने एक निश्चित उद्देश्य से आई एम कलाम के बारे में सोचा, लिखा और बनाया, लेकिन उसे किसी भी प्रकार से शुष्क, दस्तावेजी और नीरस नहीं होने दिया। छोटू की यह कहानी वंचित परिवेश के एक बालक के जोश और लगन को अच्छी तरह रेखांकित करती है। मां जानती है कि उसका बेटा छोटू तेज और चालाक है। कुछ भी देख-पढ़ कर सीख जाता है, लेकिन दो पैसे कमाने की मजबूरी में वह उसे भाटी के ढाबे पर छोड़ जाती है। छोटू तेज होने केसाथ ही बचपन की निर्भीकता का भी धनी है। उसकी एक ही इच्छा है कि किसी दिन वह भी यूनिफार्म पहनकर अपनी उम्र के बच्चों की तरह स्कूल जाए। उसकी इस इच्छा को राष्ट्रपति अबदुल कलाम आजाद के एक भाषण से बल मिलता है। राष्ट्रपति कलाम अपने जीवन के उदाहरण से बताते हैं कि लक्ष्य, शिक्षा, मेहनत और धैर्य से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कर्म ही सब कुछ है। उस दिन से छोटू खुद को कलाम कहने लगता है। उसकी दोस्ती रजवाड़े केबालक रणविजय सिंह से होती है। दोनों एक-दूसर
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