मैं अनपेक्षित भंगिमाओं का अभिनेता हूं-राजकुमार राव


-अजय ब्रह्मात्मज
    हाल ही में सफल हुई  ‘क्वीन’ में राजकुमार राव ने विजय की भूमिका में दर्शकों की घृणा हासिल की। उस किरदार की यही खासियत थी। विजय ऐन शादी के मौके पर रानी को रिजेक्ट कर देता है। इस रिजेक्शन से बिसूरने के पश्चात रानी अकेली हनीमून पर निकलती है। वहां से लौटने के बाद वह रानी से क्वीन बन चुकी होती है। राजकुमार राव इन दिनों नासिक में  ‘डॉली की डोली’ की शूटिंग कर रहे हैं। शूटिंग के लिए निकलने से ठीक पहले उन्होंने झंकार से खास बातचीत की।
-  ‘क्वीन’ की कामयाबी के बाद का समय कैसा चल रहा है?
0 पार्टियां चल रही हैं। कभी कंगना की बर्थडे पार्टी तो कभी  ‘क्वीन’ की सक्सेस पार्टी। दोस्तों की छोटी-मोटी पार्टियां बीच-बीच में चलती रहती है। हम सभी बहुत खुश हैं। फिल्म दर्शकों को पसंद आई। फिल्म ने अच्छा बिजनेस किया। ऐसी सफलता से  ‘क्वीन’ जैसी फिल्मों में सभी का विश्वास बढ़ता है।
- इस कामयाबी को आप कितना एंज्वॉय कर सके?
0 मेरे लिए हर कामयाबी क्षणिक होती है। बहुत खुश हूं। इससे जयादा नहीं सोचता हूं। अभी  ‘डॉली की डोली’ पर फोकस आ गया है।
-  ‘क्वीन’ के विजय को आप कैसे देखते हैं?
0 मेरे लिए वह बहुत ही नार्मल और इंपलसिव लडक़ा है। इस दुनिया में विजय जैसे लडक़ों की भरमार है। मैं उसे गलत नहीं मानता। आप गौर करें तो वह विलेन नहीं है। ग्रे शेड है उसका। मैंने उसे विलेन की तरह प्ले नहीं किया। मैं रानी से अपनी बात भर कहता हूं। उसे डांटता नहीं। मुझे नाटकीय नहीं होना था।
-  ‘शाहिद’ से कैसी और कितनी संतुष्टि मिली?
0 बहुत ज्यादा। वह बॉयोपिक फिल्म थी। शाहिद रियल कैरेक्टर था। मैं लालची एक्टर हूं। चाहूंगा कि हर फिल्म में शाहिद जैसा किरदार मिले। शाहिद मेरे लिए एक यादगार मौका रहा। फिल्म को मिली सराहना से हंसल मेहता और मुझे फायदा हुआ।  ‘काय पो छे’,  ‘शाहिद’ और  ‘क्वीन’ ... एक-एक कर आई तीनों फिल्मों ने मुझे संतुष्ट किया है। यह धारणा बनी है कि मैं सही फिल्में चुन रहा हूं।  ‘शाहिद’ के लिए मुझे फिल्मफेअर का क्रिटिक अवार्ड मिला।
- ख्याति,सराहना और पुरस्कारों के बाद अभी कक्या प्राथमिकाएं हैं?
0 अभी मैं अपनी पसंद की फिल्में चुन पा रहा हूं। ढेर सारी स्क्रिप्ट मिलती हैं। उनमें से दमदार किरदार की फिल्में चुनता हूं। कई बार दुविधा होती है, जब एक साथ एक ही समय शूट होने वाली दो फिल्में पसंद आ जाती हैं। एक को छोडऩा पड़ता है।
- स्क्रिप्ट आप सुनते हैं या पढ़ते है?
0 मैं पढऩा पसंद करता हूं। सुनते समय मैं व्यग्र होने लगता हूं। कई बार नैरेशन देने आया व्यक्ति अच्छा पाठ नहीं करता। मुंह बंद कर उबासियां लेनी पड़ती हैं तो कुढऩ होती है। पढ़ते समय अपना किरदार और फिल्म दोनों समझ में आ जाती है। फिर डायरेक्टर से बात-मुलाकात करनी होती है।
- आप प्रशिक्षित एक्टर हैं। प्रशिक्षण का क्या लाभ हुआ?
0 प्रशिक्षण और अनुभव हमेशा उपयोगी रहता है। एक्टिंग का प्रशिक्षण इंजीनियरिंग के लिए आईआईटी जाने जैसा है। आप सध जाते हैं। आत्मविश्वास बढ़ जाता है। मुझे प्रशिक्षण से बहुत लाभ हुआ। एक्टिंग का मतलब सिर्फ 20 लोगों को एक साथ मारना नहीं है या हीरोइन को भगाकर ले जाना भर नहीं है। एक्टिंग अत्यंत आध्यात्मिक प्रक्रिया है।
- सीखा हुआ काम आता है क्या हिंदी फिल्मों के ढांचे में ... 
0 देखना पड़ता है आप कैसी फिल्म कर रहे हैं और किस के साथ काम करे हैं। मैं पारंपरिक तरीके से कुछ भी नहीं करना चाहता हूं। भाव तो वही रहेंगे, लेकिन मेरी प्रतिक्रिया अलग होनी चाहिए। मैं अनपेक्षित भंगिमाओं का अभिनेता हूं। हिंदी फिल्मों में एक्सप्रेशन सीमित होते गए हैं। मैं अपने किरदार को विश्वसनीय रखना चाहता हूं। इसमें सीखा और देखा हुआ काम आता है।
- आपकी आगामी  ‘सिटी लाइट्स’ कैसी फिल्म है?
0 हंसल मेहता के साथ एक और फिल्म  ़ ़ ़ हम दोनों खूब एक्साइटेड हैं। यह ‘मैट्रो मनीला’ का आधिकारिक सीमेक है। हिंदुस्तान के हिसाब से कहानी बदली हुई है। मैं दीपक हूं। राजस्थान के एक गांव से पत्नी के साथ मुंबई आता हूं। यहां आने पर जिन मुसीबतों से जूझता हूं, उसी की कहानी है ‘सिटी लाइट््स’। हम दोनों मुंबई में एडजस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। यह सरवाइवल और होप की फिल्म है।
-  ‘डॉली की डोली’ क्या है?
0 यह फन कॉमेडी फिल्म है। निर्माता अरबाज खान के लिए अभिषेक डोरा इसे निर्देशित कर रहे हैं। सिचुएशनल कॉमेडी है। सोनम कपूर  डॉली की भूमिका में हैं। मैं हरियाणा का जाट सोनू सहरावत हूं। मैं इस फिल्म में कुछ नया कर रहा हूं। डॉली से में अंधा प्यार करता हूं। उसके लिए कुछ भी कर सकता हूं।

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