दरअसल : आत्मकथा दिलीप कुमार की


-अजय ब्रह्मात्मज
    पिछले दिनों दिलीप कुमार की आत्मकथा आई। इसे उनकी विश्वस्त फिल्म पत्रकार उदयतारा नायर ने लिखा है। दिलीप कुमार ने उन्हें अपनी जिंदगी के किस्से सुनाए हैं। ऐसी आत्मकथाओं में लेखक की संलग्नता अंदरुनी नहीं रहती। खुद के बारे में लिखते हुए जब लेखक रौ में आता है तो कई बार उन प्रसंगो और घटनाओं के बारे में अनायास लिख जाता है,जिन्हें उसका सचेत मन लिखने से रोकता है। इन बहके उद्गारों में ही लेखक का जीवन निर्झर और अविरल बहता है। बताते और लिखवाते समय अक्सरहां लेखक खुद ही अपने जीवन को एडिट करता जाता है। वह नहीं चाहता कि कोई आहत हो या स्वयं उसकी अर्जित छवि में कोई दाग नजर आए। उदयतारा नायर को बताई गई इस आत्मकथा में यह दिक्कत बार-बार आती है। जीवन में ही किंवदंती बन चुके दिलीप कुमार के बारे में हम इतना जानते हैं कि इस आत्मकथा में चुनिंदा तरीके से कुछ प्रसंगों का जिक्र तक न होना खलता है।
    445 पृष्ठों की इस किताब में उदयतारा नायर ने स्वयं दिलीप कुमार के हवाले से उनके जीवन के अनसुने पहलुओं का उजागर किया है। परिवार के प्रति उनका समर्पण देखते ही बनता है। अपनी लोकप्रियता और व्यस्तता के बावजूद उन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियों से कभी मुंह नहीं मोड़ा। हाल ही में उनके भाइयों ने उन पर एक मुकदमा किया कि अपने वायदे से वे मुकर रहे हैं,जबकि जिंदगी भर वे दिलीप कुमार के आसरे ही रहे। दिलीप कुमार में गजब की सलाहियत है। वे पुरानी पीढ़ी के सही प्रतिनिधि हैं। हां,कुछ प्रसंगों का इस आत्मकथा में न होना नागवार गुजरता है। उन्हें मधुबाला के प्रसंग में अवश्य विस्तार से बताना चाहिए था। समय बीतने के साथ ये तथ्य भी ऐतिहासिक दस्तावेज बन जाते हैं। उन्होंने अपनी दूसरी पत्नी आसिमा का भी जिक्र नहीं किया है। इसके साथ ही वे कामिनी कौशल के साथ अपने संबंधों के खुलासे में नहीं गए हैं।
    आत्मकथा ‘दिलीप कुमार- द सब्सटांस एंड शैडो’ के मुताबिक दिलीप कुमार ने कुल 62 फिल्मों में काम किया। उनकी पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ 1944 में आई थी। बांबे टाकीज की इस फिल्म को अमिय चक्रवर्ती ने डायरेक्ट किया था। इसमें उनकी नायिका मृदुला थीं। उनकी आखिरी फिल्म रेखा के साथ 1998 में आई ‘किला’ थी,जिसका निर्देशन उमेश मेहरा ने किया था। दिलीप साहब की कोई फिल्म 1998 के बाद नहीं आई है। उन्होंने अपनी पत्नी सायरा बानो के साथ 1970 में पहली फिल्म ‘गोपी’ की थी। उन्होंने वैजयंती माला के साथ सबसे अधिक 7 फिल्में कीं। ऐसी 13 फिल्में हैं,जिनकी घोषणा और शूटिंग तो हुई,लेकिन वे कभी पूरी नहीं हो सकीं। आज के अभिनेताओं को आश्चर्य होता है कि कैसे सिर्फ 62 फिल्में कर भी कोई दर्शकों की यादों में बना रह सकता है। दिलीप कुमार को अभिनय की पाठशाला कहा जाता है। अमिताभ बच्चन ने तो उनके प्रभाव को स्वीकार किया है। ऐसे अनेक कलाकार भी हैं,जिन्होंने जिंदगी भर उनकी नकल की। अपना नाम रोशन किया और जगह बनाई। दिलीप कुमार हिंदी फिल्मों के उन अभिनेताओं में से हैं,जिनकी शैली शुद्ध भारतीय रही। उन्होंने कभी किसी की नकल नहीं की। वे हिंदी फिल्मों के मौलिक कलाकार हैं।
    इस किताब का रोचक हिस्सा हिंदी फिल्मों के सितारों और दिलीप कुमार के अन्य परिचितों का उनके बारे में लिखना है। सभी ने अपने अनुभव और धारणाओं को साझा किया है। दिलीप कुमार की आत्मकथा सायरो बानो की क्षेपक कथा भी हो गई है। सायरा बानो और उदयतारा नायर के दृष्टिकोण से लिखी इस आत्मकथा में कुछ और जरूरी बातें होनी चाहिए थीं। फिल्मों पर छिटपुट रूप से उन्होंने भिन्न प्रसंगों में कुछ-कुछ कहा है। अच्छा होता कि एक अध्याय उनके अभिनय और उनके समय के अन्य कलाकारों पर रहता।

दिलीप कुमार-द सब्सटांस एंड द शैडो
ऐज टोल्ट टू उदयतारा नायर
प्रकाशक-हे हाउस इंडिया
मूल्य-699 रुपए
   

Comments

आपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर ( संकलक ) ब्लॉग - चिठ्ठा के "विविध संकलन" कॉलम में शामिल किया गया है। कृपया हमारा मान बढ़ाने के लिए एक बार अवश्य पधारें। सादर …. अभिनन्दन।।

कृपया ब्लॉग - चिठ्ठा के लोगो अपने ब्लॉग या चिट्ठे पर लगाएँ। सादर।।
This comment has been removed by a blog administrator.
आपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर ( संकलक ) ब्लॉग - चिठ्ठा के "विविध संकलन" कॉलम में शामिल किया गया है। कृपया हमारा मान बढ़ाने के लिए एक बार अवश्य पधारें। सादर …. अभिनन्दन।।

कृपया ब्लॉग - चिठ्ठा के लोगो अपने ब्लॉग या चिट्ठे पर लगाएँ। सादर।।
dr.mahendrag said…
बर्नार्ड शॉ का कथन है कि आत्मकथा , जीविनिया , कभी भी पूरणतः सच नहीं होती , वही बात इन पर भी लागू होती है अपना दुर्बल पक्ष बिरले ही सामने रखते हैं क्योंकि यह साहस हर एक में नहीं होता

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम